मेरठ के आशीष शर्मा के पिता की तमन्ना थी कि उन का बेटा इंजीनियर बने. लेकिन आशीष इंजीनियरिंग की प्रवेशपरीक्षा में उतना अच्छा रैंक हासिल नहीं कर पाया, जिस से उस का ऐडमिशन किसी अच्छे इंजीनियरिंग कालेज में हो सके और वह एमिटी जैसी डीम्ड यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन के लिए मोटी फीस जुटाने में समर्थ नहीं था.

आखिरकार उस ने उत्तर प्रदेश के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में कंप्यूटर साइंस विषय में दाखिला ले लिया. आशीष अपनी मनपसंद फैकल्टी पा कर खुश था, लेकिन उस की खुशी तब काफूर हो गई जब 3 महीने बाद उसे पता चला कि वहां पढ़ाने वाले योग्य शिक्षकों की कमी है.

कुछ ऐसा ही दिल्ली की सीमा गर्ग के साथ भी हुआ, जिस ने दिल्ली के एक इंजीनियरिंग कालेज की आर्किटैक्चर फैकल्टी में दाखिला लिया था. दाखिले के 2 महीने बाद ही उसे पता चला कि वहां पढ़ाने वाले कुछ विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं, जिस वजह से उस के साथ पढ़ने वाले कुछ छात्रों ने कालेज छोड़ने का मन बना लिया.

और तो और, वह जिस विश्वविद्यालय में पढ़ रही है, उस को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है. उस ने अपने एक साल का नुकसान कर फिर से अगले सत्र के लिए प्रवेशपरीक्षा दी और अच्छी रैंक आने पर जम्मू के एनआईटी कालेज में नाम दर्ज करवाया. इस तरह सीमा का न केवल एक साल बरबाद हुआ, बल्कि उसे करीब डेढ़ लाख रुपए का नुकसान भी हुआ.

बिचौलियों का चक्कर

मणिपुर की मोली ऐमोल मैडिकल की पढ़ाई के लिए बीते 2 वर्षों से प्रवेश परीक्षाएं दे रही थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पाई. इसी दौरान उस के पिता की मुलाकात एक बिचौलिए से हुई, जिस ने 30 लाख रुपए में कर्नाटक के किसी मैडिकल कालेज में उस का दाखिला करवाने का आश्वासन दिया. साथ ही, उस ने कालेज की भी काफी प्रशंसा की और प्लेसमैंट की गारंटी दी.

सत्र की शुरुआत के 2 महीने बाद भी उस ने स्टाफ कोटे से दाखिले का भरोसा दिलाया. पितापुत्री दोनों उस की बातों में आ गए, लेकिन जब उन्होंने कालेज के बारे में दूसरे लोगों से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि बिचौलिए द्वारा किए गए सारे वादे झूठे थे. इस तरह वे पैसे गंवाने और कैरियर खराब होने से बच गए.

एक ऐसा ही मामला दक्षिणी कश्मीर का है, जहां एक शिक्षक इमरान खान गाय पर निबंध नहीं लिख पाया और उस की नौकरी चली गई. इसे सरकारी स्कूलों की शिक्षा का गिरा स्तर कहें या फर्जीवाड़े के शिकार हुए शिक्षक की हकीकत.

डिगरी का फर्जीवाड़ा

दिल्ली सरकार के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की फर्जी डिगरी को ले कर भी हंगामा मचा था. कानून और बीएससी की डिगरी फर्जी होने के आरोप में उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा गया था. उन्होंने बीएससी की डिगरी राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय और कानून की डिगरी भागलपुर (बिहार) के तिलका मांझी विश्वविद्यालय से हासिल की थी. कुछ ऐसा ही मामला बिहार के कुछ शिक्षकों का भी सामने आया था.

फर्जी डिगरी के कारण करीब 2 हजार से अधिक शिक्षकों ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. ऐसा पटना हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए एक आदेश के कारण हुआ. पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन नरसिम्हा रेड्डी और सुधीर सिंह की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता रंजीत पंडित और अन्य जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आदेश में सख्ती से कहा था कि फर्जी शैक्षणिक योग्यता वाले शिक्षक कानूनी कार्यवाही से बचने के लिए खुद ही नौकरी छोड़ सकते हैं.

कुछ ऐसा ही फर्जी डिगरी का मामला राजस्थान में तब आया जब मंडूकला स्थित जोधपुर नैशनल विश्वविद्यालय के दस्तावेजों की जांच स्पैशल औपरेशन गु्रप (एसओजी) द्वारा की गई. इस में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. विश्वविद्यालयों के चेयरमैन सहित तमाम संचालकों ने करीब 10 हजार फर्जी डिगरियों की बंदरबांट की थी. रिकौर्ड में उन तमाम विद्यार्थियों के एनरौलमैंट नंबर तक नहीं पाए गए. जबकि विद्यार्थियों की मार्कशीट में एनरौलमैंट नंबर हैं.

इस के अतिरिक्त फर्जीवाड़े से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण दस्तावेज भी हाथ लगे. एसओजी द्वारा रजिस्ट्रार और वीसी से पूछताछ में उन्होंने स्वीकार किया कि विश्वविद्यालय ने करीब 10 हजार डिगरियां बेची हैं. हालांकि इन की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो सकती है. इस बड़ी धांधली को देखते हुए राजस्थान सरकार ने जोधपुर विश्वविद्यालय को ही बंद करने का मन बना लिया है.

झूठे दावों का जाल

नए सत्र की शुरुआत होते ही देशभर की पत्रपत्रिकाएं नएनए कालेजों और विश्वविद्यालयों के विज्ञापनों से भर जाते हैं. शिक्षा विभाग की वैबसाइट पर कई तरह के प्रलोभनों वाले विज्ञापन आने लगते हैं. कालेज प्रबंधन कौलसैंटरों के जरिए सीधे विद्यार्थियों और अभिभावकों से संपर्क साधने लगते हैं. इन में कई तरह के प्रलोभन दिए जाते हैं और सुविधाएं गिनाई जाती हैं, लेकिन वे विश्वविद्यालय की संबद्घता के बारे में ठोस और संतोषजनक जानकारी नहीं देते हैं.

अकसर युवा उच्चपढ़ाई जैसे एमबीए, बीबीए, एमसीए, बीई, बीटैक, एमटैक, एमबीबीएस जैसे कोर्स करने के लिए बगैर जांचपड़ताल किए ही चमकदमक, हाईफाई ऐक्टिविटी वाले स्टाफ, हाईटैक सुविधाओं वाले कौन्फ्रैंस रूम, स्टडीरूम, लाइब्रेरी, लैबोरैटरी, मल्टीनैशनल कंपनियों में प्लेसमैंट के दावे आदि की गिरफ्त में आ जाते हैं. उन्हें इस की असली हकीकत का पता तब चलता है जब उन की पढ़ाई का सत्र शुरू हो चुका है.

कई बार तो इस का पता पढ़ाई बीचबीच में अटकने और सत्र के समय पर पूरा नहीं होने से होता है. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है. यूजीसी की कोशिशों के बावजूद  पिछले 10 वर्षों में करीब 90 हजार विद्यार्थी फर्जी विश्वविद्यालयों के शिकार बन चुके हैं.

देश में कुल 712 ऐसे विश्वविद्यालय हैं जिन्हें यूजीसी से मान्यता प्राप्त है. इन में 330 राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय हैं, जबकि 128 विश्वविद्यालयों को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है. केंद्रीय विश्वविद्यालयों के तौर पर 46 विश्वविद्यालय हैं. प्राइवेट विश्वविद्यालयों की संख्या 208 है. इन सभी की पूरी जानकारी यूजीसी की वैबसाइट पर उपलब्ध है, जहां से फर्जी विश्वविद्यालयों के बारे में मालूम किया जा सकता है.

अब खास बात यह है कि इन फर्जी विश्वविद्यालयों से बचा कैसे जाए? इन की पहचान किस तरह से की जाए? हालांकि पिछले दिनों यूजीसी द्वारा जारी की गई सूची में पाया गया कि कइयों के पते तक गलत थे और कई किराए के मकान में चलाए जा रहे थे.

मनमानी फीस वसूलते संस्थान

फर्जी विश्वविद्यालयों के जाल में फंस चुके भुक्तभोगियों का कहना है कि प्राइवेट कालेजों के झांसे में एक बार आ गए, तो बगैर नुकसान के नहीं निकल सकते. फर्जी विश्वविद्यालयों के प्रशासक धौंस जमा कर समयसमय पर फीस वसूलते रहते हैं.

उन की आमदनी का स्रोत कुकुरमुत्ते की तरह उग आए प्राइवेट कालेज, कोचिंग इंस्टिट्यूट, पत्राचार के जरिए पढ़ाई करवाने वाली दूरस्थ शिक्षा और औनलाइन पढ़ाई की वैबसाइट्स हैं. ये प्रवेश लेने वाले हर छात्र के हिसाब से फीस वसूलते हैं और खुद को यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त बताते हैं, जबकि उस ने मान्यता के लिए केवल आवेदन किया होता है. यह एक तरह से शिक्षा माफिया द्वारा बुने गए जाल की तरह ही होता है, जिस में कसबे, शहरों से ले कर महानगरों तक मुनाफाखोर फैले हैं. इस धंधे में तथाकथित संस्थाएं और एनजीओ भी शामिल हैं. उन्हें किसी न किसी राजनीतिक दल या राजनेता का संरक्षण प्राप्त होता है. कुछ रिटायर प्रशासनिक अधिकारी भी कानूनी और कागजी प्रक्रिया पूरी करने में अप्रत्यक्षतौर पर इन की मदद करते हैं.

अधिकांश छात्र अच्छे अंक न आने की वजह से फर्जीवाड़े में फंस जाते हैं. वे भावनात्मक स्तर पर देश की मुख्यधारा में घटित विविध घटनाओं की रौ में बह कर शौर्टकट तरीका अपनाते हैं.

दिल्ली की तंग गलियों में चलने वाले कोचिंग इंस्टिट्यूट द्वारा प्रोफैशनल कोर्स करवाने और अच्छी नौकरी दिलवाने का भरोसा दिया जाता है. उन शिक्षण संस्थानों को यूजीसी की मान्यता प्राप्त न होने पर भी वे भविष्य सुधारने का दावा करते हैं. कइयों के दावे तो काफी हैरतअंगेज होते हैं. वे परीक्षाओं में फेल होने के बावजूद बीए, एमए, एमकौम की डिगरी घर बैठे दिलवाने के दावे करते हैं.

इन दिनों इस क्षेत्र में औनलाइन पढ़ाई की सैकड़ों वैबसाइट्स हैं, जो प्राइवेट या सीमित दायरे की क्षमता वाले विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त विदेशी विश्वविद्यालयों से डिगरी दिलाने का भरोसा देते हैं. हैरानी की बात तो यह है कि बीएड और फिजियोथेरैपी जैसे नियमितरूप से पढ़े जाने वाले कोर्स भी डिस्टेंस मोड में चल रहे हैं.

कैसे लगे लगाम

कुल मिला कर देश में फर्जी डिगरियां बेचना एक उद्योग बन चुका है. यूजीसी महज सूची जारी कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है. फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची तो केवल बानगी मात्र है, जो जांच के बाद सामने आई है.

बड़ा सवाल यह है कि इस तरह के फर्जीवाड़े को रोका क्यों नहीं जा रहा है. क्या यह एक तरह से कमीशनखोरी का अवैध खेल नहीं है? भारतीय दंड संहिता की धारा 144 और आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 188 के तहत फर्जी डिगरियां बांटने वाली संस्थाओं को बंद किया जा सकता है.

बहरहाल, आप यदि फर्जी विश्वविद्यालयों के जाल में फंसने से बचना चाहते हैं तो लुभावने वादों वाले विज्ञापनों, सुनीसुनाई बातों और देखादेखी से बचना जरूरी है. शैक्षिक संस्थानों की मौजूदा रैंकिंग जाननी जरूरी है, लेकिन सिर्फ इसी आधार पर दाखिला लेने का फैसला करना भी भूल हो सकती है. इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि बेहतर रैंकिंग वाले कालेज से आप की सफलता सुनिश्चित होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि अभिभावकों को कालेज तलाश करने में अधिक ध्यान छात्र की जरूरत, उस की योग्यता और कमजोरियों पर देना चाहिए.

साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि जिस कालेज या यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रहे हैं वह मान्यताप्राप्त है या नहीं? कालेज में दाखिले का कटऔफ प्रतिशत क्या है? कालेज में छात्रों की संख्या और उन के बैकग्राउंड के बारे में जानना जरूरी है. कालेज की वैबसाइट के अलावा उस की सोशल मीडिया प्रजैंस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, जहां से आप को पता चल पाएगा कि वहां के छात्र किन चीजों से खुश या नाखुश हैं.

कालेज परिसर में रहने के इंतजाम क्या हैं. क्या ये मुख्यतौर पर आवासीय या नियमित आनेजाने वालों का कैंपस है? फैकल्टी की विस्तृत जांचपड़ताल करें, योग्य और स्थायी शिक्षकों के बारे में तो जानकारी होनी चाहिए. मौजूदा छात्रों और हाल में ग्रैजुएट हुए लोगों से बातचीत कर भी अहम जानकारी मिल जाती है. प्रोफैशनल कालेज के पिछले कुछ वर्षों का प्लेसमैंट रिकौर्ड और इंटरर्नशिप देने वाली कंपनियों की लिस्ट से उस की रैंकिंग का अंदाजा लगाया जा सकता है.

अभिभावकों को चाहिए कि कालेज की बुनियादी जानकारी जुटाएं. संबंधित कालेज में दी जाने वाली स्कौलरशिप के बारे में भी पता करें. कालेज में पढ़ाई के लिए मिलने वाले एजुकेशन लोन की जानकारी मिलने से भी सरकार की सुविधाओं के साथसाथ उस की विश्सनीयता का पता चलता है. इस तरह अच्छे से रिसर्च कर फर्जी कालेज और विश्वविद्यालय के जाल में फंसने से बच सकते हैं.

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