लड़कियों की शिक्षा में मातापिता की सोच तो आड़े आती ही है, इस के साथ बड़ी समस्या है लड़कियों की होने वाली छेड़छाड़. बड़ी हो चली लड़कियों के साथ भद्दे मजाक करना, उन्हें गलत ढंग से छूना, उन की मौजूदगी में आपस में लड़कों का सैक्सी पौर्न देखना, पर्चियों पर प्रेम इजहार करना है तो पुरानी बात पर हर बड़ी होती लड़की के लिए यह चुनौती होता है.
लड़कियों को यह छेड़खानी आमतौर पर हंसने तक पर पाबंदी लगा देती हैं. गंभीरता का दुपट्टा ओढ़े रखना इन के लिए एक जरूरत बन जाती है. हंसे और फंसे की परंपरा में किसी भी छेड़खानी या चुटकुले की प्रतिक्रिया का न्यौता समझा जाता है. जो लड़कियां बोल्ड होते हैं, हर तरह की छेड़खानी का बराबर का जवाब देती हैं उन्हें होशियार नहीं माना जाता, चालू माना जाता है और उन्हें पटाने में लड़कों को कोई रुचि नहीं रहती.
लड़कों के साथ न पढ़ने या रहने देने की अपनी मुसीबतें होती हैं. जो सिर्फ लड़कियों के स्कूलों व कालेजों में पढ़ती हैं वे बहुत खुश नहीं रह पातीं और एक तरह से लड़कियों ने स्कूल जेल से हो जाते हैं. जब बाहर जो भी लड़के मिलते हैं उन्हें लपक लिया जाता है क्योंकि चुनने का अवसर ही नहीं मिलता.
बनठन कर मनचाहा और थोड़ा बोल्ड व सैक्सी पहनने की चाह बहुत लड़कियों में होती है पर छेड़छाड़ का भय उन्हें अपनी खूबियों को दिखाने से रोकता है. इसलिए लड़कियां रेव पार्टियों को ढूंढ़ती हैं जहां चुने हुए लड़के हों जो चाहे अति करते हों पर छोटे स्तर के हैं और उन्हें किसी न किसी ने बुलाया होता है. रेव पार्टियों में लड़के अति करते भी हों तो सड़कछाप छेड़छाड़ नहीं कर पाते क्योंकि पार्टी के आयोजक को गुस्से डर होता है.
पिछड़ी व दलित जातियों की लड़कियां भारी गिनती में अब पढ़ने आ रही हैं और उन का प्रदर्शन अब तथाकथित सवर्णों से अच्छा है. ये लड़कियां पहली पीढ़ी की लढ़ीलिखी हैं और घरों में गरीबी के बावजूद जोखिम ले रही हैं. घर का घुटन भरा माहौल और बाहर छेड़छाड़ की बंदिशें लड़कियों को बेहद परेशान कर देती हैं. यह वैसे अच्छा भी है क्योंकि लड़कियां अब इसी वजह ज्यादा अच्छे नंबर लाने लगी हैं और नौकरियों के नए अवसर उन्हें ही मिल रहे हैं और छेड़छाड़ करने वाले लड़के अब दरदर भटक रहे हैं.
छेड़छाड़ वैसे हर समाज में, हर देश में हो रही है और इस का कोई सरल उपाय नहीं क्योंकि यह थोड़ी प्राकृतिक है. इस पर अगर कोई अंकुश लगा सकता है तो केवल घरों का माहौल. घरों में यदि लड़कियों को सही आदर मिले और बराबरी से रखा जाए तो बाहर ऐसे घरों के लड़के अपने आप सीमा में रहेंगे. जिन घरों में लड़कियों को पैर की जूती समझा जाता है वहीं के लड़के बाहर निकल कर छेड़ने को मर्दानगी मानते हैं. घरों में औरतों को सही स्थान कब मिलेगा यह कहा नहीं जा सकता, क्योंकि फिलहाल कई दशकों से कुछ हुआ नहीं है. 1950-70 के बीच बहुत बदलाव आया पर अब थम गया है.