मेरे एक लेक्चरर दोस्त ने कहा, ‘‘चार अक्षर पढ़ लिए, दोचार लेख अखबारों, पत्रिकाओं में छप गए तो किसी को कुछ समझते ही नहीं. अरे, स्वामी सदाचारी, सत्यनिकेतन मोतीबाग, दिल्ली से मिलते ही तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, अंतर की सोई कुंडलियां जाग जाएंगी और सब चौकड़ी भूल जाओगे. मैं 2 बार मिला हूं. बिना पूछे नाम व समस्या न बता दें तो तुम मेरा नाम बदल देना.’’ मैं अपने खयालों में खोया उन की बातें भी सुन रहा था. मुझे लगा जैसे मेरे दोस्त कह रहे हों कि तुम मेरे नाम का कुत्ता पाल लेना, सो मैं ने चौंक कर उन की ओर देखा तो वह कह रहे थे, ‘‘मैं ने एक परचे पर अपना नाम व समस्या लिखी और घड़े में डाल दी. स्वामी सदाचार 6 मीटर दूर बैठे थे. फिर भी मेरी समस्या बता दी और उपाय के लिए इलायची, लौंग मंगाई है. कल सुबह चलना.’’
अगले दिन हम दोनों मोतीबाग पहुंचे. एक महिला, जो मनोहर मेकअप में थी और जिस के शरीर से सेंट की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी, ने ड्राइंगरूम में बिठाया. पानी पिलाया और बोली, ‘‘मैं देखती हूं कि स्वामीजी हवन कर चुके या नहीं. आप का नाम व काम?’’ मैं बोला, ‘‘अपना नाम व काम दोनों मैं स्वामीजी को ही बताऊंगा.’’
वह इतरा कर बोली, ‘‘स्वामीजी तो बिना बताए ही बता देंगे, सर्वज्ञ हैं.’’ उस के बारबार आग्रह पर मैं ने कहा, ‘‘लेंटिकुलर ओपेसिटी है (मोतिया बिंद).’’
‘‘वह क्या होता है?’’ ‘‘यह क्या होता है मैं नहीं जानता पर डाक्टर यही बताता है.’’
स्वामीजी के कमरे पर नोटिस लगा था : ‘केवल एक व्यक्ति कक्ष में प्रवेश करे. स्वामीजी से हुई बातचीत गोपनीय रखें. किसी से चर्चा करने पर हानि हो सकती है.’ नमस्कार के बाद मैं ने कहा, ‘‘सुना है, आप व्यक्ति का विवरण बिना पूछे बता देते हैं.’’
‘‘ठीक सुना है. पर इस काम को करने में समय लगेगा और आज मैं एक राष्ट्रीय महत्त्व के काम में व्यस्त हूं. यह सरकार गिरानी है.’’ ‘‘असंभव,’’ मेरे मुंह से निकला कि उन का सदन में स्पष्ट बहुमत है.
तब मोरारजी देसाई की सरकार थी. सदन में उन का स्पष्ट बहुमत था. स्टीफन विपक्ष के नेता थे. उन की ओर से अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया जा चुका था. बाद में पता चला कि चौधरी चरणसिंह व राजनारायण फोड़े जा चुके थे. ‘‘असंभव को संभव करना या कहें हथेली पर सरसों जमाना ही तो तंत्र का काम है. खैर, अपनी समस्या बताइए.’’
मैं ने कहा, ‘‘लेंटिकुलर ओपेसिटी है.’’ वह बोले, ‘‘डाक्टर क्या कहते हैं?’’
‘‘वह तो इतना ही बताते हैं जितना मैं ने आप को बताया है.’’ स्वामीजी ने अपनी हथेली सामने की और बोले, ‘‘मेरे हाथ में क्या दिखता है?’’
मैं ने कहा, ‘‘गुरु पर्वत उन्नत है, सूर्य रेखा स्पष्ट व गहरी है.’’ ‘‘नहीं, हाथ में कुछ है, कोई वस्तु?’’
‘‘जी नहीं,’’ मैं ने कहा. मेरा हाथ पकड़ कर उन्होंने अपनी हथेली से टकराया और बोले, ‘‘सिद्ध रुद्राक्ष है, जेब में रखो, पूजाघर में रख देना. सामान्य जन से कुछ नहीं लेते. आप को सरल मंत्र बताएंगे. 11 माला हर रोज आधी रात को श्मशान में 11 दिन जपना. पहले एक मंत्र जपना तो भय नहीं लगेगा. शरीर कवचबद्ध हो जाएगा फिर हमें बताना. आप के सामने ही उल्लू की बलि देंगे. उल्लू व पूजासामग्री ला देना. जो काम डाक्टर नहीं कर पाए उसे तंत्र कर देगा. भय लगे तो हमारा शिष्य श्मशान मंत्र सिद्ध कर देगा पर 1,100 रुपए दे देना. कल 250 ग्राम लौंग व इलायची ला देना.’’
मैं फिर नहीं गया. हां, कुछ दिन बाद एक समाचारपत्र में छपा स्वामीजी से संबंधित शिकायत पत्र जरूर पढ़ा : मुझे बलात्कार के झूठे मामले में फंसाया गया है. पुलिस ने कठोर यातनाएं दीं. मेरे हाथों में डंडा बांध कर पंखे से लटका कर घुमाया गया. पानी मांगने पर मेरे सामने पेशाब कर के गिलास पकड़ाया गया. पैर फैला कर डंडा बांध दिया. हाथ पीछे खिड़की से बांधे. 2 दिन खड़े रखा, यहां तक कि मलमूत्र भी उसी दशा में. मैं ने जीवित नरक भोगा.
मैं सच कहता हूं कि मैं निर्दोष हूं. (स्वामी) सदाचारी. दलील, अपील कोई नहीं. वकील- जज आप हैं. उसे निर्दोष भी मानें तो तंत्र क्यों फेल हो गया? झूठी शिकायत करने वाले पर मोहिनी, उच्चारण, मारक मंत्र चलता तो उसे नानी याद आ जाती. किसी दिव्य दृष्टिसंपन्न ऋषि ने अशोक वाटिका में सीता नहीं देखी, रावण पर मोहन मारण मंत्र नहीं चलाया.
एक गुरुजी लाख नहीं करोड़ टके की बात कहते थे. ‘‘पढ़ाई में सिर मत खपाओ. बिना ऊंची पढ़ाई, व्यवसाय में पूंजी लगाए तंत्र, गुरुडम शुरू करो. धन, सम्मान कीर्ति की वर्षा, हलदी न फिटकरी रंग चोखा. मंत्री, उद्योगपति ही नहीं सुंदरसलोनी कोमलांगियां भी तनमन और धन से समर्पित. मनचाहा हल, नौकरी, छोकरी, व्यवसाय में पौबारह, चुनाव विजय, मंत्रीपद गृहक्लेश मुक्ति पलक झपकते मनचाहा.