जैसे ही उन के जनरल प्रोविडैंट फंड के कागज आए, वैसे ही वे दफ्तर की फाइलों की ओर से भी लापरवाह हो गए. ऐसी लापरवाही कि फाइलों से उन का जैसे कभी कोई रिश्ता ही न रहा हो. उन की मेज पर फाइलों का ढेर हर रोज उन के कद से ऊंचा होता जा रहा था, पर वे बेफिक्र. जो आएगा, वह उन के इकट्ठा किए गए गंद में सड़ता रहेगा.

वे सुबह ठुमकठुमक करते दोपहर के 12 बजे तक दफ्तर पहुंचते और जिस किसी को भी सीट पर तनिक गरदन उठाए देखते, उसी के पास गपें मारने हो लेते. किसी का उन के साथ गपें मारने का मन हो या न हो, इस से उन्हे कोई लेनादेना न होता.

जिन फाइलों की उलटापलटी की बदौलत उन्होंने बाबू होने के बाद भी शहर में 4-4 प्लौट खरीदे, बीसियों कंपनियों के हिस्से खरीदे, उन फाइलों से उन की बेरुखी देखने के काबिल थी.

जैसे ही 1 बजता, वे सब से पहले कैंटीन में आ जाते और इंतजार करते रहते कि कोई आए, तो वे उस को 4 बजे तक जैसेतैसे अपनी गपों में लगाए रखें.

आज उन के जाल में शायद मेरा फंसना लिखा था. दफ्तर आतेआते बिल्ली रास्ता काट गई थी, सो जान तो मैं पहले ही गया था कि आज दफ्तर में कुछ अनहोनी होगी, पर मेरे साथ इतना बुरा होगा, ऐसा मैं ने कभी नहीं सोचा था.

कैंटीन में फंसा मैं जब भी उन के पास से उठने की नाकाम कोशिश करता, तो वे कुछ खाने को मंगवा देते और सरकारी लालची कबूतर एक बार फिर पेट भरा होने के बाद भी दाने के लालच में उन के जाल में जा फंसता.

जब मेरा पेट हद से ज्यादा भर गया, तो और मेरे कान उन की बेहूदा बातें सुन कर पक गए, तो मैं ने कैंटीन के दरवाजे की ओर देखा कि कोई दफ्तर से चाय पीने आता, तो मैं उसे इन के हवाले कर इन से छुटकारा पाता.

पर जब दफ्तर से कोई आता न दिखा, तो सच कहूं कि पहली बार मुझे अपने हाल पर रोना आया और मैं ने उन को हद से ज्यादा झेलने के बाद उन से यों ही पूछ लिया, ‘‘मोहनजी, अब रिटायरमैंट के बाद आप का क्या करने का इरादा है? रिटायरमैंट के बाद आप को कोई याद आए या न आए, पर आप की सीट पर काम कराने आने वाले आप को बेहद याद आएंगे. बेचारों को आप ने इस तरह निचोड़ा है कि अगले कई जनमों तक अगर वे इसी देश में पैदा होंगे, तो किसी सरकारी दफ्तर में जाने से पहले सौ बार सोचेंगे.’’

‘‘करूंगा क्या? अब इश्कविश्क करने से तो रहा. घुटने तो घुटने, दिल तक को गठिया हो गया है. यह तो थोड़ाबहुत दफ्तर में…

अब बीवी की सेवा करूंगा, ताकि मरने से पहले उस के कर्ज से छुटकारा पा जाऊं. बेचारी ने किसी भी मन से सही, मेरी बहुत सेवा की है. कहीं ऐसा न हो कि अगले जनम में भी उसी से पाला पड़े,’’  कह कर उन्होंने ऐसा मुंह बनाया, मानो उन के मुंह में किसी ने नीम के पत्तों का गिलास भर रस उड़ेल दिया हो.

‘‘अगर बुरा न मानो, तो मैं आप को रिटायरमैंट के बाद एक बेहतर धंधे की सलाह दे सकता हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘यार प्रदीप, बहुत कर लिया दफ्तर में रहते हुए धंधा. यह 35 सालों तक मैं ने धंधे के सिवा और किया ही क्या है?’’

‘‘मेरी मानो, तो अपने महल्ले में मोबाइल रीचार्ज की दुकान खोल लेना. सारा दिन आराम से कट जाएगा और इस बहाने जाती जवानी भी रुक जाएगी.’’

‘‘हमारे महल्ले में पहले से ही 4-4 रिटायरी इस धंधे में जमे हैं. ऐसे में मुझे नहीं लगता कि…’’

‘‘तो ऐसा करो कि हेयर डाई की दुकान खोल लेना. वैसे भी मैं ने नोट किया है कि ज्योंज्यों हम जैसों की उम्र के बंदों के गाल अंदर को धंसते जा रहे हैं, वे सिर से ऐसे दिखते हैं मानो उन के सिर पर अभीअभी बाल आने शुरू हुए हैं. आज के सिर हैं कि उन्हें अपने पर एक भी सफेद बाल पसंद ही नहीं.

‘‘आज के जमाने का कोई सब से बड़ा दुश्मन है, तो वे हैं सफेद बाल. आज का आदमी उतना परेशान किसी से नहीं, जितना इन सफेद बालों से है. वह मौत का सामना खुशी से कर सकता है, पर सफेद बालों के आगे अपनेआप को बहुत कमजोर पाता है.

‘‘आदमी को उतनी परेशानी रोटी न मिलने पर भी नहीं होती, जितनी परेशानी आईने के आगे खड़े हुए अचानक सिर पर एक सफेद बाल दिखने पर होती है. सिर में एक सफेद बाल दिखते ही उसे लगता है, मानो उस पर मुसीबतों का एक पहाड़ नहीं टूटा, बल्कि कई टूट पड़े हैं,’’ किसी बाबा की तरह उपदेश देते हुए मेरा गला सूख गया था, सो पानी का घूंट ले कर मैं ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘मोहनजी, इधर सफेद बाल सिर में दिखा और उधर डाई बनानेबेचने वालों की फसल कटनी शुरू. कई तो मैं ने ऐसे भी देखे हैं, जो सिर पर बाल न होने के बाद भी गंजे सिर पर ही कालिख मल लेते हैं.

‘‘ये अपने साहब देखे? सिर के तो सिर के, छाती तक के बाल काले कर के दफ्तर आने लगे हैं, ताकि अपनी शर्ट के बटन दिसंबर में भी खुले रख कर खुद को जवान होने के एहसास में डुबोए रहें. उन के दाढ़ीमूंछों के रंगे बालों को देख कर तो नौजवानों के ओरिजनल काले बालों तक को शर्म आ जाती है.

‘‘मैं जब आप की बेटी की शादी में गया था, तो अपनी दादी की उम्र की आप की महल्ले वालियों के रंगे बालों को देख कर दंग रह गया था. लगा था, आप का महल्ला तो जैसे जवानों का महल्ला हो. उन के बूढ़ी होने का पता तब चला था, जब वे कमर पर हाथ रख कर जैसेतैसे वरवधू को आशीर्वाद देने के लिए उठी थीं.

‘‘सच कहूं, आज के आदमी के पास रोटी के लिए पैसे हों या न हों, पर वह बाल डाई करने के लिए पैसे का जोड़तोड़ कर ही लेता है.

‘‘मेरा बस चले तो मैं टांगों तक के सफेद बाल रंग कर ही सांस लूं. आने वाले दिनों में देखना जो बिना डाई किए बालों के मरेंगे, उन्हें स्वर्ग के तो स्वर्ग के नरक तक के ताले नहीं खुलेंगे मिलेंगे. पता है पिछले हफ्ते अपने महल्ले में क्या हुआ था?’’

‘‘क्या हुआ था?’’ यह पूछते हुए मोहनजी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘महल्ले के सौ साल के एक बुजुर्ग गुजर गए.’’

‘‘तो क्या डाक्टरों के मरा बताने के बाद भी वे दोबारा जिंदा हो उठे?’’

‘‘नहीं, अब हम डाक्टरों पर विश्वास कम ही करते हैं… जब उन्हें देवभूत लेने आए, तो उन के सफेद बालों को देख कर उन्हें ले जाने से साफ मुकरते हुए बोले, ‘माफ करना, हम इन्हें नहीं ले जा सकते.’

‘‘गाड़ी अपनी कर दें क्या भैया? तुम ऊपर बिल अपना दे देना,’’ हम ने उन के आगे गिड़गिड़ाते हुए कहा. सभी को अपनेअपने घर जाने को देर जो हो रही थी. अब यहां लोगों के पास जिंदों के लिए वक्त नहीं, तो मरे हुए के साथ कौन रहे?

‘‘देवभूतों ने चाय पीतेपीते कहा. ‘ये नहीं चलेंगे. नरक में भी नहीं,’

‘‘क्यों नहीं चलेंगे? सौ साल का बंदा ऊपर ही तो चलता है.’’

‘‘यह सुन कर वे बोले, ‘तो ऐसा करो, अगर तुम इन से छुटकारा पाना चाहते हो, तो पहले इन के सफेद बाल डाई कराओ. साहब तक को सफेद बाल वालों से सख्त नफरत है.

‘‘‘जब हम कोई सफेद बाल वाली आत्मा ले जाते हैं, तो वे हमें न सुनने लायक गालियां यह कहते हुए देने लग जाते हैं कि मृत्युलोक से क्या गंद उठा लाए. कितनी बार कहा कि खूबसूरती भी कोई चीज होती है कि नहीं?’’’

इतना सुन कर मोहनजी ने मेरी पीठ थपथपाई और खुद ही मेरे पास से उठ कर मंदमंद मुसकराते हुए घर की ओर हो लिए.

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