सवाल

मैं 26 साल की हूं. मैं 5 फुट 3 इंच हूं और मेरा वजन 70 किलोग्राम है. 5 माह पहले मुझे मासिकस्राव नहीं हुआ था. लेकिन अगले महीने हुआ. उस के 10 दिन बाद मैं ने सुरक्षित यौन संबंध स्थापित किया. उस महीने मुझे समय से मासिकस्राव हुआ. लेकिन अब मुझे देर से मासिकस्राव हो रहा है. इस का क्या कारण हो सकता है? बताएं, क्या करूं?

जवाब

अनियमित या देरी से मासिकस्राव होने के कई कारण हैं. अगर आप यौनसक्रिय हैं, तो पहली बात यह कि आप को गर्भावस्था के बारे में निश्चित करना चाहिए. इस के अलावा पेल्विक अल्ट्रासाउंड की भी जांच होनी चाहिए ताकि अंडाशन में सिस्ट या पौलिसिस्टिक ओवरीज की जांच हो सके. अधिक वजन का भी मासिकस्राव पर प्रभाव पड़ता है. आप की लंबाई के हिसाब से आप का वजन 60 किलोग्राम होना चाहिए. आप को अपने आहार नियंत्रण एवं जीवनशैली में परिवर्तन के जरीए वजन पर नियंत्रण करना चाहिए, जिस से आप के मासिकस्राव को भी नियमित होने में मदद मिलेगी.

पीरियड्स के दौरान दर्द होना बेहद आम बात है. इसे डिसमेनोरिया कहते हैं. बोलचाल की भाषा में इसे मैंस्ट्रुअल पेन भी कहते हैं. कुछ स्थितियों में यह दर्द ज्यादा परेशान करने वाला भी हो सकता है. यह समस्या धीरेधीरे तभी घटती है जब रक्तस्राव घटता है. जब दर्द की स्थिति किसी बीमारी का कारण बनती है, तो इसे सैकंडरी डिसमेनोरिया कहते हैं.

सैकंडरी डिसमेनोरिया के कई कारण हो सकते हैं, जैसे ऐंडोमिट्रिओसिस यूटरिन फाइब्रौयड्स और सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (सैक्स के दौरान फैलने वाले रोग) ऐंडोमिट्रिओसिस की समस्या परिवारों में देखने को मिलती है. मां के इस रोग से प्रभावित होने पर उस की बेटियों में करीब 8 फीसदी तक इस के होने की आशंका रहती है. बहनों में 6 फीसदी तक इस के होने का खतरा रहता है. 7 फीसदी चचेरे भाईबहन से होने का खतरा भी रहता है.

खास बात यह है कि करीब 30-40 फीसदी मरीज जो ऐंडोमिट्रिओसिस से प्रभावित हैं, उन में बांझपन की समस्या भी देखी जाती है.

अनियमित पीरियड्स कई शारीरिक परेशानियों के कारण होते हैं. वैसे सामान्य स्थिति में मासिकधर्म का एक चक्र 3 से 7 दिन का होता है. कई साल तक इस के होने के बाद महिलाएं एक चक्र में स्थापित हो जाती हैं.

यहां तक कि कुछ महिलाएं तो मासिकधर्म आने के ठीक समय का अंदाजा लगा लेती हैं. कुछ महिलाओं को अधिक रक्तस्राव होता है तो कुछ को न के बराबर. टीनऐज युवतियों में इस तरह की समस्या हारमोंस में गड़बड़ी के कारण हो सकती हैं. लेकिन एक उम्र में इस बदलाव के कुछ और भी कारण हो सकते हैं.

अनियमित मासिकधर्म की वजह से बालों का झड़ना, सिर में दर्द रहना, शरीर में अकड़न आदि समस्याएं हो सकती हैं. यही नहीं व्यवहार में चिड़चिड़ापन भी आ सकता है. इसलिए अनियमित मासिकधर्म की समस्या को हलके में न लें. तुरंत डाक्टर से मिलें.

ऐसा क्यों होता है

असामान्य रक्तस्राव कई कारणों से हो सकता है, जिन में हारमोनल परिवर्तन भी शामिल है. यह हारमोनल परिवर्तन कभीकभी यौवन, गर्भावस्था या रजोनिवृत्ति के कारण हो सकता है. हालांकि कई बार यह परिवर्तन महिलाओं के सामान्य प्रजनन वर्षों के दौरान होता है.

हारमोनल परिवर्तन 2 वजहों से हो सकता है- महिला प्रजनन की वजह से या अन्य हारमोन की वजह से जैसे थायराइड आदि.

लिवर ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन को मैटाबोलाइज कर के महिलाओं के मासिकधर्म को नियमित करता है. ऐसे में अलकोहल का सेवन लिवर को नुकसान पहुंचाता है, जिस का असर मासिकधर्म पर पड़ता है.

देर से मासिकधर्म होने या बिलकुल न होने का एक और कारण आहार भी है. वजन का भी इस पर गहरा असर पड़ता है. अगर आप सही आहार नहीं लेती हैं या फिर आप का वजन ज्यादा है, तो इस दौरान कुछ हारमोन के स्राव की मात्रा बदल जाती है, जिस से मासिकधर्म प्रभावित होता है.

इस के अलावा थायराइड हारमोंस कम या ज्यादा होने के कारण भी मासिकधर्म नियमित नहीं होता है. तनाव भी इस के अनियमित होने का एक बड़ा कारण है. अगर आप के रक्तप्रवाह में बहुत ज्यादा कोर्टिसोल है, तो आप के मासिकधर्म का समय बदल सकता है. कई बार मेनोपौज शुरू होने के 10 दिन पहले से भी अनियमित मासिकधर्म शुरू हो जाता है.

लक्षण

ऐंडोमिट्रिओसिस के लक्षण किसी मरीज में बढ़ सकते हैं तो किसी में घट सकते हैं. इस के सामान्य लक्षणों की बात करें तो ऐसी स्थिति में पेट के निचले भाग में दर्द रहता है और बांझपन की शिकायत भी होती है. पेट के निचले हिस्से में दर्द मासिकधर्म के दौरान होता है. इस के अलावा यह दर्द कभीकभी मासिकधर्म के पहले और बाद में भी हो सकता है. कुछ महिलाएं शारीरिक संबंध बनाने के दौरान, यूरिन रिलीज करने या स्टूल करने के दौरान भी इस दर्द का अनुभव करती हैं.

उम्र

ऐंडोमिट्रिओसिस के मामले युवावस्था में सामने आते हैं यानी जब महिलाओं में मासिकधर्म की शुरुआत हो जाती है. यह स्थिति तब मनोपौज तक या पोस्टमेनोपौज तक रह सकती है. ऐंडोमिट्रिओसिस के मामले ज्यादातर महिलाओं में 25 से 35 वर्ष की उम्र में पता चलते हैं. जबकि इस के मामले लड़की में उस की 11 साल की उम्र से देखे जाते हैं. ऐंडोमिट्रिओसिस के मामले पोस्ट मेनोपौजल महिलाओं में कम ही देखने को मिलते हैं.

क्या करें

इस परेशानी से दूर रहने के लिए खानपान पर विशेष ध्यान दें. ज्यादा परेशानी होने खासकर टीनऐज लड़कियों में इस तरह की कोई समस्या हो, तो उन्हें स्त्रीरोग विशेषज्ञा को जरूर दिखाएं वरना आगे चल कर इस के घातक परिणाम भी हो सकते हैं.

गंभीर परिणाम क्या हो सकते हैं

रोजाना जीवन को प्रभावित करने के अलावा, खून की कमी के कारण ऐनीमिया हो सकता है. भारतीय महिलाएं ऐनीमिया की अधिक शिकार हैं. असामान्य और अनियमित रक्तस्राव के साथ हारमोनल परिवर्तन, वजन बढ़ने और गर्भधारण करने में असमर्थता की समस्या से जुड़ा हुआ है.

ऐसे मामलों में क्या करना चाहिए

विशेषज्ञ की राय लेनी जरूरी है. हारमोनल परितर्वन दवा से सही हो सकता है. असामान्य रक्तस्राव हारमोनल परिवर्तन के अलावा अन्य कारणों की वजह से भी हो सकता है जैसे फाइब्रौयड्स, संक्रमण आदि. यहां तक कि कैंसर की वजह से भी ऐसा हो सकता है.

इलाज

ऐंडोमिट्रिओसिस का इलाज दवाओं और सर्जरी दोनों तरह से संभव है. मैडिकल ट्रीटमैंट के तहत दर्द से आराम देने वाली दवाएं दी जाती हैं. सर्जरी ट्रीटमैंट के तहत लैप्रोस्कोपी की जाती है, जिस में एनेस्थिसिया देने के बाद एक छोटे टैलीस्कोप को पेट के अंदर पहुंचा कर सर्जरी द्वारा ऐंडोमिट्रिओसिस की समस्या को खत्म करते हैं. ऐंडोमिट्रिओसिस के ट्रीटमैंट का लक्ष्य दर्द से छुटकारा देने के साथसाथ बांझपन को खत्म करना भी होता है.

उम्मीद

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रोसीजर इन मामलों में काफी प्रभावी रोल अदा करता है. खासकर ऐंडोमिट्रिओसिस से पीडि़त महिलाओं में बांझपन की समस्या होने पर. आईवीएफ तकनीक की मदद से लैब में स्पर्म और एग को निषेचित करते हैं, फिर इस से तैयार होने वाले भ्रूण को महिला के यूटरस में रखा जाता है. इस प्रक्रिया से प्रैगनैंसी रेट को 50 से 60 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है.

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