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बेहद टसल बाले मुंगावली और कोलारस विधानसभा उप चुनावों में कांग्रेस की जीत के अपने अलग सियासी माने हैं, जिसका असर सीधे सीधे इसी साल होने वाले तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के आम चुनावों पर इस संदेश के साथ पड़ेगा कि भाजपा शासित इन राज्यों के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और रमन सिंह अपनी पकड़ और प्रभाव खो रहे हैं.
राजस्थान के दो लोकसभा और एक विधानसभा उप चुनाव की करारी हार के सदमे से भाजपा अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाई थी कि नया झटका उसे मध्य प्रदेश की मुंगावली और कोलारस के नतीजों से लगा.
मुंगावली सीट से कांग्रेस के बृजेन्द्र सिंह यादव ने भाजपा की बाई साहब यादव को 2124 और कोलारस से कांग्रेस के महेंद्र सिंह यादव ने भाजपा के देवेंद्र जैन को 8083 वोटों से हराकर यह साबित कर दिया कि अभी भी मध्य भारत इलाके में सिंधिया राजघराने का दबदबा कायम है, जिसे चुनौती दे पाना या तोड़ पाना कम से कम शिवराज सिंह के बूते की बात तो नहीं.
ये दोनों चुनाव पूरी तरह सिंधिया बनाम शिवराज सिंह हो गए थे, जिनमे दोनों ने ही अपनी अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. प्रचार के आखिरी सात दिन शिवराज केबिनेट के तमाम मंत्री इन दोनों सीटों पर घर घर जाकर भाजपा को जिताने मतदाताओं के हाथ जोड़ रहे थे. खुद शिवराज सिंह ने ऐलान कर दिया था कि पांच महीनों में सरकार यहां इतना विकास कर देगी जितना पांच सालों में भी नहीं हुआ. प्रचार में दोनों दलों ने साम, दाम, दंड, भेद सारे हथकंडे अपनाए थे. दोनों दलों की तरफ से नोट बांटने की शिकायतें हुईं थीं और हजारों फर्जी वोटरों के होने की बात भी उजागर हुई थी, कलेक्टरों के तबादले हुये थे और कई कार्यकर्ताओं के सर भी फूटे थे.
ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना से सांसद हैं, मुंगावली और कोलारस दोनों सीटें इसी संसदीय क्षेत्र में आती हैं जहां से साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की लहर होने के बाद भी परचम लहराया था. शिवराज सिंह की मंशा और दिलचस्पी यह थी कि जैसे भी हो इस इलाके से सिंधिया घराने का सूपड़ा साफ किया जाये, जिससे कांग्रेस ज्योतिरादित्य को बतौर मुख्यमंत्री पेश न कर पाये, जो उनकी सरदर्दी की बड़ी वजह बन सकते हैं. शिवराज सिंह की लोकप्रियता को चुनौती देने का जोखिम ज्योतिरादित्य ने प्रचार में यह कहते उठाया था कि जनता मुझे चुन ले या शिवराज सिंह को चुन ले.
मतदाताओं के सामने यह बड़ी दुविधा थी एक तरफ सरकार और शिवराज के लुभावने लोलीपोप थे, तो दूसरी तरफ महाराज कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य का यह पासा था कि वह अगर शिवराज सिंह को चुनती है, तो वे फिर इस इलाके में झांकेगे नहीं. इसी कशमकश के चलते कांग्रेस बहुत कम वोटों से जीती, जिसे भाजपा अपनी उपलब्धि बताते हार की खिसियाहट पर लीपा पोती कर रही है.
यह मुंगावली और कोलारस के नतीजों का वह पहलू है जो हर किसी को नजर आ रहा है. दूसरे पहलू की स्क्रिप्ट खुद शिवराज सिंह ने साल भर पहले सिंधियाओं की ही प्रभाव वाली सीट अटेर के उपचुनाव प्रचार अप्रेल 2017 में यह कहते लिखी थी कि सिंधिया राजघराने के पूर्वज गद्दार थे और आजादी की लड़ाई के वक्त उन्होंने जनता का नहीं अंग्रेजों का साथ दिया था. तब शिवराज के इस बयान पर खासा बवाल मचा था और बवाल ज्योतिरादित्य ने नहीं बल्कि उनकी बुआओं यशोधरा राजे और वसुंधरा राजे ने मचाया था.
यशोधरा राजे ने तो मीडिया के सामने सुबकते हुये गिनाया था कि कैसे उनकी मां राजमाता विजया राजे सिंधिया ने अपने गहने तक बेच बेच कर पहले जनसंघ और फिर भाजपा को खड़ा करने में अपनी जिंदगी भी पार्टी के नाम कर दी थी और आज उसी पार्टी का जिम्मेदार नेता और मुख्यमंत्री कैसे और क्यों इस तरह की अनर्गल बातें कह रहा है.
यशोधरा राजे के आंसू रंग लाये थे और भाजपा आलाकमान और आरएसएस ने शिवराज सिंह को चेतावनी दी थी कि वे सिंधिया घराने के पूर्वजों के बारे में कुछ न कहें, लेकिन ज्योतिरादित्य को जितना चाहें कोस लें.
तब दरअसल में शिवराज के निशाने पर यशोधरा राजे ही थीं, जिन्होंने कभी शिवराज सिंह के सामने झुक कर बात नहीं की थी और न अभी करती हैं. दोनों यदा कदा ही एक साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखे और जब भी दिखे तब तब यशोधरा राजे की राजसी ठसक भी उनके चेहरे पर दिखी. यह ठसक अभी भी शिवराज सिंह के कलेजे में नश्तर सरीखी चुभती है. शिष्टता और आरएसएस की खुशामद को हथियार की तरह इस्तेमाल करते रहने वाले शिवराज सिंह के बारे में हर कोई जानता है कि उमा भारती और बाबूलाल गौर सरीखे आधा दर्जन दिग्गजों को अपने रास्ते से दूध में पड़ी मक्खी की तरह हटाया है, लेकिन यशोधरा राजे का वे बाल भी बांका नहीं कर पा रहे.
28 फरवरी को जब वोटों की गिनती चल रही थी, तब प्रादेशिक न्यूज चेनल्स पर भाजपा के पिछड़ की वजह गिनाते नेताओं, पत्रकारों और विश्लेषकों ने सब कुछ गिना डाला कि किसान व्यापारी कर्मचारी सभी भाजपा से नाराज हैं, युवा बेरोजगारी से त्रस्त हैं और सिंधिया के गढ़ में सेंधमारी करना उतना आसान काम है नहीं, जितना शिवराज सिंह और भाजपा समझते हैं, दूसरे शिवराज सिंह की लच्छेदार भाषण शैली और वादे करने के रोग से प्रदेश की जनता ऊब चली है. कुछ कुछ ने भाजपा की अंदरूनी कलह और फूट की तरफ भी इशारा किया.
लेकिन मुद्दे की बात देर रात शिवराज सिंह खेमे से इस चर्चा को तूल देना रही कि मुंगावली कोलारस में भाजपा नेताओं का बड़बोलापन हार की वजह बना. इस चर्चा का सीधा इशारा यशोधरा राजे के उस भाषण की तरफ था जिसमें उन्होंने मतदाताओं से यह कहा था कि अगर भाजपा को नहीं जिताया तो सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिलेगा. कमोबेश ऐसे ही बातें एक और कैबिनेट मंत्री माया सिंह ने भी कहीं थी जो सिंधिया घराने के नजदीकी रिश्तेदार हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि पूरी ताकत झोंक देने के बाद भी इस प्रतिष्ठा पूर्ण चुनाव में मिली हार से शिवराज सिंह की साख और धाक दोनों को धक्का लगा है. यशोधरा ने जानबूझ कर मतदाताओं को नाराज करने बाला भाषण अगर दिया था और हार की एकलौती वजह वही भाषण है तो भी राजनीति के लिहाज से बात हैरत की नहीं, कोई भी अपनी पूर्वजों को सरेआम गद्दार जैसे संबोधन से नवाजा जाना हजम नहीं कर सकता. कइयों को धकियाने वाले शिवराज सिंह पहली बार दिक्कत में दिख रहे हैं कि कैसे इन दोनों हारों का ठीकरा यशोधरा राजे के सर इस तरह फोड़ें कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे.
आम चुनाव सर पर हैं और शिवराज सिंह विरोधी लौबी भी सक्रिय हो चली है, ऐसे में कोई फसाद खड़ा करने का जोखिम शिवराज उठाएंगे, वह भी यशोधरा राजे के खिलाफ ऐसा लग नहीं रहा. राज्य में चौराहों पर चटखारे लेकर कहा जा रहा है कि बुआ भतीजे ने मिलकर ऐसे निबटाया है कि भड़ास न उगलते बन रही न ही निगलते बन रही. शिवराज सिंह के गृह जिले के एक भाजपा कार्यकर्ता ने बड़े चुटीले अंदाज में कहा चुनाव से डर नहीं लगता भाईसाहब को सिंधियाओं से डर लगता है.