राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार भारतीय जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय को महापुरुष का सरकारी दर्जा देने जा रही है. राज्य सरकार ने तय किया है कि सरकारी कार्यक्रमों में महात्मा गांधी की तसवीर के साथ अब उन की तसवीर भी लगाई जाएगी. इस के साथ ही ‘गांधी जयंती’ की तर्ज पर उन का जन्मदिन मनाने को ले कर भी विचार किया जा रहा है.
सरकारी लैटरपैड और आदेशों में दीनदयाल उपाध्याय का फोटो भी अनिवार्य किया जाएगा. इस से पहले प्रदेश के सरकारी इश्तिहारों में उन की तसवीर अनिवार्य करने के साथ ही स्कूलों की लाइब्रेरी में उन की जीवनी रखना अनिवार्य किया जा चुका है.
सरकारी इश्तिहारों की तर्ज पर लैटरपैड व आदेशों में भगवा रंग में दीनदयाल उपाध्याय की तसवीर वाला लोगो छापा जाएगा. भाजपा विधायकों के लैटरपैड पर भी उन की तसवीर छापना अनिवार्य किया गया है.
11 दिसंबर, 2017 के एक शासनादेश के मुताबिक, अब सरकारी पत्राचार के लिए इस्तेमाल में आने वाले लैटरपैड पर दीनदयाल उपाध्याय का लोगो लगाना अनिवार्य होगा. राज्य सरकार के सभी 72 महकमों, बोर्डों, निकायों, निगमों, स्वायत्त संस्थाओं को उन के पुराने छपे लैटरपैड पर दीनदयाल उपाध्याय का लोगो का स्टीकर लगवाना होगा. साथ ही, आगे से जो स्टेशनरी छपवाई जाएगी, उस पर भी यह लोगो होना जरूरी है.
11 दिसंबर के इस शासनादेश पर प्रमुख सचिव के दस्तखत हैं और इसे तुरंत लागू करने की बात कही गई है.
कांग्रेस व दूसरी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने इस का जबरदस्त विरोध किया है. कांग्रेस ने वसुंधरा राजे सरकार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे को लागू किए जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि जिस तरह से शिक्षा का भगवाकरण किया गया है, उसी तरह अब प्रशासन का भगवाकरण करने की कोशिश की जा रही है.
भाजपा द्वारा इस आदेश को ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष’ के लिए बनी कमेटी के लैवल पर लिया गया फैसला बता कर बचाव किया जा रहा है.
प्रदेश के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि सरकारी पत्रों पर फोटो वाला लोगो लगा कर सरकार दीनदयाल उपाध्याय का सम्मान कर रही है. उन्होंने जो काम किए हैं, उस का हम सम्मान कर रहे हैं. कांग्रेस का काम ही विरोध करना है.
कांग्रेस के प्रदेश महासचिव ने भाजपा से जवाब मांगा है कि पहले सरकार यह साफ करे कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का आजादी की लड़ाई और देश को बनाने में क्या योगदान था? साथ ही, भाजपा जनता के बीच यह भी खुलासा करे कि वह उन्हें अशोक महान के समान क्यों मानती है?
इस से पहले भी भाजपा सरकार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार के आरोप सच साबित होते रहे हैं.
22 सितंबर, 2017 को विदेश मंत्रालय ने अपनी आधिकारिक वैबसाइट के होमपेज पर ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज्म’ शीर्षक से एक ईबुक अपलोड की थी. इस ईबुक, जिसे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की कड़ी मेहनत का नतीजा बताया था, में आजाद भारत के शुरुआती इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया था.
उस समय भी सवाल उठा था कि क्या सत्ताधारी दल को अपना प्रचारप्रसार करने के लिए जनता के पैसे और सरकारी संस्थाओं का गलत इस्तेमाल करने की छूट है?
इस के बाद उत्तर प्रदेश के स्कूलों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी के मौके पर भाजपा द्वारा कराई गई सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता पर भी सवाल उठे थे. इस प्रतियोगिता की तैयारी के लिए छात्रों को दी गई किताब पर हिंदुत्व की विचारधारा की प्रचार सामग्री होने की बात कही गई थी. इस के अलावा उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन किया गया है.
इस तरह के दर्जे पहले पुराने जमाने में धार्मिक लोग बांटते थे. राजा व राज्य व्यवस्था गांव प्रमुख, जनप्रमुख वगैरह के रूप में नियुक्तियां जरूर देती थी, जिस का काम प्रशासन का काम देखना, दूसरे कामों में मदद करना व कर वसूली में मदद करना होता था.
मौर्यकाल के समय के ब्राह्मण ग्रंथ पढ़ेंगे तो उन में मौर्य राजाओं को शूद्र का दर्जा दिया गया था. बौद्ध ग्रंथ, स्तंभ, शिलालेख वगैरह पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि उन में मौर्यों को क्षेत्रीय का दर्जा दिया गया था व जैन ग्रंथों में भी मौर्यों को शूद्र बताया गया था.
मौर्यों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया था इसलिए ऊंचा दर्जा मिल गया. ब्राह्मण धर्म को किनारे कर दिया गया तो नाराज ब्राह्मणों ने मौर्यों को शूद्र का दर्जा दे दिया. जैन धर्म को भी सत्ता का संरक्षण नहीं मिला व बौद्धों के भारी विरोध के बाद वे मगध से भाग कर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में जा कर ठहरे थे तो इन के ग्रंथों में भी मौर्यों को शूद्र घोषित कर दिया था.
यह दर्जों का दौर भारतीय इतिहास में हमेशा से रहा है. लेकिन मुगलों के समय में एकाएक ही बदलाव आया था. पहले धार्मिक लोग सत्ता पक्ष को इस तरह के दर्जे देते थे, लेकिन मुगलकाल में सत्ता पक्ष की तरफ से भी दूसरों को दर्जा देने की शुरुआत हुई थी.
आप को याद ही होगा कि अकबर के नौ रत्न थे. ये दर्जे ही थे. जो अकबर को खुश कर देते थे, उन को वे रत्न घोषित कर देते थे.
अंगरेजों के समय दर्जों को उपाधियां कहा जाने लगा था. अंगरेजों ने भी खूब उपाधियां बांटीं. आजादी के बाद भारत की लोकतांत्रिक सरकार ने भी इसे उचित समझ कर जारी रखा.
सत्ता पक्ष दर्जा या उपाधियों की रेवडि़यां बांटेगा तो आम लोगों को तो मिलेंगी नहीं, क्योंकि सत्ता पर कब्जा एक जातिविशेष का है जिस को अंगरेजों ने यह कह कर जज बनाने से इनकार कर दिया था कि ‘ब्राह्मणों में न्यायिक चरित्र ही नहीं है. जो खुद भेदभाव की जड़ों में हैं वे कभी न्याय कर ही नहीं सकते.’
अब दोबारा मौर्यकाल याद कीजिए, जहां ब्राह्मणों ने दान न देने के चलते मौर्यों को शूद्र का दर्जा दिया था. अब धर्म व सत्ता दोनों पर कब्जा ब्राह्मणों का है. दर्जा चाहे धर्म दे या सत्ता दे, देने वाले तो ब्राह्मण ही हैं. अब आप को समझ आ गया होगा कि दर्जें या उपाधियां कैसे व किस को दी जाती होंगी.
अब राजस्थान की सरकार इतिहास बदलने में लगी है तो हलदी घाटी की लड़ाई तो जितवा ही दी है और अब दीनदयाल उपाध्याय को महापुरुष बना कर ही छोड़ेगी.
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