नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग के पांच और नेताओं के इस्तीफे के बाद पार्टी में टूट की आशंकाएं फिर जन्म लेने लगी हैं. खास बात ये कि इस्तीफे उस अध्यात्मिक नेता को सौंपे गए हैं, एक अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ टिप्पणी करने वाले पंजाब के कानून मंत्री की बर्खास्तगी मांगने के अभियान में जिनकी खास भूमिका रही है. खास यह भी कि सारे इस्तीफे फैसलाबाद में आयोजित एक प्रदर्शन के दौरान सौंपे गए जहां पीएमएल-एन सरकार के अस्तित्व के लिए बढ़ते खतरों की बढ़-चढ़कर बात की गई. इस बात पर भी जोर दिया गया कि अब किस तरह धार्मिक नेता ही इसे किसी नए अंजाम पर ले जा सकते हैं.

सरकार पर ताजा हमला उस तैयारी का हिस्सा ज्यादा लगता है, जब सरकार को इतना बदनाम कर दिया जाए कि बर्खास्तगी के अलावा कोई विकल्प न रहे. वैसे भी पीएमएल-एन का नवाज जैसे अपने नेता की बर्खास्तगी के बावजूद पार्टी के रूप में बचे रहना महत्वपूर्ण है, वरना अतीत में तो थोड़ी-थोड़ी दुश्वारियों में भी पार्टियों का टूटना या अंतर्कलह का शिकार हो जाना सामान्य बात रही है.

आश्चर्य नहीं कि तमाम दबावों के बावजूद पीएमएल-एन की इस मजबूती को देश के पुख्ता होते लोकतंत्र की निशानी माना जा रहा था. पार्टी नेतृत्व ने भी इसमें कोई कोताही नहीं बरती, लेकिन सारी मजबूती के बावजूद यह भी उतना ही सच है कि पार्टी अब भी तमाम चुनौतियों से जूझ रही है. इधर संयुक्त मोर्चा खड़ाकर इसे शिकस्त देने की कोशिशों में जबर्दस्त इजाफा आया है और अतीत में झांकें तो ऐसे हालात में समान हित के नाम पर नाराज और अलग-थलग पड़ चुके दलों और नेताओं के एक मंच पर आते देर भी नहीं लगती.

पीएमएल-एन इसे समझ रही है और हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है. उसके कुछ खास नेता विपक्षी एकता की संभावनाओं को ध्वस्त करने में लगे हुए हैं. पीएमएल-एन ने राजनीतिक विरोधियों पर इधर जैसी आक्रामकता दिखाई है, उसमें इसे सफलता मिल सकती है,पर बेहतर यही होगा कि पार्टी अपने खिलाफ एक नहीं, कई नए मोर्चे देखने के लिए खुद को तैयार कर ले. दीर्घकालिक राजनीतिक अस्तित्व के लिए यह तैयारी बहुत जरूरी है.

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