पाकिस्तान में चाइना-पाक इकोनौमिक मार्ग व अफ्रीका के तट पर बसे डिजीबाउटी के बाद चीन ने अब श्रीलंका में 99 साल के पट्टे पर एक बंदरगाह ले लिया है. चीन द्वारा भारत की घेराबंदी तेजी से चालू है. भारत ने बदले में अमेरिका व जापान से सहायता ली है पर ये दोनों देश अपने चरम को पार कर चुके हैं और उन का विकास बंद हो चुका है.

भारत की भारीभरकम युवा जनता छटपटा रही है कि उसे काम के अवसर मिलें पर ये अवसर अब चारों ओर चीन हड़प रहा है. चीनी श्रमिक सब देशों में फैल रहे हैं और वे अफ्रीका में ही नहीं, दक्षिणी अमेरिका तक पहुंच रहे हैं.

चीन ने भारत के उत्तर में डोकला?म में मोरचा खोल कर भारत को सकते में डाल रखा है और हर रोज युद्ध की धमकी दे रहा है. भारत पश्चिमी देशों की ओर समर्थन पाने की निगाहों से देख रहा है पर इस मामले में कोई उलझना नहीं चाहता क्योंकि चीन अधिकांश देशों में भारीभरकम निवेश कर चुका है. चीन संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थायी सदस्य है. वह भारत के किसी भी प्रस्ताव को वीटो कर सकता है.

भारत को फिलहाल चीन से मुकाबला करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करनी होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रारंभ में जो विदेशी मामलों में उत्साह दिखाया था वह अब फीका पड़ गया है और कहीं से भी उस का लाभ नहीं दिख रहा है. गौरक्षा, नोटबंदी, जीएसटी और विपक्षियों को तोड़ने की जगह प्रधानमंत्री को भारत की आन बचाए रखने के लिए विदेशी मामलों में सूझबूझ दिखानी होगी. केवल भाषणों और व्यवहार से बात नहीं बनेगी.

भारतीय मूल के विदेशों में बसे लाखों लोगों का इस्तेमाल किया जाना अब बहुत जरूरी हो गया है. भाजपा जब सत्ता में आई थी तो उस ने हिंदू कट्टरपन के कारण बहुत उत्साह दिखाया था पर अब वह उबाल ठंडा पड़ गया है. भाजपाइयों की मानसिकता यह है कि चार पैसे नहीं बन रहे तो वे क्यों भारत के नाम पर मरेंखपें.

चीन-भारत द्वंद्व सदियों चलेगा, इस में संदेह नहीं रह गया है. जैसी यूरोप में जरमनी, फ्रांस और ब्रिटेन में लगातार एकदूसरे से होड़ लगी रही, वैसी ही यहां दिख रही है. भारत को हरगिज चीन का पलड़ा भारी नहीं होने देना है.

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