हालांकि यह वाकिआ उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के एक छोटे से गांव गढ़ा का है, लेकिन इस का गहरा ताल्लुक देश में पनप रहे गुरमीत राम रहीम सिंह जैसे बाबाओं और बाबावाद से है.

गढ़ा के पुराने राम जानकी मंदिर में जुलाई के महीने से अखंड रामायण का पाठ चल रहा था. 21 अगस्त, 2017 को एक दलित नौजवान भी रामायण का पाठ करने इस मंदिर में गया, तो पुजारी कुंवर बहादुर ने उसे भगा दिया.

दूसरे दलित व पिछड़े भी रामायण के पाठ में हिस्सा लेने न आने लगें, इस बाबत पुजारी ने मंदिर के दरवाजे पर एक तख्ती टांग दी, जिस पर लिखा था कि मंदिर में दलित बिरादरी के लोगों के रामायण पढ़ने आने पर रोक है.

इस पर छोटी बिरादरी वालों ने खूब हल्ला मचाया और इलजाम लगाया कि रामायण पढ़ने गए कई दलितों और पिछड़ों को राम जानकी मंदिर से भगा दिया गया.

बवाल मचने पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट एसके मिश्र ने वही किया, जो आमतौर पर हर लैवल पर प्रशासन करता है. पुलिस, कानूनगो और लोकपाल से घटना की जांच कराई गई. रिपोर्ट में कहा गया कि चूंकि दलित नौजवान शराब के नशे में था, इसलिए उसे भगाया गया था.

बात आईगई हो गई, लेकिन कुछ दलितों और पिछड़ों ने खुल कर कहा कि उन्हें छोटी जाति का होने के चलते मंदिर में चल रहे रामायण के पाठ में हिस्सा लेने से पुजारी ने रोका था.

यह कोई नई बात नहीं है. न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि देशभर में ब्राह्मण पंडेपुजारी छोटी जाति वालों को मंदिर में आने से रोकते रहे हैं. कुछ मामलों में बवाल मचता है, तो उन की जांच के नाम पर किसी तरह लीपापोती कर दी जाती है.

इस लीपापोती में कहीं इस बात का जिक्र नहीं होता कि शराब का नशा ज्यादा नुकसानदेह होता है या धर्म का. और क्यों दलित मंदिर जाने की जिद पर और ब्राह्मण उन्हें वहां से भगाने की जिद पर अड़े रहते हैं.

इन विवादों का समाज पर क्या फर्क पड़ता है और इन से किस का भला होता है, यह बात अब छिपी नहीं रह गई है. ऐसे मामलों का पंचकुला, हरियाणा के डेरा सच्चा सौदा की हिंसा से गहरा ताल्लुक है, जिस में गरीब दलित तबके के भक्तों को ढाल और हथियार बना कर बाबा राम रहीम ने अपनी बादशाहत और ताकत दिखाई, लेकिन उस के पीछे छिपे जातिवाद का एक कड़वा सच कम ही लोगों को समझ आया कि आखिरकार फसाद की जड़ है क्या और इस से कैसे निबटा जा सकता है.

पंचकुला की हिंसा

25 अगस्त, 2017 को हरियाणा के पंचकुला में सीबीआई की स्पैशल कोर्ट ने जैसे ही स्टाइलिश बाबा राम रहीम को बलात्कार के एक मामले में दोषी करार दिया, वैसे ही उस के लाखों समर्थक बेकाबू हो गए. वे लाखों भक्त पंचकुला और सिरसा में जमा थे. उन्होंने जम कर तोड़फोड़, आगजनी और हिंसा की.

धर्म और आस्था के नाम पर हिंसा का जो खुला तांडव हुआ, उस ने देशभर को हिला कर रख दिया. महज 6 घंटे में राम रहीम के भड़के भक्तों ने 104 जगह आग लगाई, जिन में तकरीबन 2 सौ वाहन जल कर खाक हो गए. उन लोगों ने दर्जनभर सरकारी दफ्तरों को भी आग के हवाले कर दिया और कई रेलवे स्टेशनों पर गदर मचाते हुए 2 ट्रेनों को भी आग लगा दी.

बेकाबू भक्तों की भीड़ को काबू में करने के लिए जगहजगह आंसू गैस के गोले दागे जा रहे थे और पानी की बौछारें मारी जा रही थीं.

अकेले पंचकुला, जहां डेरा सच्चा सौदा का दूसरा बड़ा हैडक्वार्टर है, में बाबा राम रहीम के तकरीबन 2 लाख भक्त जमा थे. उन लोगों ने 20 अगस्त, 2017 से ही पंचकुला आना शुरू कर दिया था, जिन के खानेपीने और ठहरने का इंतजाम बाबा राम रहीम की तरफ से किया गया था. जब डेरे के भीतर जगह भर गई, तो वे लोग पंचकुला की सड़कों, फुटपाथों, पार्कों और बगीचों में डेरा डाल कर पड़े रहे.

जाहिर है कि राम रहीम को यह अहसास हो गया था कि अब वह कानून से बच नहीं पाएगा. लिहाजा, उस ने अपने लाखों भक्तों को पंचकुला में जमा कर एक नया कारनामा कर डाला, जिस का मकसद सरकार और अदालत पर दबाव बनाना था.

डेरा समर्थकों के जमावड़े को देख कर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को आगाह भी किया था, लेकिन हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कोर्ट की नसीहत को बेहद हल्के में लिया. नतीजतन, अकेले पंचकुला में ही 25 अगस्त, 2017 को 30 लोग मारे गए.

हिंसा की यह आग हरियाणा से होते हुए पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और झारखंड तक फैली. जगहजगह राम रहीम के भक्तों ने आगजनी की वारदात को अंजाम दिया, जिस के चलते पंजाब और हरियाणा के 11 शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया और पंचकुला और सिरसा को सेना के हवाले कर दिया गया.

पंचकुला की हालत तो यह थी कि शहर में चारों तरफ काला धुआं ही आसमान में दिख रहा था. सड़कों पर पत्थर बिछे हुए थे और पुलिस और सेना के जवान फायरिंग कर रहे थे. शहर की निगरानी हवाई जहाजों से भी की जा रही थी.

टैलीविजन चैनलों के पत्रकार अपनी जान पर खेलते हुए दर्शकों को दिखा रहे थे कि बाबा राम रहीम के भक्त कैसे बेकाबू हो कर अपनी पर उतारू हो आए हैं और लगता ऐसा है कि हरियाणा में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई है.

इसी दौरान कुछ चैनलों ने दिखाया कि कई दिग्गज भाजपा नेताओं के संबंध बाबा राम रहीम से हैं. इन नेताओं के इस बाबा के पैरों में सिर झुकाते हुए वीडियो भी खूब वायरल हुए.

जलवा बाबा का

50 साला राम रहीम कैसे देखते ही देखते एक मामूली ड्राइवर से खरबपति बाबा बन बैठा, यह कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. साल 1948 में डेरा सच्चा सौदा की स्थापना शाह मस्ताना महाराज नाम के एक बाबा ने की थी.

शाह मस्ताना महाराज की मौत के बाद उन का चेला सतनाम महाराज डेरा सच्चा सौदा की गद्दी पर बैठा. साल 1990 में यह गद्दी गुरमीत सिंह को मिली, जिस का नाम बदल कर संत गुरमीत राम रहीम ‘इंसा’ कर दिया गया.

राम रहीम राजस्थान के श्रीगंगानगर के एक मामूली जाट परिवार में पैदा हुआ था, जो डेरा सच्चा सौदा का अंधभक्त था.

10वीं जमात तक पढ़ेलिखे राम रहीम की शादी कम उम्र में ही हो गई थी. उस की 2 बेटियां चरणप्रीत और अमरप्रीत हैं और एक बेटा जसमीत सिंह है.

राम रहीम की जिंदगी कुछकुछ राज भरी है. उस की बीवी हरजीत कौर को कभी किसी ने पब्लिक प्रोग्राम में नहीं देखा. हां, उस की एक मुंहबोली बेटी हनीप्रीत जरूर उस के साथ हर जगह दिखी, जिस का असली नाम प्रियंका तनेजा है.

राम रहीम ने डेरा सच्चा सौदा के बढ़ते कारोबार को फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. देखते ही देखते डेरा सच्चा सौदा की 250 शाखाएं दुनियाभर में

फैल गईं. विदेशों में कनाडा, अमेरिका, इंगलैंड और आस्ट्रेलिया में भी राम रहीम को मानने वाले पैदा हो गए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, राम रहीम के भक्तों की कुल तादाद तकरीबन 5 करोड़ है, जिन में से अकेले हरियाणा में ही उस के 25 लाख भक्त हैं. सिरसा में डेरा सच्चा सौदा की 7 सौ एकड़ जमीन है, जिस में खेती किसानी होती है. इस के अलावा पूरा एक मार्केट भी यहां डेरा सच्चा ट्रस्ट का है. इस मार्केट की हर एक दुकान का नाम सच से शुरू होता है.

डेरा सच्चा सौदा कमाई के लिए होटल, रैस्टोरैंट, स्कूल और अस्पताल भी चलाता है. इन में से एक 135 बिस्तरों वाला अस्पताल राजस्थान के श्रीगंगानगर में है. बेसहारा अनाथ लड़कियों का एक आश्रम भी राम रहीम ने खोल रखा है.

राम रहीम और डेरा सच्चा सौदा की कुल जायदाद और कमाई का ठीकठाक आंकड़ा तो किसी के पास नहीं है, पर राम रहीम की शानोशौकत देख कर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस के पास अकूत दौलत है.

राम रहीम का एक शौक तरहतरह की नए मौडल की कार रखने का भी है. जब भी वह चलता है, तो एक 1-2 नहीं, बल्कि कम से कम सौ कारों का काफिला उस के साथ होता है. हिफाजत के लिहाज से यह बात किसी को नहीं बताई जाती थी कि वह किस गाड़ी में है.

25 अगस्त, 2017 को भी जब राम रहीम सीबीआई की स्पैशल कोर्ट पहुंचा था, तब भी उस के साथ सैकड़ों कारों का काफिला था.

राम रहीम का रहनसहन और पहनावा भी फिल्मी दुनिया के सितारों सरीखा था. उस की अपनी एक अलग स्टाइल थी, जो परंपरागत बाबाओं की इमेज से कतई मेल नहीं खाती.

अरबों की कमाई के बाद भी यह बाबा सरकार को कोई टैक्स नहीं देता, क्योंकि इनकम टैक्स की धारा 10 (2) के तहत डेरा सच्चा सौदा और उस के दूसरे संगठनों को इनकम टैक्स से छूट मिली हुई है.

ज्यादा पैसा कमाने की गरज से राम रहीम ने भी दूसरे ब्रांडेड बाबाओं की तरह सामान बनाने और बेचने का भी कारोबार शुरू कर दिया था. इन में अनाज, मसाले, नमक, बोतलबंद पानी, नूडल्स वगैरह शामिल हैं. ये सामान एमएसजी के नाम से तकरीबन 2 सौ स्टोरों में बिक रहे हैं. इस के अलावा बाबा राम रहीम के खुद के कई पैट्रोल पंप भी हैं.

जाहिर है कि राम रहीम की तुलना बेवजह बाबा रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, मां अमृता आनंदमयी और बलात्कार के ही इलजाम में सजा काट रहे आसाराम बापू से नहीं की जाती. इन बाबाओं और राम रहीम में कई समानताएं हैं. मसलन, उस के भी सभी दलों खासतौर से भाजपा नेताओं से गहरे ताल्लुकात हैं. राम रहीम का एक अलग रसूख है और चेलों की तादाद में भी वह किसी दूसरे बाबा से कम नहीं आंका जा सकता.

लेकिन फर्क भी

बाबा राम रहीम उस वक्त ज्यादा सुर्खियों में आया था, जब उस ने एक फिल्म ‘मैसेंजर औफ गौड’ बनाई थी. इस फिल्म में उस ने खुद की चमत्कारी इमेज को दिखा कर भक्तों को लुभाने की कोशिश की थी.

इस के पहले साल 2014 में शौकिया तौर पर ही उस के गाए गानों का एक अलबम भी रिलीज हुआ था.

कई समानताओं के बाद भी राम रहीम कई मामलों में दूसरे कई बाबाओं से अलग भी है. 25 अगस्त, 2017 को पंचकुला और सिरसा की हिंसा में मारे गए उस के भक्त गरीब तबके और छोटी जातियों के थे. अगर लाखों लोग अंधे हो कर उस के गलत होने पर भी उस का बचाव कर रहे थे, तो इसे एक अलग नजरिए से देखा जाना जरूरी लगता है, जिस का गहरा ताल्लुक ब्राह्मणवाद से है.

देश की 55 फीसदी आबादी बहुत पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की है, जिन्हें आएदिन ऊंची जाति वाले धर्म और जाति के नाम पर सताते हैं. गरीब छोटी जाति वालों का कोई सियासी सामाजिक या धार्मिक माईबाप नहीं है. लिहाजा, ये अपनी छोटीमोटी परेशानियों का हल भी चमत्कारों में ढूंढ़ा करते हैं.

चूंकि कोई रविशंकर या कोई शंकराचार्य इन को घास नहीं डालता, इसलिए ये लोग खुद अपने बाबा बनाने लगे, देवीदेवता तो इन के पहले से अलग हैं ही.

बाबा राम रहीम कोई आसमान से उतरा फरिश्ता नहीं है, बल्कि वह भी दूसरे कई ऐयाश और रंगीनमिजाज बाबाओं की तरह कई कमजोरियों का जीताजागता पुतला है, जो दौलत, जायदाद और खूबसूरत लड़कियों के रसिया होते हैं.

देशभर में 2 तरह के धर्मगुरु या बाबा हैं. पहले ब्राह्मण और दूसरे गैरब्राह्मण. दोनों ही तरह के बाबाओं का एकलौता मकसद बहुत सा पैसा कमा लेना और अपनी बादशाहत खड़ा कर लेना होता है. इस बाबत वे धर्म के चमत्कारों का प्रचार करते हैं और फिर खुद भगवान बन कर लोगों के दुख और परेशानियों को दूर करने के नाम पर दक्षिणा ऐंठते हैं.

ब्राह्मण बाबाओं के मानने वाले आमतौर पर ऊंची जाति वाले ही होते हैं, जिन में ब्राह्मणों के अलावा क्षत्रिय, कायस्थ और बनिए खास हैं. इन जातियों के लोगों के पास खासा पैसा होता है. इन की परेशानियां भी अलग तरह की होती हैं. पढ़ेलिखे और आधुनिक होने का दम भरने वाली इन जातियों के 15-20 फीसदी लोग छोटी जाति वालों से खुला बैर रखते हैं. लिहाजा, इन के गुरु भी गरीबों और दलितों को दीक्षा नहीं देते यानी उन्हें अपना शिष्य नहीं बनाते, क्योंकि ऐसा करने से ऊंची जाति वाले लोग उन से कट जाएंगे.

गैरब्राह्मण बाबाओं ने एक बड़ी आबादी, जो गरीब और दलित तबके की है, के लिए अपनी दुकानें शुरू कर दीं. आसाराम, रामदेव और राम रहीम इसी जमात के बाबा हैं, जिन्होंने सभी के लिए अपने मठों के दरवाजे खोल दिए.

एक आदमी से सौ रुपए दान में लो, उस से तो बेहतर है कि सौ लोगों से एक एक रुपए लो की थ्यौरी पर चलते इन गैरब्राह्मण बाबाओं ने भी अपनीअपनी बादशाहत खड़ी कर ली.

पर ब्राह्मण बाबाओं की तरह ये अपनी बादशाहत संभाल नहीं पाए. इस की अहम वजह यह है कि गैरब्राह्मण बाबाओं को महज वोटों और नोटों के लिए पूछा और पूजा गया, नहीं तो सभी लोग मानते हैं कि ये लोग कोई वेदपुराणों और दूसरे धर्मग्रंथों के जानकार नहीं हैं. इन का सीधा कनैक्शन भगवान से नहीं है, क्योंकि ये जाति के ब्राह्मण नहीं हैं.

इस के उलट ब्राह्मण बाबाओं ने फूंकफूंक कर कदम रखा, जिन में से एक अहम और दिलचस्प है औरतों से परहेज करना, जबकि गैरब्राह्मण बाबाओं ने औरतों को भी अपने संगठनों में शामिल करना शुरू कर दिया.

छोटे तबके की इन औरतों की परेशानियां इतनी सी भर रहती हैं कि कहीं सासबहू की पटरी नहीं बैठ रही, किसी का शौहर दूसरी औरत के चक्कर में पड़ा है, तो कोई घर में हो रही कलह से परेशान है.

आसाराम और राम रहीम जैसे बाबाओं ने भूत भगा कर और भभूत दे कर उन्हें ठगना शुरू कर दिया और जरूरत से कम वक्त में अपनी सल्तनत खड़ी कर ली, तो ब्राह्मण बाबाओं की भौंहें तिरछी होना शुरू हो गईं.

ऐसे फंसा राम रहीम

गलत नहीं कहा जाता कि झगड़े की जड़ तीन, जर, जोरू और जमीन. आसाराम की तरह राम रहीम की सजा की भी अहम वजह एक लड़की बनी.

बात साल 2002 की है, जब 10 मई को तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सिरसा के डेरा सच्चा सौदा की एक साधु लड़की ने गुमनाम खत लिखा था.

उस लड़की ने अपनी लिखी चिट्ठी में गुहार लगाई थी कि बाबा राम रहीम उस का यौन शोषण यानी बलात्कार करता है. उस लड़की के मुताबिक, उस के घर वाले राम रहीम के अंधभक्त

हैं, इसलिए उसे भी डेरे में रख कर संन्यासिन बना दिया गया.

एक दिन राम रहीम ने फिल्मी स्टाइल में उस लड़की को अपने बैडरूम, जिसे गुफा कहा जाता है, में बुलाया. वहां का नजारा देख कर वह सकते में आ गई.

बाबा के बैडरूम में जाते वक्त लड़की बेहद खुश थी कि आज तो भाग्य खुल गए, जो भगवान के दर्शन होंगे. पर बैडरूम का नजारा देखते ही वह भांप गई कि राम रहीम कोई भगवान नहीं, बल्कि साधु के भेष में शैतान है.

बाबा के हाथ में टैलीविजन का रिमोट था और स्क्रीन पर ब्लू फिल्म चल रही थी. सिरहाने रिवाल्वर देख कर वह  डर गई.

राम रहीम ने लड़की को पास बैठा कर उसे पानी पिलाया और फिर पुचकार कर सैक्स संबंध बनाने के लिए उकसाने लगा. इस बाबत उस ने धर्मग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि हर एक शिष्य का तनमनधन सब गुरु का होता है, तो इस में लिहाज कैसा. कृष्ण भी यही करता था. उस की तो हजारों गोपियां थीं.

उस लड़की के मुताबिक, लंबीचौड़ी, मीठी और डराने जैसी कड़वी बातें करते वक्त बाबा ने यह धौंस भी उसे दी थी कि वह चाहे तो उसे मार कर दफना भी सकता है और श्रद्धा के चलते कोई कुछ नहीं पूछेगा. बाबा ने पैसे और ताकत के बूते इंसाफ को खरीदने की बात भी कही.

वह लड़की फिर भी तैयार नहीं हुई, तो राम रहीम ने उस का जबरन बलात्कार किया और फिर आगे भी करता रहा.

उस लड़की ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लिखी चिट्ठी में यह भी कहा कि संन्यासिन बनाई गई लड़कियों से 16-18 घंटे तक सेवा के नाम पर बेगारी कराई जाती है और उन्हें सफेद कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता है. साधु लड़कियों को मर्दों से दूर रखा जाता है और उन्हें आपस में बात भी नहीं करने दी जाती.

जब ये बातें उस लड़की ने अपने घर वालों को बताईं, तो उन्होंने बजाय कुछ सुनने के उसे ही झिड़क दिया कि तुम्हारे मन में गुरु के लिए बुरे खयाल आते हैं.

लंबीचौड़ी इस चिट्ठी की एक कौपी पंजाब, हरियाणा हाईकोर्ट को भी लड़की ने भेजी थी. हाईकोई ने चिट्ठी को संजीदगी से लेते हुए उस की पड़ताल के लिए उसे सिरसा के सैशन जज को भेजा. बाद में इस की जांच सीबीआई को दिसंबर, 2003 में सौंप दी गई.

उस लड़की को ढूंढ़ निकालने में ही 3 साल लग गए. उस के मिलने पर शिकायतों व आरोपों की तसल्ली कर लेने के बाद जुलाई, 2007 में सीबीआई ने बाबा राम रहीम के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की.

अगस्त, 2008 में मुकदमा शुरू हुआ और राम रहीम के खिलाफ आरोप तय हुए. साल 2016 तक यह मुकदमा चला. इस दौरान दोनों पक्षों की तरफ से कुल 52 गवाह पेश हुए.

जून, 2017 में जब अदालत ने राम रहीम के विदेश जाने पर रोक लगा दी, तो उस का माथा ठनका था, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.

20 जुलाई, 2017 से रोजाना इस मामले की सुनवाई शुरू हुई. 17 अगस्त, 2017 को कार्यवाही उम्मीद से कम वक्त में खत्म हुई और अदालत ने फैसले के लिए 25 अगस्त, 2017 की तारीख मुकर्रर की.

इस दिन जब राम रहीम पर लगे बलात्कार और दूसरे आरोप अदालत ने सही करार दिए, तो पंचकुला और सिरसा में जो हुआ, वह कई लिहाज से चिंता की बात थी. ऐसा लगा, मानो अदालत ने बाबा को गुनाहगार ठहरा कर खुद कोई गुनाह कर दिया है.

28 अगस्त, 2017 को उसे 10-10 यानी कुल 20 साल की कैद की सजा सुनाई गई. शाही और आलीशान जिंदगी जीने वाले बाबा को आम कैदियों की तरह जेल भेज दिया गया. उस दिन भी वह जज के आगे हाथ जोड़े रहम की भीख मांग रहा था.

राम रहीम को दोषी ठहराने वाले सीबीआई के स्पैशल जज जगदीप सिंह अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं. वे खुद भी हरियाणा के रहने वाले हैं. फैसले के बाद उन की निडरता की तारीफ हर किसी ने की थी और जिस बाबा राम रहीम के पांवों में करोड़ों लोग बिछे रहते थे, जिस के पैर छू कर नेता खुद को धन्य समझने लगते थे.

25 अगस्त और फिर 28 अगस्त को जज जगदीप सिंह के सामने जब वह हाथ जोड़े खड़ा थरथर कांप रहा था, तभी उस के भगवान होने की पोल खुल गई थी.

अपनी ताकत, रसूख और दबंगई के इस्तेमाल के बाद भी राम रहीम सजा से बच नहीं सका. उस पर एक पत्रकार और एक अखबार ‘पूरा सच’ के संपादक रामचंद्र छत्रपति की हत्या का शक भी गहरा रहा है, जिन्होंने पहली दफा पीडि़त लड़की की चिट्ठी को अपने अखबार में छापा था. डेरा सच्चा सौदा के मैनेजर रणजीत सिंह की भी हत्या हुई थी, जिस की बहन ने यह चिट्ठी लिखी थी.

छले जाते हैं लोग

क्या पंचकुला और सिरसा की हिंसा का हमीरपुर के गढ़ा गांव जैसे लाखों विवादों से कोई कनैक्शन है? इस सवाल का जवाब हां में ही निकलता है. देश की ज्यादातर आबादी दलित, आदिवासियों और पिछड़ों की है, जो बाबाओं को मानने और पूजने के लिए किसी भी शर्त को पूरा करने को तैयार रहते हैं.

25 अगस्त की हिंसा के पीछे समाज के कमजोर तबके के इन लोगों की मंशा यह दिखाने की भी थी कि उन का बाबा जिसे वे पिता भी कहते हैं, किसी रामदेव, रविशंकर या शंकराचार्य से कम ताकतवर नहीं है.

हिंसा के लिए मुहरा बन कर ताकत दिखाने की गलती यह तबका सदियों से करता रहा है, जिस की वजह ब्राह्मणों और दूसरी ऊंची जाति वालों द्वारा धर्म और जाति की बिना पर इन्हें सताना है. दरअसल, यह भड़ास इस बात का बदला ही थी.

राम रहीम जैसे बाबा इन की आस्था और ताकत की कद्र नहीं करते, उलटे जब ये उन के दिमागी तौर पर गुलाम बन जाते हैं, तो इन्हीं का शोषण शुरू कर देते हैं. वे इन से आश्रमों में बेगारी करवाते हैं उन की औरतों की इज्जत लूटते हैं और उन की ताकत या भक्ति की सौदेबाजी नेताओं से कर तगड़ा पैसा बनाते हैं.

हां, एवज में एकलौता अच्छा काम कुछ जरूरतमंदों की मदद कर के कर देते हैं, जिस से लोग भक्त बने रहें. बीमारों का मुफ्त इलाज और उन के कुछ बच्चों को थोड़ीबहुत तालीम मुहैया करा देना इन में खास है.

ऊंचे समाज द्वारा सताया गया यह तबका इसी बात पर खुश हो लेता है कि सामाजिक और धार्मिक तौर पर भी इन का कोई दबंग और रसूखदार माईबाप और सहारा है. इस दौरान इन का ध्यान इस तरफ नहीं जाता कि राम रहीम जैसे बाबाओं की खुद की कोई चमत्कारिक या दैवीय ताकत नहीं होती. उन की असल ताकत तो ये अंधभक्त होते हैं, जिन का इस्तेमाल आलीशान मठ, आश्रम और डेरे बनाने में किया जाता है, जिस से इतमीनान से बेधड़क हो कर ऐयाशी की जा सके.

गरीब दलितपिछड़ों में तालीम और जागरूकता की कमी है, जिस का फायदा सभी उठाते हैं, इसलिए एक अकेले राम रहीम पर हायहाय मचाना एकतरफा बात है. इस तबके को जिस दिन यह समझ आ जाएगा कि तमाम भगवान, धर्म और उस के चमत्कार उस का शोषण करने के लिए रचे गए हैं, उस दिन किसी हिंसा की जरूरत नहीं पड़ेगी.

समाज का यह धार्मिक कचरा खुद ब खुद छंट जाएगा. मुहरों की तरह इस्तेमाल होता यह ताकतवर तबका सब से ज्यादा मेहनती और हिम्मती है, जिस की दिशा गलत जगह पंडेपुजारियों और इन बाबाओं ने अपनी खुदगर्जी और ऐयाशी के लिए मोड़ रखी है.

अगर यह तबका इस बात को समझ ले कि उस की भलाई का रास्ता राजनीति या धर्म से नहीं, बल्कि तालीम और रोजगार से हो कर जाता है, तो उस का शोषण भी बंद हो जाएगा. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि पहले यह समझ लिया जाए कि कोई भगवान नहीं होता, कोई चमत्कार नहीं होता, जिसके पीछे वे एक बेवजह का जुनून पाले रहते हैं.

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