राजस्थान के दूसरे सब से बड़े शहर जोधपुर की सेंट्रल जेल की बैरकों में सैकड़ों कैदी हैं. लेकिन सलाखों के पीछे अक्सर चहलकदमी करने वाले एक कैदी को दूसरे कैदी और जेल के कर्मचारी कुछ अलग ही निगाहों से देखते हैं. जेल मैन्युअल के हिसाब से यूं तो उस के पास भी जरूरत की चीजों के रूप में एक बाल्टी, मग्गा, थाली, कटोरी और गिलास है, लेकिन उस की दिनचर्या दूसरों से अलग है.
इस कैदी का नाम है आसाराम बापू. इस नौटंकीबाज कैदी के कारनामे जेल का हर कैदी जानता है, जेल प्रशासन भी. इस के बावजूद वह चाहता है कि जेल में भी उसे भगवान माना जाए. उसे पूजा जाए और हर कोई उस के इशारों पर नाचे.
ऐशोआराम की जिंदगी जीने वाले आसाराम बापू पर 3 साल पहले जब अपने एक भक्त की मासूम बेटी की अस्मत रौंदने का आरोप लगा था तो भक्तों की ताकत और बेशुमार दौलत के गुरूर में यकीनन उस ने सोचा होगा कि वक्त के साथ गुबार ठंडा हो जाएगा. और अगर नहीं हुआ तो वह अपनी ताकत, रसूख और दौलत के बूते पर इसे दबा देगा. लेकिन बाजी पलट गई और यह स्वयंभू भगवान कानून के शिकंजे में फंस गया. ऐशपरस्त जिंदगी के आदी रहे, इस पाखंडी के चेहरे पर 3 साल सलाखों के पीछे रह कर अब बेबसी की झटपटाहट साफ झलकने लगी है. भविष्य को ले कर उस के चेहरे पर उदासी का साया होता जरूर है, लेकिन भक्तों के रूप में अपने चेले चेलियों को देख कर उस की आंखें में चमक आ जाती है कि उस का वह बाजार अभी जिंदा है, जिस ने धर्म के चोले में उसे नायक बनाया.
भक्ति के नाम पर लोग अब भी कामधाम छोड़ कर उस वक्त सड़कों पर एकत्र हो जाते हैं, जब आसाराम को जेल से अदालत लाया ले जाया जाता है. आसाराम के लिए यही बड़ी खुशी की बात है कि उस का भक्ति बाजार आबाद है. दरअसल, धर्म के नाम पर अरबों का साम्राज्य खड़े करने वाले आसाराम की जब यौन शोषण की घिनौनी करतूत उजागर हुई थी तो वह पूरी बेशर्मी पर उतर आया था. उस ने अपनी सोच यह कह कर उजागर की कि ‘ताली एक हाथ से नहीं बजती’ ऐसी घटिया मानसिकता वाले बाबा ने न जाने कितनी तालियां बजाई होंगी.
जानकार बताते हैं कि आसाराम गजब के किरदार निभाना जानता है. बस अब उस की सब से बड़ी ख्वाहिश यही है कि किसी तरह जेल से बाहर आ जाए. यह बात अलग है कि तमाम जतन कर लेने के बाद भी अदालतें उसे जमानत नहीं दे रहीं.
अपनी बीमारी को ले कर वह कई बार नौटंकी कर चुका है. इतना ही नहीं उस ने जांच करने वाले चिकित्सकों को भी चकमा देने की कोशिश की. यकीनन वह सामदाम दंड भेद का इस्तेमाल कर के बौलीवुड गया होता तो उसे कादर खान सरीखा रोल जरूर मिल गया होता. उसे जेल से निकलने की जल्दी कुछ इस कदर है कि उस ने अदालत में जेल प्रशासन का झूठा पत्र तक पेश करवा दिया था. लेकिन जांच में पोल खुल गई और मुकदमा भी दर्ज हो गया. अंधभक्तों को आसाराम पर लगा आरोप भले ही झूठा लगे, लेकिन कानून की नजर में गंभीर अपराध है. इसलिए माननीय अदालत उस के अपराध के मद्देनजर अभी उसे जमानत देने के मूड में नहीं हैं.
गुजरे 3 सालों आसाराम जमानत पाने के लिए कई बार तिकड़म भिड़ा चुका है. कभी वह कहता है कि चक्कर आते हैं, कभी नींद न आने की बात कहता है तो कभी कोई बीमारी बताता है. अलगअलग विधाओं के आधा दर्जन से ज्यादा डाक्टर दिल्ली से ले कर जोधपुर तक उस के विभिन्न टैस्ट कर चुके हैं, लेकिन बीमारी किसी की पकड़ में नहीं आती. जाहिर है यह बहानेबाजियां अदालत को चकमा देने के लिए की जाती हैं. जेल प्रशासन को भी उस के इस तरह के ढोंग की आदत पड़ चुकी है. अदालत के आदेश पर आसाराम ने जेल में धार्मिक पुस्तकें और पूजा सामग्री जरूर हासिल कर ली है. वह आए दिन धार्मिक आडंबर दिखाने की कोशिश करता है. लेकिन उस की कोई युक्ति काम नहीं आ रही. कोई चमत्कार या तंत्रमंत्र होता तो वह सलाखों के पीछे ही क्यों जाता.
हालांकि बाबा के अंधभक्त उसे आज भी अपना भगवान ही मानते हैं. उसे पुलिस, जेल, कानून और मीडिया सब खलनायक नजर आते हैं. यह समझने में शायद उसे वक्त लग जाए कि यदि वह वास्तव में सही आचरण वाला कोई करामाती शख्स होता तो सलाखों के पीछे नहीं जाता.
आसाराम के भक्त जेल प्रशासन और स्थानीय पुलिस के लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं. दरअसल आसाराम को जब भी जेल से पेशी पर अदालत ले जाया जाता है, तो नजारा देखने वाला होता है. जेल और अदालत के बीच करीब ढाई किलोमीटर का फासला है. सड़कों के दोनों तरफ सुबह से ही आसाराम के भक्तों की भारी भीड़ जमा हो जाती है. इन में महिलाएं अधिक होती हैं.
यह संख्या कभी सैकड़ों तो कभी हजारों में होती है. भीड़ के मद्देनजर रास्ते का ट्रैफिक रोकना पड़ता है. अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात करना पड़ता है. इस का प्रभाव पूरे शहर पर पड़ता है और लोग जाम से जूझते हैं. आसाराम को एक वज्र वाहन से जेल से अदालत ले जाया जाता है. आगेपीछे पुलिस की गाडि़यां होती हैं.
भक्त घंटों इंतजार करते हैं. स्थिति तब हास्यास्पद होती है जब जाली के पीछे से देखते हुए आसाराम उन की तरफ आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ हिलाता है. इतना ही नहीं महिलाएं ‘बापू…बापू…’ कहते हुए वाहन के पीछे दौड़ने लगती हैं. कोई रोती है तो कोई हाथ जोड़ती है. कोईकोई व्यक्ति तो सड़क पर ही दंडवत हो जाता है. आए दिन होने वाला यह अजीब तमाशा हर किसी को हैरान करता है.
जेल के गेट से ले कर अदालत तक ऐसा ही होता है. पुलिस अधिकारी कहते हैं कि कानून व्यवस्था बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है, इसलिए फोर्स लगानी पड़ती है. दूसरी तरफ जेल अधीक्षक विक्रम सिंह कहते हैं कि ‘आशाराम हमारे लिए आम कैदियों की तरह ही हैं, उसे कोई विशेष सुविधा नहीं दी जा रही.’
आसाराम के भक्त कब धरना प्रदर्शन करें और जाम लगा दें इस बात को कोई नहीं जानता, क्योंकि अक्सर वह ऐसा करते रहते हैं. वह हाथों में नारे लिखी तख्तियां और आसाराम की तस्वीरें लिए होते हैं. साथ ही ये लोग धर्म के साथ देशभक्ति का तड़का लगाने की भी कोशिश करते हैं. तख्तियों पर लिखा होता है, ‘साधु संतों का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान’, ‘हिंदू उदार हैं, लेकिन मूर्ख और कायर नहीं’, ‘संत का निदंक महाहत्यारा’, ‘संत की रक्षा देश की सुरक्षा’, ‘नहीं सहेंगे बापू का अपमान, दे देंगे हम अपनी जान’, ‘हिंदुस्तान पुकारता है बचाओ संतों की आनबानशान’, ‘सांच को आंच नहीं, झूठ के पैर नहीं होते’, ‘देशवासियों समय रहते जागो.’
ऐसा करने वाले महिला व पुरुषों के सिर पर लंबी टोपियां लगी होती हैं, जिन पर लिखा होता है ‘बापू जी निर्दोष हैं’, ‘सब का मालिक एक है.’ यह सब देख कर आसाराम की आंखों में जरूर चमक आ जाती है.
ऐसे भक्तों ने जेल की बाहरी दीवारों पर भी ऐसी तमाम बातें लिख डाली हैं. बाबा के अंधभक्तों की चाहत देखिए. वे चाहते हैं कि आसाराम को नाम ले कर न पुकारा जाए बल्कि आपसी वार्तालाप में भी उसे बापू कह कर संबोधित किया जाए. आसाराम और उस के बेटे का अंजाम क्या होगा. यह तो अभी कोई नहीं जानता, लेकिन इतना सब होने पर भी अंधभक्तों की भक्ति जरूर चौंकाने का काम करती है.