2014 के आम चुनाव और उसके परिणाम को हमने कौरपोरेट जगत के द्वारा सत्ता के अपहरण के नजरिये से ही देखा है. हम यह मानते रहे हैं कि यह वैधानिक तख्तापलट है, जिसमें वौलस्ट्रीट की निजी कंपनियां, बैंक और देशी कौरपोरेट ने भाजपा को अपना जरिया बनाया. मोदी कौरपोरेट की सूरत हैं और मोदी सरकार कौरपोरेट की सरकार है. जिसके लिये माहौल बनाया गया और आज भी माहौल बनाया जा रहा है. जन समर्थन को ‘चुनावी मार्केटिंग’ से हासिल किया गया है और आने वाला कल इससे अलग नहीं होगा. आम जनता के हाथों से अपने देश की सरकार बनाने का हक, चुनावी पद्धति से छीन लिया गया है. ‘पूंजीवादी लोकतंत्र’ में जनसमर्थक सरकार संभव नहीं. यह राजसत्ता की बाजार से साझेदारी है.

‘एसोसियेशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स‘ ने 17 अगस्त 2017 को कौरपोरेट के द्वारा राजनीतिक दलों को दिये गये चंदे के बारे में एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 4 सालों में कौरपोरेट घरानों ने भाजपा और कांग्रेस सहित 5 राजनीतिक दलों को 956.77 करोड़ रूपये का चंदा दिया है. 2012-13 से 2015-16 में सबसे ज्यादा कौरपोरेट वित्तीय सहयोग भाजपा को मिला है. 2,987 दाताओं ने 705.81 करोड़ रूपये भाजपा को और कांग्रेस को 167 दानदाताओं ने 198.16 करोड़ रूपये दिये हैं. जिस साल 2014 में चुनाव हुआ कॉरपोरेट चंदा उस साल 60 प्रतिशत मिला. 2004-05 से 2011-12 की अवधि में यह राशि 378.89 थी, जो 4 साल में 956.77 करोड़ हो गयी.

भाजपा, कांग्रेस और उनके सहयोगी कौरपोरेट ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की अवहेलना की है, जिसके तहत 20 हजार से ऊपर के चंदे के लिये पैन और पते की अनिवार्यता है. 956.77 करोड़ के चंदे में से 729 करोड़ रूपये का कौरपोरेट चंदा ऐसा है, जिसमें पैन और पते नहीं हैं, इस तरह के 99 प्रतिशत चंदा भाजपा को मिला है.

यह रिपोर्ट अपने आप में इस बात का प्रमाण है, कि मौजूदा सरकार किसकी सरकार है? इस रिपोर्ट से इस बात को समझा जा सकता है, कि मोदी सरकार किसके लिये काम कर रही है और एवज में भाजपा के लिये चंदे की वसूली कैसे की जा रही है? यह खुलासा राजनीतिक भ्रष्टाचार का एक हिस्सा है. जिसमें ‘ले’ और ‘दे’ के अलावा और कुछ नहीं. न देश, न समाज, न आदर्श और ना ही देश की आम जनता, जिसे भरम है कि वह सरकार बनाती है.

नीति आयोग के ‘चैम्पियन्स ऑफ चेंज’ कार्यक्रम में मोदी जी कहते हैं- ‘‘दलाली में नाकाम लोग ही रोजगार का शोर मचा रहे हैं.’’ फिर, जो शोर नहीं मचा रहे हैं, उन्हें हम क्या सफल दलाल समझें? करोड़ों लोगों को काम देने का दावा तो, अब तक झूठा ही प्रमाणित हुआ है. सरकार काम देने की जिम्मेदारी उन निजी कम्पनियों को सौंप कर निश्चिंत होना चाहती है, जिन्होंने भारत के आईटी सेक्टर को भी संकट में डाल दिया है, जिनकी नीति मुनाफा बढ़ाने के लिये आदमी के बिना काम चलाने की मानव श्रम शक्ति को सस्ते में, मशीन, टेक्नोलॉजी और अब ऑटोमेशन उनकी नीति है.

कांग्रेस-यूपीए की मनमोहन सरकार भ्रष्टाचार के आग में जली. मोदी 2014 के चुनवी प्रचार में भ्रष्टाचार के खिलाफ हमलावर रहे. लोगों ने यकीन किया कि वो भ्रष्टाचार मिटा देंगे, यह जाने बिना कि निजी कम्पनियों के रहते भ्रष्टाचार का अंत संभव नहीं, क्योंकि अर्थव्यवस्था में इनकी हिस्सेदारी ही भ्रष्टाचार का आधार है. कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में नोटबंदी और विपक्ष के यहां छापों का आईटम सांग भी है. यह घोषणा भी है, कि भारत भ्रष्टाचार मुक्त हो गया. यह दावा भी है, कि ‘‘मेरी सरकार पर कोई उंगली नहीं उठा सकता.‘‘ मगर सच वही ढाक के तीन पात हैं.

जरा आप बतायेंगे शाह साहब कि 4 साल में राजनीतिक चंदा तीन गुणा कैसे हो गया? यह वही समय है न, जब आम चुनाव होना था, मोदी को प्रायोजित किया जा रहा था, और भाजपा की सरकार बनी. मोदी की सरकार चल रही है. जो भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रही है. यह वही समय है न जब आप गंगा नहा रहे हैं, तमाम आरोपों से मुक्त होते जा रहे हैं, और विपक्ष को गड़ही में डुबा रहे हैं? यह वही समय है, न जब कौरपोरेट के हित में देश की अर्थव्यवस्था का निजीकरण हो रहा है? देश और आम जनता के हितों पर ताले लगाये जा रहे हैं? चुनावों में भाजपा की जीत हो रही है, पैसा पानी की तरह बह रहा है? यह पैसा कहां से आ रहा है?

जो खुलासा है, वह तो हमारे सामने है, मगर सच उसके पीछे है, कि यह पैसा हमारी जेब से जा रहा है. हमारी पेट से जा रहा है, एक के बदले चार जा रहा है. इतना जा रहा है कि कल को हमारे पास न जेब होगी, न देश होगा, सरकार तो हमारे हाथों से निकल ही चुकी है. अभी सपने और बकवास हैं. जो दिख रहा है, वह मुखड़ा है. सरकार और बाजार की यारी इस सदी का सबसे बड़ा आर्थिक एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार है, जिसके खैरख्वाह मोदी हैं, मोदी सरकार है. कोई भी राजनीतिक दल अलग नहीं है.

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