68 साल पार कर चुके भारतीय गणतंत्र के सामने गंभीर चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है. ये चुनौतियां देश को शर्मसार करने वाली हैं. देश में माली सुधारों के 25 साल बाद भी अमीर गरीब के बीच का फर्क बड़ी तेजी से बढ़ा है. सवा सौ करोड़ देशवासियों की दौलत गिनेचुने लोगों की तिजोरी में कैद हो कर रह गई है. अभी हाल ही में दुनिया की 3 बड़ी एजेंसियों औक्सफैम, वर्ल्ड वैल्थ व क्रेडिट सुइस की रिसर्च रिपोर्टों के नतीजे आंखें खोलने और चौंकाने वाले हैं.
हमारे देश की कुल जमापूंजी का 53 फीसदी हिस्सा महज एक फीसदी परिवारों में सिमट कर रह गया है. इतना ही नहीं, देश की कुल जमापूंजी का 76.3 फीसदी हिस्सा देश के 10 फीसदी अमीर परिवारों की बपौती बन चुका है.
एक सुनियोजित तरीके से अमीर बड़ी तेजी से अमीर बनते चले गए और गरीब लगातार गरीब बनते चले गए हैं. आज देश में 36 करोड़ से ज्यादा लोग महज 50 रुपए रोज पर गुजारा करने के लिए मजबूर हैं. दुनिया के कम से कम साढ़े 20 फीसदी गरीब लोग हमारे देश के हैं.
आजादी हासिल करने के बाद सत्ता तंत्र का प्रमुख नारा ‘गरीबी हटाओ’ था, पर यह नारा आज भी महज ‘नारा’ ही बना हुआ है.
देश में पिछले 10 साल में स्लम यानी झुग्गीझोंपडि़यों की तादाद में 34 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है. देश में तकरीबन 1 करोड़, 80 लाख झुग्गीझोंपडि़यां हैं, जिन में रहने वाले लोग बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश के कुल 24.39 करोड़ परिवारों में से 73 फीसदी यानी 17.91 करोड़ परिवार गांवों में रहते हैं.
चौंकाने वाली बात यह है कि इन परिवारों में 49 फीसदी यानी 8 करोड़, 69 लाख परिवार बेहद गरीब हैं. इन गरीब परिवारों में से 44.84 लाख परिवार तो दूसरे के घरों में गुजारा करने को मजबूर हैं.
4 लाख परिवार कचरा बीन कर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं, वहीं साढ़े 4 लाख परिवार बेघर हैं और गंदे नालों, रेलवे लाइन, सड़क, फुटपाथों, पुलों वगैरह के नीचे रहने को मजबूर हैं.
जिन लोगों के सिर पर छत है, उन में से भी 5.35 फीसदी परिवार ऐसे हैं, जिन के मकानों की हालत बहुत बुरी है. साथ ही, 53 फीसदी मकानों में शौचालय ही नहीं हैं.
इंटरनैशनल फूड पौलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, दुनियाभर में अनाज वगैरह उगाने के मामले में दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद भारत में तकरीबन 20 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं.
एक तरफ देश में लाखों टन अनाज सड़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ भूख व कुपोषण के चलते एक बड़ी आबादी भरपेट रोटी के लिए तरसती रहती है.
‘सेव द चिल्ड्रन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में रोजाना 5 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण के चलते दम तोड़ देते हैं. देश में हर साल 25 लाख से ज्यादा बच्चों की अकाल मौत होती है.
ग्लोबल टैलेंट कंपीटीटिव इंडैक्स के मुताबिक, देश में कुशल कामगारों की कमी हो गई है. इस मामले में दुनिया के लैवल पर भारत 11वें पायदान से फिसल कर 89वें पायदान पर पहुंच गया है. बेरोजगारी और बेकारी के चलते नौजवान अपराध के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं.
बेहद शर्मसार करने वाली बात यह है कि देश के पोस्ट ग्रेजुएट लोग भी भीख मांगने के लिए मजबूर हैं.
साल 2011 की जनगणना के आधार पर जारी ‘नौनवर्कर्स बाय मेन ऐक्टिविटी ऐंड एजुकेशन’ के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 410 भिखारी ऐसे हैं, जिन के पास पोस्ट ग्रेजुएशन या उस के बराबर की तकनीकी डिगरी है. इन में 137 औरतें और 273 मर्द हैं.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 3.72 लाख भिखारियों में से तकरीबन 3 हजार भिखारी ग्रेजुएट व टैक्निकल या प्रोफैशनल डिप्लोमाधारी हैं. क्या सुपर पावर के रूप में तेजी से उभर रहे देश के लिए यह गहरा कलंक नहीं है?
देश का ‘अन्नदाता’ किसान कर्ज के चक्रव्यूह में फंस कर मौत को गले लगाने को मजबूर है. नैशनल क्राइम रिकौर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में रोजाना 46 किसान खुदकुशी करते हैं.
देश का हर दूसरा किसान कर्ज के बोझ के नीचे दबा हुआ है. देश के 9 करोड़ किसान परिवारों में से 52 फीसदी किसान कर्ज के नीचे सिसक रहे हैं और हर किसान पर औसतन 47 हजार रुपए का कर्ज है.
एक आंकड़े के मुताबिक, साल 2001 में किसानों की तादाद 12 करोड़, 73 लाख थी, जो साल 2011 में घट कर 11 करोड़, 87 लाख रह गई. चौंकाने वाली बात यह है कि साल 1990 से साल 2000 के बीच खेती की 20 लाख हैक्टेयर जमीन में भी कमी दर्ज हो चुकी है.
यह आंकड़ा कितना खतरनाक साबित होने वाला है, इस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर 1000 हैक्टेयर खेती की जमीन कम होती है, तो कम से कम सौ किसानों और 760 किसान मजदूरों की रोजीरोटी छिन जाती है यानी वे बेरोजगार हो जाते हैं.
देश में औरतों के प्रति बढ़ते अपराध भी बेहद चिंता की बात है. नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक, देश में रोजाना 92 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं.
देश में हर 29वें मिनट में एक औरत की इज्जत को लूटा जा रहा है. हर 77 मिनट में एक लड़की दहेज की आग में झोंकी जा रही है. हर 9वें मिनट में एक औरत अपने पति या रिश्तेदार की ज्यादती का शिकार हो रही है. हर 24वें मिनट में किसी न किसी वजह से एक औरत खुदकुशी करने को मजबूर हो रही है.
औरतों के मामले में स्वास्थ्य सेवाएं और भी बदतर हैं. एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल एक लाख औरतें खून की कमी यानी एनीमिया की वजह से मर जाती हैं, जबकि 83 फीसदी औरतें खून की कमी से जूझ रही हैं.
कहने की जरूरत नहीं है कि ये सभी आंकड़े हमारे देश पर बदनुमा दाग हैं. जब इन दागों से हमारा देश मुक्त हो जाएगा, तभी हकीकत में अच्छे दिन आएंगे.
– राजेश कश्यप