महात्मा गांधी के कहे मुताबिक आजादी नीचे से शुरू होनी चाहिए. हर गांव में प्रजातंत्र होना चाहिए. मतलब पंचायत का राज. लेकिन इस राज की अहमियत तभी होगी, जब पंचायतों के पास पूरी सत्ता व ताकत होगी. वे अपने पैरों पर तभी खड़ी हो सकेंगी. इस के लिए उन्हें सरकार से माली मदद मिलती है. लेकिन जब ग्राम पंचायतों तक फंड ही नहीं पहुंचता है, तो क्या वे अपने बूते गांव के विकास के लिए कोई भी ठोस काम नहीं कर पाती हैं? क्या सरकारी योजनाओं के बिना भी या अपने सीमित साधनों से ग्राम पंचायतें गांव वालों की जिंदगी चमका सकती हैं? इस का जवाब है कि ऐसा हो सकता है. इस के लिए हम आप को ले चलते हैं हरियाणा के एक छोटे से गांव रत्ताखेड़ा में.
हरियाणा में पानीपतजींद रोड पर एक तहसील आती है सफीदों, जो अनाज मंडी के चलते पूरे हरियाणा में मशहूर है. यहां से तकरीबन 5 किलोमीटर दूर बसा गांव रत्ताखेड़ा बहुत छोटा सा गांव है. इस में तकरीबन 6 सौ घर हैं, जिन में से ज्यादातर पक्के हैं. कुछ ब्राह्मणों और जाटों के घर तो शहरों जैसी कोठियों को भी मात देते नजर आते हैं.
गांव में घुसते ही एक बड़ा सा मंदिर दिखाई देता है, जो गांव वालों ने चंदा इकट्ठा कर के बनवाया है. यह मंदिर इस गांव को भव्यता देता है, लेकिन मंदिर के ठीक पीछे एक तालाब है… कहने को तालाब है, पर है गंदे बदबूदार पानी का जलभराव, जिस के 3 ओर बने लोगों के घरों ने इस के आकार को और छोटा कर दिया है.
इस गांव की सरपंच पिंकी रानी अन्य पिछड़ा वर्ग के एक परिवार की बहू हैं. 23 साल की पिंकी रानी स्नातक हैं और जींद जिले में सब से कम उम्र की सरपंच बनने का रिकौर्ड उन के नाम है. जब वे सरपंच बनी थीं, तब उन की उम्र 21 साल और 4 महीने थी.
एक बेटे और एक बेटी की मां पिंकी रानी के पति संदीप कुमार उन के काम में मदद करते हैं. वे भी बीए पास हैं और उन्होंने 3 साल का होटल मैनेजमैंट का कोर्स किया है, लेकिन उन का धंधा है ट्रांसपोर्ट का.
चूंकि पिंकी रानी अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं, इसलिए उन का घर गांव के बाहर की ओर है. घर पक्का है और उस में सुखसुविधाओं के सभी साधन मौजूद हैं, जैसे रसोई गैस, कूलर, फ्रिज, टैलीविजन वगैरह. इस के अलावा उन्होंने गायभैंसें भी पाल रखी हैं. घर में घुसते ही दाईं ओर एक कमरा बना रखा है, जिस में एक मेज और कुरसी बिछा कर दफ्तर बना रखा है.
गांव में आज भी परदा प्रथा है, इसलिए शुरू में तो पिंकी रानी को गैर मर्दों से बातचीत करने में बड़ी दिक्कत हुई थी, पर ससुराल वालों की मदद से परदा प्रथा की ओट से बाहर निकली पिंकी रानी अब पहले के मुकाबले अपनी बात ढंग से रख पाती हैं. उन्होंने बताया कि मायके पक्ष में उन के मामा अपने गांव के सरपंच थे. उन्हें देख कर उन के मन में भी गांव की भलाई के काम करने की इच्छा जागी थी. ससुराल में आ कर उन का यह सपना पूरा हुआ.
अपनी ससुराल वालों के बारे में पिंकी रानी ने बताया, ‘‘जब मैं ने गांव में सरपंच का चुनाव लड़ने की इच्छा जताई, तो मेरे सासससुर ने कोई एतराज नहीं जताया. पति ने भी हर तरह से मेरी मदद की.
‘‘अगर गांव को नशामुक्त करने की बात लोगों तक पहुंचानी है, तो मैं सिर गर्व से ऊंचा कर के बोल सकती हूं कि मेरी ससुराल में कोई भी नशे का सेवन नहीं करता है. इन सब चीजों का समाज पर गहरा असर पड़ता है.’’
इस गांव की मूलभूत समस्याएं क्या हैं और उन को दूर करने के लिए पंचायत क्या करती है? इस सवाल पर पिंकी रानी ने बताया, ‘‘हमारे गांव का स्कूल 12वीं जमात तक का है, लेकिन अभी स्कूल में कमरे कम हैं. बरसात व गरमी के मौसम में बच्चों को परेशानी होती है. खेलकूद के सामान की भी कमी है. इस सब के बावजूद पिछले साल 12वीं जमात के सौ फीसदी बच्चे पास हुए थे.’’
इस गांव का स्कूल कहने को 12वीं जमात तक का है, लेकिन उस लैवल की सुविधाएं वहां नहीं दिखीं. इस को 12वीं जमात का बनाने की सब से अहम वजह यह थी कि गांव वाले अपनी बेटियों को 5 किलोमीटर दूर तहसील के स्कूल में पढ़ने के लिए नहीं भेजना चाहते थे.
एक और परेशानी यह है कि इस गांव में 2 तालाब हैं, लेकिन उन में गांव की गलियों का गंदा पानी आता है. लिहाजा, वहां गंदगी की भरमार रहती है.
जब सरपंच से इस बदहाली के बारे में पूछा गया, तो वे बोलीं, ‘‘इस गांव में पानी के निकास की सब से बड़ी समस्या है. इन तालाबों में गांव भर का गंदा पानी इकट्ठा होता रहता है और बीमारियां फैलने का डर रहता है.’’
रत्ताखेड़ा छोटा गांव है. इसे जींद के पुलिस सुपरिंटैंडैंट ने गोद लिया हुआ है. यह जाट व ब्राह्मण बहुल गांव है, पर इस में कुल 11 बिरादरी के लोग रहते हैं.
पिंकी रानी बताती हैं, ‘‘हमारी कोशिश रहती है कि गांव वालों के बीच कोई विवाद न हो, और अगर झगड़ा हो भी जाए तो हम उसे कोर्टकचहरी तक नहीं जाने देते हैं.’’
ग्राम पंचायत ने पूरे गांव में कूड़ेदान लगवाए थे. कुछ दिन तो लोगों ने उन में कूड़ा डाला, पर बाद में वही ढाक के तीन पात. अब तो कूड़ेदान ढूंढ़े नहीं मिलते हैं. यहां की सारी गलियां पक्की हैं. कम से कम ईंटों का खड़ंजा तो जरूर है. नालियां भी पक्की हैं. हर घर में शौचालय है. अगर कोई शौच के लिए बाहर जाता है, तो उस पर 11 सौ रुपए का जुर्माना लगाया जाता है. लेकिन चूंकि यहां पर सीवर सिस्टम नहीं है, इसलिए शौचालय की सफाई कराने में समस्या आती है.
इसी गांव के लगातार 2 बार पंचायत सदस्य रह चुके नरेश वशिष्ठ ने बताया, ‘‘साल 1977 में यह गांव पूरे जींद जिले में सफाई के मामले में फर्स्ट आया था. यहां की एकता ही इस गांव की मजबूती है.
‘‘स्कूल में फर्स्ट आने पर बच्चों को इनाम दिया जाता है. हमारे गांव में कुल 11 वार्ड हैं. सब से साफ वार्ड को भी अवार्ड दिया जाता है. गांव में कई चौपालें हैं. स्कूल व मंदिर में वाटर कूलर लगवाए गए हैं. एक छोटा सा पशु अस्पताल भी है. गलियों के खंभों पर एलईडी लाइटें लगवाई गई हैं.’’
खेतीकिसानी के बारे में सरपंच पिंकी रानी ने बताया, ‘‘तकरीबन हर घर में पशु पाले जाते हैं. ज्यादातर गायभैंसें होती हैं. जब से खेती में ट्रैक्टर का चलन बढ़ा है, तब से बैल वगैरह पालने का रिवाज खत्म हो गया है. हां, बुग्गी चलाने के लिए भैंसा पाला जाता है.
‘‘हमारे गांव में ज्यादातर पारंपरिक खेती होती है. गेहूं व धान ज्यादा उगाए जाते हैं. किसान ज्यादा फसल पाने के चक्कर में कैमिकल खाद का इस्तेमाल करते हैं. उन्हें आर्गेनिक खाद पर अभी तक यकीन नहीं हुआ है, पर धीरेधीरे जागरूकता आएगी.’’
रत्ताखेड़ा गांव के किसान भले ही अभी भी पारंपरिक खेती को अपना रहे हैं, लेकिन पानीपत जिले का सिवाह गांव खेतीबारी के नए तरीके ही नहीं अपना रहा है, बल्कि बढ़ते शहरीकरण की अच्छी बातों का दिल खोल कर स्वागत भी कर रहा है.
गांव सिवाह पानीपत जिले के बड़े गांवों में आता है. इस गांव में तकरीबन 10 हजार वोटर हैं और कुल आबादी तकरीबन 30 हजार है. इस पंचायत में 20 वार्ड हैं. यहां के सतवीर कादियान और बिजेंद्र सिंह कादियान का हरियाणा की राजनीति में दखल रहा है.
सतवीर कादियान ओम प्रकाश चौटाला की इंडियन नैशनल लोकदल सरकार में हरियाणा विधानसभा में स्पीकर पद पर रह चुके हैं और इफको के चेयरमैन भी रहे हैं. बिजेंद्र सिंह कादियान बंसीलाल की हरियाणा सरकार में पशुपालन मंत्रालय संभाल चुके हैं.
इस गांव में प्राइमरी और 12वीं जमात के मिला कर कुल 4 सरकारी स्कूल हैं और एक सरकारी कालेज भी है. नैशनल लैवल की पहलवानी कर चुके नौजवान सरपंच खुशदिल कादियान पिछले सवा साल से इस गांव की पंचायत को संभाल रहे हैं.
खुशदिल कादियान का मानना है कि पंचायत में हिस्सेदारी होने का मतलब है राजनीति में और ऊपर जाने का सपना देखना. अगर आप में अपने गांव व समाज के लिए कुछ करने का जज्बा है, तो इसे राजनीति की पहली सीढ़ी मानने में कोई बुराई नहीं है.
20 एकड़ जमीन के मालिक खुशदिल कादियान का सपना है कि उन का गांव पूरी तरह शौच मुक्त हो जाए. अभी इस गांव के 98 फीसदी घरों में शौचालय बन चुके हैं.
गांवों में हर घर में शौचालय बनाने की सरकारी मुहिम तो अच्छी है, पर हर गांव की समस्या यही है कि वहां सीवर नहीं है. औरतें और नई पीढ़ी तो इन शौचालयों का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन पुरानी पीढ़ी के मर्द आज भी शौच के लिए बाहर जाते दिख जाते हैं. वैसे, जनस्वास्थ्य विभाग गांव में 22 किलोमीटर लंबी सीवरेज लाइन बिछाएगा.
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सरपंच खुशदिल कादियान एक मुहिम चला रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘‘हमारे गांव के स्कूली बच्चे साल में 1-2 बार प्रभात फेरी लगाते हुए पूरे गांव में घूमते हैं. उन के हाथों में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने से संबंधित स्लोगन लिखे बैनर होते हैं. बच्चों द्वारा समझाई गई बातों का बड़ों पर, खासकर औरतों पर अच्छा असर होता है.
‘‘इस के अलावा हम ने एक प्रशिक्षण केंद्र बनवाया है, जहां औरतों व लड़कियों को मुफ्त में सिलाई, कढ़ाई, ब्यूटीपार्लर, बुटिक व कंप्यूटर का 21 दिनों का कोर्स सिखाया जाता है. इस में पंजाब नैशनल बैंक की भी भागीदारी है.
‘‘ग्राम पंचायत समयसमय पर मैडिकल कैंप भी लगवाती है, ताकि गांव वालों को फायदा हो सके.’’
पिंकी देवी और खुशदिल कादियान दोनों पढ़ेलिखे और कम उम्र के सरपंच हैं. दोनों नई सोच का स्वागत करते हैं और इन का मकसद किसी भी तरह से गांव में आपसी भाईचारा बनाए रखना है.
ये दोनों सरपंच ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ की नीति पर अमल करते हैं. पिंकी रानी आगे भी पढ़ाई चालू रखना चाहती हैं. पहले वे लोगों से बात करने में झिझकती थीं, पर अब तो धड़ल्ले से भाषण देती हैं. वे अपने गांव रत्ताखेड़ा में अस्पताल बनवाना चाहती हैं, ताकि बीमार लोगों को 5 किलोमीटर दूर तहसील के अस्पताल में न जाना पड़े.
गठीले बदन के हैंडसम सरपंच खुशदिल कादियान अपने नाम की तरह खुशदिल मिजाज के हैं. उन की पत्नी मोनिका 12वीं पास हैं और घरेलू औरत हैं. खुशदिल कादियान के 2 बच्चे हैं, जिन्हें वे खूब पढ़ाना चाहते हैं. साथ ही, खुशदिल कादियान का सपना है कि गांव के सभी तालाब जिंदा रहें, जिस के लिए वे जोरशोर से काम भी करवा रहे हैं.
तालाबों की कमी में लोग अपने पशुओं को घरों पर नहलाते हैं. घर में एक पशु को नहलाने में तकरीबन 2 सौ लिटर पानी खर्च हो जाता है. तालाब में पशुओं को नहलाने से पानी की बचत होती है. लेकिन तालाबों में गांव का दूषित पानी नहीं जाना चाहिए व उन पर गैरकानूनी कब्जा भी नहीं होना चाहिए.
ऐसा नहीं है कि ये सरपंच सरकार से कोई उम्मीद नहीं रखते हैं, पर जब तक अपने लैवल पर काम हो रहा है, तो ये गांव की भलाई के लिए कोई भी ठोस कदम उठाने में देर नहीं लगाते हैं.
मसले ग्राम पंचायतों के
हमारे देश की तकरीबन 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है और पूरे देश में 2 लाख, 39 हजार से भी ज्यादा ग्राम पंचायतें हैं. अगर ग्राम पंचायत किसी गांव के विकास के लिए रीढ़ की हड्डी होती है, तो ग्राम प्रधान या सरपंच उस रीढ़ की हड्डी को अपने अच्छे कामों से मजबूती देता है.
ग्राम पंचायतें गांव की साफसफाई, रोशनी, सड़कों, दवाखानों, कुओं की सफाई और मरम्मत, सार्वजनिक जमीन, बाजार, मेलों व चरागाहों का इंतजाम करती हैं. वे जन्ममृत्यु का लेखाजोखा रखती हैं और खेतीबारी, उद्योगधंधों व कारोबार की तरक्की, बीमारियों की रोकथाम, श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों की देखभाल भी करती हैं.
इस के अलावा ग्राम पंचायत के गांव में पेड़ लगाने, पशुवंश का विकास, गांव की हिफाजत के लिए ग्राम सेवक दल बनाना, सहकारिता का विकास, अकाल पीडि़तों की सहायता, पुलपुलियों को बनवाना, स्कूल व अस्पतालों का सुधार वगैरह ऐच्छिक कर्तव्य भी हैं.
मतलब, एक गांव की तरक्की में ग्राम पंचायत का अहम रोल होता है, लेकिन साल 1992 तक पंचायत ही गांव में महज एक ऐसी औपचारिक संस्था थी, जिस के हाथ में न तो कोई हक था और न ही पैसा, जबकि पंचायत राज बनाने के पीछे हमारे रहनुमाओं का सपना तो यह था कि ग्राम पंचायतें देश की सरकार की भागीदार बन कर अपने गांवों की तरक्की खुद करेंगी.
इसी बात के मद्देनजर देश के प्रधानमंत्री रह चुके राजीव गांधी ने पंचायती राज को मजबूत बनाने के लिए संविधान में 64वां संशोधन प्रस्ताव भी संसद में रखा था, पर वह पास नहीं हो सका था. हालांकि साल 1992 में संविधान में 73वां संशोधन किया गया था. इस में पंचायतों को स्वशासन की स्थानीय इकाई के रूप में बहुत सारे अधिकार देने की बात कही गई थी.
इसी संशोधन के तहत संविधान में जोड़ी गई धारा 243 में ग्राम सभा यानी गांव के तमाम लोगों की खुली बैठक को कानूनी रूप दिया गया, लेकिन पंचायती राज से जो फायदे गांव वालों को होने चाहिए थे, उन की बात तो अभी सपना ही लगती है.
यही वजह है कि पंचायतें केंद्र व राज्य सरकारों से मिलने वाली मदद को गांव में बांटने वाली संस्था बन गई हैं. शायद बड़े नेता नहीं चाहते हैं कि ग्राम पंचायतों के हक बढ़ें और वे अपने स्तर पर गांवों का विकास कर सकें, उन के लिए योजनाएं बना कर हर काम पर निगरानी रखें.
हो यह रहा है कि संविधान में पंचायतों की व्यवस्था होने के बावजूद आज भी गांव वाले अपने विकास के छोटे से छोटे काम के लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकारों का मुंह ताकते हैं. सरकारें उन पर लुभावनी योजनाएं लाद देती हैं. दुख की बात तो यह है कि उन योजनाओं से गांव वालों का कैसे फायदा होगा, यह बात भी सलाह के रूप में उन से नहीं पूछी जाती है.
इस सब का नतीजा है कि ग्राम पंचायतें बड़ी सरकारों की योजनाओं को लागू करने की एजेंसियां बन कर रह गई हैं. कोढ़ पर खाज होती है नौकरशाही, जिस के सामने गांव वाले अपनी भलाई के लिए मिलने वाले पैसे को पाने के लिए हाथ जोड़े खड़े रहते हैं. इसी वजह से भ्रष्टाचार फैलता है और पंचायतों तक पहुंचने वाला फंड उस के असली हकदार तक पहुंचता ही नहीं है.
पंचायत ने संवारे, ये गांव हैं न्यारे
पंचायत की मजबूत अगुआई और गांव वालों की मेहनत के दम पर भारत के कई गांव दुनियाभर में मिसाल बन कर सामने आए हैं. उन में से एक है महाराष्ट्र में सूखे की मार झेलने वाले अहमदनगर जिले का गांव हिवरे बाजार.
70 के दशक में हिवरे बाजार अपने ‘हिंद केसरी’ पहलवानों के लिए मशहूर था, लेकिन वहां के सूखे ने पहाडि़यों को मानो बंजर बना दिया था. उजाड़ पहाड़, पानी को तरसते खेत, वहां के लोगों की यही दास्तान थी. लेकिन इस गांव के लोगों और पंचायत के कामकाज का ही नतीजा है कि आज यह गांव अलग ही इबारत लिख रहा है.
गांव में घुसते ही लगेगा कि आप किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं. पक्की और चौड़ी सड़कें, पक्के मकान, साफसुथरी नालियां, पेड़पौधों के तो कहने ही क्या. तभी तो इस गांव को देखने का टिकट लगता है.
साल 1989 से पहले ऐसे हालात नहीं थे. तब इस गांव के ज्यादातर नौजवान बेरोजगार थे. गांव में कच्ची शराब की भट्ठियां थीं. गुटबाजी पसरी हुई थी. इस बात से नाराज कुछ नौजवानों ने इस गांव को सुधारने का बीड़ा उठाया और अपने एक साथी पोपटराव पवार को एक साल के लिए गांव का सरपंच बना दिया.
पोपटराव पवार ने गांव वालों के साथ मिल कर गांव की भलाई के फैसले लेने शुरू किए. गांव व आसपास के इलाकों में तकरीबन 2 हजार वाटरशैड बनाए गए, जहां बारिश का पानी इकट्ठा हुआ और पानी का लैवल बढ़ने से वहां का इलाका हराभरा हो गया.
आज इस गांव के हर घर में शौचालय है. पेड़ों की कटाई पर सख्त पाबंदी है. शराबबंदी लागू है. धुआं देने वाले पारंपरिक चूल्हे पूरी तरह से हटा दिए गए हैं. इस आदर्श गांव को कई अवार्ड भी मिल चुके हैं.
इसी तरह राजस्थान के राजसमंद जिले का एक गांव पिपलांत्री भी अपनेआप में एक मिसाल है. इस गांव की पंचायत के लोग बेटी के पैदा होने पर 111 पेड़ लगा कर बेटियों के साथसाथ आबोहवा को बचाने की अनोखी मुहिम छेड़े हुए हैं.
पेड़ लगाने के साथसाथ बेटी के बेहतर भविष्य के लिए गांव के लोग आपस में चंदा इकट्ठा कर के 21 हजार रुपए जमा करते हैं और 10 हजार रुपए लड़की के मांबाप से लेते हैं. 31 हजार रुपए की यह रकम लड़की के नाम 20 साल के लिए बैंक में फिक्स डिपौजिट में जमा कर दी जाती है.
लड़की के मातापिता को एक शपथपत्र पर दस्तखत कर के देना होता है कि बेटी की पढ़ाईलिखाई का पूरा इंतजाम किया जाएगा. 18 साल की होने के बाद ही बेटी की शादी की जाएगी. परिवार का कोई भी सदस्य कन्या भ्रूण हत्या में शामिल नहीं होगा. बेटी के जन्म के बाद जो पौधे लगाए गए हैं, उन की देखभाल की जाएगी.
साल 2006 से शुरू हुई यह परंपरा आज भी कायम है. अब तक लाखों पेड़ लगाए जा चुके हैं. साल 2004 में पिपलांत्री ग्राम पंचायत को राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है.
हरियाणा के जींद जिले के गांव बीबीपुर की पंचायत ने अपने अनूठे कामों से देशविदेश में नाम कमाया है. ‘सैल्फी विद डौटर’ से सुर्खियों में आए इस गांव के सुनील जागलान, जो पहले यहां के सरपंच भी थे, ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ मुहिम चलाई थी.
गौरतलब है कि ग्राम पंचायत बीबीपुर द्वारा महिलाओं के सशक्तीकरण को ले कर कई बड़े आयोजन कराए जा चुके हैं. हरियाणा सरकार ने इस पंचायत को एक करोड़ रुपए का इनाम दिया था और इसे 2 बार नैशनल लैवल का अवार्ड भी मिल चुका है.
अब सुनील जागलान द्वारा ‘बीबीपुर मौडल औफ वीमन इंपावरमैंट ऐंड विलेज डेवलपमैंट’ नाम की मुहिम चलाई गई है, जिस के सौ सूत्रीय कार्यक्रम की जानकारी भारत के राष्ट्रपति को दी गई. अब राष्ट्रपति द्वारा गोद लिए गए सौ गांवों में बीबीपुर गांव का यह मौडल लागू किया जाएगा.