वे लोग वाकई अतिदूरदर्शी व ज्ञानी हैं जो यह कह रहे हैं कि लालकृष्ण आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी अब राष्ट्रपति नहीं बन पाएंगे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उन सहित 13 अन्य लोगों पर साजिश का मुकदमा चलाने का फैसला दिया है. इन में एक और अहम नाम साध्वी उमा भारती का भी है, जिन्होंने उम्मीद के मुताबिक बड़ी मासूमियत से कहा कि जो था खुल्लमखुल्ला था, कोई साजिश नहीं थी. अव्वल तो उमा का सार्वजनिक रूप से दिया गया यह बयान ही यह जताने के लिए काफी है कि सचमुच उस दिन अयोध्या में कोई साजिश नहीं हुई थी, अब यह तो अदालत की दरियादिली या मजबूरी है कि वह किसी फैसले पर पहुंचने के लिए चार्जशीट, गवाह और सुबूतों वाला नाटक खेले और इस ऐतिहासिक मुकदमे का अंत करे.

मुकदमे के राजनीतिक माने

 धार्मिक तौर पर इस विवाद के अलग माने हैं. अयोध्या मसले पर 25 साल से हिंदू और मुसलिम धर्मगुरु अपनी रोटियां सेंक रहे हैं, जिन की मंशा झगड़ा सुलझाने की नहीं इसे लटकाए रखने की ज्यादा रही है. जब भी इन के धंधे पर मंदी मंडराती है तो ये झट से बाबरी मसजिद और रामजन्मभूमि का राग छेड़ देते हैं.

इस मुकदमे के अपने सियासी माने भी हैं, जिस का फायदा भाजपा उठाती रही है और रामराम करते ही इतनी मजबूत हो पाई है कि आज केंद्र और अधिकांश राज्यों में उस की सत्ता है. इन दिनों भाजपा जो राजनीति कर रही है उस में हल्ला ज्यादा है, सुधार और विकास की बातें कम हैं.

ऐसे में यह फैसला उस के लिए वरदान ही है जिस से उसे उग्र हिंदूवादी नेताओं की दावेदारी और भागीदारी से बैठेबिठाए छुटकारा मिल गया है.

अब लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती व मनोहर जोशी सरीखे नेता अपने दम पर कोई फसाद राममंदिर के नाम पर खड़ा करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि न केवल ये लोग बल्कि पूरी भाजपा नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मुहताज हो गई है.

आमतौर पर भाजपाई जब खुश होते हैं तो आतिशबाजी जरूर चलाते हैं, जो इस फैसले पर नहीं चलाई गई तो आम लोगों को लगा कि ऐसा होना भाजपा सहन नहीं कर सकती, जबकि हकीकत यह है कि केसरिया मनों में लड्डू फूट रहे हैं. 2019 की गरमी तक फैसला आ पाया तो चित नरेंद्र मोदी की और पट भाजपा की होगी. अगर मुलजिम साहेबान बरी हुए और न हुए तो भी एक और मंदिरनिर्माण की पटकथा तो लिखनी शुरू हो ही गई है.

बकौल विनय कटियार और उमा भारती, ‘जान देनी पड़े या फांसी हो, मंदिर वहीं बनाएंगे.’ देश का माहौल धार्मिक कट्टरवाद की इतनी गिरफ्त में शायद 90 के दशक में भी नहीं था जब भजभज मंडली राम के नाम पर घरघर से चंदा इकट्ठा करती मंदिर निर्माण के लिए इसी आस्था की दुहाई देते प्राणों की आहुति देने को आमादा थी. अब तसवीर यह है कि मुसलमानों का टेंटुआ हिंदूवादियों के पंजे में है, अजान से किसी गवैये की नींद खुलती है तो वह झट से ट्वीट कर देता है और देखते ही देखते हल्ला मच जाता है.

मोदी, योगी को मुसलिम महिलाओं पर दया आ रही है, क्योंकि उन्हें झट से तलाक मिल जाता है, हिंदू दंपतियों की तरह सालोंसाल अदालत की चौखट पर नाक रगड़ते एक उम्र जाया नहीं करनी पड़ती.

इस पर भी मिसाल द्रौपदी के चीरहरण की दी जाती है, सीता की अग्निपरीक्षा की नहीं. सार यह कि अपने दामन के दाग नहीं देखने हैं, बस, जैसे भी हो 2 साल इसी तरह गुजार देने हैं. इस के बाद आएगा अदालती फैसला जो भाजपा का अगला मुद्दा हो जाएगा कि बस, अब बहुत हो गया, बात आस्था और करोड़ों हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं की है, इसलिए सारे झंझटें और मुद्दे (अगर बचे तो) डालो डस्टबिन में और चलो अयोध्या वरना विश्वगुरु बनने का सपना मिट्टी में मिल जाएगा.

आरएसएस का दांव

 लोग तो धर्म के अंधे हमेशा से ही हैं, लिहाजा वे भगवा ध्वज ले कर कूच करते रेडीमेड पुण्य कमाने से चूकेंगे, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं. भाजपा ने कभी नहीं  कहा कि आडवाणी या जोशी राष्ट्रपति होंगे, न ही कभी ऐसा कहेगी. ये तो बलि के बकरे बन गए हैं जो 2 सालों तक रोज अपनी ईद मनते देखने को विवश हैं. कर्मफल के सिद्धांतों की बात करें तो ये अपने किए की सजा भुगतेंगे. यह राजनीति में ही हो सकता है कि प्यादे वजीर और वजीर प्यादे बन जाएं. इस बिसात के दोनों तरफ से चालें चलने वाला आरएसएस तय करेगा कि राष्ट्रपति किसे बनाया जाए.

मुमकिन है इस दफा मंदिरनिर्माण के लिए दलितों का सहयोग बाकायदा घोषित तौर पर लिया जाए और उन्हें मौजूदा लोकतांत्रिक वर्णव्यवस्था में हनुमान व जामवंत बना कर चतुर्थ श्रेणी का हिंदू घोषित कर दिया जाए.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लग यह रहा है कि अगले आम चुनावों में मोदी सरकार के 5 सालों का कामकाज मुद्दा नहीं होगा बल्कि कोई रथयात्रा निकाली जा सकती है, कोई भी मुहिम मंदिर के नाम पर  छेड़ी जा सकती है, जिस से नएनए आडवाणी, जोशी, उमा, विनय, कल्याण और ऋतंभरा पैदा किए जा सकें. इस से लोगों को अपनी परेशानियां और दुख भुलाने में सहूलियत रहेगी. एक बार मंदिर बन भर जाए, फिर तो सारे कष्ट रामजी हर ही लेंगे, जिन्होंने अपने भक्तों को इस फैसले की शक्ल में  संजीवनी दिला दी है.

मुकदमा चलाने के फैसले से दोषी नेता भी खुश हैं. वे मंदिर के नाम पर फांसी चढ़ने और जान देने की बात कर रहे हैं तो उन्हें यह एहसास है कि अगर कल को फिर से मंदिरनिर्माण मुद्दा बनाने के लिए पार्टी मजबूर हुई तो आगे उन्हें ही रखा जाएगा. वैसे भी मुकदमे से जुड़े तमाम नेता हर स्तर पर खारिज हो चुके हैं और मोदी बाली भाजपा पर भार ही बने हुए हैं.

नरेंद्र मोदी कैसा भारत गढ़ना चाहते हैं, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है पर इतना हर किसी की समझ में आ रहा है कि देश न पहले कभी धर्मनिरपेक्ष था न आज है और हालात यही रहे तो कभी हो भी नहीं पाएगा.

पूजापाठ, यज्ञहवन में उलझे लोगों को भी मजबूत और सशक्त नेता नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर पाखंड और विवाद करने वाले नेता ही पसंद आते हैं. जब तक कांग्रेसी इस में आगे रहे तो लोग उन्हें वोट देते रहे और अब भाजपा बाजी मार रही है तो वह सत्ता में है.

अब साफ दिख रहा है कि दोषियों को सजा हुई तो फिर आस्था के नाम पर बवंडर मचाया जाएगा. यह भाजपा की राजनीतिक जरूरत भी होगी और अगर अभियुक्त बरी हुए तो देशभर में जश्न का माहौल होगा, गलीगली में दीवाली, होली मनाई जाएगी.

कहा यह जाएगा कि रामनाम की महिमा अपरंपार है और बेहतर यह होगा कि भाजपा के राष्ट्रवाद, जो कट्टर हिंदूवाद का नया नाम भर है, को सभी मान लें, वरना तो देश छोड़ देने का विकल्प तो उन के पास है ही.

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