मैं जब मामा के घर पहुंची तो विभा बाहर जाने की तैयारी में थी.

‘‘हाय दीदी, आप. आज ? जरा जल्दी में हूं, प्रैस जाने का समय हो गया है, शाम को मिलते हैं,’’ वह उल्लास से बोली.

‘‘प्रभा को तुम्हारे दर्शन हो गए, यही क्या कम है. अब शाम को तुम कब लौटोगी, इस का कोई ठिकाना है क्या?’’ तभी मामी की आवाज सुनाई दी.

‘‘नहींनहीं, तुम निकलो, विभा. थोड़ी देर बाद मुझे भी बाहर जाना है,’’ मैं ने कहा.

मामाजी कहीं गए हुए थे. अमित के स्नान कर के आते ही मामी ने खाना मेज पर लगा दिया. पारिवारिक चर्र्चा करते हुए हम ने भोजन आरंभ किया. मामी थकीथकी सी लग रही थीं. मैं ने पूछा तो बोलीं, ‘‘इन बापबेटों को नौकरी वाली बहू चाहिए थी. अब बहू जब नौकरी पर जाएगी तो घर का काम कौन करेगा? नौकरानी अभी तक आई नहीं.’’

मैं ने देखा, अमित इस चर्चा से असुविधा महसूस कर रहा था. बात का रुख पलटने के लिए मैं ने कहा, ‘‘हां, नौकरानियों का सब जगह यही हाल है. पर वे भी क्या करें, उन्हें भी तो हमारी तरह जिंदगी के और काम रहते हैं.’’

अमित जल्दीजल्दी कपड़े बदल कर बाहर निकल गया. मैं ने मामी के साथ मेज साफ करवाई. बचा खाना फ्रिज में रखा और रसोई की सफाई में लग गई. मामी बारबार मना करती रहीं, ‘‘नहीं प्रभा, तुम रहने दो, बिटिया. मैं धीरेधीरे सब कर लूंगी. एक दिन के लिए तो आई हो, आराम करो.’’

मुझे दोपहर में ही कई काम निबटाने थे, इसलिए बिना आराम किए ही बाहर निकलना पड़ा.

जब मैं लौटी तो शाम ढल चुकी थी. मामी नौकरानी के साथ रसोई में थीं. मामाजी उदास से सामने दीवान पर बैठे थे. मैं ने अभिवादन किया तो क्षणभर को प्रसन्न हुए. परिवार की कुशलक्षेम पूछी. फिर चुपचाप बालकनी में घूमने लगे. बात कुछ मेरी समझ में न आई. अमित और विभा भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे. मामाजी का गंभीर रुख देख कर उन से कुछ पूछने की हिम्मत न हुई.

तभी मामी आ गईं, ‘‘कब आईं, बिटिया?’’

‘‘बस, अभी, मामाजी कुछ परेशान से दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘विभा अभी तक औफिस से नहीं लौटी है, जाने कैसी नौकरी है उस की.’’

कुछ देर बाद अमित और विभा साथसाथ ही आए. दोनों के मुख पर अजीब सा तनाव था. विभा बिना किसी से बोले तेजी से अपने कमरे में चली गई. अमित हम लोगों के पास बैठ कर टीवी देखने लगा. वातावरण सहसा असहज लगने लगा. किसी अनर्थ की आशंका से मन व्याकुल हो उठा.

विभा कपड़े बदल कर कमरे में आई तो मामी ने उलाहने के स्वर में कहा, ‘‘खाना तो हम ने बना लिया है. अब मेज पर लगा लोगी या वह भी हम जा कर ही लगाएं?’’

मामाजी मानो राह ही देख रहे थे, तमक कर बोले, ‘‘तुम बैठो चुपचाप, बुढ़ापे में मरी जाती हो. अभी पसीना सूखा नहीं कि फिर चलीं रसोई में. तुम ने क्या ठेका ले रखा है.’’

बात यहीं तक रहती तो शायद विभा चुप रह जाती, मामाजी दूसरे ही क्षण फिर गरजे, ‘‘लोग बाहर मौज करते हैं. पता है न कि घर में 24 घंटे की नौकरानी है.’’

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इस आरोप से विभा हतप्रभ रह गई. कम से कम उसे यह आशा नहीं रही होगी कि मामाजी मेरी उपस्थिति में भी ऐसी बातें कह जाएंगे. उस ने वितृष्णा से कहा, ‘‘आप लोगों को दूसरों के सामने तमाशा करने की आदत हो गई है.’’

‘‘हम लोग तमाशा करते हैं? तमाशा करने वाले आदमी हैं, हम लोग? पहले खुद को देखो, अच्छे खानदान की लड़कियां घरपरिवार से बेफिक्र इतनी रात तक बाहर नहीं घूमतीं.’’

‘‘आप को मेरा खानदान शादी के पहले देखना था, बाबूजी.’’

मामाजी भड़क उठे, ‘‘मुझ से जबान मत चलाना, वरना ठीक न होगा.’’ बात बढ़ती देख अमित पत्नी को धकियाते हुए अंदर ले गया. मैं लज्जा से गड़ी जा रही थी. पछता रही थी कि आज रुक क्यों गई. अच्छा होता, जो शाम की बस से घर निकल जाती. यों बादल बहुत दिनों से गहरातेघुमड़ते रहे होंगे, वे तो उपयुक्त अवसर देख कर फट पड़े थे.

थोड़ी देर बाद मामी ने नौकरानी की सहायता से खाना मेज पर लगाया. मामी के हाथ का बना स्वादिष्ठ भोजन भी बेस्वाद लग रहा था. सब चुपचाप अपने में ही खोए भोजन कर रहे थे. बस, मामी ही भोजन परोसते हुए और लेने का आग्रह करती रहीं.

भोजन समाप्त होते ही मामाजी और अमित उठ कर बाहर वाले कमरे में चले गए. मैं ने धीरे से मामी से पूछा, ‘‘विभा…?’’

‘‘वह कमरे से आएगी थोड़े ही.’’

‘‘पर?’’

‘‘बाहर खातीपीती रहती है,’’ उन्होंने फुसफुसा कर कहा.

मैं सोच रही थी कि विभा बहू की जगह बेटी होती तो आज का दृश्य कितना अलग होता.

‘‘देखा, सब लोगों का खाना हो गया, पर वह आई नहीं,’’ मामी ने कहा.

‘‘मैं उसे बुला लाऊं?’’

‘‘जाओ, देखो.’’

मैं उस के  कमरे में गई. उस की आंखों में अब भी आंसू थे. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि अमित उसे मेरे कारण औफिस का काम बीच में ही छुड़वा कर ले आया था और ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. जब भी कोई मेहमान आता, उसे औफिस से बुलवा लिया जाता.

‘‘तुम ने अमित को समझाने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘कई बार कह चुकी हूं.’’

‘‘वह क्या कहता है?’’

‘‘औफिस का काम छोड़ कर आने में तकलीफ होती है तो नौकरी छोड़ दो.’’

क्षणभर को मैं स्तब्ध ही रह गई कि जब नए जमाने का पढ़ालिखा युवक उस के काम की अहमियत नहीं समझता तो पुराने विचारों के मामामामी का क्या दोष.

‘‘चिंता न करो, सब ठीक हो जाएगा. शुरू में सभी को ससुराल में कुछ न कुछ कष्ट उठाना ही पड़ता है,’’ मैं ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा.

फिर घर आ कर इस घटना को मैं लगभग भूल ही गई. संयुक्त परिवार की यह एक साधारण सी घटना ही तो थी. किंतु कुछ माह बीतते न बीतते, एक दिन मामाजी का पत्र आया. उन्होंने लिखा था कि अमित का तबादला अमरावती हो गया है, परंतु विभा ने उस के साथ जाने से इनकार कर दिया है.

पत्र पढ़ कर मुझे पिछली कितनी ही बातें याद हो आईं… अमित मामाजी का एकलौता बेटा था. घर में धनदौलत की कोई कमी न थी, तिस पर उस ने इंजीनियरिंग की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. देखने में भी वह लंबाचौड़ा आकर्षक युवक था. इन तमाम विशेषताओं के कारण लड़की वालों की भीड़ उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी.

किंतु मामाजी भी बड़े जीवट आदमी थे. उन्होंने तय कर लिया था कि लड़की वाले चाहे जितना जोर लगा लें, पर अमित का विवाह तो वे अपनी शर्तों पर ही करेंगे. जिन दिनों अमित के रिश्ते की बात चल रही थी, मैं ने भी मामाजी को एक मित्रपरिवार की लड़की के विषय में लिखा था. लड़की मध्यवर्गीय परिवार की थी. अर्थशास्त्र में एमए कर रही थी. देखने में भली थी. मेरे विचार में एक अच्छी लड़की में जो गुण होने चाहिए, वे सब उस में थे.

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मामाजी ने पत्रोत्तर जल्दी ही दिया था. उन्होंने लिखा था… ‘बेटी, तुम अमित के लिए जो रिश्ता देखोगी, वह अच्छा ही होगा, इस का मुझे पूरा विश्वास है. पर अमित को विज्ञान स्नातक लड़की चाहिए. दहेज मुझे नहीं चाहिए, लेकिन तुम तो जानती हो, रिश्तेदारी बराबरी में ही भली. जहां तक हो सके, लड़की नौकरी वाली देखो. अमित भी नौकरी वाली लड़की चाहता है.’

मामाजी का पत्र पढ़ कर मैं हैरान रह गई. मामाजी उस युग के आदमी थे जिस में कुलीनता ही लड़की की सब से बड़ी विशेषता मानी जाती थी. लड़की थोड़ीबहुत पढ़ीलिखी और सुंदर हो तो सोने पर सुहागा. जमाने के हिसाब से विचारों में परिवर्तन होना स्वाभाविक है. लेकिन लगता था कि वे बिना यह सोचेविचारे कि उन के अपने परिवार के लिए कैसी लड़की उपयुक्त रहेगी, जमाने के साथ नहीं बल्कि उस से आगे चल रहे थे.

संयोग से दूसरे ही सप्ताह मुझे नागपुर जाने का अवसर मिला. मामाजी से मिलने गई तो देखा, वे बैठक में किसी महिला से बातें कर रहे हैं. वे उस महिला को समझा रहे थे कि अमित के लिए उन्हें कैसी लड़की चाहिए.

उन्होंने दीवार पर 5 फुट से 5 फुट 5 इंच तक के निशान बना रखे थे और उस महिला को समझा रहे थे, ‘‘अपना अमित 5 फुट 10 इंच लंबा है. उस के लिए लड़की कम से कम 5 फुट 3 इंच ऊंची चाहिए. यह देखो, यह हुआ 5 फुट, यह 5 फुट 1 इंच, 2 इंच, 3 इंच. 5 फुट 4 इंच हो तो भी चलेगी. लड़की गोरी चाहिए. लड़की के मामापिता, भाईबहनों के बारे में सारी बातें एक कागज पर लिख कर ले आना. लड़की हमें साइंस ग्रेजुएट चाहिए. अगर गणित वाली हो या पोस्टग्रेजुएट हो तो और भी अच्छा है.’’

सामने बैठी महिला को भलीभांति समझा कर वे मेरी ओर मुखातिब हुए, ‘बेटे, आजकल आर्ट वालों को कोई नहीं पूछता, उन्हें नौकरी मुश्किल से मिलती है. खैर, बीए में कौन सी डिवीजन थी लड़की की? फर्स्ट डिवीजन का कैरियर हो तो सोचा जा सकता है. एमए के प्रथम वर्ष में कितने प्रतिशत अंक हैं?’

मैं समझ गई कि अमित के लिए रिश्ता तय करवाना मेरे बूते के बाहर की बात है. मामाजी के विचारों के साथ अमित की कितनी सहमति थी, इसे तो वही जाने, पर इस झंझट में पड़ने से मैं ने तौबा कर ली. लगभग 2-3 वर्षों की खोजबीन- जांचपरख के बाद अमित के लिए विभा का चयन किया गया था. वह गोरी, ऊंची, छरहरे बदन की सुंदर देह की धनी थी. उस की शिक्षा कौनवैंट स्कूल में हुई थी. वह फर्राटे से अंगरेजी बोल सकती थी. उस ने राजनीतिशास्त्र में एमए किया था.

बंबई से पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद वह नागपुर के एक प्रसिद्ध दैनिक समाचारपत्र में कार्यरत थी. इस विवाह संबंध से मामाजी, मामी और अमित सभी बहुत प्रसन्न थे. खुद मामाजी विभा की प्रशंसा करते नहीं थकते थे.

लेकिन विवाह के 3-4 महीने बाद ही स्थिति बदलने लगी. विभा के नौकरी पर जाते ही यथार्थ जीवन की समस्याएं उन के सामने थीं. मामाजी हिसाबी आदमी थे, वे यह सोच कर क्षुब्ध थे कि आखिर बहू के आने से लाभ क्या हुआ? अमित के तबादले ने इस मामले को गंभीर मोड़ पर पहुंचा दिया था.

इस के  बाद नागपुर जाने के अवसर को मैं ने जानबूझ कर टाल दिया था. किंतु लगभग सालभर बाद मुझे एक बीमार रिश्तेदार को देखने नागपुर जाना ही पड़ा. वहीं मामाजी से भेंट हो गई. अमित और विभा के विषय में पूछा तो बोले, ‘‘घर चलो, वहीं सब बातें होंगी.’’ हम लोग घर पहुंचे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था. मामी खिचड़ी बना कर अभीअभी लेटी थीं, उन की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. मुझे देखा तो उठ बैठीं और शिकायत करने लगीं कि मैं ने उन लोगों को भुला दिया है.

‘‘अमित अमरावती में है, उसे वहां बढि़या फ्लैट मिला है पर खानेपीने की कोई व्यवस्था नहीं है. कभी होटल में खा लेता है, कभी नौकर से बनवा लेता है. तुम्हारी मामी बीचबीच में जाती रहती है, इस का भी बुढ़ापा है. यह यहां मुझे देखे या उसे वहां देखे. मेरी तबीयत भी अब पहले जैसी नहीं रही. यहां का कारोबार देखना भी जरूरी है, नहीं तो सब अमरावती में ही रहते. विभा ने नौकरी छोड़ कर अमित के साथ जाने से इनकार कर दिया. सालभर से मायके में है,’’ मामाजी ने बताया.

अमित के विषय में बातें करते हुए दोनों की आंखों में आंसू भर आए. मैं ने ध्यान से देखा तो दीवार पर 5 फुट की ऊंचाई पर लगा निशान अब भी नजर आ रहा था. मन तो हुआ, उन से कहूं, ‘आप की समस्या इतनी विकट नहीं है, जिस का समाधान न हो सके. ऐसे बहुत से परिवार हैं जहां नौकरी या बच्चों की पढ़ाई के कारण पतिपत्नी को अलगअलग शहरों में रहना पड़ता है. विभा और अमित भी छुट्टियां ले कर कभी नागपुर और कभी अमरावती में साथ रह सकते हैं, ’ पर चाह कर भी कह न सकी.

दूसरे दिन सुबह हमसब नाश्ता कर रहे थे कि किसी ने घंटी बजाई. मामाजी ने द्वार खोला तो सामने एक बुजुर्ग सज्जन खड़े थे. मामी ने धीरे से परिचय दिया, ‘‘दीनानाथजी, विभा के पिता.’’ पता चला कि विभा और अमित के मतभेदों के बावजूद वे बीचबीच में मामाजी से मिलने आते रहते हैं.

मामी अंदर जा कर उन के लिए भी नाश्ता ले आईं. दीनानाथ सकुचाते से बोले, ‘‘बहनजी, आप क्यों तकलीफ कर रही हैं, मैं घर से खापी कर ही निकला हूं.’’ फिर क्षणभर रुक कर बोले, ‘‘क्या करें भई, हम तो हजार बार विभा को समझा चुके कि अमित इतने ऊंचे पद पर है, पूर्वजों का जो कुछ है, वह सब भी तुम्हारे ही लिए है, नौकरी छोड़ कर ठाट से रहे. पर वह कहती है कि ‘मैं सिर्फ पैसा कमाने के लिए नौकरी नहीं कर रही हूं. इस काम का संबंध मेरे दिलोदिमाग से है. मैं ने अपना कैरियर बनाने के लिए रातरातभर पढ़ाई की है. नौकरी के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरी हूं. अब इस नौकरी को छोड़ देने में क्या सार्थकता है?’ ऐसे में आप ही बताइए,’’ उन्होंने बात अधूरी ही छोड़ दी.

मामाजी ने अखबार पढ़ने का बहाना कर के उन की बात को अनसुना कर दिया. परंतु मामी चुप न रह सकीं, ‘‘भाईसाहब, लड़की तो लड़की ही है, लेकिन हम बड़े लोगों को तो उसे यही शिक्षा देनी चाहिए कि वह अपनी घरगृहस्थी देखते हुए नौकरी कर सके तो जरूर करे. नौकरी के लिए घरपरिवार छोड़ दे, पति को छोड़ दे और मायके में जा बैठे, यह तो ठीक नहीं है.’’

यद्यपि मामी ने अपनी बात बड़ी सरलता और सहजता से कही थी परंतु उन का सीधा आक्षेप दीनानाथजी पर था. कुछ क्षण चुप रह कर वे बोले, ‘‘बहनजी, एक समय था जब लड़कियों को सुसंस्कृत बनाने के लिए ही शिक्षा दी जाती थी. लड़की या बहू से नौकरी करवाना लोग अपमान की बात समझते थे. पर अब तो सब नौकरी वाली, कैरियर वाली लड़की को ही बहू बनाना चाहते हैं. इस कारण लड़कियों के पालनपोषण का ढंग ही बदल गया है. अब वे किसी के हाथ की कठपुतली नहीं हैं कि जब हम चाहें, तब नौकरी करने लगें और जब हम चाहें, तब नौकरी छोड़ दें.’’

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कुछ देर सन्नाटा सा रहा. उन की बात का उत्तर किसी के पास नहीं था. इधरउधर की कुछ बातें कर के दीनानाथ उठ खड़े हुए. मामाजी उन्हें द्वार तक विदा कर के लौटे और बोले, ‘‘देखा बेटी, बुड्ढा कितना चालाक है. गलती मुझ से ही हो गई. शादी के पहले ही मुझे यह शर्त रख देनी थी कि हमारी मरजी होगी, तब तक लड़की से नौकरी करवाएंगे, मरजी नहीं होगी तो नहीं करवाएंगे.’’

उन की इस शेष शर्त को सुन कर मैं अवाक रह गई.

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