उत्तर प्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने पहनावे, रहन-सहन और विचारों से भले ही आधुनिक संस्कृति का विरोध करते नजर आते हों, पर सरकार की कार्यशैली को वह ‘कारपोरेट रंग’ में रंग देना चाहते हैं. मुख्यमंत्री खुद भले ही भगवाधारी हों, पर अपने कर्मचारियों को वह ड्रेस कोड में देखना चाहते हैं. जींस और टीशर्ट के साथ सैंडल पहनने से मनाही कर दी गई है. धूम्रपान मना है. समय से आफिस आना जाना है. सरकार इस प्रयास में है कि कर्मचारियों की उपस्थित को बायोमैट्रिक किया जाये. देखने में यह बदलाव जितना सुखद है हकीकत में यह बदलाव इतना सरल नहीं है.
मंत्रियों, विधायकों, छोटे बड़े अफसरों की पूरी जानकारी योगी साफ्टवेयर पर रखना चाहते हैं, जिससे एक क्लिक से वह किसी के बारे में भी पूरी जानकारी हासिल कर सकें. सरकारी विभागों को यह कह दिया गया है कि वह अपने कामकाज और आने वाली योजनाओं को पावर प्वांइट में बनाकर मीटिंग में पेश करे. इसकी एक कापी मुख्यमंत्री कार्यालय के पास होगी. विभागों की समीक्षा भी पावर प्वाइंट प्रजेंटेंशन के जरीये होगी. सभी फाइलों को डिजीटल फार्म में रखने का काम शुरू करके सरकारी आफिस को फाइल मुक्त करने की पूरी तैयारी है.
कामचोरी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी में लिप्त सरकारी नौकरशाही और नेता कैसे सुधरेंगे, यह देखने वाली बात है. योगी सरकार उत्तर प्रदेश में कारपोरेट कार्यशैली लाना चाहती है पर उसके पास कोई ठोस सांचा नहीं बन पा रहा है. सुबह मीटिंग और देर रात तक प्रेजेंटेशन चलने के मैराथन प्रसास के बाद भी 20 दिनों में सरकार के कामकाज कोई ठोस शक्ल उभर कर नहीं आ पाई है. सरकार अपने प्रयासों से उपरी चमकदमक तो दिखाने में सफल हो रही है पर सही मायनों में कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है.
योगी की सबसे बड़ी चुनौती अब उनके पुरातनवादी विचार हैं जिसको वह अब तक ढोते रहे हैं. अपने भाषणों में वह एक मुख्यमंत्री से ज्यादा धार्मिक गुरू सा प्रवचन देते नजर आ रहे हैं. जिसमें यह बारबार वह ईश्वर की महिमा के जरीये समस्याओं के समाधान की बात करते दिखते हैं. असल में अगर सबकुछ भगवान के भरोसे ही होना है तो इस पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन का क्या अर्थ रह जाता है. पहले के प्रधानमंत्री राजीव गांधी जब कम्प्यूटर को भारत में लाये तो भाजपा और उसके जैसे पुरातनवादी विचारधारा के लोग इसके प्रबल विरोधी थे. कम्प्यूटर को बेरोजगारी का सबसे बडा माध्यम बताया गया था.
आज पुरातनवादी विचारधारा के समर्थन करने वाले ही नहीं तमाम साधू, संत, बाबा तक कंम्यूटर के दीवाने हो गये. योगी आदित्यनाथ जब मुख्यमंत्री बने तो उनके विषय में यह जानकारियां आने लगी कि वह कम्प्यूटर ही नहीं सोशल मीडिया के सबसे बडे समर्थक हैं. अपने ईमेल के जवाब खुद देते हैं. गोरखपुर के मंदिर में अपने निवास में योगी आदित्यनाथ खुद का बड़ा मीडिया सेंटर मैनेज करते हैं. जिसके जरीये वह अपने लेख, संदेश लोगों तक पहुंचाते हैं.
एक तरफ मुख्यमंत्री आधुनिक संचार शैली के दीवाने हैं, दूसरी तरफ वह मुख्यमंत्री आवास में तब तक रहने नहीं गये जब तक उसका शुद्वीकरण नहीं हो गया. तमाम आफिसों में पूजापाठ कराया गया. यह सब कराने का कारण यह था कि सरकार के आचार और विचार बदल जायें. अगर इस तरह से ही सरकार के आचार और विचार बदलने हैं तो आधुनिक कंप्यूटर प्रणाली, पावर प्रजेंटेंशन की क्या जरूरत है? असल में योगी सरकार ने प्रदेश में जिन अपेक्षाओं को जगा दिया है उनको पूरा करना उसके बस से बाहर है. ऐसे में योगी सरकार हर दिशा में हाथ पांव मार रही है. जिससे जनता में इस उम्मीद को कायम रखा जा सके कि सरकार उसके लिये काम कर रही है. इसका जमीन पर कोई प्रभाव दिखेगा यह मुश्किल दिख रहा है.