31 अक्तूबर, 2016 को गोवर्धन पूजा का दिन था. राजस्थान में इस दिन लोग एकदूसरे से मिलने जाते हैं. अजमेर जिले के कस्बा ब्यावर में अपनी बीवीबच्चों के साथ रहने वाला विजय कुमार गहलोत भी दूसरे मोहल्ले में रहने वाले अपने भाइयों बंटी और कमल से मिलने गया था. उस की पत्नी मोना ने तबीयत खराब होने की बात कह कर साथ जाने से मना कर दिया था. सुबह करीब 10 बजे अपने भाइयों से मिलने पहुंचा विजय दिन भर उन्हीं के यहां रहा. चूंकि घर पर पत्नी और बेटा ही था, इसलिए शाम का खाना खा कर वह 7, साढ़े 7 बजे मोटरसाइकिल से अपने घर के लिए चल पड़ा. रात साढ़े 11 बजे के करीब कमल के मोबाइल पर विजय की पत्नी मोना ने फोन कर के कहा, ‘‘कमल, आधी रात हो रही है, अब तो विजय से कहो कि घर आ जाएं.’’

इस पर कमल ने कहा, ‘‘भाभी, आप यह क्या कह रही हैं. विजय भैया तो 7 बजे ही यहां से चले गए थे.’’

‘‘हो सकता है, वह किसी यारदोस्त के यहां चले गए हों? मैं उन्हें फोन करती हूं.’’ कह कर मोना ने फोन काट दिया.

मगर कमल को चैन नहीं पड़ा. उस ने घर में यह बात बताई तो सब चिंतित हो उठे. उस ने विजय के मोबाइल पर फोन किया. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रहा था. कई बार ऐसा हुआ तो कमल को लगा, कहीं विजय के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. कमल अपने घर वालों के साथ विजय के घर पहुंचा तो उस के घर पर ताला लगा था. उस ने विजय की पत्नी मोना को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘आप के भैया घर नहीं आए तो मैं थोड़ी देर पहले मायके आ गई. मुझे अकेले घर पर डर लग रहा था.’’ कमल घर वालों के साथ अपने घर लौट आया. घर पर सभी परेशान थे कि आखिर ऐसी कौन सी वजह है, जो विजय फोन नहीं उठा रहा. सुबह साढ़े 3 बजे के करीब विजय के मोबाइल से कमल के मोबाइल पर फोन आया. जैसे ही कमल ने फोन रिसीव किया, दूसरी तरफ से किसी अनजान व्यक्ति ने कहा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं और जिस मोबाइल से मैं फोन कर रहा हूं, वह किस का है?’’

‘‘मैं कमल बोल रहा हूं और यह मोबाइल मेरे आई विजय का है. आप कौन?’’ कमल ने पूछा.

‘‘मैं थाना सदर का एएसआई माणिकचंद बोल रहा हूं. उदयपुर बाईपास रोड पर एक आदमी का एक्सीडेंट हो गया है. यह मोबाइल वहीं पड़ा मिला था. आप तुरंत यहां आ जाइए.’’

एक्सीडेंट की बात सुन कर कमल घबरा गया. थोड़ी देर में वह अपने घर वालों और परिचितों के साथ उदयपुर बाईपास रोड पर पहुंच गया. वहां सड़क के किनारे झाडि़यों के पास विजय की लाश पड़ी थी. उस के पैरों में चप्पल नहीं थे. लाश से करीब 100 फुट दूर उस की मोटरसाइकिल पड़ी थी. इस से यह मामला दुर्घटना के बजाय हत्या का लग रहा था. मोटरसाइकिल से ले कर लाश तक मोटरसाइकिल के घिसटने के निशान भी नहीं थे. लाश के पास ही शराब का एक खाली पव्वा पड़ा था. जबकि विजय शराब बिलकुल नहीं पीता था. वहीं उस का मोबाइल फोन भी पड़ा था. एएसआई माणिकचंद की सूचना पर थाना सदर के थानाप्रभारी रविंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए थे. उच्चाधिकारियों को भी घटना से अवगत करा दिया गया था. वे भी सुबह तक घटनास्थल पर आ गए थे. मौके का बारीकी से मुआयना करने के बाद विजय की लाश पोस्टमार्टम के लिए अमृतकौर चिकित्सालय भिजवा दी गई थी. पुलिस मृतक की पत्नी मोना से बात करना चाहती थी, लेकिन उस वक्त वह काफी दुखी थी. पुलिस उस के घर का निरीक्षण करना चाहती थी, पर उस के घर में ताला बंद था. पुलिस ने उसे बुलवा कर घर का ताला खुलवाया. घर के बाहर ही मृतक विजय के चप्पलें पड़ी थीं. पुलिस ने मोना से पूछा कि ये चप्पलें यहां कैसे आईं तो वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी.

घर का पानी जिस नाली से बहता था, उसे देख कर ही लग रहा था कि वहां खून साफ किया गया था. इस के अलावा हौल की दीवारों और फर्श पर खून के छींटे नजर आए. बाथरूम में पानी से भरी एक बाल्टी में मोना के कपड़े और पैंटशर्ट भिगोए थे, उन में भी खून लगा था. इस सब से यही लग रहा था कि विजय की हत्या घर में ही की गई थी और हत्या में मोना के साथ कोई आदमी भी शामिल था. रविंद्र सिंह ने जब मोना से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने प्रेमी दिनेश साहू के साथ मिल कर पति की हत्या की थी. सच सामने आ चुका था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के प्रेमी दिनेश साहू को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना सदर ला कर पूछताछ की गई तो विजय कुमार गहलोत की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान के जिला अजमेर से कोई 60 किलोमीटर दूर जोधपुर रोड पर स्थित है कस्बा ब्यावर. इसी कस्बे की चौहान कालोनी के रहने वाले रामभरुच सांखला के 3 बेटे और एक बेटी थी मोना. मोना बहुत खूबसूरत थी. वह सयानी हुई तो उस की शादी पाली के अपनी ही जाति के एक लड़के से कर दी गई. मोना ससुराल में खुश थी. उस के मायके वाले आर्थिक रूप से काफी मजबूत थे. इसलिए उन्होंने उस से कहा कि वे उस के लिए ब्यावर में मकान बनवा कर दे रहे हैं, इसलिए वह पति के साथ आ कर वहीं रहे. मोना ने जब यह बात अपने पति को बताई तो उस ने साफ कह दिया कि वह ससुराल में घरजमाई बन कर नहीं रहेगा. उस की मजबूरी यह थी कि उस के पिता का देहांत हो चुका था और वह विधवा मां को अकेली नहीं छोड़ना चाहता था.इसी बात पर मोना की पति से कटुता बढ़ गई और हालात यहां तक पहुंच गए कि शादी के 6 महीने बाद ही दोनों में तलाक हो गया. इस के बाद मोना अपने पिता के घर आ गई.

ब्यावर में ही मोहनलाल गहलोत अपनी पत्नी जसोदा देवी के साथ रहते थे. इन के तीन बेटे थे, बंटी कुमार, विजय कुमार और कमल किशोर. तीनों भाइयों में बड़ा स्नेह था. सब से बड़ा बेटा बंटी दिव्यांग था. दिव्यांग होने के बावजूद वह समाजसेवा में ज्यादा से ज्यादा समय बिताता था. वह ब्यावर विकलांग समिति का अध्यक्ष भी था. सोहनलाल और उन की पत्नी जसोदा की मौत के बाद तीनों भाइयों ने घरगृहस्थी और दुकानदारी संभाल ली थी.

सब बढि़या चल रहा था. बात सन 2004 की है. विजय कुमार अपने चचेरे भाई के साथ उस की ससुराल में आयोजित एक शादी समारोह में गया था. वहीं विजय की मुलाकात मोना उर्फ मोनिका से हुई. इसी मुलाकात में मोना और विजय एकदूजे को दिल दे बैठे. एक दिन वह भी आ गया, जब विजय ने अपने घर में मोना से शादी करने की बात कह दी. मोना ने भी अपने पिता से कह दिया था कि वह विजय को चाहती है और उस से शादी करना चाहती है. दोनों परिवारों की सहमति से सन 2004 में मोना और विजय की शादी हो गई.

मोना और विजय को अपनाअपना प्यार मिल गया था. उन की गृहस्थी आराम से कटने लगी. शादी की पहली वर्षगांठ से पहले ही मोना बेटे की मां बन गई, जिस का नाम नितेश रखा गया. विजय संयुक्त परिवार में रहता था, जबकि मोना पति के साथ अलग रहना चाहती थी. मोना के मायके वालों ने उसे विजयनगर में एक मकान बनवा कर दे दिया था. पति से जिद कर के वह उसी मकान में रहने चली गई. विजय की ब्यावर में फोटोफ्रैम की दुकान थी. वह सुबह दुकान पर चला जाता था तो रात को ही लौटता था. नितेश स्कूल जाने लायक हुआ तो उस का दाखिला पास के स्कूल में करा दिया गया था. विजय के घर के सामने दिनेश साहू का मैडिकल स्टोर था. उस के पिता माणक साहू ब्यावर के अमृतकौर सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर थे और अस्पताल के पास ही रहते थे. दिनेश शादीशुदा था. मैडिकल स्टोर पर बैठने के साथ वह नर्सिंग का कोर्स भी कर रहा था.

मैडिकल स्टोर पर बैठने के दौरान ही दिनेश और मोना के नैन लड़ गए. शादीशुदा होने के बावजूद दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. बच्चे को स्कूल भेजने के बाद मोना घर में अकेली रह जाती थी. एक दिन उस ने चाय के बहाने दिनेश को घर बुला लिया. इस के बाद दोनों रोज मिलने लगे. मोना उम्र में दिनेश से 6-7 साल बड़ी थी. मगर उस की फिगर ऐसी थी, जिस पर दिनेश मर मिटा था.

एक दिन ऐसा भी आया, जब सारी सीमाएं लांघ कर दोनों ने शारीरिक संबंध बना लिए. मोना को विजय में अब कोई रुचि नहीं रह गई थी, बल्कि वह उसे राह का कांटा लगने लगा था. दूसरी ओर दिनेश को भी अपनी पत्नी में पहले जैसी रुचि नहीं रह गई थी. वह उसे समय नहीं दे पा रहा था. राह में कांट लग रहे पति को मोना ने राह से हटाने के बारे में दिनेश से बात की तो उस ने कहा कि विजय को इस तरह ठिकाने लगाया जाए कि किसी को शक तक न हो.

‘‘तुम चिंता मत करो, इस के लिए मेरे दिमाग में एक सुपर आइडिया है. हम पहले विजय की घर में ही हत्या कर देंगे, उस के बाद लाश और मोटरसाइकिल को सड़क पर डाल देंगे. लोग समझेंगे कि उस की मौत सड़क हादसे में हुई है. मामला ठंडा होने के बाद हम नाता प्रथा के तहत शादी कर लेंगे.’’

योजना को किस तरह अंजाम देना है, यह दोनों ने तय कर लिया. 31 अक्तूबर, 2016 को गोवर्धन पूजा वाले दिन विजय कुमार गहलोत ने सुबह मोना से कहा, ‘‘आज हम लोग बंटी और कमल के घर चलते हैं?’’

‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है. ऐसा करो, तुम अकेले चले जाओ. मैं फिर कभी हो आऊंगी.’’ मोना ने कहा.

पत्नी की बात पर विश्वास कर के विजय ने उस से साथ चलने की जिद नहीं की और मोटरसाइकिल उठा कर अकेला ही अपने भाइयों के यहां  चला गया. मोना ने तबीयत खराब होने की बात कही थी, इसलिए विजय भाइयों के यहां से शाम 7 बजे घर लौट आया. इस के बाद पत्नी से बातचीत कर के रात 10 बजे सो गया.

दिनेश अपने मैडिकल स्टोर पर ही बैठा था. मोना का इशारा पा कर वह दुकान में रखा हथौड़ा ले कर उस के घर आ गया. उस के घर में घुसते ही मोना ने घर का दरवाजा बंद कर दिया. दिनेश ने सो रहे विजय के सिर पर हथौड़े से वार किया. उस का सिर फट गया और वह बेहोश हो गया. इस के बाद मोना से चाकू ले कर उस ने उस का गला रेत दिया.

गला कटने से जो खून निकला, उस से मोना की साड़ीब्लाउज और दिनेश के कपड़ों पर खून लग गया. विजय तड़प कर मर गया तो लाश को बैड से नीचे उतार कर उस पर पानी डाल कर खून साफ किया गया. इस के बाद उन्होंने खून से सने कपड़े बाथरूम में भिगो दिए. दूसरे कपड़े पहन कर तौलिए से खून के छींटे साफ किए और चाकू, हथौड़ा तथा खून सना तौलिया छिपा दिया.

इस के बाद दिनेश अपने गैराज से अपनी स्कौर्पियो ले आया. लाश को स्कौर्पियो में रख कर पहले से ला कर रखा शराब का पौवा भी साथ रख दिया. लाश को गाड़ी में रखने के दौरान विजय के पैरों से चप्पलें निकल कर घर के बाहर गिर गई थीं. अंधेरा होने की वजह से मोना और दिनेश ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. दोनों इस बात से निश्चिंत थे कि कोई उन्हें देख नहीं रहा है.

दोनों लाश ले कर उदयपुर बाईपास रोड पर पहुंचे और इधरउधर देख कर उन्होंने लाश को सड़क के पास फेंक दिया. शराब का पौवा खोल कर उन्होंने विजय के मुंह पर शराब उड़ेल दी. खाली शीशी पास ही फेंक दी. विजय का मोबाइल भी वहीं रख दिया. इतना सब कर के दोनों लौट आए. स्कौर्पियो को अपनी गैराज में खड़ी कर दिनेश पुन: मोना के घर गया. इस बार वह विजय की मोटरसाइकिल ले कर उसी जगह गया, जहां लाश फेंक कर आया था.

उधर जब कमल को पता चला कि विजय घर नहीं पहुंचा है तो वह बारबार उसे फोन करने लगा. विजय के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रहा था. उदयपुर बाईपास रोड पर गश्त लगा रही पुलिस को सड़क किनारे फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी तो पुलिस वहां पहुंची. पुलिस ने वहां लाश पड़ी देखी तो हैरान रह गई. पास में पड़े फोन की घंटी तब तक बंद हो चुकी थी. इस के बाद उसी फोन से पुलिस ने कमल को फोन किया. दिनेश मोटरसाइकिल ले कर वहां पहुंचा तो पुलिस की गाड़ी खड़ी देख कर वह लाश से करीब 100 फुट दूर ही सड़क पर मोटरसाइकिल छोड़ कर भाग आया. तब तक खून वगैरह साफ कर के मोना घर में ताला लगा कर अपने मायके चली गई थी.

उस रात अमृतकौर अस्पताल में नर्सिंगकर्मियों की एक पार्टी चल रही थी. मोटरसाइकिल छोड़ कर दिनेश यारदोस्तों की उस पार्टी में शामिल हो गया. पुलिस के गश्ती दल की सूचना पर सदर थानाप्रभारी रविंद्र सिंह एवं सहायक पुलिस अधीक्षक देवाशीष देव घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

पूछताछ के बाद पुलिस ने मोना उर्फ मोनिका और उस के प्रेमी दिनेश साहू को गिरफ्तार कर के उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू बरामद कर लिया था. इस के अलावा स्कौर्पियो कार व अन्य सबूत भी जुटा लिए गए. पोस्टमार्टम के बाद विजय का विसरा जांच के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया था. पुलिस ने मोना और उस के प्रेमी दिनेश को न्यायालय में पेश कर के अजमेर केंद्रीय कारागार भेज दिया. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी रविंद्र सिंह कर रहे थे.

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