रेखा गणित से संबंधित एक कहावत है कि किसी बड़ी रेखा को बिना छेड़े छोटी करना हो तो उस के समानांतर उस से बड़ी रेखा खींच दो. ऐसा करने से पहली रेखा खुदबखुद छोटी दिखने लगेगी. 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के ऐलान के बाद मोदी सरकार भी यही करती दिखी. बैंकों और एटीएम के सामने लगी लंबीलंबी लाइनों को कम करने के लिए सरकार ने नित नए हथकंडे अपनाए. कभी कुछ तो कभी कुछ. कभी रकम थोड़ी ज्यादा तो कभी कम. लेकिन इस का कोई नतीजा नहीं निकला. एटीएम और बैंकों के सामने कतारें और लंबी होती गईं. अपना ही पैसा पाने के लिए, लोग कईकई घंटों तक बैंकों और एटीएम के सामने भिखारी की तरह झोली फैलाए लाइनों में खड़े रहे. कुछ को 2-4 हजार रुपए मिल जाते तो कुछ को बैंकों या एटीएम में रकम खत्म हो जाने की सूचना के साथ खाली हाथ लौटना पड़ता. डेढ़ महीने बाद लाइनें अगर कम हुईं तो इसलिए क्योंकि सरकार के फैसले गिरगिट की तरह रंग बदल रहे थे. यानी बड़ी लाइनों को छोटा करने के लिए उन से बड़ी लाइनें खींची जा रही थीं. बहरहाल, लाइनें तो अब खत्म हो गईं, लेकिन लोगों की परेशानियां अभी खत्म नहीं हुईं. खत्म होने के आसार भी नहीं लगते.

नोटबंदी के पीछे सरकार की मंशा भले ही सही रही हो, जिसे शुरुआती दिनों में ज्यादातर लोगों ने सराहा भी. लेकिन लंबी परेशानियां झेल कर अब अधिकांश लोगों के सिर से इस तथाकथित अच्छाई का भूत उतर चुका है. अब बात डिजि धन पर आ कर ठहर गई है. जो इस मुहिम का शायद अंतिम चरण है. डिजि धन यानी डिजिटल लेनदेन. जाहिर है, डिजिटल लेनदेन की प्रक्रिया 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों के लिए आसान नहीं होगी. जो डिजिटल लेनदेन करेंगे उन के लिए दूसरे तरह के खतरे मुंह बाए खड़े हैं. इन में सब से बड़ा खतरा साइबर अपराधियों का है.

8 नवंबर, 2016 की रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब न्यूज चैनल्स पर घोषणा की थी कि आज रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपए के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे, तभी से देश में आर्थिक आपातकाल जैसी स्थिति बन गई थी. चूंकि तब तक 12 बजने में काफी समय था, इसलिए कितने ही लोग हजार और पांच सौ के नोट ले कर बाजार की ओर दौड़े ताकि थोड़ीबहुत खरीदारी कर के बड़े नोटों का खुल्ला करा सकें.

जिन के पास ज्यादा नोट थे, उन्होंने सोने के जेवरात खरीदे. हालात यह रहे कि कितने ही ज्वैलर्स की दुकानें रात 2 बजे तक खुली रहीं, जिस के चलते उस रात करोड़ों का सोना बिका. वह भी मनमाने रेट पर. अनुमान है कि उस रात ज्वैलर्स ने 5000 करोड़ के गहने और गोल्ड बार बेचे.

8 नवंबर को नोटबंदी के बाद देश में कुछ वैसी ही स्थिति बन गई थी, जैसी संजय गांधी के नसबंदी अभियान की घोषणा और इंदिरा गांधी की आपातकाल की घोषणा के बाद बनी थी. नोटबंदी का उद्देश्य था, लोगों के पास पड़े काले धन को बाहर निकालना और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना.

हकीकत यह है कि जितना काला धन बाहर नहीं आया, उस से ज्यादा बैंक वालों ने अंदर ही अंदर काले को सफेद कर दिया. पैसा चूंकि बैंकों में जा रहा था, इसलिए अंदर होने वाले काले कारनामों की उन रसूखदारों के अलावा किसी को खबर नहीं थी, जो अपने काले धन को सफेद करा रहे थे. दूसरी ओर बैंकों के बाहर लाइनों में खड़ा आम आदमी इस सब से अनभिज्ञ अपना नंबर आने के इंतजार में बैंक के गेट को हसरत भरी नजरों से देख रहा था.

नोटबंदी की घोषणा के बाद एक डेढ़ माह तक लोगों ने बैंक और एटीएम के बाहर लाइनों में लग कर जिस त्रासदी को झेला, उसे देख कर लगता था जैसे आम आदमी का कोई वजूद ही नहीं है. उन की स्थिति बिलकुल भेड़बकरियों जैसी होती है, जिन्हें गड़रिया जिधर हांक दे, वे उधर ही चलती जाती है. हकीकत भी यही है, वोट देने के बाद आम आदमी की स्थिति ऐसी ही तो हो जाती है. बागडोर हाथ में आ जाने के बाद सरकार जनता पर कोई भी फैसला थोप सकती है और अगर बहुमत वाला शासक निरकुंश हो तो फिर तो कहना ही क्या. गुजरे दिनों की स्थिति को देख कर तो ऐसा ही लगा.

मोदीजी ने काले धन को बाहर निकालने के लिए देश पर नोटबंदी का जो फैसला थोपा, वह आम जनता के लिए निरंकुश शासक जैसा ही था. हां, उद्योगपतियों, बिजनैसमैनों, रसूखदार लोगों और नेताओं पर इस का कोई असर नहीं पड़ा, जबकि काला धन ऐसे ही लोगों के पास होता है. जिन के पास काला धन था, उन में से ज्यादातर का काला धन बड़े आराम से सफेद हो गया.

शुरुआती दौर में जो लोग नोटबंदी को प्रधानमंत्री का कड़ा कदम और जनता के हित में मान रहे थे, जहांतहां करोड़ों रुपए की नई करेंसी पकड़ी जाती देख उन्होंने खुद को ठगा सा महसूस किया. जाहिर है यह सब बैंक कर्मचारियों की वजह से हुआ था.

नोटबंदी के चक्कर में देश के करोड़ों लोगों ने महीनों तक लंबीलंबी लाइनों में लग कर जो मुसीबत झेली, वह किसी से छुपी नहीं है. लेकिन दूसरी ओर हजारों लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने नोटबंदी से जम कर फायदा उठाया. इस मौके का लाभ उठाने वालों में तमाम बैंक कर्मचारी भी हैं और काले धन के वे कुबेर भी, जिन्होंने बैंक कर्मचारियों से मिल कर अपने काले धन को सफेद कराया.

दरअसल, मोदी सरकार को शायद यह उम्मीद नहीं थी कि बैंकों में भी हेराफेरी हो सकती है. इस मामले में सरकार तब चेती जब जहांतहां लाखों रुपए की नई करेंसी पकड़ी जाने लगी. दुख की बात यह कि इसे रोकने के लिए सरकार ने कदम उठाए भी तो काफी देर से और अपर्याप्त.

इस तरह की हेराफेरी की एक वजह यह भी रही कि कोई भी बैंक छोटे खाता धारकों से नहीं चलता. उसे जरूरत होती है बडे़ खाता धारकों की. ऐसे खाताधारक जिन का ट्रांजेक्शन लाखोंकरोड़ों में होता है. ये लोग अपने किसी कर्मचारी को भेज कर लाखों रुपए बैंकों में जमा भी कराते हैं और निकलवाते भी हैं. बैंक मैनेजर या कर्मचारी उन के एक फोन पर सारा काम कर देते हैं.

जाहिर है, बैंक मैनेजर या कर्मचारी सारे नियमों को ताक पर रख कर पहले उन का काम करते हैं. नए नोटों के मामलों में भी ऐसा ही हुआ. 2-4 हजार रुपयों की चाह रखने वालों को जहां 2 से 5-6 घंटे तक लाइनों में लगना पड़ा, वहीं बड़े खाताधारकों को बैकडोर से लाखों की नई करेंसी बड़े आराम से मिलती रही. पुराने नोट बदलने के मामले में भी ऐसा ही हुआ.

अगर यह कहा जाए कि नई करेंसी की सब से ज्यादा हेराफेरी बैंकों में हुई तो गलत नहीं होगा. क्योंकि लाखोंकरोड़ों की करेंसी बैंक से ही बाहर जा सकती थी. यह रकम उद्योगपतियों, बिजनैसमैनों, रसूखदारों, नेताओं या नंबर-2 का धंधा करने वालों के पास ही गई.

टीवी चैनलों पर नोटबंदी को ले कर रोज डिबेट होती रहीं. सभी बड़ी पार्टियों के प्रवक्ता एकदूसरे की खूब छीछालेदर करते रहे, जनता के स्वयंभू मसीहा बन कर उस की परेशानियों का रोना रोते रहे. लेकिन उन्होंने कभी भी एकदूसरे से ये नहीं पूछा कि तुम्हारे पास नई करेंसी कहां से आई, जो ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे हो. यह सवाल किसी एंकर की लिस्ट में भी नहीं था कि आप में से किसी के परिवार का कोई आदमी लाइन में लगा क्या? मतलब सीधा सा है कि जो खुद को आम आदमी का नुमाइंदा समझते हैं, उन में कोई भी न तो आम आदमी है और न आम आदमी का रहनुमा. ये लोग सारे खेल बैठेबैठे खेलते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की योजना 6 लोगों की टीम के साथ मिल कर बनाई थी. टीम के सभी सदस्य विश्वसनीय थे. इस बात का पूरा ध्यान रखा गया था कि नोटबंदी की घोषणा तक योजना की गोपनीयता पूरी तरह बनी रहे. मोदी के बाद इस टीम के मुखिया थे वित्तीय सेवाएं सचिव हसमुख अढि़या.

58 वर्षीय अढि़या गुजरात में नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में 2003 से 2006 तक प्रमुख सचिव रह चुके हैं. उसी दौरान दोनों के रिश्ते मजबूत हुए. अढि़या ने अपनी निष्ठा और विवेक से नरेंद्र मोदी की नजरों में अपनी खास इमेज बना ली थी. सितंबर 2015 में हसमुख अढि़या का नाम राजस्व सचिव के रूप में सामने आया. हालांकि यह पद वित्तमंत्री अरुण जेटली के अधीन आता है, लेकिन अढि़या सीधे नरेंद्र मोदी के संपर्क में रहते थे.

6 महीने में बनी इस योजना में प्रधानमंत्री निवास के 2 कमरों का इस्तेमाल किया गया. जहां रिसर्च चल रही थी, वहां जब कोई खास बात होती थी तो मोदी और अढि़या गुजराती में बात करते थे, जिसे कोई नहीं समझ पाता था. इस काम में लगाए गए अन्य लोग प्रधानमंत्री के सोशल मीडिया अकाउंट और ऐप संभालते थे. इस टीम का फीडबैक मिलने पर ही मोदी ने 8 नवंबर को नोटबंदी से पहले कैबिनेट की मीटिंग बुलाई.

उस मीटिंग में अपनी योजना बताने के बाद नरेंद्र मोदी ने मौजूद सदस्यों से कहा कि अगर नोटबंदी फेल होती है तो जिम्मेदारी सिर्फ मेरी होगी. इस के बाद 8 नवंबर की रात को नोटबंदी की घोषणा कर दी गई. इस के समर्थन में पहला ट्वीट भी हसमुख अढि़या ने ही किया.

बताया जाता है कि काले धन के खिलाफ पिछले एक साल से काम चल रहा था. इस के तहत रिजर्व बैंक से अलगअलग समय पर कई सवाल भी पूछे गए. लेकिन इस तरह कि कोई समझ न सके. अगस्त 2016 में 2000 के नोट डिजाइन करने की बात भी सामने आई. नोटबंदी का ऐलान 18 नवंबर को होना था, लेकिन योजना लीक होने के डर से 10 दिन पहले ही नोटबंदी का ऐलान कर दिया गया, बिना पूरी तैयारी के. यह शायद बंपर जीत के बाद सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कौंफीडेंस था, जो पूरे देश पर भारी पड़ा.

प्रधानमंत्री मोदी ने इलेक्शन से पहले जो वादे किए थे, उन में एक वादा यह भी था कि वे विदेशों में जमा धनपतियों और नेताओं का काला धन लाएंगे. अगर वह धन आ गया तो इतना होगा कि देश के हर खाते में डाला जाए तो हरेक के हिस्से में 15-15 लाख रुपए आ जाएंगे. निस्संदेह, न तो यह असान था और न ही प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ऐसा कर पाए.

कोई और नेता होता तो भी यह संभव नहीं था. मोदी के इस वादे को विरोधी पार्टियां पकड़ कर बैठ गईं. चुनाव प्रचार के बाद उन्होंने इस वादे को अपने हिसाब से डायवर्ट कर के पूछना शुरू कर दिया कि मोदी हर खाते में जो पंद्रह लाख रुपए डालने वाले थे, उस का क्या हुआ? जब बारबार यह बात उठी तो अमित शाह ने कह दिया कि वह चुनावी जुमला था. इस के बाद विरोधी पार्टियों ने दोनों बातों को जोड़ कर प्रधानमंत्री पर तंज कसने शुरू कर दिए.

संभवत: प्रधानमंत्री के मन में यह बात गहरे तक बैठी थी. इसी के चलते उन्होंने विदेश न सही तो देश के धनकुबेरों का ही काला धन निकालने का फैसला कर लिया. इस में शायद वह कामयाब भी हो जाते अगर सोचविचार कर अथवा पूरी तैयारी कर के फैसला लिया गया होता. इस सब का खामयाजा भोगना पड़ा आम आदमी को, गरीबों को, मेहनतकश लोगों को. इस के बाद भी ज्यादातर लोग मोदीजी के इस फैसले को सही बताते रहे तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वे जल्दी ही स्थिति सामान्य होने की उम्मीद लगाए बैठे थे.

स्थिति कुछ हद तक सामान्य हो भी जाती अगर सरकार ने 500 रुपए के पर्याप्त नोट छापे होते और बैंकों में मौजूद 100 रुपए के नोटों का सही वितरण हो पाता. कुछ लोगों के हाथों में आए भी तो 2000 के नोट, जो तब तक किसी काम के नहीं थे, जब तक बाजार में पर्याप्त मात्रा में छोटी मुद्रा न हो, जो थी ही नहीं. इस का सब से ज्यादा असर गरीब, मेहनतकश तबके पर पड़ा.

शादियों का सीजन होने की वजह से पैसे के अभाव में कितनी ही शादियां रुक गईं. बीमार लोग इलाज से वंचित रह गए. कितने ही चूल्हे ठंडे पड़े रहे, मजदूरों को काम मिलना बंद हो गया. छोटेछोटे उद्योग बंद हो गए. कामगरों की छुट्टी कर दी गई. किसानों की रबी की फसल ठीक से नहीं बोई जा सकी.

इतनी परेशानियों के बाद भी जब प्रधानमंत्री ने सब कुछ ठीक कर देने के लिए 50 दिन का समय मांगा तो भी लोगों ने उन की बातों पर भरोसा कर लिया. लेकिन उन का भरोसा तब दरकने लगा जब देश के कोनेकोने में लाखों करोड़ों की नई करेंसी पकड़ी जाने लगीं, काला धन पकड़ा जाने लगा. इस का मतलब था कि मोदी का नोटबंदी अभियान फेल हो गया था. लाइनों में लगे लोगों को जहां 2-4 हजार रुपए नहीं मिल रहे थे, वहीं कुछ लोग लाखों करोड़ों की नई करेंसी लिए घूम रहे थे.

24 नवंबर, 2016 को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर पीतमपुरा के रहने वाले अजितपाल सिंह और राजेंद्र सिंह को 27 लाख रुपए की नई करेंसी के साथ पकड़ा. सारी करेंसी 2000 के नोटों में थी, जिसे ये लोग मुंबई से लाए थे. पता चला ये हवाला करोबारी अब तक इसी तरह मुंबई से 1 करोड़ 5 लाख रुपए ला चुके थे.

इसी तरह करोलबाग के एक होटल से 14 दिसंबर को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम ने हवाला कारोबार से जुड़े 5 लोगों अंसारी आफाम, फैजल कौशर खान, अंसार अबू जार, लाडू राम और महावीर सिंह को पकड़ा. ये लोग होटल तक्ष के कमरा नंबर 202, 206 और 106 में ठहरे थे. इन लोगों के पास से 3 करोड़ 25 लाख रुपए के पुराने नोट बरामद हुए, जो इन्होंने 4 सूटकेसों और एक कार्ड बोर्ड कार्टन बौक्स में रख रखे थे.

ये लोग विभिन्न राज्यों से पुराने नोट मुंबई के ललितभाई भोलू भाई के पास ले जाते थे. वह कमीशन के आधार पर पुराने नोटों की जगह नए नोट दे देता था. इस से पहले ये लोग दिल्ली से इसी तरह 3 बार करोड़ों की रकम मुंबई ले जा चुके थे.

खास बात यह कि ये लोग इतनी बड़ी रकम हवाई जहाज से ले जातेलाते थे. एयरपोर्ट पर इन के पकड़े न जाने की वजह यह थी कि ललितभाई के एक्सपर्ट्स रुपयों की गड्डियों को सूटकेसों में नीचे रख कर ऊपर से डबल साइडेड टेप चिपका देते थे और उस के ऊपर काला कपड़ा रख कर इंटरनेट का तार या केबल डाल देते थे. इस तरह एयरपोर्ट का विशेष स्कैनर भी इस रकम को नहीं पकड़ पाता था. पकड़े जाने तक ये लोग इसी तरह 20 करोड़ की रकम मुंबई ले जा चुके थे.

पकड़े गए लोगों ने बताया कि नोटबंदी के बाद से हवाला करोबार का तरीका बदल गया है. 8 नवंबर से पहले हवाला का काम जहां कोडवर्ड या नंबर के आधार पर होता था, जब यह बंद हो गया तो हवाला कारोबारी पुरानी करेंसी की जगह नए नोट दे कर अपना काम चलाने लगे. आफान ने बताया कि दिल्ली के हवाला कारोबारी नेताओं, अफसरों और बिजनैसमैनों का काला धन मुंबई भेज कर नई करेंसी मंगा रहे थे.

जिस तरह से नोटबंदी के बाद नई करेंसी पकड़ी गई, उस से साफ पता चलता है कि सारी हेराफेरी बैंकों में ही हुई. आयकर अधिकारियों ने औचक छापों में कर्नाटक सरकार के 2 इंजीनियरों और 2 ठेकेदारों के बेंगलुरु स्थित घरों से 4.7 करोड़ की नई करेंसी, 6 करोड़ के पुराने नोट और 7 किलो सोना जब्त किया.

कर्नाटक के आयकर अधिकारी एलेक्स मैथ्यू के अनुसार सब से ज्यादा जब्ती पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर ए.सी. जयचंद्रन के फ्लैट से हुई. उस के बहुमंजिला अपार्टमेंट के बेसमेंट में खड़ी 2 महंगी कारों लेंबोरगिनी और पोर्शे लिमोजिन को भी इस केस में अटैच कर दिया गया. इनकम टैक्स के एक इसी तरह के छापे में 9 दिसंबर को चेन्नै के एक ज्वैलर्स से 106 करोड़ रुपए की रकम और 127 किलोग्राम सोना जब्त किया गया. बरामद की गई रकम में 10 करोड़ के नए नोट भी शामिल थे. इस से पहले आयकर विभाग ने बेंगलुरु में 5.7 करोड़ रुपए के नए नोट जब्त किए थे.

ओडिसा के संबलपुर की पुलिस टीम ने 4 दिसंबर को नोट बदलने वाले एक गिरोह से 1 करोड़ 42 लाख 91 हजार रुपए के 500 रुपए के नए और पुराने नोट पकड़े. पकड़े गए लोगों से पता चला कि इस गड़बड़झाले में शराब व्यवसाई जियारत अली और भारतीय स्टेट बैंक की शाखा के जनसंपर्क अधिकारी रश्मि रंजन राउत भी शामिल हैं.

पुलिस और आयकर विभाग ने आगे की जांच में जियारत अली, उस के बेटे मोहम्मद कजाफी और रिफत अली, सबतिन अली, स्टेट बैंक की प्रमुख शाखा के जनसंपर्क अधिकारी रश्मि रंजन राउत व उस के भाई पंकज कुमार राउत को गिरफ्तार किया. इन लोगों के पास से 85 लाख 62 हजार रुपए के 500 और 2000 रुपए के नए नोट मिले. ये लोग कमीशन ले कर पुराने नोटों को नए में बदलते थे.

रविवार 11 दिसंबर को क्राइम ब्रांच ने दिल्ली के गे्रटर कैलाश स्थित ला फार्म ‘टी ऐंड टी’ पर छापा मार कर 13 करोड़ 50 लाख रुपए की करेंसी बरामद की. इन में ढाई करोड़ 2000 के नोटों की शक्ल में थे. यह फर्म सुप्रीम कोर्ट के वकील रोहित टंडन की थी. बताया जाता है कि रोहित के एक बिल्डर और एक कांग्रेसी नेता से करीबी संबंध थे. उस के पास दिल्ली और एनसीआर में 125 करोड़ की प्रौपर्टी भी बताई जाती है.

दिल्ली की क्राइम ब्रांच को सूचना मिली थी कि छावला में रहने वाले प्रौपर्टी डीलर सुखवीर शौकीन के पास बड़ी संख्या में नए नोट हैं. क्राइम ब्रांच ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के साथ छापा मारा तो 64 लाख 84 हजार रुपए की रकम मिली. इन में 11 लाख 34 हजार रुपए के नए नोट थे. साथ ही एक करोड़ की ज्वैलरी भी बरामद हुई. उसी दिन घारूहेड़ा में एक स्विफ्ट कार में सवार 2 युवकों के पास से 6 लाख के नए नोट बरामद किए गए.

8 दिसंबर को आयकर विभाग ने चैन्नै में रेत खनन कारोबारी एस रेड्डी के 8 ठिकानों पर छापा मार कर 142 करोड़ की नकदी और 36.29 करोड़ कीमत का 127 किलोग्राम सोना जब्त किया. रेड्डी के पास पूरे राज्य में रेत खनन का लाइसेंस है. छापे में मिली रकम में 9.63 करोड़ के 2000 रुपए के नए नोट थे. रेत खनन व्यवसाई ने दावा किया है कि यह रकम और सोना उस का है.

8 दिसंबर को ही सूरत पुलिस ने 4 लोगों को कार में 2000 रुपए के नए नोटों की शक्ल में 76 लाख रुपए ले जाते हुए पकड़ा. इन में एक फैशन डिजाइनर युवती भी थी. इसी दिन पुलिस ने पोरबंदर के राणावाव में 25 लाख रुपए के नोट बरामद किए. पकड़े गए तीनों लोग गुजरात के थे. 6 दिसंबर को ही क्राइम ब्रांच ने गुड़गांव में 10 लाख की नए नोटों की करेंसी पकड़ी. यहां भी सारे नोट 2000 के ही मिले. इसी तारीख मे मुंबई क्राइम ब्रांच ने दादर क्षेत्र की हिंदू कालोनी से 85 लाख रुपए के नए नोट पकड़े.

इसी तरह 11 दिसंबर को फरीदाबाद पुलिस ने 2 अलगअलग मामलों में 64 लाख रुपए के नए नोटों के साथ 6 लोगों को पकड़ा. इन में से सेक्टर 30 की क्राइम ब्रांच ने 27.30 लाख रुपए के साथ 2 युवकों को पकड़ा. ये 20-25 प्रतिशत कमीशन ले कर पुराने नोटों की जगह नए नोट देते थे. पकड़े गए युवक दिल्ली के थे. बाकी रकम मुजेसर की पुलिस ने पकड़ी थी, जो 2 हजार के नोटों की शक्ल में थी.

काले धन के कुबेरों ने बैंक वालों से मिल कर धांधलियां तो खूब की, लेकिन सब न सही कुछ लोग कानूनी शिकंजे में फंसते रहे. नोटबंदी के 32 दिन बाद 10 दिसंबर को आयकर विभाग ने कर्नाटक के चित्रदुर्ग के एक हवाला एजेंट के घर छापा मारा तो 5.7 करोड़ रुपए के नए नोट, 90 लाख रुपए के 500 और 1000 रुपए के नोट और 32 किलोग्राम सोना मिला. यह रकम और सोना बाथरूम में एक गुप्त तिजोरी बना कर रखे गए थे. स्टील की तिजोरी वाश बेसिन के ऊपर टाइलों के पीछे छिपाई गई थी. इसे खोलने के लिए विंडो के पास एक सीक्रेट बटन था. बटन दबाने पर तिजोरी टाइल के साथ खुल जाती थी. उसी दिन आयकर विभाग की काररवाई में 3 शहरों चैन्नै, हैदराबाद और दिल्ली में अलगअलग जगहों से 33.56 करोड़ की नई करेंसी जब्त की गई, जो साफ इशारा करती थी कि सारी गड़बड़ी बैंकों से ही हुई है.

हिमाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित कालाअंब में पुलिस ने सिंडीकेट बैंक की पावटा साहिब शाखा के मैनेजर रोहित की मारुति कार से एक ट्रंक बरामद किया जिस में 30 लाख की नई करेंसी थी. ट्रंक में 24 लाख के 2-2 हजार के नोट थे और 5 लाख कीमत के 500-500 के नेट. बाकी रकम सौ-सौ के नोटों में थी. जाहिर है, बैंकों के अधिकारी जनता की चिंता छोड़ कर अपनी जेबें भरने में लगे थे.

बैंकों की बात करें तो सब से बड़ा घोटाला एक्सिस बैंक की शाखाओं में हुआ. इसी के चलते बैंक के 27 अफसरों को सस्पैंड कर दिया गया. दरअसल, मंगलवार 13 नवंबर को उत्तरी जिला पुलिस ने शाम को एक्सिस बैंक की कश्मीरी गेट शाखा के बाहर एक ज्वैलर, एक चार्टर्ड एकाउंटेंट और उस के सहायक को दबोचा. इन के पास से 3 करोड़ 70 लाख रुपए के पुराने नोट बरामद हुए.

पूछताछ में ज्वैलर ने बताया कि एक्सिस बैंक के मैनेजर से उस की सांठगांठ है और इस से पहले भी वह मैनेजर के माध्यम से करोड़ों के पुराने नोट बदलवा चुका है. उस ने यह भी बताया कि इस के एवज में वह बैंक के 2 मैनेजरों को सोने की ईंट दे चुका है. पुलिस ने यह बात इनकम टैक्स रेवेन्यू इंटेलिजेंस के असिस्टेंट डायरेक्टर को बता दी. असिस्टेंट डायरेक्टर की टीम ने तीनों व्यक्तियों से 8 घंटे पूछताछ की. इस के बाद उन का 3 लाख 70 हजार रुपया जब्त कर के उन्हें छोड़ दिया गया. प्रवर्तन निदेशालय ने इस सब की लंबी जांच कर के केस दर्ज कराया और 5 दिसंबर, 2016 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने एक्सिस बैंक के 2 मैनेजरों विनीत गुप्ता और शोभित सिन्हा को गिरफ्तार कर लिया.

इन लोगों ने ऐसी फर्जी कंपनियों के खातों में 39 करोड़ रुपए के पुराने नोट जमा करवाए थे, जिन का डायरेक्टर मजदूर और गरीबों को बनाया गया था. इस के बदले में इन मैनेजरों ने सोने की 2 ईंट ली थीं. साथ ही इन्हें 2 पर्सेंट कमीशन अलग से मिलना था. इन खातों में जमा पैसा आरटीजीएस से वापस कर दिया गया, जो ज्वैलर को मिल चुका था.

शोभित सिन्हा के लखनऊ स्थित घर से 2 किलो सोने की ईंट बरामद भी हो गई. इस मामले से जुड़े ज्वलैर से 1 किलो सोने की ईंट पहले ही जब्त कर ली गई थी. दोनों मैनेजरों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर के जेल भेज दिया गया. ज्वैलर ने बताया कि नोटबंदी के अगले दिन ही एक दलाल ने उसे इन मैनेजरों से मिलवाया था. इस के बाद वह मैनेजरों से अपना और दूसरे ज्वैलर्स का काला धन बोगस खातों में जमा कराने लगा था. शाम के 5 बजे के बाद बैंक का शटर गिरा कर यही गोरखधंधा होता था.

ज्वैलर की पुराने नोटों वाली रकम को वर्किंग आवर में ही जमा दिखाया जाता था. अगले दिन फर्जी खातों में जमा रकम आरटीजीएस के जरिए ज्वैलर के खातों में भेज दी जाती थी, जिसे वह 31 से 32 हजार रुपए प्रति दस ग्राम की दर से सोने की बिक्री में दिखा देता था. हकीकत में यह सोना पुराने नोट वालों को 45 हजार से 50 हजार रुपए प्रति 10 ग्राम के हिसाब से बेचा जाता था.

चांदनी चौक का एक्सिस बैंक भी पीछे नहीं था. आयकर विभाग ने एक्सिस बैंक की चांदनी चौक शाखा में ऐसे 44 खाते पकड़े, जिन से 100 करोड़ रुपए निकाले गए थे. इन में से किसी भी खाते ने केवाईसी मानक पूरा नहीं किया था.

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने नोएडा के सेक्टर 51 स्थित एक्सिस बैंक पर छापा मार कर 40 फर्जी एकाउंट पकड़े. नोटबंदी के बाद इन खातों में पुरानी करेंसी जमा कर के आरटीजीएस के जरिए 60 करोड़ रुपए दूसरे खातों में भेजे गए थे. फर्जी खातों में 20 खाते फर्जी सेल्स कंपनियों के नाम पर खुलवाए गए थे. एक खाता धारक को फोन कर के पूछा गया तो वह हैरान रह गया. उस ने बताया कि वह तो मजदूर है. यहां भी कई बैंक कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया. एक्सिस बैंक की कृष्णानगर शाखा में भी इसी तरह की गड़बड़ी पाई गई.

सीबीआई ने बेंगलुरु में भी पुराने नोटों के बदले नए नोट देने वाले एक बड़े सिंडीकेट का परदाफास किया. सीबीआई द्वारा 10 जगह डाले गए छापों में कर्नाटक बैंक और धनलक्ष्मी बैंक के मैनेजरों की भूमिका भी पाई गई थी. इस साजिश में एटीएम में नोट डालने वाली कंपनी सिक्योर वैल्यू इंडिया भी शामिल थी. ये लोग एटीएम में भरने के लिए लाए गए नोटों को सीधे काले धन के कारोबारियों के पास पहुंचा देते थे और उन से पुराने नोट ले कर बैंकों में जमा करा देते थे.

सिक्योर वैल्यू इंडिया ने इस के लिए शहर भर में अपने एजेंट फैला रखे थे, जो कमीशन के बदले पुराने नोट बदलने के इच्छुक लोगों को ढूंढ कर लाते थे. इस रैकेट का तब भंडाफोड़ हुआ जब 1 दिसंबर को आयकर विभाग के छापे में 6 करोड़ रुपए के नए नोट पकडे़ गए. जांच में इन लोगों के पास 152 करोड़ रुपए के काले धन का पता चला. ईडी ने इन आरोपियों के खिलाफ मनी लांडिं्रग रोकथाम कानून के तहत केस दर्ज कर लिया है. सीबीआई अलग से इस मामले की जांच कर रही है.

मोदी सरकार ने 8 नवंबर को नोट बंदी के ऐलान के बाद सारी जिम्मेदारी बैंकों पर छोड़ दी थी. सफेद स्याह जो भी करना था, उन्हें ही करना था. यानि आदेश सरकार का, उसे पूरा करने की जिम्मेदारी बैंकों की. बस यहीं से गड़बड़ शुरू हुई. मौकापरस्त लोग आम आदमी की परेशानियों को परे रख कर काले धन को सफेद करने के नएनए हथकंडे ढूंढने लगे. इस में काफी हद तक वह कामयाब भी रहे. आइए जाने उन के हथकंडों की हकीकत.

बेंगलुरु के इंदिरा नगर स्थित कर्नाटक बैंक के चीफ मैनेजर सूर्य नारायण बेरी को जब सीबीआई ने स्याह को सफेद करने के आरोप में पकड़ा तो पता चला ये जनाब अपने कस्टमर्स से उन के आधार कार्ड, पहचान पत्र अथवा पैनकार्ड की फोटोकापी वगैरह ले कर बैंक में कैश न होने का बहाना कर देते थे. बाद में इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर चोरी छुपे काले धन को सफेद कर देते थे.

कुछ बैंक अधिकारियों ने काले धन को सफेद करने के लिए पुराने नोट ले कर डिमांड ड्राफ्ट बना दिए. फिर उन्हें कैंसल कर के नए नोट दे दिए गए. इस तरह की हेराफेरी खूब जम कर हुई. सेंट्रल बैंक औफ इंडिया की बासवमुंडी ब्रांच में 149 डिमांड ड्राफ्ट्स के जरिए 71 लाख रुपए जमा कराए गए जो बाद में नए नोटों में लौटा दिए गए.

बेंगलुरु में सीबीआई के हत्थे चढ़े रिजर्व बैंक औफ इंडिया के रीजनल औफिस में वरिष्ठ विशेष सहायक के. माइकल ने लोगों से बिना आईडी प्रूफ लिए ही नए नोट दे दिए. जो पुराने नोट जमा हुए, उन्हें माइकल ने पहले से ही बैंक में मौजूद रकम बता कर उस की जगह नई करेंसी ले ली. माइकल ने हेराफेरी का यह खेल चमराजपेट जिले के कोल्लेगज स्थित स्टेट बैंक औफ मैसूर में खेला जहां बैंक की चेस्ट थी. उस ने 1.51 करोड़ की करेंसी बदली थी. ऐसा और भी तमाम कैशियरों ने किया. उन्होंने कमीशन ले कर पुराने नोटों को नई करेंसी में बदल दिया. पुराने नोटों को उन्होंने बैंक में पहले से मौजूद पुरानी रकम बता दिया.

कुछ बैंक कर्मचारियों ने ईमानदार खाताधारकों के आईडी प्रूफ ले कर उन के नाम पर नए खाते खोले और उन में जमा रकम दिखा कर खूब हेराफेरी की. ऐसे खातों में पुराने नोट जमा कर के नए नोट निकाले गए. ज्ञातव्य हो, एकाउंट में जीरो बैलेंस होने पर वह खुद ब खुद अमान्य हो जाता है. 8 नवंबर के बाद खोले गए ऐसे खातों की जांच हो रही है.

दुकानदारों से रोज छोटे नोट जमा करने वाले माइक्रो फाइनैंस एजेंट्स ने भी स्वयं सहायता समूहों के अकाउंट्स में पैसे डाल कर खूब हेराफेरी की. इन एजेंट्स ने दुकानदारों से नए नोट लिए. जबकि इन्होंने स्वयं सहायता समूह के अकाउंट्स में पुराने नोट डाल कर काले धन को सफेद किया. ऐसे कम से कम 5000 स्वयं सहायक समूह और एजेंट्स जांच के दायरे में हैं.

इंडियन फाउंडेशन औफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग के संयोजक एस.पी. सिंह के मुताबिक, ज्यादातर ट्रांसपोर्टरों के पास 500 और 1000 रुपए के नोटों का भंडार था. पेट्रोल पंपों पर पुराने नोट चलाने की सुविधा दिए जाने का इन्होंने इस का भरपूर फायदा उठाया. इस में ज्यादातर काला धन था. इंडियन फाउंडेशन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग के अनुसार नोटबंदी के बाद ट्रांसपोर्टरों ने पेट्रौल पंपों को मिली पुराने नोट लेने की सुविधा का लाभ उठाते हुए अपना ही नहीं, अपने परिचितों और रिश्तेदारों का करोड़ों का काला धन सफेद कराया.

आरटीओ यानी रीजनल ट्रांसपोर्ट औफिस और उन के मुखिया अफसरों के हाथों में प्रदेश के किसी जिले के ट्रांसपोर्ट महकमे की नकेल होती है. इस के चलते ट्रांसपोर्टरों के साथ उन के घनिष्ठ रिश्ते बन जाते हैं. ट्रांसपोर्टरों ने इन अफसरों के काले धन को भी खूब सफेद कराया.

और तो और इस मामले में डीटीसी यानी दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन भी पीछे नहीं रही. 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद 9 नवंबर को डीटीसी ने घोषणा कर दी थी कि डीटीसी बसों में 1000 और 500 के नोट नहीं लिए जाएंगे. इस के बावजूद डीटीसी के डिपो से 8,14,85,500 रुपए पुराने नोट जमा कराए गए.

काले धन को सफेद करने का खेल हर जगह, हर स्तर पर और हर तरह से खेला गया. जिस तरह बैंकों में पुराने नोट आए उसे देख कर सरकार भी हतप्रभ रह गई. दरअसल, सरकार को उम्मीद थी कि 3-4 लाख करोड़ की करेंसी काले धन के रूप में है. लेकिन उस की यह धारणा गलत साबित हुई. पुराने नोट बदलवाने में एक बड़ी भूमिका दलालों की भी रही जो 30-35 प्रतिशत कमीशन ले कर विभिन्न तरीकों से लोगों के पुराने नोट बदलवा रहे थे.

इस के अलावा कुछ कंपनियों ने अपने कैश इन हैंड के जरिए भी लोगों का काला धन सफेद कराया. दरअसल 8 नवंबर की रात को इन कंपनियों के खातों में जितना कैश इन हैंड शो हो रहा था, उतना उन के पास था ही नहीं. खातों में ज्यादा कैश इन हैंड जान बूझ कर दिखाया जाता है ताकि बैंकों से लोन वगैरह लेने की सुविधा रहे. कुछ लोगों ने इसी रास्ते से स्याह को सफेद किया.

काले धन को सफेद करने के लिए सीसी एकाउंट भी बड़ा हथियार बना. दरअसल, सीसी अकाउंट किसी कंपनी या फर्म की बैंक से लोन लेने की लिमिट होती है. मसलन अगर किसी कंपनी या फर्म ने सीसी अकाउंट से 15-25 लाख का लोन ले रखा है तो वह लोन की यह रकम पुराने नोटों में जमा करा सकती है. हालांकि यह जरूरी था कि नोटबंदी की रात को उस के रिकौर्ड में उतना कैश इन हैंड हो.

रीयल टाइम ग्रास सेटलमेंट यानी आरटीजीएस और ओवर ड्राफ्ट भी काले धन को सफेद करने के माध्यम बने. आरटीजीएस ट्रांजेक्शन में कम से कम 2 लाख रुपए ट्रांसफर किए जा सकते हैं. जबकि अधिकतम की कोई सीमा नहीं है. कई कंपनियों या फर्मों ने भी अपने करंट अकाउंट में इसी तरह पैसा जमा कराया. यहां भी शर्त वही थी कि नोटबंदी की रात को उन के पास कितना कैश इन हैंड दिखाया गया था. उस रकम को वह 30 दिसंबर तक पुराने नोटों के रूप में जमा करा सकते थे. इस तरह दूसरों का काला धन सफेद करने के लिए ऐसे लोगों ने 20 से 25 प्रतिशत कमीशन लिया.

बड़े बिजनैसमैन कई फर्जी कंपनियां बना कर रखते हैं ताकि बैंक से कर्ज ले सकें या फिर टैक्स की चोरी कर सकें. ऐसी फर्जी फर्मों या कंपनियों के माध्यम से काले धन को सफेद किया गया. इस में भी शर्त यही थी कि 8 नवंबर की रात को क्लोजिंग में उतना कैश दिखाया गया हो. ऐसे लोगों को भी 30 दिसंबर तक पुराने नोटों में रकम जमा करने की छूट थी.

सच्चाई यह है कि नरेंद्र मोदी की नोटबंदी की योजना को उन्हीं बैंकों ने पलीता लगाया, जिन पर भरोसा कर के यह योजना शुरू की गई थी. एक सच्चाई यह भी है कि कुछ ऐसे भाजपाई नेता इस योजना के फेल होने से खुश भी हैं, जिन्हें मोदी का बढ़ता हुआ कद अच्छा नहीं लगता.

अगर आम लोगों की बात करें तो डेढ़ महीने तक लाइनों में लग कर थक चुका यह वर्ग यह सोचसोच कर परेशान है कि मोदी सरकार जिस ई-बैंकिंग और प्लास्टिक मनी की बात कर रही है, उसे वह कैसे हैंडल करेगा? उस के साथ कहीं धोखाधड़ी हुई तो वह क्या करेगा?

उधर आमूलचूल परिवर्तन का सपना ले कर नोटबंदी करने वाले नरेंद्र मोदी अपनी योजना के फेल होने के बाद एक और लंबी रेखा खींचने के लिए ई-बैंकिंग और प्लास्टिक मनी लाने पर अड़े हैं. नरेंद्र मोदी की इस महत्वाकांक्षी योजना के फेल होने की एक वजह यह भी रही कि सरकार के आंकलन में गड़बड़ी हो गई.

दरअसल आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार करीब 14.5 लाख करोड़ की रकम के 500 और 1000 के नोट मार्केट में थे. नोटबंदी के बाद सरकार को उम्मीद थी कि 500 और 1000 रुपए के नोटों के जरिए छिपाया गया करीब 4-5 लाख करोड़ रुपए का काला धन बाहर आएगा.

लेकिन जिस तरह लोग बैंकों में पैसा जमा करा रहे हैं, उस से लगता है कि 30 दिसंबर तक जमा होने वाली रकम का आंकड़ा 4-5 लाख करोड़ की जगह लगभग 14 लाख करोड़ तक पहुंच जाएगा. मजे की बात यह कि इस में नकली करेंसी भी होगी, क्योंकि कई बैंकों ने जमा करते समय असली नकली को नहीं देखा.

जब कई बार प्यार से तो कई बार धौंस देने पर भी लोगों ने काला धन बाहर नहीं निकाला तो मोदी सरकार ने अपनी असल लाइन बदल कर ई-बैंकिंग और प्लास्टिक मनी की लाइन पकड़ ली. लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि यह ऐसा काम है, जिस में डाटा चुरा कर साइबर क्रिमिनल्स पलभर में किसी का भी खाता खाली कर सकते हैं.

कहने का अभिप्राय यह है कि मोदी जी ने फर्जी करेंसी, काला धन, आतंकवाद की फंडिंग जैसे जिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर नोटबंदी की शुरुआत की थी, उन में से एक भी पूरा नहीं हो पाया.

रही बात धन की परेशानी की तो लोगों को यह परेशानी 6-7 महीने से पहले समाप्त नहीं होगी, क्योंकि मोदी सरकार ने ई-बैंकिंग को सफल बनाने के लिए कम नोट छापने का फैसला कर लिया है. जब बैंकों में पैसा नहीं होगा तो लोगों को मजबूरी में ई-बैंकिंग की तरफ जाना ही पड़ेगा. लेकिन यह भी सच है कि सारे काम ई-बैंकिंग या ई-वालेट से नहीं हो सकते. कुछ कामों के लिए नकद रकम चाहिए ही.

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