भगवा रंग और गाढा हो गया है. संकीर्णता की आंधी जब समूची दुनिया में चल रही हो तो धर्म, जातियों का गढ़ भारत कैसे बच सकता है. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की तर्ज पर भेदभाव, नफरत की हवा ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में कथित धर्मनिरेपक्ष समाजवादियों के तंबू उखाड़ दिए और हिंदुत्व का परचम लहरा दिया है. 5 राज्यों में हुए चुनावों में धार्मिक नफरत भरी और समाज को बांट कर रखने वाली सोच की जीत दर्ज हुई है. खासतौर से नरेंद्र मोदी, अमित शाह उत्तर प्रदेश में धार्मिक, जातीय ध्रुवीकरण करने में कामयाब रहे. ये चुनाव मोदी और अमित शाह के लिए बड़ी चुनौती थे क्योंकि नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक को ले कर विपक्ष उन के खिलाफ माहौल तैयार कर रहा था.

असल में यह भाजपा की जीत नहीं, न मोदी की जीत है. यह जीत धर्म के बीच व्याप्त भेदभाव, ईर्ष्या, नफरत की जीत है, जिस के आधार पर यहां के मतदाता अपनी सरकार चुनने पर विवश होते हैं. चुनावी मैदान पर मोदी अमित शाह ने जो शतरंज बिछाई, और धार्मिक, जातीय पासे चले, वे कामयाब हो गए. उत्तर प्रदेश में भाजपा का कोई बड़ा नेता नहीं है. अमित शाह कई महीनों पहले से यहां डेरा डाले हुए थे. प्रचार के दौरान भाजपा की वह ओछी सोच सामने आती रही जो लोकतंत्र और संपूर्ण समाज के लिए घातक होती है.

कुछ समय से विश्व भर में उदार बनाम संकीर्ण विचारों की लड़ाई चल रही है. इस में लोकतंत्र के नाम पर संकीर्ण विचारों की विजय होती दिख रही है. भारत जैसे सब से बड़े लोकतंत्र में ऐसी शक्तियों का मजबूत होना निश्चित ही नुकसानदायक है. अमेरिका की तरह इन चुनावों में विकास की बात ही नहीं हुई, कहीं हुई तो यह गौण हो गई. सारी बातें, सोरी चर्चाएं, भाषण और सारी कवायद धर्म, जाति, मंदिर, मस्जिद, श्मशान, कब्रिस्तान को ले कर हुई.

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