सत्तर के दशक के एक धाकड़ कांग्रेसी नेता थे असम के देवकान्त बरुआ, उनकी इकलौती योग्यता थी इंदिरा गांधी की चापलूसी करते रहना, जिसके एवज में इंदिरा गांधी ने उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया था और बिहार का राज्यपाल भी बना दिया था. एक और कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ला थे, जो इंदिरा गांधी की स्तुति यह कहते करते थे कि तेरी सुबह की जय तेरी शाम की जय तेरे काम की जय तेरे नाम की जय.

ये आपातकाल के पहले की बातें हैं जब इंदिरा गांधी की तूती भारतीय राजनीति में ठीक वैसे ही बोलती थी जैसे अब उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक जीत के बाद नरेंद्र मोदी की बोल रही है. देश में कहीं भी देख लें मोदी के नाम की माला जपने वालों में एक होड़ सी पैदा हो गई है. चारों तरफ जश्न का सा माहौल है. भाजपाई उन्हें करिश्माई नेता साबित करने पर उतारू हो आए हैं. जगह जगह विजयोत्सव मनाए जा रहे हैं. जल्द ही मोदी के नाम के भजन कीर्तन भी शुरू हो जाएं तो बात कतई हैरानी की नहीं होगी.

व्यक्ति पूजा की यह हद इंदिरा युग की याद बेवजह नहीं दिलाती, जिन्हें कांग्रेसियों ने देवी साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, जिसका खामियाजा आखिरकार आपातकाल के रूप में देश को भुगतना पड़ा था. इंदिरा गांधी कोई हार तो हार, अदालत का फैसला न मानने तक की हद तक मनमानी करने पर उतारू हो गईं थीं, जिसकी एक बड़ी वजह तत्कालीन चाटुकार थे. नरेंद्र मोदी को भगवान साबित करने तुले लोग बरुआ और शुक्ला सरीखा गुनाह ही  कर रहे हैं जिन्हें रोकने वाला कोई नहीं, क्योंकि यह उनका हक हर लिहाज से है.

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