Editorial: साल 1965 और 1971 की फुल फ्लैज्ड वार्स और कारगिल, उरी, पुलवामा और अब पहलगाम पर बदले की झड़पों से यह तो तय हो गया है कि चाहे कुछ कर लो पाकिस्तान से अगर दहशतगर्द आ रहे हैं तो उन्हें रोकना नामुमकिन है. भारत पाकिस्तान के ठिकानों पर हमले कर के कुछ का अगर खात्मा भी कर दे तो और नए पनप आते हैं. लड़ाई, सेना, बम, टैंक, हवाईजहाज, मिसाइलें और यहां तक कि एटम बम अचानक घुस आए बंदूकधारियों के हमलों से देश को नहीं बचा सकते.

हम चाहे कितना कहते रहें कि ये आतंकवादी पाकिस्तान की सेना के साए तले पलते हैं, यह पक्का है कि न सेना और न इन आतंकवादियों के सरगने 7 मई जैसे हमलों से बदलने वाले हैं. अगर 9 जगह हमारी मिसाइलों ने कुछ तोड़फोड़ कर दी, कुछ को मार दिया, कुछ गोलाबारूद खत्म कर दिया तो कुछ ही दिनों में फिर ये दहशत फैलाने वाले भारत के आम इलाकों में घुसने की प्लानिंग करने लगेंगे.

देश में वोट जमा करने के लिए इन का फायदा उठाया जाता है, यह अब पक्का है. लालबहादुर शास्त्री ने, इंदिरा गांधी ने, अटल बिहारी वाजपेयी ने और नरेंद्र मोदी सब ने इस का फायदा उठाया. पर वोट के अलावा देश को क्या मिला? वोट भी एक पार्टी को मिले, इस से आम जनता को लाभ नहीं हुआ.

अच्छा यह रहेगा कि अब बेमतलब की धर्म की दुकानों पर नफरत की चीजें बेचना बंद कर दी जाएं चाहे वे नारे हों, चाहे निशान हों या गोलाबारूद. पाकिस्तान की सेना और वहां के नेता तो ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें तो उसी से जनता से पैसा छीनने का मौका मिलता है पर भारत में धर्म की दुकानों में नफरत की चीजें बेचने से सब से बड़ा फायदा मंदिरोंमसजिदों को होता है. यहां कमाई के लिए तो कारखाने हैं, व्यापार है, सरकारी ठेके हैं, बहुत बड़ी काम पर लगी जनता है. नेताओं की उन से वसूली हो जाती है.

यहां सेना की राजनीति या सरकार में कोई दखल देने की इच्छा नहीं है. वे अपने में व्यस्त हैं, पैसा मिल रहा है, अफसरों की शानशौकत है, सिपाहियों की नौकरियां हैं. उन्हें न नफरत से मतलब है, न पार्टियों से.

अब ‘आपरेशन सिंदूर’ का सबक होना चाहिए कि नफरत का सामान बेचना बंद हो क्योंकि यह साफ हो गया है कि इस नफरत से कुछ मिल नहीं रहा. आम जनता सिर्फ लूटी जा रही है. उसे कुछ पड़ोसियों के साथ न रहने की हिदायतें दी जा रही हैं, उस से चंदे वसूले जा रहे हैं, उसे नफरत को बढ़ावा देने वाले अपने ही धर्म के स्टंटों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने को उकसाया जा रहा है.

आम हिंदू इस कदर धर्म के चंगुल में इन नफरत की दुकानों की वजह से फंस गया?है कि वह साल के 365 दिनों में 100 दिन इन्हीं में लगाने लगा है. उसे तो 100 दिन भी लौटा दिए जाएं और नफरती सामान खरीदने से भी रोक दिया जाए ताकि वह पैसा अपने बच्चों की पढ़ाई, बीवी की सेहत, मकान की मरम्मत, साफसुथरे कपड़ों पर खर्च कर सके, न हथियारों पर हो, न देवीदेवताओं के चढ़ावे में. हिंदूमुसलिम करने में कुछ नहीं रखा. जो सीजफायर नरेंद्र मोदी और शहबाज शरीफ ने किया है वह देशभर की हर गली, हर महल्ले, हर गांव, हर कसबे, हर शहर, हर मंदिर के सामने, हर मसजिद के सामने हो.

यह सीजफायर 2 देशों के बीच नहीं, 2 लोगों के बीच हो. दोनों सदियों से इस विशाल जमीन जिसे 1947 अनडिवाइडिड इंडिया कहा जाता था, में रहते रहे हैं, आगे भी सीजफायर के साथ, दोस्ती का हाथ बढ़ा कर, हमदर्द बन कर एकसाथ अपनेअपने देश, अपनीअपनी कौम, अपनेअपने घरों को बढ़ाते हुए रहें.

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सरकारें कई तरह से गरीबों को गरीब और बेबस रखने की कोशिश करती रहती हैं. गरीबों के वोटों पर जीतने के बावजूद सब जगह की चुनी हुई सरकारें भी ऐसे हुक्म निकालती रहती हैं जिन से गरीबों को नुकसान हो. अमेरिका के सनकी और खब्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नया हुक्म जारी किया है कि सभी ट्रक ड्राइवरों को अंगरेजी अच्छी तरह आनी चाहिए.

कहने को यह हुक्म सेफ्टी के लिए है कि ड्राइवर तरहतरह के फाइन पढ़ सकें और पुलिस वालों को जवाब दे सकें पर असल में इस का मकसद है कि गरीब अनपढ़ या दूसरे देशों से आए ट्रक ड्राइवरों से रोजीरोटी छीन ली जाए और मोटे गुस्सैल, लड़ाकू मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) भक्तों को नौकरियां मनमाने दामों पर दी जा सकें.

ट्रक कंपनियों ने दूसरे देशों से आए लीगल और इल्लीगल ड्राइवर रखने शुरू कर दिए हैं ताकि माल चोरी न हो, वे सड़कों पर एक्सीडेंट न करें. दूसरों से बेबात का झगड़ा न करें, पुलिस से ढंग से पेश आएं और सस्ते में मिल जाएं. ट्रंप ने अपने अनपढ़ गोरों को नौकरियां दिलवाने के लिए हुक्म जारी कर दिया चाहे ये सड़कों पर टेढ़ीसीधी गाड़ी चलाएं, रास्ते के डाइनर्स (ढाबों) पर हल्ला करें, लड़कियों को ले कर चलें, ट्रक का माल चोरी करें.

अब ट्रंप ने हुक्म दिया है तो तामील होगा ही क्योंकि मिलिटरी, पुलिस और मागा गैंग मिल कर खुले अमेरिका में दहशत का माहौल खड़ा करने में कामयाब हो गए हैं जैसे भारत में मुसलमान या दलित के लिए ट्रक चलाना आज भी आसान नहीं है (वे खलासी बन सकते हैं, ड्राइवर नहीं), वैसे ही अमेरिका में होगा.

ऐसा नहीं कि अंगरेजी नहीं जानने वाले दूसरे देशों से छिपछिपा कर आए हों, बहुत से काले अमेरिकी भी अनपढ़ हैं क्योंकि स्कूलों से उन्हें जरा सा झगड़ा करने पर निकाल दिया गया था और मां या बाप उन्हें सड़कों पर छोड़ कर अपनी जान बचाने में लग गए थे. अमेरिका में अमीरी है पर फिर भी बहुत से लोग सड़कों पर ही तिरपाल के नीचे रहते हैं. उन में बहुतों की पैदाइश भी तिरपाल के नीचे हुई और बड़े भी वे सड़कों पर हुए, बिना स्कूल गए.

ट्रंप इन को ड्राइवरी भी नहीं करने देना चाहते क्योंकि ट्रक ड्राइवरों की कमाई अच्छी है. कालों, लैटिनों, सिखों, अरबों, पाकियों, अफगानों, वियतनामियों से तो नौकरियां छीनने के लिए ट्रंप ने यह हुक्म जारी
किया है.

भारत में ऐसा सा कुछ होने लगा है और ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी का मंत्रालय ड्राइवरों की पढ़ाई का स्टैंडर्ड फिक्स करने में लगा है. मंत्रालय ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी खुलवाना चाहता है ताकि बेहद गरीब लोगों को ड्राइवरी के काम से बाहर रखा जा सके. ट्रंप की जैसी सरकारें कई देशों में हैं. ट्रंप और मागा अकेले नहीं हैं. ये गैंगस्टर हैं जो समाज को कंट्रोल में रखना चाहते हैं.

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