भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे फिल्म डायरैक्टर हैं, जिन के साथ फिल्में करना हर भोजपुरी सुपरस्टार का सपना होता है. ऐसे ही कुछ चुनिंदा डायरैक्टरों में से एक नाम है प्रमोद शास्त्री का. मूल रूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले है, प्रमोद शास्त्री भोजपुरी सिनेमा के ऐसे डायरैक्टर हैं, जो मुश्किल से मुश्किल कहानियों को भी बेहद आसानी से परदे पर उतार देते हैं. उन्होंने बतौर डायरैक्टर ‘रब्बा इश्क न होवे’, ‘छलिया’, ‘प्यार तो होना ही था’, ‘आन बान शान’, ‘दत्तक पुत्र’, ‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना’, ‘भैया हमारे राम होवे भौजी हमरी सीता’, ‘विधवा बनी सुहागन’ जैसी कई ब्लौकबस्टर फिल्में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को दी हैं.

लखनऊ में हुए ‘छठे सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड्स 2025’ शो में शरीक हुए प्रमोद शास्त्री से भोजपुरी सिनेमा को ले कर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

दूसरी फिल्म इंडस्ट्री में इन दिनों थ्रिलर और आपराधिक कहानियों का परदे पर बोलबाला है, जबकि भोजपुरी सिनेमा ‘सासबहू’ में अटका हुआ है. ऐसा क्यों?

थ्रिलर और आपराधिक कहानियों में दर्शकों को रोमांच आता है, लेकिन ऐसी फिल्मों को परदे पर उतारने के लिए भारीभरकम बजट की जरूरत होती है, अच्छे सिनेमाघरों की जरूरत होती है. अभी भोजपुरी सिनेमा के पास ये दोनों चीजें नहीं रह गई हैं.

एक डायरैक्टर के तौर पर मेरे ऊपर जितनी जिम्मेदारी फिल्म की कहानी को परदे पर जीवंत करने की होती है, उस से कहीं ज्यादा इस बात की चिंता रहती है कि किसी तरह से प्रोड्यूसर घाटे में न जाने पाए.

जिस दिन भोजपुरी में अच्छे बजट और सिनेमाघरों की उपलब्धता होगी, तो यकीनन भोजपुरी फिल्में भी फैमिली ड्रामा और सासबहू वाली कहानियों से आगे बढ़ कर 30 करोड़ भोजपुरिया दर्शकों का मनोरंजन करने को तैयार मिलेंगी.

दूसरी फिल्म इंडस्ट्री में मोटी कमाई और पौपुलैरिटी की खातिर विवादों से भरे सब्जैक्ट पर फिल्में बनाने का चलन भी बढ़ा है. आप की नजर में यह चलन कितना सही है?

मोटी कमाई और पौपुलैरिटी की खातिर देश में जिस तरीके से विवादित सब्जैक्ट पर फिल्में बनाने का चलन बढ़ रहा है, वह देश की अखंडता और संप्रभुता के लिए घातक है. मैं ऐसी कोई फिल्म नहीं बनाना चाहूंगा, जो देशहित में न हो.

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में जिस तरह से नई कहानियों का टोटा पड़ा है, आप को क्या लगता है कि भोजपुरी फिल्में ऐसी कहानियों के बलबूते फिर से सिनेमाघरों में कामयाब हो पाएंगी?

पिछले डेढ़ दशक से सिनेमाघरों में फिल्में चल रही थीं और करोड़ों की कमाई भी हो रही थी, लेकिन कोरोना महामारी के बाद भोजपुरी सिनेमा सिमट सा गया है. दर्शकों का सिनेमाघरों में जाना भी कम हो गया है. लिहाजा, फिल्में सीधे टैलीविजन पर रिलीज हो रही हैं. लेकिन दौर कभी एकजैसा नहीं रहता. समय बदलेगा, फिर से बड़े बजट की फिल्में बनेंगी और सिनेमाघरों में रिलीज होंगी.

क्या आप की कोई ऐसी तमन्ना है, जिसे आप बतौर डायरैक्टर परदे पर फिल्माना चाहते हैं?

मेरी तमन्ना है कि मैं भोजपुरी भाषा में एक ऐसी फिल्म बनाऊं, जिस की कहानी में खुफियागीरी हो, सस्पैंस हो, रिसर्च और एनालिसिस के साथ जासूसी का तड़का भी हो.

बौलीवुड के किसी कलाकार को अगर अपने डायरैक्शन में बतौर हीरो लेना हो, तो आप की पहली पसंद क्या होगी?

मुझे पंकज त्रिपाठी की ऐक्टिंग स्किल सब से अच्छी लगती है. अगर बौलीवुड की किसी फिल्म में खुद ऐक्टर का चुनाव करने के लिए बोला जाएगा, तो मेरी पहली पसंद पंकज त्रिपाठी होंगे.

आप हिंदी फिल्मों के डायरैक्शन में भी हाथ आजमा रहे हैं. क्या भविष्य में कोई हिंदी फिल्म करने वाले हैं?

मैं ने हाल ही में हिंदी की एक बड़ी फिल्म डायरैक्ट की है, जो साल 2025 में रिलीज होने को तैयार है. इस फिल्म का नाम ‘मुंतजिर’ है. इस में हर्ष बाबू, राजेश शर्मा, जाकिर हुसैन, हेमंत पांडे, राजा गुरु जैसे बौलीवुड के तमाम कलाकार नजर आएंगे.

आप ने टैलीविजन सीरियल के डायरैक्शन में भी हाथ आजमाया है. यह सफर कैसा रहा?

जी, मैं ने ‘डीडी किसान’ चैनल के लिए एक टैलीविजन सीरियल बनाया था, निर्देशन और लेखन भी किया था, जो बेहद कामयाब रहा. इस की टीआरपी भी बहुत अच्छी रही. ‘किस के रोके रुका है सवेरा’ नाम से बना यह सीरियल 130 ऐपिसोड तक चला था.

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