मेरा नाम सुधा है. मेरी उम्र 20 साल हो गई थी और आईना ही मेरा सब से अच्छा दोस्त था. मैं अपने चेहरे को दिनभर आईने में देखती रहती थी. कभी इस कोण से, तो कभी उस कोण से.

कहना गलत नहीं होगा कि मेरे रूप ने मुझे अहंकारी बना दिया था और मैं अपने अहंकार को जीभर कर जीती भी थी, क्योंकि मेरे लिए किसी भी इनसान की जिस्मानी खूबसूरती सब से ज्यादा प्यारी होती है.

अरे, यह चेहरा ही तो है, जिस को देख कर हम किसी के बारे में सही या गलत, अच्छी या बुरी सोच बनाते हैं. अब जो चेहरा हमारी आंखों को अच्छा न लगे, वह इनसान अंदर से भी कैसे अच्छा हो सकता है? मेरे मन में किसी के लुक्स के प्रति यही सोच रहती थी.

मेरे कसबे का नाम यमुनानगर था और यह उत्तराखंड का एक टूरिस्ट प्लेस था. लोग यहां सालभर घूमने आते थे. यमुनानगर में ढेर सारे पहाड़, नदियां और खूब सारी हरियाली थी.

मैं बीए के तीसरे साल में थी. मेरे घर में एक छोटा भाई और मम्मीपापा थे. हमारे घर की आमदनी का जरीया पापा की वह दुकान थी, जिस में जरूरत का सामान, एंटीक मूर्तियां और पुरानी पेंटिंगें बिका करती थीं.

पापा को जब भी नहानाधोना या किसी काम के सिलसिले में बाहर जाना होता था, तो मैं ही दुकान संभालती थी. लिहाजा, मुझे दुकान पर रखी सारी चीजों की कीमत की अच्छी जानकारी हो गई थी.

उस दिन पापा को बाहर जाना था. दुकान पर मैं ही बैठी थी. तमाम सैलानी आतेजाते और खरीदारी कर रहे थे. इतने में एक सजीला नौजवान मेरी दुकान पर आ कर खड़ा हो गया और दुकान में सजे सामान को बड़े ध्यान से देखने लगा.

वह पतले चेहरे वाला नौजवान क्लीन शेव था. उस ने अपने गोरे चेहरे पर हलके लैंस का चश्मा लगा रखा था और अपने बालों को बेतरतीब ढंग से बढ़ा रखा था, जो उस के कंधे तक लहरा रहे थे.

‘‘जी बताइए, क्या चाहिए आप को?’’ मैं ने एक कुशल दुकानदार की तरह पूछा.

‘‘मुझे लाफिंग बुद्धा की एक ऐसी मूर्ति चाहिए, जिस में उन की गर्लफ्रैंड भी हो,’’ उस नौजवान ने मांग की, पर ऐसी मूरत तो आज तक मैं ने देखी ही नहीं थी, जिस में लाफिंग बुद्धा के साथ उन की गर्लफ्रैंड भी हो.

‘‘जी, और आप को ऐसी मूर्ति मिलेगी भी नहीं. यही तो प्रौब्लम है इस देश की कि मन में कुछ और होता है और सामने कुछ और,’’ उस नौजवान ने कहा, तो मैं हैरान हो कर उस के खूबसूरत से चेहरे की ओर देखने लगी.

शायद वह नौजवान प्यार के बारे में एक लंबी स्पीच देना चाह रहा था, पर उस ने क्या कहा था, मैं ठीक से सम?ा नहीं पाई, क्योंकि शायद मेरे कान बंद हो गए थे. मेरी आंखें तो उस के सजीले चेहरे में ही खो गई थीं.

इस के बाद उस नौजवान ने जबरदस्ती प्यार पर पूरा एक भाषण ही सुना डाला. मैं कुछकुछ समझ और बहुतकुछ नहीं समझ.

‘‘अब बताइए, मैं ही आप से अपनी गर्लफ्रैंड बनने को कह दूं, तो क्या आप बन जाएंगी?’’ उस नौजवान का यह सवाल सुन कर मैं अचकचा गई थी. शर्म का रंग मेरे गालों से होता हुआ मेरे कानों तक पहुंच गया था. मैं कुछ बोल नहीं सकी, सिर्फ मुसकरा कर रह गई.

‘‘जब लाफिंग बुद्धा की ऐसी कोई मूरत आ जाए, तो आप मुझे इस मोबाइल नंबर पर फोन कर देना. अभी तो मुझे यहां काफी दिनों तक रुकना है,’’ उस नौजवान ने मुझे अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा.

मैं ने उस विजिटिंग कार्ड को गौर से देखा तो पाया कि उस नौजवान का नाम आर्यमन था. कितना प्यारा था उस का नाम भी, ठीक उसी की तरह. वह एक इंजीनियर था, जो हमारे कसबे से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर बहने वाली मीठी नदी पर पुल बनाने के काम के लिए आया था.

अभी मैं आर्यमन का विजिटिंग कार्ड देख ही रही थी कि गोपाल आ गया और मु?ा से उस नौजवान के बारे में पूछताछ करने लगा, ‘‘यह शहरी छोरा कौन था और तू उस से बड़ा हंसहंस कर बात किए जा रही थी,’’ गोपाल के सवाल पर मैं चिड़चिड़ा उठी.

‘‘अरे, तू तो यही चाहता है कि मेरी दुकानदारी चौपट हो जाए और तेरी दुकान चमक जाए,’’ मैं ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा.

गोपाल मु?ा से 2 साल बड़ा था और मैं उस से बेवजह ही चिढ़ती थी, क्योंकि वह देखने में बिलकुल भी अच्छा नहीं था. मोटा सा शरीर और गोल भरा हुआ सा चेहरा, उस पर सूजी हुई सी नाक. इतनी सी उम्र में ही काफी बड़ा दिखता था वह.

मेरी दुकान के सामने वाली लाइन में ही गोपाल की भी दुकान थी, जिस में वह पुराना विदेशी सामान, छतरियां, हैट्स, रेनकोट और कुछ विदेशी एंटीक मूर्तियां व दूसरा सामान बेचा करता था.

ठीक अगले ही दिन वह सजीला नौजवान आर्यमन फिर से दुकान पर आया. दुकान पर मैं ही बैठी थी. आते ही उस ने वही सवाल किया, ‘‘क्या लाफिंग बुद्धा की वह मूरत आ गई?’’

हालांकि, आर्यमन अभी कल ही तो यह सवाल पूछ कर गया था और आज फिर आ गया.

‘‘अच्छा, कोई बात नहीं. अभी नहीं आई तो जब आ जाए, तो मेरे विजिटिंग कार्ड पर दिए गए मोबाइल नंबर पर आप मुझे बता देना. आप लोग तो दुकान में बस यही हिरण और शेर की मूर्ति ही सजा कर रखते हैं,’’ कह कर वह जाने लगा.

मुझे आर्यमन की यह बात बुरी लगी थी, क्योंकि अपनी दुकान पर बिकने वाली हर चीज और स्पैशली लाफिंग बुद्धा के प्रति मेरा बहुत ज्यादा लगाव रहा है, पर मैं उस की बात का विरोध न कर सकी और वह चला गया.

मैं जवान थी. इस तरह एक सजीले नौजवान के बारबार आने और मुझे से बात करने से मेरा मन भी खुश हो गया था. उस की बातें मुझे बारबार याद आ रही थीं और मैं अब यह भी समझ गई थी कि वह अपने मोबाइल नंबर पर मुझ से फोन करने को क्यों कह रहा है.

अगले 6-7 दिन तक आर्यमन नहीं आया, तो मुझे उस की कमी खटकने सी लगी. मैं ने कांपते हाथों से उस का फोन नंबर मिला दिया. उधर से वह ऐसे बातें करने लगा, जैसे मुझे न जाने कितने समय से जानता हो. अनजान वाली फीलिंग ही नहीं आ रही थी.

फिर क्या था, हम रोज बातें करते और कुछ ही दिनों में हमारे बीच एक दोस्ती या यों कहें कि एक अनजाना सा रिश्ता कायम हो गया था. हमारी बातें मुलाकातों में बदलने लगी थीं. मैं उस की बाइक पर बैठती और हवा के झांके से उस के लंबे बाल उड़ते, तो मुझे बहुत अच्छा लगता था.

आर्यमन मुझे बाइक पर बिठा कर नदी पर ले जाता, जहां बनने वाले पुल का काम दिखाता और वापस छोड़ जाता. घर वालों का भरोसा मुझ पर बना रहे, इसलिए उस ने मेरे पापा से भी मुलाकात कर ली और बातोंबातों में उन्हें भी बता दिया कि वह मुंबई का रहने वाला है और नदी पर बन रहे पुल के काम में इंजीनियर है.

आर्यमन को नदियां, पेड़, पहाड़, जंगल घूमनाफिरना अच्छा लगता है. इस के अलावा उसे बड़े कलाकारों द्वारा बनाई गई पेंटिंगें और पुरानी मूर्तियां जमा करना बहुत पसंद है.

हमारी जानपहचान पहले से ज्यादा गहरी हो गई थी और मैं पूरी तरह से उस के प्यार में पड़ गई थी. और पड़ती भी कैसे नहीं. उस ने मु?ो शादी करने का प्रस्ताव जो दे दिया था और जल्दी ही पापा से इस बारे में बात करने आने को भी कह रहा था.

मैं मारे खुशी के उस के गले लग गई थी. पता नहीं, कितनी देर तक हम ने एकदूसरे की धड़कनों को सुना था.

एक तो इतना खूबसूरत दिखने वाले नौजवान के साथ शादी करने का रोमांच और ऊपर से शादी के बाद मुंबई जैसी मायानगरी में जाने के विचार से ही मैं सिहर उठती थी.

यह सिहरन और भी गहरी उस दिन हो गई, जब मैं उस के साथ पुल की तरफ जा रही थी. अचानक ही बारिश शुरू हो गई और हम दोनों भीग गए.

हम ने भी भीगने से खुद को नहीं रोका. हालांकि, यह एक सुनसान जगह थी, पर हम खूब भीगे और भीगने के बाद जब एक खंडहरनुमा घर में छिपने के लिए गए, तो आर्यमन ने मेरे मन के साथसाथ मेरे तन को भी छुआ. शायद मैं उस अजनबी में भावी पति को देख रही थी या मैं उस के रंगरूप पर मोहित थी, तभी तो मैं ने उसे ऐसा करने से नहीं रोका.

आर्यमन मेरे शरीर में उतर चुका था. हमारे शरीर एक हो चुके थे.

उस दिन दो शरीर एक हुए, तो फिर कई बार यह सिलसिला चला. मैं मना भी करती रही, पर आर्यमन नहीं मानता था.

उस दिन गोपाल ने फिर चेताया, ‘‘तुम्हें पता भी है कि उस लंबे बालों वाले के साथ लोग तुम्हारा नाम जोड़ रहे हैं… अरे, बदनाम हो रही हो तुम.’’

पर, मैं ने गोपाल की बात मुसकरा कर जाने दी. अब वह भला क्या जाने कि मैं उस लंबे बालों वाले के साथ शादी कर के मुंबई जाने वाली हूं.

उस बारिश वाली घटना को 4 महीने हो गए थे. इधर कई दिनों से आर्यमन दुकान पर नहीं आ रहा था और यह बात मुझे न चाहते हुए भी शक में डाल रही थी और अब मुझे अपनी शादी की जल्दी थी, क्योंकि मैं पेट से हो चुकी थी और यह बात बताने के लिए मैं आर्यमन को फोन कर रही थी, पर उस का मोबाइल लगातार स्विच औफ आ रहा था.

मैं ने पेट से होने की बात अपनी मां को बताई. मुझे लगा कि वे मुझे एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद करेंगी, पर ऐसा नही हुआ. उन्होंने तो मुझे अपने सीने से लगा लिया.

‘‘अरे, तू यह क्या कर बैठी मेरी बच्ची…’’ मां रोए जा रही थीं, पर मेरे मन के किसी कोने में अब भी उम्मीद थी कि आर्यमन वापस जरूर आएगा.

मां ने पापा को अकेले में यह सब बताया और पुल के पास जा कर आर्यमन के बारे में पता करने को कहा. पापा का शरीर ढीला पड़ रहा था. मारे गुस्से के उन की जबान ऐंठ रही थी, फिर भी वे अपने पर कंट्रोल किए हुए थे. मां ने उन्हें अपने सिर का वास्ता जो दिया हुआ था.

पापा गए और उलटे पैर वापस लौट आए. आर्यमन नाम का कोई इंजीनियर नहीं था वहां पर, मोबाइल की तसवीर दिखाई तो पता चला कि उस का नाम वीर बहादुर सिंह था और वह यहां पर एक प्राइवेट कंपनी की तरफ से सीमेंट और मौरंग वगैरह की डिलीवरी देने आया था. उस के बारे में और कोई भी जानकारी नहीं मिल सकी. मोबाइल अब भी बंद आ रहा था.

मेरा मन कर रहा था कि खुदकुशी कर लूं, पर मां जानती थीं कि इस समय एक लड़की का मन बहुत कमजोर हो जाता है, इसलिए वे मुझे दिलासा दिए जा रही थीं.

‘‘तू ने कुछ भी गलत नहीं किया, गलती तो उस आदमी की है, जिस ने तेरे भरोसे को धोखा दिया है, इसलिए तुझे कोई भी गलत कदम उठाने की जरूरत नहीं.’’

पर गलत कदम न उठाऊं तो क्या करूं? अनब्याही लड़की कैसे मां बन गई? इस सवाल का जवाब क्या होगा भला? मेरी वजह से मां और पापा तो बेइज्जत हो जाएंगे.

मां के आंसू सूख चुके थे. पापा निढाल पड़े थे कि तभी गोपाल हमारे घर के अंदर बेहिचक घुस आया और पापा के पास जा कर उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘अंकल, मैं सुधा से शादी करना चाहता हूं.’’

पापा और मां एकसाथ उसे देखते रह गए. मेरे कानों में भी गोपाल की यह आवाज गूंजी.

‘‘पर गोपाल, हम तुम्हें कुछ बताना चाहते हैं,’’ पापा ने कहा, पर गोपाल को उस की जरूरत नहीं थी, क्योंकि ऐसे कसबों में तो इस तरह की बातें जंगल की आग की तरह फैलती हैं. सब को पता चल ही चुका था कि मेरे साथ छल हुआ है. हकीकत जानने के बाद भी गोपाल मेरे साथ शादी करने को तैयार था.

वह गोपाल, जिस से मैं चिढ़ती थी और जो मुझे अपने मोटापे के चलते उम्र से बड़ा लगता था, पर जो बाहर से बदसूरत है, वह अंदर से खूबसूरत कैसे होगा? पर आज वही मुझे इस मुसीबत से उबारने आया है.

आननफानन ही गोपाल के साथ मेरी शादी हो गई. कितनी गलत थी मैं. बाहरी रंगरूप को देख कर ही किसी के मन को पहचान लेना आज के समय में मुमकिन नहीं है. चेहरे पर चेहरे हैं और वे भी सब रंग बदलते चेहरे.

गोपाल ने आज तक मुझे किसी तरह का कोई उलाहना नहीं दिया, बस अपना प्यार ही बरसाया है. शादी के बाद हम दिल्ली में आ कर सैटल हो गए हैं.

अब मुझे लाफिंग बुद्धा और उन के साथ एक गर्लफ्रैंड वाली मूरत ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मेरे लिए तो मेरे पति का प्यार ही काफी है. आज इन की पत्नी भी मैं हूं, इन की गर्लफ्रैंड भी मैं ही हूं और ये मेरे लाफिंग बुद्धा.

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