शहनाज पलंग पर लेटी दिखावे के लिए किताब पढ़ रही थी, पर उस के कान बैठक से उठने वाली आवाजों पर लगे हुए थे.

बैठक में अम्मी, अब्बा, अकबर भैया, सायरा बाजी और अकरम भाईजान बैठे शहनाज की जिंदगी के बारे में फैसला कर रहे थे.

‘‘मेरा तो यही मशवरा है…’’ सायरा बाजी कह रही थीं, ‘‘अगर शहनाज की जिंदगी बरबाद होने से बचानी है, तो यह रिश्ता तोड़ दिया जाए. अनवर किसी भी तरह से शहनाज के काबिल नहीं है.’’

‘‘मेरा भी यही खयाल है…’’ अकरम भाईजान कह रहे थे, ‘‘2 साल में उस ने मांबाप की सारी कमाई लुटा दी है. पता नहीं, किस तरह उस का घर चलता होगा. अगर ऐसे में शहनाज की शादी उस के साथ हो गई, तो वह उस को ठीक तरह से दो वक्त की रोटी भी खाने के लिए नहीं दे पाएगा.’’

‘‘अब्बा, आप आखिर कब तक अपने उस दोस्त की दोस्ती निभाएंगे, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं? क्या उस दोस्ती को निभाने की खातिर अपनी बेटी की जिंदगी बरबाद करना चाहते हैं?’’ अकबर भैया पूछ रहे थे.

‘‘अकबर के अब्बा, मैं तो कहती हूं, बस हो गई आप की यह दोस्ती… इसे अब यहीं खत्म कीजिए. अपनी दोस्ती की सलीब पर मेरी बेटी की जिंदगी मत टांगिए. सवेरे जा कर अनवर की मां से साफसाफ कह दीजिए कि हम रिश्ता तोड़ रहे हैं. वे अनवर के लिए कोई दूसरी लड़की ढूंढ़ लें,’’ अम्मी कह रही थीं.

‘‘ठीक है…’’ अब्बा ठंडी सांस ले कर बोले, ‘‘अगर सब लोगों का यही फैसला है, तो भला मैं किस तरह से खिलाफत कर सकता हूं. पर मेरी एक गुजारिश है, इस मामले को इतनी जल्दी उतावलेपन में खत्म न किया जाए. इतने दिनों तक हम ने राह देखी… कुछ दिन और सही. अगर फिर भी वैसी ही हालत रही, तो मैं खुद यह रिश्ता तोड़ दूंगा.’’

‘‘अब्बा, हम 3 साल तो बेकार कर चुके हैं…’’ अकबर भैया बोले, ‘‘और 3-4 महीने और बेकार कर के क्या फायदा?’’

‘‘बेटे, भला 3-4 महीने और राह देखने में क्या बुराई है? हो सकता है, अनवर के दिन बदल जाएं.’’

‘‘अनवर के दिन तो बदलने से रहे, पर शहनाज की जिंदगी जरूर बिगड़ जाएगी…’’ सायरा बाजी बड़बड़ाईं, ‘‘इस बीच पता नहीं कितने ही अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे.’’

‘‘कोई रिश्ताविश्ता हाथ से नहीं निकलेगा…’’ अब्बा बोले, ‘‘सारी दुनिया जानती है, शहनाज की मंगनी हो चुकी है. फिर भला कौन उस के लिए रिश्ता ले कर आएगा? मैं कह रहा हूं कि अगर 2-3 महीनों में अनवर नहीं बदला, तो मैं खुद यह रिश्ता तोड़ दूंगा.’’

‘‘ठीक है…’’ अकरम भाईजान बोले, ‘‘अगर यह बात है तो 2-3 महीने और इंतजार करने में कोई बुराई नहीं है.’’ फिर शायद बैठक खत्म हो गई, क्योंकि आवाजें आनी बंद हो गई थीं.

उस बातचीत को सुन कर शहनाज परेशान हो गई. वह सोचने लगी, ‘तो क्या घर वाले मेरा और अनवर का रिश्ता तोड़ देंगे? इन की बातों से तो ऐसा ही लग रहा है. आखिर मांबाप अपनी बेटी की भलाई ही तो चाहते हैं.

‘अनवर की जो हालत है, उसे देखते हुए तो यह रिश्ता बहुत पहले ही टूट जाना चाहिए था. इस तरह का फैसला करना कोई गलत भी नहीं है.’

पर शहनाज खुद बड़ी उलझन में थी. वह न तो खुल कर घर वालों की मुखालफत कर सकती थी, न ही इस फैसले को मान सकती थी. पिछले 3 सालों से उस ने अनवर को अपने होने वाले शौहर के रूप में देखते हुए सपनों के हजारों महल तराशे थे. इस बीच अनवर से बहुत लगाव और प्यार हो गया था. वह इतनी जल्दी और आसानी से उस से दूर नहीं हो सकती थी.

शहनाज की नींद उड़ गई थी. लाख कोशिश कर के भी वह घर वालों के फैसले को कबूल नहीं कर पा रही थी. उस ने पक्का फैसला कर लिया कि वह शादी करेगी तो सिर्फ अनवर से ही, वरना किसी से भी नहीं.

पर जैसेजैसे शहनाज अनवर की हालत के बारे में सोचती, उसे महसूस होता कि वह ऐसे हालात में उस के साथ सुखी नहीं रह सकती.

आखिर में एक ही बात दिल से उठी कि उसे सिर्फ अनवर से ही शादी करनी है, चाहे इस के लिए उसे अपने घर वालों से ही रिश्ता क्यों न तोड़ना पड़े. इस बारे में उस का अनवर से मिलना बहुत जरूरी था. उस ने तय कर लिया कि वह 2-3 दिन में अनवर से मिल कर उसे सारी बातें बता देगी.

अनवर के साथ शहनाज की मंगनी हुए 3 साल बीत चुके थे. वह उस के अब्बा के एक दोस्त का बेटा था. दोनों ही परिवारों के बीच बड़े ही गहरे ताल्लुकात थे. वह अकसर उन के घर आताजाता था और अम्मी के साथ वह भी कभीकभी अनवर के घर चली जाती थी. अनवर तब एमए का इम्तिहान दे रहा था, जब शहनाज की उस के साथ मंगनी हुई थी.

अब्बा को अनवर बहुत पसंद था. घर के सभी लोगों ने भी उन की पसंद को सराहा था. शहनाज के लिए तो इस से बढ़ कर खुशी की बात और क्या हो सकती थी कि उसे अनवर जैसा लड़का जीवनसाथी के रूप में मिले.

शहनाज के घर वालों का खयाल था कि पढ़ाई खत्म करते ही अनवर को कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. नौकरी मिलते ही वे उस का निकाह कर देंगे और उन दोनों की आराम से गुजरेगी.

पढ़ाई पूरी करने के बाद अनवर ने नौकरी की खोज शुरू कर दी, पर 6-7 महीने बाद भी उसे कोई नौकरी नहीं मिल सकी. बेकारी का अजगर उस के गले से लिपटा रहा.

इन 6-7 महीनों में अनवर इतने धक्के खा चुका था कि एकदम नाउम्मीद सा हो गया था. उसे लगने लगा था कि अब उसे नौकरी नहीं मिल सकेगी. किसी ने मशवरा दिया कि जब तक नौकरी नहीं मिल जाती, कोई कारोबार शुरू कर दे. कामधंधा करता रहेगा तो नौकरी न मिलने के चलते जो नाउम्मीदी उसे घेरे रहती है, उस से छुटकारा पा जाएगा.

चौक में अनवर की एक पुरानी दुकान थी, जो किराए पर चढ़ी हुई थी. कुछ पैसे दे कर अनवर ने दुकान खाली करवाई और उस में कपड़े का कारोबार शुरू कर दिया. दुकान खोलने के लिए उस के अब्बा की मौत के बाद बीमा कंपनी से जो पैसा मिला था, वह उस में लगाना पड़ा. साथ ही, एक पुराना मकान भी बेचना पड़ा.

पर वह दुकान नहीं चल सकी. एक तो उस इलाके में कपड़े की पहले से ही कई दुकानें थीं, जो काफी बड़ी थीं. उन से मुकाबला करना मुश्किल था. लोगों की पसंद के बारे में ज्यादा जानकारी न होने की वजह से अनवर सही माल नहीं खरीद सका. उस की दुकान घाटे में चलने लगी.

देखते ही देखते आधी दुकान खाली हो गई, पर एक पैसा भी हाथ में नहीं था और दुकान तो चलती ही नहीं थी. आखिर में उस ने दुकान बंद करने का फैसला ले लिया. सारा माल कम दामों में बेचना पड़ा और हजारों का नुकसान उठाना पड़ा.

कपड़े की दुकान बंद करने के बाद अनवर ने वहां पर साइकिल के पुरजों की दुकान खोली. यह भी उस का एक गलत फैसला था. आसपास साइकिल के पुरजों की कई दुकानें थीं. इस तरह वह भी ठीक तरह से नहीं चल सकी और बंद करनी पड़ी.

फिर अनवर ने स्टेशनरी की दुकान खोली, पर तजरबा न होने की वजह से उस में भी घाटा उठाना पड़ा.

अब दुकान बंद करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था. इन कोशिशों में अनवर अपने पास की सारी पूंजी भी गंवा चुका था.

दुकान दोबारा किराए पर दे कर फिर से अनवर बेकारी के जंगल में भटकने के लिए निकल पड़ा. कई दिनों तक वह भटकता रहा, उस के बाद उसे एक मामूली सी नौकरी मिली. तनख्वाह सिर्फ 8,000 रुपए महीना मिलती थी.

शहनाज घर वालों से एक सहेली से मिलने का बहाना कर के अनवर से मिलने वहीं पहुंच गई, जहां वह काम करता था.

‘‘शहनाज, तुम और यहां,’’ उसे देख कर अनवर चौंक पड़ा.

‘‘हां, आप से बहुत जरूरी बात करनी है,’’ शहनाज बोली.

वे दोनों पास के एक होटल के केबिन में जा बैठे. शहनाज ने सारी बातें अनवर को बता दीं, जिन्हें सुन कर उस का चेहरा उतर आया.

अनवर दुखभरी आवाज में बोला, ‘‘तुम्हारे घर वालों ने जो फैसला लिया है, बिलकुल सही है शहनाज. सचमुच, मैं किसी काबिल नहीं हूं. मैं तुम्हें कोई सुख नहीं दे सकता. अगर हमारी शादी हुई तो तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो जाएगी, क्योंकि मैं एक के पीछे एक मिलने वाली नाकामियों से बुरी तरह टूट चुका हूं.

‘‘मैं जिंदगी में कभी भी कामयाब नहीं हो सकता. लगता है, अब यह नौकरी भी छोड़नी पड़ेगी, क्योंकि मालिक से मेरी नहीं बन रही है. अगर तुम्हारे घर वाले यह रिश्ता तोड़ते हैं, तो मुझे कोई एतराज नहीं होगा…’’

‘‘आप इतने दुखी मत होइए. कोई और काम करने की सोचिए,’’ शहनाज ने उसे धीरज बंधाया.

‘‘नहीं, अब मुझ से कुछ नहीं हो सकता,’’ अनवर भरे गले से बोला, ‘‘मुझ में अब हिम्मत नहीं रही… नाकामियों ने मुझे अपाहिज बना दिया है. अब सारी उम्र मुझे एक अपाहिज की तरह ही रहना है. जो अपना बोझ नहीं उठा सकता, वह दूसरों को सहारा क्या देगा?’’

‘‘आप नाउम्मीद क्यों होते हैं? इस तरह हिम्मत हारने से कोई भी काम नहीं होगा. जीने के लिए तो इस से ज्यादा तकलीफें झेलनी पड़ती हैं. कोई और नया काम शुरू कर दीजिए.’’

‘‘अब तुम ही बताओ, मैं कौन सा काम करूं?’’

‘‘आप ठेकेदार के साथ काम कर रहे हैं, इसलिए आप को इस काम की पूरी जानकारी तो हो गई होगी. आप भी छोटेमोटे ठेके लेने शुरू कर दीजिए. इस नौकरी का तजरबा आप के बहुत काम आएगा?’’

‘‘हां, यह हो सकता है,’’ शहनाज की बात सुन कर अनवर की आंखें चमकने लगीं.

‘‘ठीक है, आप मुझे मिलते रहिए और बताते रहिए कि क्या कर रहे हैं. अब मैं जाती हूं,’’ कहते हुए शहनाज घर चली आई.

3-4 दिन बाद जब शहनाज अनवर से मिली, तो उस ने बताया कि वह नौकरी छोड़ चुका है और अब ठेकेदारी का काम शुरू करने के लिए कोशिश कर रहा है.

फिर जल्दी ही अनवर को नालियां बनाने का छोटा सा ठेका मिल गया. वह बड़े जोश से काम कर रहा था. उस के मजदूर और मिस्तरी भी उस का पूरा साथ दे रहे थे. यह सब देख कर शहनाज बहुत खुश हुई.

शहनाज के घर वालों को भी पता चल गया कि अनवर ने एक नया काम शुरू किया है, पर वे उस का मजाक उड़ाने लगे कि वह इस काम में भी मुंह की खाएगा.

काम खत्म होने के बाद अनवर जब शहनाज से मिला, तो बहुत दुखी और बुझा हुआ था. वह बोला, ‘‘इतनी मेहनत कर के भी कोई फायदा नहीं हुआ. इस ठेके में 15,000 रुपए का घाटा हुआ है. मैं तुम से पहले ही कह चुका था कि मैं जिंदगी में कभी कामयाब नहीं हो सकता.’’

‘‘पर, घाटा किस तरह हुआ?’’

‘‘अंदाजे से ज्यादा माल लगने की वजह से ही घाटा हुआ?’’

‘‘पर अब तो आप को अंदाजा हो गया है कि फलां काम में कितना माल लगता है. अब आप से अंदाजा लगाने में गलती नहीं हो सकती… इसलिए घाटे का कोई सवाल ही नहीं उठता. आप कोई दूसरा ठेका लेने की कोशिश कीजिए.’’

शहनाज के बहुत समझाने पर अनवर इस के लिए राजी हुआ.

एक हफ्ते बाद वह मिला तो बताने लगा कि उसे नगरपालिका की तरफ से कुछ गटर बनाने का ठेका मिला है.

यह काम जब पूरा हुआ तो वह बहुत खुश था. बताने लगा, ‘‘शहनाज, तुम्हें यकीन नहीं होगा… मुझे इस काम में पूरे 25,000 रुपए का मुनाफा हुआ है.’’

कुछ दिनों बाद अनवर को एक और नया ठेका मिल गया. जब वह काम खत्म हुआ तो अनवर बताने लगा कि उसे इस काम में 50,000 रुपए का मुनाफा मिला है और उसे नगरपालिका की ओर से ही एक स्कूल की इमारत बनाने का ठेका भी मिल गया है.

स्कूल की इमारत का काम शुरू हो गया था. उस काम के बाद कई छोटेछोटे दूसरे काम भी अनवर को मिल गए.

पहली बार मिली नाकामी की वजह से अनवर का दिल टूट गया था और वह अपाहिज बन गया था, पर अब उस का हौसला मजबूत था. उसे अपनी कामयाबी पर यकीन होने लगा था.

एक दिन अनवर बोला, ‘‘शहनाज, मैं तो टूट चुका था. अपाहिजों जैसी जिंदगी जी रहा था, पर तुम्हारे दिए गए हौसले ने मुझ अपाहिज के लिए बैसाखी का काम किया.’’

शहनाज के घर में अनवर की कामयाबी की बातें होने लगी थीं:

‘अनवर तो बहुत बड़ा ठेकेदार बन गया है.’

‘उसे कई ठेके मिल रहे हैं.’

‘वह इन ठेकों में खूब पैसा कमा रहा है.’

‘अब देर किस बात की है? वह अच्छाखासा कमा रहा है… जल्द से जल्द कोई तारीख पक्की कर के शहनाज का निकाह कर देना चाहिए.’ ये सब बातें सुन कर शहनाज बहुत खुश थी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...