सुनीता बाजार से गुजरी, तो एक सब्जी बेचने वाली की आवाज ने उस का ध्यान खींचा. देखा तो उस की ही हमउम्र एक जवान औरत थी. गरीबी के लिबास में लिपटी एकदम सादा खूबसूरती.

उस औरत को देखते ही सुनीता का मन बरसों लांघ कर चौथी जमात में जा पहुंचा. वहां पहुंच कर मन केवल उसी एक चेहरे को तलाशने लगा. उस मासूम, पर उदास चेहरे को.

वह न सुनीता की दोस्त थी, न ही उसे पसंद थी, फिर भी न जाने कौन सा रिश्ता बना था उन के बीच, जो आज सालों बाद भी वह अकसर अपनी याद के साथ सुनीता के सामने आ जाती थी.

सुनीता को वह तब भी बहुत याद आई थी, जब 8वीं जमात की इंगलिश की किताब में रेशमा की कहानी पढ़ी थी, जिस में लिखा था कि कोई भी देख सकता था कि रेशमा गंदी फ्रौक में भी प्यारी लगती थी और सुनीता को रेशमा का पाठ रटतेरटते लगता था कि वह उसे ही रट रही है.

उस की ही तो कहानी थी यह. हां, उसी की कहानी. उस का नाम ललिता था. वह हफ्ते में 3 दिन ही स्कूल आती थी. पढ़ने में बहुत साधारण, बात करने में पीछे रहना और खेलने से दूर भागना.

ललिता जब भी स्कूल आई, लेट आई. सुनीता ने जब भी उसे देखा, उदास ही देखा. जब भी टीचर ने कुछ पूछा, वह चुप ही रही.

चौथी जमात में सुनीता की ललिता से कभी बातचीत नहीं हुई. जब वह 5वीं जमात में आई, तो एक दिन शनिवार की बालसभा के दौरान कुछ लड़कियां जमीन पर अपनाअपना नाम लिख रही थीं, तो ललिता ने टोका, ‘‘क्या कर रही हो? जमीन पर नाम नहीं लिखते.’’

सुनीता ने पूछा, ‘‘क्यों…?’’

ललिता ने कहा, ‘‘ऐसा करने से पिताजी पर कर्ज चढ़ जाता है.’’

ललिता की इस बात पर कुछ लड़कियां हंस दीं और कुछ लड़कियों ने डर के मारे अपना लिखा नाम मिटा दिया.

सुनीता ने पूछा, ‘‘तुम से यह किस ने कहा?’’

‘‘मेरी मां ने,’’ ललिता ने जवाब दिया.

‘‘उन्हें किस ने बताया?’’ सुनीता की सवाल करने की बुरी आदत बचपन से रही थी.

‘‘मुझे क्या पता…’’ ललिता ने खीज के साथ कहा और चुप हो गई.

उस दिन पहली दफा सुनीता ने ललिता को गौर से देखा था. गोरा मासूम चेहरा, मैले कपड़े, फटेपुराने जूते और बेतरतीब 2 चोटियां.

पता नहीं, क्या था उस पल में कि वह लमहा आज भी तसवीर बन कर यादों की गैलरी में हूबहू सजा है. सुनीता को इसी रूप में ललिता की याद आई.

‘‘तुम नहा कर नहीं आई?’’ सुनीता का अगला सवाल था.

ललिता ने अजीब निगाह से सुनीता को घूरा, जैसे कह रही हो कि तुम्हें

क्या मतलब नहाऊं या न नहाऊं? हो कौन तुम?

लेकिन ऐसा कुछ नहीं कहा ललिता ने और बेहद छोटा सा जवाब दिया, ‘‘रोज नहाती हूं.’’

‘‘तो फिर तुम्हारे कपड़े इतने गंदे क्यों हैं?’’ सुनीता का अगला सवाल इस से भी ज्यादा वाहियात था.

ललिता को सुनीता के इस सवाल पर गुस्सा आया या उबकाई, यह उस के चेहरे के भाव से समझ में नहीं आया, लेकिन उस ने जवाब जरूर दिया, ‘‘मां धोती नहीं हैं मेरे कपड़े  और मुझे इतवार को ही समय मिलता है.’’

‘‘क्यों नहीं धोतीं?’’ सुनीता का सवाल पूछने का रवैया पत्रकारों से भी ज्यादा खतरनाक था.

‘‘वे काम करती हैं,’’ ललिता की तरफ से वही उदासी भरा जवाब आया.

‘‘क्या काम करती हैं?’’ सुनीता का खोजी मन जैसे सब जान लेना चाहता था उस से एक ही दिन में.

‘‘बड़े लोगों के घरों में काम करती हैं, झाड़ूपोंछे का,’’ इस बार जवाब देते समय ललिता के चेहरे पर तल्खी थी.

सुनीता अपने सवालों पर शर्म कर के खुद ही चुप हो गई. उस के बाद कभीकभी ललिता से बात हो जाया करती थी, लेकिन बेहद कम. इस बेहद कम बातचीत से इतनी ही जानकारी

जुटा सकी सुनीता कि वे 6 भाईबहन हैं. पापा की कबाड़ की छोटी सी दुकान है. मम्मी घरों में झाड़ूपोंछे का काम करती हैं.

2 बड़ी बहनों की सगाई कर रखी है. वे दोनों 5वीं जमात तक पढ़ी हैं और ललिता को भी घर वाले 5वीं जमात

तक ही पढ़ाएंगे, ताकि वह कुछ लिखनापढ़ना और पैसों का थोड़ाबहुत हिसाब रखना सीख जाए. 3 छोटे भाई हैं, जिन में 2 अभी स्कूल नहीं जाते, छोटे होने के चलते.

एक दिन ललिता सुबहसुबह स्कूल की प्रार्थना में अपनी आदत के मुताबिक हांफती हुई लेट आई. जब प्रार्थना के बाद सब बच्चों ने आंखें खोलीं, तो वे उसे देख कर हंसने लगे.

ललिता की हालत ही कुछ ऐसी थी. उस की दोनों आंखों में काजल भरा था, जो हाथों की रगड़ से फैल कर पूरे चेहरे पर बिखरा हुआ था. बाल बिना कंघी किए और कपड़े हमेशा की तरह गंदे. जब बच्चे क्लास में जाने लगे, तो सुनीता ने उस से मुंह धो लेने के लिए कहा, तो वह मान गई.

सुनीता और ललिता दोनों पानी के नल तक साथ गईं. सुनीता ने पूछा, ‘‘ललिता, तुम ऐसे क्यों आ जाती हो? कम से कम मुंह तो देख कर आना चाहिए था शीशे में और ये बाल देखो. कंघी तो कर ही सकती हो? तुम्हें अजीब नहीं लगता है?’’

ललिता ने कहा, ‘‘हम तीनों बहनों ने अपनाअपना काम बांट रखा है. मैं आज लेट उठी, तो काम देर से हुआ. कंघी करती तो और ज्यादा देर हो जाती, इसलिए सीधे कपड़े बदल लिए थे, लेकिन पता नहीं था कि काजल इतना ज्यादा चेहरे पर फैला हुआ है.’’

अब जब भी सुनीता ललिता का उस दिन का वह चेहरा याद करती है, तो लगता है जैसे किसी मुझे चित्रकार ने बेहद खूबसूरत चित्र बना कर उस पर गलती से काला रंग गिरा दिया हो.

उस दिन सुनीता ने ललिता से लंच के वक्त पूछा था, ‘‘तुम्हारा सपना क्या है? मतलब, तुम बड़ी हो कर क्या बनना चाहती हो?’’

ललिता ने पलभर के लिए सुनीता को देखा और फिर अपने पैरों से जमी घास को कुरेदने लगी. ऐसा करते हुए उस का जवाब था, ‘‘कुछ नहीं.’’

ऐसे सवाल का ऐसा जवाब सुनीता ने फिर कभी नहीं सुना.

खैर, गरमियां गईं, सर्दियां आईं. एक दिन सुनीता ने ललिता को लंच टाइम में अकेले धूप में बैठे देखा. धूप में बैठी

वह कोई पहाड़ी फूल लग रही थी, जो खिला तो था, पर बस्ती से दूर घने एकांत में होने से उस की खुशबू बस्ती वाले महसूस नहीं कर पा रहे थे.

सुनीता ललिता के बगल में जा कर बैठ गई और पूछा, ‘‘खोखो खेलोगी ललिता?’’

‘‘नहीं,’’ उस की आवाज में कभी भी उल्लास महसूस नहीं किया था सुनीता ने.

‘‘क्यों…?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘मन नहीं है,’’ और ऐसा कह कर ललिता अपने नाखूनों को मुंह से कुतरने लगी.

‘‘अच्छा, तुम कभी खेलती क्यों नहीं?’’ सुनीता सिर्फ सवाल करती थी, ललिता हमेशा जवाब देती थी. उस ने कभी कोई सवाल नहीं किया था.

‘‘बस यों ही. मुझे पसंद नहीं है उछलनाकूदना,’’ इतना कह कर ललिता फिर नाखून कुतरने लगी.

‘‘खेलना पसंद नहीं और हंसना भी पसंद नहीं, है न?’’ सुनीता ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा.

ललिता ने सुनीता इस बात पर चौंक कर उसे ऐसे देखा जैसे किसी ने उस के मन पर मुक्का दे मारा हो.

‘‘तुम हमेशा उदास क्यों रहती हो? बताओ न ललिता,’’ इस बार सुनीता ने उस का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से सवाल किया था.

ललिता ने पहले सुनीता के हाथ को देखा और फिर जमीन को देखते हुए बोली, ‘‘मेरी मां मना करती हैं.’’

‘‘हंसने से…?’’ सुनीता ने बेहद हैरानी से पूछा.

‘‘हां,’’ उस का वही छोटा सा जवाब आया.

‘‘लेकिन क्यों…? वे तुम से ऐसा क्यों कहती हैं?

‘‘मां कहती हैं कि लड़कियों को ज्यादा हंसना नहीं चाहिए. गरीब की बेटी को तो कभी भी नहीं.’’

ललिता ने यह जिस ठंडे भाव से कहा था, वह हमेशा के लिए ठहर गया सुनीता के भीतर.

ललिता की मां की बात का मतलब समझाने की समझ उस समय तो नहीं थी और 5वीं जमात के बाद वे दोनों कभी मिली भी नहीं.

लेकिन उस के बाद जब भी कभी सुनीता के या किसी दूसरी लड़की के खिलखिला कर हंसने के जो अलगअलग मतलब लगाए गए समाज में, ललिता की मां की कही बात के गहरे मतलब समझ आने लगे.

जबतब किसी ने सुनीता को हंसते हुए टोका, तो ललिता ठहर गई उस के जेहन में और कानों में उस की कही बात गूंजती कि ‘मां कहती हैं लड़कियों को ज्यादा नहीं हंसना चाहिए’.

पर क्या कोई बताएगा कि क्यों?

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