अस्पताल का यह कमरा काफी बड़ा, खुला और हवादार था. 3-4 दिन पहले ही कैप्टन शेखर गुप्ता को घायल हालत में एक लंबे, बड़े कमरे में, जिस में एक सीध में दर्जनों बैड बिछे थे, उस के कई घायल साथियों के साथ एक बैड पर लिटाया गया था. उसी कमरे में कई साधारण मरीज भी अपनेअपने बैड पर आराम कर रहे थे.

फिर अचानक कैप्टन शेखर गुप्ता को इस अकेले बिस्तर वाले कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था. उन्होंने किसी की सिफारिश भी नहीं लगवाई थी. इस सुदूर अफ्रीकन देश में उन की सिफारिश करने वाला था भी कौन?

संयुक्त राष्ट्र संघ के संयुक्त शांति मिशन के तहत दूसरे सदस्य देशों की सैनिक टुकडि़यों के साथ भारतीय सेना की यह टुकड़ी, जिस में तकरीबन सौ सैनिक थे, इस दक्षिणी अफ्रीकी देश में उस देश की सरकार के संयुक्त राष्ट्र संघ से किए गए शांति बहाल करने की गुजारिश पर आई थी.

समुद्र के किनारे बसा यह देश आकार में काफी छोटा था. इस की अपनी सेना थी, मगर वह काफी कमजोर और तादाद में कम थी.

चुनी हुई सरकार को देश में गृहयुद्ध जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा था. सरकार विरोधी आतंकवादी दलों को दबाने में सेना नाकाम थी, इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने सेना की टुकडि़यां यहां भेजी थीं.

3-4 दिन पहले हुई मुठभेड़ में कैप्टन शेखर गुप्ता अपने साथी सैनिकों और दूसरे देशों के सैनिकों के साथ घायल हो गए थे और अब इस बड़े सरकारी अस्पताल में भरती थे.

कैप्टन शेखर गुप्ता अपने बिस्तर पर लेटे किसी सोच में डूबे थे, तभी सांवले रंग की कसे बदन वाली एक अफ्रीकी लड़की नर्स की पोशाक पहने आई.

नर्स ने पास आ कर मीठी आवाज में पूछा, ‘‘आप कैसे हैं सर?’’

‘‘मैं ठीक हूं,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने मुसकरा कर कहा.

‘‘जरा आप की नब्ज तो देखूं,’’ इतना कह कर उस नर्स ने सधे हाथ से कैप्टन शेखर गुप्ता की कलाई

थाम कर नब्ज पर उंगलियां दबाईं.

नब्ज सामान्य थी. फिर उस ने उन का माथा छुआ. बुखार भी नहीं था.

‘‘आप को एक इंजैक्शन देना होगा,’’ सूई में दवा भरते हुए नर्स की आंखें कैप्टन की आंखों से टकराईं. उन्हें उन में अपने प्रति प्यार की चमक दिखाई पड़ी.

नर्स अपने काम में माहिर थी. कैप्टन शेखर गुप्ता को इंजैक्शन लगवाते समय जरा भी दर्द नहीं हुआ.

‘‘जरा मुंह खोलिए और ये टेबलेट निगल लें,’’ नर्स ने कहा.

भारत में नर्स को ‘सिस्टर’ कह कर पुकारा जाता है, लेकिन पश्चिमी और दूसरे देशों में ऐसा है या नहीं, कैप्टन शेखर गुप्ता को पता नहीं था, इसलिए उन्होंने सिर्फ ‘थैंक्यू’ कहा.

कैप्टन शेखर गुप्ता के घाव काफी गहरे थे. उन को भरने में समय लगना था. दिन में 2 बार डाक्टर चैकअप

करने आता था. 2 दिन बाद पट्टियां भी बदली जाती थीं. नर्स तो कई बार आती थी. उस नर्स को कैप्टन से शायद प्यार हो गया था.

धीरेधीरे नर्स का आनाजाना काफी बढ़ गया था. कैप्टन कुंआरे थे. नर्स भी कुंआरी थी. उस का नाम स्टे्रसा गार्बो था. वह एक नीग्रो मां और अंगरेज पिता की औलाद थी.

उस कैप्टन का रंग सांवला था, बाल क्रीम रंग के थे. वह किसी यूनानी जैसा दिखता था.

समय के साथसाथ कैप्टन शेखर गुप्ता के घाव भरने लगे थे. वे अब चलनेफिरने लगे थे.

एक शाम स्ट्रेसा गार्बो सामान्य पोशाक स्कर्टटौप में कैप्टन शेखर के कमरे में आई. काले चमकीले रंग का स्कर्टटौप और उस पर कौटन का बना बड़ा हैट अच्छा लग रहा था. उस के दिलकश रूप को देख कर कैप्टन मुसकराए.

‘‘हैलो मिस्टर शेखर, अब कैसे हैं आप?’’

‘‘मैं अच्छा हूं… और आप?’’

‘‘कहीं बाहर घूमने चलेंगे?’’

स्ट्रेसा गार्बो की यह बात सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता चौंक पड़े. इस अफ्रीकी देश में आए उन्हें 2 महीने हो चुके थे, मगर उन्होंने कभी घूमनेफिरने के बारे में नहीं सोचा था, क्योंकि उन की ड्यूटी के घंटे निश्चित नहीं थे. तकरीबन 24 घंटे ही ड्यूटी होती थी.

सैरसपाटे के नाम पर उस अफ्रीकी देश में उन्हें क्या सूझ सकता था? जवान लड़की के प्रति खिंचाव होना स्वाभाविक था, मगर उस हब्शियों के देश में औरतें या लड़कियां भी काले रंग की ही थीं. उन के मोटे होंठों वाले काले चेहरे, छल्लेदार बालों वाले सिर और भारी काले मांसल शरीर में उन फौजियों को भला क्या मजा आ सकता था?

मगर सैक्स की चाहत भी अपनी जगह थी. अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कैप्टन शेखर गुप्ता के साथी चकलाघरों का पता लगा ही लेते थे, मगर वे उन के साथ कभी नहीं गए थे.

‘‘किस सोच में खो गए आप?’’ स्ट्रेसा गार्बो की आवाज सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता बोले, ‘‘ओह, कुछ नहीं. कहां जा सकते हैं हम?’’

‘‘यहां बहुत सी जगहें हैं.’’

‘‘ठीक है. मैं तैयार होता हूं,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता बाथरूम गए और हाथमुंह धोने के बाद काले रंग की पैंटशर्ट पहन कर तैयार हुए.

‘‘अरे, आप ने तो मेरे कपड़ों की नकल कर ली,’’ स्ट्रेसा गार्बो ने हंसते हुए कहा.

‘‘तो क्या मैं सफेद सूट पहन लूं?’’

‘‘नहींनहीं, यही ठीक है. बस, जरा कोई चमकीले रंग की टाई भी पहन लें.’’

कैप्टन शेखर गुप्ता ऊंचे कद, कसे जिस्म वाले फौजी थे. उन पर काली पैंटशर्ट और ग्रे रंग की चमकीली टाई व सफेद चमड़े के बढि़या जूते काफी अच्छे लग रहे थे. उन के साथ चलती गठीले बदन की स्ट्रेसा गार्बो भी काफी अच्छी लग रही थी.

अस्पताल का सारा स्टाफ और कैप्टन शेखर गुप्ता के साथी भी फटी आंखों से इस जोड़ी को अस्पताल से बाहर निकलते देख रहे थे.

‘‘कैप्टन साहब तो छिपे रुस्तम निकले. पता भी नहीं चला, कब इश्क का पेंच लड़ा कर नर्स फंसा ली. अस्पताल का बड़ा कमरा हासिल कर लिया और अब नर्स के साथ मौजमस्ती करने चले गए,’’ एक साथी फौजी ने दूसरे फौजी से कहा.

‘‘ये कैप्टन ऐसे ही नहीं बन गए. काबिल आदमी हैं,’’ दूसरे फौजी की इस बात पर सारे हंसने लगे.

अस्पताल से बाहर आ कर स्ट्रेसा गार्बो ने एक टैक्सी को रुकने का इशारा किया. इस के बाद वे दोनों एक शानदार रैस्टोरैंट में पहुंचे.

कैप्टन शेखर गुप्ता को इस पिछड़े दक्षिणी अफ्रीकी देश में इस तरह के रैस्टोरैंट की उम्मीद नहीं थी.

डांसिंग फ्लोर पर जोड़े थिरक रहे थे.

‘‘क्या आप नाचना जानते हैं?’’

कैप्टन शेखर गुप्ता ने ‘न’ में सिर हिलाया.

‘‘सीखना मुश्किल नहीं है.’’

‘‘मैं ने कभी किया नहीं.’’

‘‘क्या आप ने कभी फ्लर्ट किया है?’’ स्ट्रेसा गार्बो ने शोखी से पूछा.

‘‘कभी चांस नहीं मिला,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने हंस कर कहा.

‘‘प्यारमुहब्बत चांस की नहीं, दिल की बात है.’’

‘‘दिल तो मेरा खुला है, मगर आवारा नहीं,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने भी अब शोखी से कहा.

‘‘यह आवारा क्या होता है?’’

‘‘अंगरेजी भाषा में इस का सही मतलब मु?ो पता नहीं है. फिलहाल तो आप खुद ही इस का मतलब निकाल लो,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने कहा.

खाना खाने के बाद स्ट्रेसा गार्बो उन्हें बोटिंग के लिए ले गई.

‘‘क्या आप को मोटरबोट चलानी आती है?’’ स्ट्रेसा गार्बो ने पूछा.

‘‘हां, आती है. हमें सेना में हर वाहन चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है.’’

एक मोटरबोट ले कर स्ट्रेसा गार्बो खुले समुद्र में उसे दौड़ाने लगी. वह तैराक भी थी. उस दिन काफी रात गए दोनों वापस लौटे.

कैप्टन के घाव अब काफी भर गए थे. उन्हें और दूसरे कई साथियों को अस्पताल से छुट्टी मिल गई.

अब वे सभी ड्यूटी पर जाने लगे थे, लेकिन जब भी मौका मिलता, कैप्टन शेखर गुप्ता स्ट्रेसा गार्बो के साथ सैरसपाटे पर निकल जाते.

स्ट्रेसा गार्बो को अस्पताल में क्वार्टर मिला हुआ था. साथ ही, उस ने शहर में भी एक फ्लैट लिया हुआ था, जहां वह अकेली रहती थी.

मेलमुलाकातों, सैरसपाटे से आगे बढ़ते हुए वे दोनों हदें पार कर एकदूसरे में समा गए. नतीजतन, स्ट्रेसा गार्बो पेट से हो गई.

इधर कैप्टन शेखर गुप्ता की टुकड़ी का काम पूरा हो गया. अब टुकड़ी को वापस जाना था. आदेश आ चुका था.

कैप्टन शेखर गुप्ता स्ट्रेसा गार्बो के फ्लैट पर पहुंचे. उन की वापस जाने की खबर पा कर वह गंभीर हो गई.

‘‘मैं आप को कुछ बताना चाहती हूं,’’ स्ट्रेसा गार्बो की गंभीर आवाज सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता चौंक पड़े.

‘‘कहो, क्या बात है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘मैं पेट से हूं,’’ स्ट्रेसा गार्बो ने कहा.

थोड़ी देर खामोशी छाई रही. दोनों एकदूसरे के चेहरे से दिल का हाल जानना चाहते थे.

‘‘वैसे, यह बड़ी समस्या नहीं है. आप बच्चा गिरवा लो,’’ कैप्टन शेखर गुप्ता ने कहा.

यह सुन कर स्ट्रेसा गार्बो ने उन की तरफ गहरी नजरों से देखा.

‘‘मैं बच्चा नहीं गिराना चाहती. मैं बच्चे को जन्म देना चाहती हूं. क्या आप मु?ा से शादी करेंगे?’’

स्ट्रेसा गार्बो का सीधा सवाल सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता सकपका गए.

खामोशी को तोड़ते हुए स्ट्रेसा गार्बो ने कहा, ‘‘मैं आप पर कोई दबाव नहीं डालूंगी. आप की मरजी हो तो ठीक, नहीं तो कोई बात नहीं.’’

स्ट्रेसा गार्बो के इस सहजसपाट जवाब को सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता हैरानी से उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मगर बिना शादी के बच्चा… ऐसे तो वह नाजायज या हरामी कहलाएगा?’’ उन के मुंह से निकला.

‘‘कोई भी बच्चा नाजायज या हरामी नहीं होता. बच्चा सिर्फ बच्चा होता है. मेरे पिता भी मु?ो मेरी मां के पेट में डाल कर चले गए थे. मैं ने अपने पिता को कभी नहीं देखा.

‘‘मु?ो किसी ने हरामी नहीं कहा. हमारा समाज पिछड़ा नहीं है. हमारी

सोच इतनी छोटी नहीं है, बल्कि यहां पिता का नाम बताना या न बताना अपनी मरजी पर है.’’

यह सुन कर कैप्टन शेखर गुप्ता हैरान थे. वे कुछ बोले बिना चुपचाप वहां से चले आए.

टुकड़ी के हवाईजहाज पर सवार होने का समय हो गया था. हवाईअड्डा खाली सा था. एक गुलदस्ता लिए स्ट्रेसा गार्बो कैप्टन शेखर गुप्ता के पास आई.

‘‘मु?ो अपना पता दोगे? चिंता मत करो. मैं कभी तुम्हारे रास्ते में रुकावट नहीं बनूंगी. तुम्हें खबर करने के लिए कि बच्चा लड़का है या लड़की, मैं पता मांग रही हूं.’’

कैप्टन शेखर गुप्ता ने उस को एक कागज पर अपना पता व फोन नंबर लिख कर दे दिया.

‘‘मेरी ओर से शुभकामनाएं,’’ कहती हुई स्ट्रेसा गार्बो सधे कदमों से मुड़ी और चली गई.

कैप्टन शेखर गुप्ता की दिमागी हालत उस फौजी के समान थी, जो एक बार लड़ाई में फिर हार गया था.

एक असभ्य जाति की कही जाने वाली औरत ने सभ्यता, जायजनाजायज के सवाल के नाम पर जो तमाचा उन्हें मारा था, वह काफी करारा था.

हवाईजहाज का सायरन बजा. कैप्टन शेखर गुप्ता अपना सामान उठाए सीढि़यां चढ़ गए.

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