‘‘इंस्पैक्टर साहिबा…’’

इंस्पैक्टर मोहिनी वर्मा ने नजरें उठा कर देखा. एक लड़की सामने खड़ी उन्हीं की ओर देख रही थी.

उन्होंने पलभर के लिए उस लड़की के चेहरे को देखा, फिर बोलीं, ‘‘कहिए?’’

‘‘रपट लिख लीजिए.’’

‘‘किस के खिलाफ?’’

‘‘सास के खिलाफ.’’

‘‘क्यों, क्या किया है सास ने?’’

‘‘उन्होंने मेरे गहने ले लिए हैं.’’

‘‘वे गहने तुम्हें किस ने दिए थे?’’

‘‘जब सगाई हुई थी न, तब ससुराल वालों ने ही दिए थे.’’

‘‘क्यों… शादी में तेरे बाप ने गहने नहीं दिए थे?’’

‘‘दिए थे. वे गहने मेरे पास ही हैं.’’

‘‘तो यह बात है…’’ जरा सोच कर मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘मामला बड़ा पेचीदा है.’’

‘‘कुछ भी करो इंस्पैक्टर साहिबा, आप मेरे गहने दिलवा दीजिए.’’

‘‘तुझे गहने की पड़ी है. तुम्हारी पारिवारिक लड़ाई में पुलिस क्या करेगी? बोल, क्या करेगी?’’

‘‘इंस्पेक्टर साहिबा, यों पल्ला झाड़ने से काम नहीं चलेगा.’’

‘‘तू कहना क्या चाहती है?’’

‘‘आप को अपने फर्ज की याद दिलाना चाहती हूं.’’

‘‘ऐ फर्ज वाली, मुझे मालूम है मेरा फर्ज क्या है.’’

‘‘आप को फर्ज मालूम है, तब मेरी रपट अभी लिख लीजिए. यों बातों में उलझ कर समय बरबाद न करें.’’

‘‘तू बहुत बोलती है, तभी तो तेरी सास से नहीं बनती है. यही बात है न?’’

‘‘देखिए इंस्पैक्टर साहिबा, मेरे घरेलू मामले में आप दखल न दें. आप रपट लिख लीजिए.’’

‘‘मगर रपट लिखने के भी कुछ कानूनकायदे होते हैं.’’

‘‘तो आप मुझे वे कायदेकानून समझा दीजिए.’’

‘‘पालन करोगी?’’

‘‘अगर करने जैसे होंगे तो.’’

‘‘रहने दे, रहने दे. यहां रपट मुफ्त में नहीं लिखी जाती है.’’

‘‘यानी आप को रिश्वत चाहिए?’’

‘‘रिश्वत नहीं, नजराना कहो.’’

‘‘आखिर बात तो वही हुई न?’’

‘‘रिश्वत व नजराने में जमीनआसमान का फर्क है.’’

‘‘वह कैसे, मुझे समझाइए?’’

‘‘ऐ, तू थाने में रपट लिखाने आई है या बहस करने?’’

‘‘मैं थाने में रपट लिखाने आई हूं.’’

‘‘तब बहू हो कर बदतमीजी से बातें क्यों कर रही है?’’

‘‘मैं तो आप की बात का जवाब

दे रही हूं, जिसे आप बदतमीजी समझ रही हैं.’’

‘‘क्या नाम है तेरा?’’

‘‘मीना नाम है मेरा.’’

‘‘देख मीना,’’ गुस्से से आंखें दिखाते हुए मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘रपट लिखानी है, तो…’’

‘‘यहां बिना पैसों के रपट नहीं लिखी जाती है,’’ मीना बीच में ही बात काटती हुई बोली, ‘‘यही कहना चाहती हैं न आप?’’

‘‘सो तो है,’’ मोहिनी वर्मा मुसकारते हुए बोलीं.

‘‘एक बात बता, क्या अभी तू सास के साथ रहती है?’’

‘‘हां, मगर जब वे गहने दे देंगी, तब मैं अलग हो जाऊंगी.’’

‘‘मतलब, गहने मिलने तक तू उस घर में रहेगी?’’

‘‘मगर आप ये सब क्यों पूछ रही हैं?’’ जरा नाराज होते हुए मीना बोली, ‘‘आप को रपट लिखनी है, तो जल्दी लिखिए.’’

‘‘किस के लिए बने हैं ये थाने?’’

‘‘रिश्वत लेने के लिए.’’

‘‘झूठ, एकदम बकवास.’’

‘‘मगर, मैं शिकायत करूंगी.’’

‘‘करो, शौक से करो.’’

मोहिनी वर्मा ने जब यह सुना, तो खुश हो गईं. वे बोलीं, ‘‘चाहे तो अन्ना हजारे को भी शिकायत कर दो, पर बहन शिकायत करने से कुछ न होगा.’’

‘‘क्या आप यों रपट नहीं लिख सकती हैं?’’ उदास मन से मीना ने कहा.

‘‘पुलिस की डिक्शनरी में यह नहीं लिखा है. फिर सास से गहने लेने हैं. तब इतना त्याग करना पड़ेगा… क्या सोचा है? यह तो आजकल का रिवाज हो गया है. इस हाथ ले, उस हाथ दे. मैं चाहूं, तो तेरी यों भी रपट लिख लूंगी. मगर कानून में ऐसा छेद कर दूंगी कि खुद उलझ कर रह जाएगी. नजराना दे दोगी, तब तुम्हारी सास दौड़ती हुई आएंगी मेरे पास गहनों को ले कर.’’

‘‘मतलब यह इंस्पैक्टर साहिबा, चित भी मेरी और पट भी मेरी,’’ मीना अपना पक्ष रखते हुए बोली, ‘‘कितना पैसा चाहिए?’’

‘‘पहले यह बता कि गहने कितने के होंगे?’’

‘‘तकरीबन 2 लाख रुपए के.’’

‘‘तब तो तुम्हारा पक्ष मजबूत कर दूंगी,’’ मोहिनी वर्मा अपना पक्ष रखते हुए बोलीं, ‘‘तुम 75 हजार रुपए ला कर दे दो.’’

‘‘75 हजार…’’ हैरानी से आंखें फाड़ते हुए मीना बोली, ‘‘मगर इतनी बड़ी रकम मैं नहीं ला सकती.’’

‘‘दरअसल, हमें भी ऊपर लिफाफे भेजने पड़ते हैं,’’ मोहिनी वर्मा अपना पक्ष रखते हुए बोलीं.

यह कह कर इंस्पैक्टर साहिबा ने गेंद उस के पाले में डाल दी.

मीना सोच में पड़ गई कि इतनी रकम कहां से जुटाएगी? उस का पति मुकेश टीचर है. क्या वह अपने पिता द्वारा दहेज में दिए गहने बेच कर रिश्वत दे. इस में समझादारी कहां है.

जहां तक पैसों का सवाल है, उस के पास नहीं है और थाने में बिना रिश्वत दिए रपट नहीं लिखते हैं. अगर किसी की सिफारिश लगाओ, तब वे लोग झट से रपट लिख लेते हैं. सरकारी काम में इतना जंग लग गया है, जिसे छुड़ाना अब किसी के बूते की बात नहीं है.

मीना पुरानी यादों में खो गई. एक दिन मीना की पड़ोसन विमला उस से बोली भी थी, ‘क्यों मीना, मैं देख रही हूं कि बहुत दिनों से तुम्हारी सास और तुम में बन नहीं रही है?’’

‘हां, सो तो है विमला बहन,’ अफसोस जताते हुए मीना बोली थी, ‘क्या करूं?’

‘करना क्या है, अलग हो जा,’ विमला सलाह देते हुए बोली थी.

‘आजकल अगर नहीं निभे, तब अलग रहने में ही भलाई है.’

‘कहती तो ठीक हो, मगर…’

‘मगर क्या…?’ बीच में ही बात काट कर विमला ने पूछा था.

‘सास ने गहने दबा लिए हैं, जो सगाई के वक्त मुझे दिए थे.’

‘अरे, लो न उस से, उन पर तो पूरा हक है तुम्हारा?’

‘कैसे लूं… कई बार कह चुकी हूं, मगर देती नहीं. मैं कुछ कहती हूं, तो वे लड़नेझगड़ने लगती हैं.’

जब मीना ने अपनी बात कही, तब विमला सोचते हुए बोली थी, ‘एक काम कर. महिला थाने में रपट लिखा आ, सास के खिलाफ…’

काफी सोचनेसमझाने के बाद एक दिन मीना थाने में रपट लिखाने आ गई. मगर थाने में कितना भ्रष्टाचार है, यह उस ने आज जाना. सच कहा है, कानून पैसों वालों का है.

‘‘ऐ, क्या सोचने लगी?’’ मोहिनी वर्मा ने मीना की सोच को झटका दिया, तो वह यादों से लौटी.

मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘सास से गहने लेने हैं कि नहीं?’’

‘‘मगर, मैं इतनी बड़ी रकम का इंतजाम नहीं कर सकती,’’ मना करते हुए मीना बोली.

‘‘सोच ले. तेरी सास ने तेरे गहने जहां कहीं भी छिपाए होंगे, तुझे निकाल कर दे दूंगी…’’ मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘मगर शर्त यह है कि तुम हमारी मदद करो, हम तुम्हारी मदद करें.’’

‘‘मुझे नहीं लिखानी रपट,’’ कह कर मीना थाने से बाहर निकल गई.

इंस्पैक्टर मोहिनी वर्मा यह देख मुसकरा दीं.

तब महिला सिपाही पास आ कर बोली, ‘‘इंस्पैक्टर साहिबा, आप ने उस से इतनी भारीभरकम रिश्वत क्यों मांगी?’’

‘‘मैं नहीं चाहती थी कि यह परिवार टूटे, इसलिए…’’ समझाते हुए मोहिनी वर्मा बोलीं, ‘‘मुझे मालूम था कि वह इतनी बड़ी रकम नहीं दे सकती है. सास आज नहीं तो कल खुद ही गहने उसे दे देगी. शायद, अब वह अपनी सास से अलग न हो.’’

 

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