रघु का बापू मर गया. गांव के सब लोग आ कर रघु को धीरज बंधा रहे थे.  गांव का सेठ दीनदयाल भी आया. वह रघु से 20 हजार रुपए मांगने लगा.

रघु के बाप ने एक बार रघु के इलाज के लिए पैसे लिए थे. ब्याज दर ब्याज बढ़ कर अब वे 20 हजार रुपए हो गए थे.

बैठते ही सेठ दीनदयाल ने कहा, ‘‘रघु, यह दिन सभी को देखना पड़ता?है… इस में रोने की क्या बात है. जग की रीत तो सभी को निभानी पड़ती है.’’

‘‘सेठजी, मगर बापू की उम्र ज्यादा नहीं थी. अगर वे थोड़े दिन और जीते, तो आप का कर्ज उतार जाते.’’

‘‘होनी को कौन टाल सकता है. जो होना था, हो गया. अब तो उन का क्रियाकर्म करना बाकी है और फिर मेरा कर्ज भी उतर जाएगा.’’

‘‘मगर सेठजी, क्रियाकर्म और आप के कर्ज के लिए रुपया आएगा कहां से?’’ रघु ने अपनी चिंता जताई.

‘‘इस में चिंता की क्या बात?है… तेरे पास जमीन है.’’

‘‘3 बीघा जमीन से क्या होता है…’’ रघु ने कहा, ‘‘आप तो जानते?हैं, घर में 6 लोग हैं… उन का गुजारा ही बड़ी मुश्किल से होता है… उस पर यह क्रियाकर्म…’’

‘‘रघु, चिंता करने से कुछ नहीं होगा. तेरे बापू ने कभी चिंता नहीं की, जबकि उस ने तेरे लिए बहुत दुख देखे हैं…’’ सेठजी ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘क्या तू उन का अच्छी तरह क्रियाकर्म भी नहीं कर सकता? ऐसे में उन की आत्मा को शांति कैसे मिलेगी? आत्मा बेचारी इधरउधर भटकती रहेगी.

‘‘इस से तू भी परेशान रहेगा और तेरे बालबच्चों समेत पूरे गांव वाले भी परेशान होंगे…’’ सेठजी ने रघु की नीयत भांपते हुए कहा, ‘‘रुपए की परवाह मत करना, मु?ो से बन पड़ा तो मैं ही दे दूंगा.’’

रघु सेठजी की बात सम?ा गया. वह उस की जमीन हड़पना चाहता था, ताकि वह जमीन ले कर उसी से उस जमीन में खेती करवा कर अच्छाखासा मुनाफा कमाए.

इसलिए रघु ने पूछा, ‘‘मगर आप मु?ो रुपए किस शर्त पर देंगे? मेरे पास तो कुछ भी देने को नहीं है?’’

‘‘अरे, रघु कैसी बात करता है, तेरे पास सबकुछ है. फिर तेरा बाप तेरे लिए 3 बीघा जमीन छोड़ गया है, उसे गिरवी रख कर रुपए ले जाना. जब रुपए आ जाएं, तो जमीन छुड़ा लेना,’’ सेठजी ने कहा, तो रघु सम?ा गया कि वह दिन कभी नहीं आएगा, जिस दिन वह अपनी जमीन सेठ दीनदयाल से छुड़ा पाएगा.

वह सोच में डूब गया कि क्रियाकर्म करना जरूरी है. अगर वह ऐसा नहीं करेगा, तो गांव में कोई उस की मदद नहीं करेगा. यहां तक कि उसे गांव या जाति से बाहर कर दिया जाएगा.

रघु को खेतीबारी के लिए सभी का सहयोग चाहिए था. बिना सहयोग के खेतीबारी नहीं होती?है. बीज, पानी, मजदूर और रुपएपैसे, ये सब गांव से ही मिल सकते हैं.

यदि वह क्रियाकर्म करता है, तो उस की एकमात्र पूंजी वह जमीन सेठ के पास चली जाती है. तब वह एक मजदूर बन कर रह जाएगा. तब वह अपनी माली हालत कैसे सुधार पाएगा, क्योंकि उस पर कर्ज चुकाना और खेती करना कैसे मुमकिन है, यह बात वह अच्छी तरह जानता था.

वह सोच रहा था कि किसी तरह क्रियाकर्म टल जाता, तो उसे फायदा था. वह चाहता था कि मौत पर मौज न मनाई जाए. इस से गरीब आदमी मर जाता है. यह बात उस ने अपने कई दोस्तों को सम?ाई कि एक तो मरने वाले का दुख, ऊपर से कर्ज की मार. एक गरीब कैसे यह सह सकता है. मगर किसी ने उस की बात न मानी.

इस बारे में वह देर तक सोचता रहा, तो उसे लगा कि क्रियाकर्म न करना ही अच्छा है. मगर वह गांव वालों को नाराज भी नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने कोई बीच का रास्ता निकालने की सोची.

आखिरकार रघु को एक उपाय सूझ गया. वह बहुत खुश हुआ. उस ने पंडित रामसुख से बात की. फिर उन से अस्थि विसर्जन का मुहूर्त निकलवाया और तब हरिद्वार जाने की तैयारी करने लगा.

यह बात सुन कर गांव वाले बड़े खुश हुए कि चलो, रघु अपने बापू की अस्थियां गंगा में बहाने ले जा रहा है, इसलिए सभी ने उसे धूमधाम से विदाई दी. जिस से जो बन पड़ा, वह दिया, क्योंकि वह पहला आदमी था, जो पिता की अस्थियां मरने के तुरंत बाद हरिद्वार ले जा रहा था.

रघु बस में बैठ कर हरिद्वार चला गया. इस बात को तकरीबन 8 दिन हो गए, मगर रघु लौट कर न आया, जबकि उस के बापू के क्रियाकर्म का एक दिन बाकी रह गया था. इस वजह से सेठ दीनदयाल और पंडित रामसुख बहुत चिंता में थे.

उन्होंने बहुत सोचसम?ा कर चौपाल पर गांव वालों की एक बैठक बुलाई, जहां पर यह फैसला होना था कि रघु के बाप के क्रियाकर्म का क्या होगा? अगर रघु नहीं आया, तो क्या किया जाएगा?

पंडितजी अपनी दानदक्षिणा की चिंता में थे. उन्हें क्रियाकर्म के दिन पलंग, बिस्तर वगैरह मिलना था, जबकि सेठ दीनदयाल की निगाह रघु की 3 बीघा जमीन पर थी.

गांव वाले इसलिए चिंता में डूबे थे कि अगर रघु ने बापू का क्रियाकर्म न किया, तो गांव में उस की आत्मा कहर ढा सकती है, इसलिए गांव में चौपाल पर बैठक जमा थी.

तभी सामने से डाकिया आता दिखाई दिया. उस ने सेठजी, पंडित रामसुख और सभी गांव वालों के लिए 3 निमंत्रणपत्र दिए.

निमंत्रणपत्र में लिखा था, ‘गांव दैपालपुर को बड़ी खुशी के साथ सूचित किया जाता है कि मेरे बापू किसनाजी की आत्मा की शांति के लिए हरिद्वार के सर्वसिद्ध परम योगेश्वरजी महाराज की इच्छानुसार हरिद्वार में 18 जून, 2013 को क्रियाकर्म संपन्न होना तय हुआ है.

आप सब महानुभावों से करबद्ध निवेदन है कि यहां पधार कर मेरे बापू की आत्मा को मोक्ष प्रदान करने में सहयोग करें.

एक शोकाकुल पुत्र का निवेदन.

रघु,

गांव दैपालपुर,

हाल मुकाम,

हर की पौड़ी,

हरिद्वार.’

निमंत्रणपत्र पढ़ कर सेठजी और पंडितजी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. मगर गांव वाले खुश थे कि चलो, रघु अपने पिता का क्रियाकर्म भी हरिद्वार में कर रहा है.

इधर रघु खुश था कि मौत पर मौज मनाने वालों की इच्छा पूरी नहीं हो पाई, क्योंकि वे 8 सौ किलोमीटर दूर आने से तो रहे. साथ ही, उस की जिंदगीभर की कमाई देने वाली जमीन भी लुटने से बच गई.

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