भटके हुए यूथ को बेवकूफ बनाना आसान होता है चाहे धर्म के नाम पर हो या कैरियर के नाम पर. आजकल इन्हीं दोनों का इस्तेमाल कर सोशल मीडिया पर मोटिवेशन के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले इन्फ्लुएंसरों की फौज खड़ी हो गई है जो बड़ीबड़ी बातें कर के करोड़ों छाप रहे हैं. ऐसा ही एक मोटिवेशनल स्पीकर विवेक बिंद्रा है जो अब विवादों में है.

पैसा कमाना गलत नहीं, लेकिन गलत हो कर पैसा कमाना गलत है. यह इस बात पर भी डिपैंड करता है कि आप का मीडियम क्या है और उन मीडियमों से आप कैसे सक्सैस हासिल करते हैं. आजकल यूथ ज्यादा और जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं. सब को बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमना है, बड़ा घर चाहिए, नाम चाहिए, इज्जत चाहिए और ये सब मिल जाए तो एक अच्छी लड़की या लड़का किसे नहीं चाहिए भला. पर यह होगा कैसे, यह सवाल बारबार परेशान करता है. कभी यह सवाल नैया पार तो लगाता है पर बहुत बार इस से जू?ा रहा यूथ जल्दी किसी के लपेटे में भी आ जाता है.

यही कारण भी है कि इन को लपेटे में लेने के लिए सोशल मीडिया पर गुलाटियां खाने वाले मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर भरे पड़े हैं, जो खुलमखुल्ला लाखों रुपए महीने के कमाने के तरीके बताते हैं. आखिर ये शौर्टकट तरीके हैं क्या और इन की संभावनाएं कितनी हैं? क्या ये तरीके सही भी हैं?

इन्फ्लुएंसर विवेक बिंद्रा की कला

41 साल का विवेक बिंद्रा खुद को ‘डा. विवेक बिंद्रा : मोटिवेशनल स्पीकर’ के नाम से इंट्रोड्यूस करता है. इसी नाम से उस ने यूट्यूब चैनल बनाया हुआ है. इस चैनल में लगभग 2 करोड़ 13 लाख सब्सक्राइबर हैं. वहीं उस की हर वीडियो को लाखों लोग देखते हैं. सम?ा जा सकता है कि किस हद तक युवाओं के बीच इस ने पैठ बनाई है. इस के वीडियो के थंबनेल पर लिखा रहता है कि ‘फलाना अमीर कैसे बने’, ‘पैसों में खेलोगे’, ‘करोड़ों कैसे कमाएं’. यह युवा की इच्छा की नब्ज पर हाथ रखता है जिस के सपने वह युवा देखना शुरू कर देता है जिस की हलकी भूरी मूछदाढ़ी अभी आनी शुरू हुई है.

उस के बताए उदाहरण इतने लच्छेदार होते हैं कि कोई भी ट्रैप में फंस सकता है. जैसे, बिंद्रा ने एक वीडियो ‘चार्ली मुंगर’ पर बनाया है जो अमेरिकी बिसनैसमैन और इन्वैस्टर है. बिंद्रा बंदर की तरह उछलउछल कर बोलता है कि मुंगर 7 साल की उम्र में 10 घंटे ग्रौसरी की दुकान पर काम कर के पैसे कमाया करता था और वह 10 से 12 साल की उम्र तक आतेआते अपनी क्लास के बच्चों के होमवर्क, असाइनमैंट बना कर पैसे कमाया करता था.

बेसिरपैर के दावे

सवाल यह कि क्या किसी स्कूल का टीचर ऐसे तरीके बताएगा पैसे कमाने के? दूसरा, क्या कोई अपने 7 साल के बच्चे को इस उम्र में काम पर भेजेगा जब तक बड़ी मजबूरी न हो? दरअसल हकीकत यह है कि मुंगर ने अपनी टीनएज उम्र में जिस बफेट एंड सन ग्रौसरी शौप में काम किया उस का मालिक वारेन बफेट के दादा अर्नेस्ट पी बफेट थे. आगे चल कर मुंगर को वारेन बफेट की बर्कशायर हैथवे कंपनी का उपाध्यक्ष बनाया जाता है. मुंगर के दादा और पिता दोनों ही वकील थे. मुंगर का परिवार फाइनैंशियली व सोशियली रूप से पावरफुल था.

इस का प्रूफ यह कि जब चार्ली मुंगर ने अपने पिता के अल्मा मेटर,  हार्वर्ड लौ स्कूल में दाखिला लेने की कोशिश की तो डीन ने उसे ऐक्सैप्ट नहीं किया क्योंकि मुंगर ने ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी नहीं की थी लेकिन हार्वर्ड लौ के पूर्व डीन और मुंगर परिवार के मित्र रोस्को पाउंड के आपसी संबंध अच्छे थे और उन के बीच हुई बातचीत के बाद कालेज के डीन नरम पड़ गए. बिंद्रा अपने वीडियो में बातों को तोड़मरोड़ कर बताता है. यही उस की कला है.

बिंद्रा ने अपने चैनल पर दावा किया है कि वह 10 दिनों में एमबीए कराएगा. एमबीए सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं क्योंकि इस डिग्री की अहमियत जितनी है उस से ज्यादा इस की फीस है. फीस इतनी कि बाप को सड़क पर आना पड़ जाए. एमिटी और शारदा वाले तो खाल खींचे बगैर बात भी नहीं करते.

एमबीए एक प्रोफैशनल डिग्री है जिसे तभी कराया जा सकता है जब उस संस्था को यूजीसी से सर्टिफिकेशन प्राप्त हो. अगर आप किसी सरकारी यूनिवर्सिटी से भी एमबीए करने की सोचेंगे तो आप से पहले वह आप की क्वालिफिकेशन पूछेगी, आप का एग्जाम होगा और उस के बावजूद 1 प्रतिशत चांस है कि आप को पढ़ने को मिले वह भी तब जब इस की फीस दो से तीन लाख रुपए देने की आप में हिम्मत हो.

सवाल यह कि 2 साल का कोर्स 10 दिनों में औनलाइन कोई कैसे करा सकता है? कोई करा सकता है तो इस की औथेंटिसिटी क्या है? इस में क्या सिखाया जाता है और इस की कितनी वैल्यू है? सवाल यह भी कि क्या बिंद्रा कोई जादूगर है जो पलक झपकते एमबीए बना देता है?

असल में यह कोई एमबीए है ही नहीं. विवेक बिंद्रा, जो यूट्यूबर कम और एंटरप्रेन्योर ज्यादा कहलवाना पसंद करता है, का ‘बड़ा बिजनैस प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी है जो गोलमोल बातें कर बिजनैस स्ट्रैटेजी सिखाता है. वह मल्टी मार्केटिंग के नाम पर कोर्स बेचता है और पैसे कमाने का तरीका बताता है. यानी, आप का हजारों रुपए इस कोर्स में फंस चुका है और अगर अपना पैसा निकालना चाहते हैं तो और लोगों को इस जाल में फंसाइए. इसे ही पिरामिड स्कीम कहा जाता है.

इसे और आसान भाषा में सम?ाना है तो आप ने यूनिवर्सिटी, कालेज, स्कूल और नुक्कड़ों के आसपास सूटबूट पहने, टाई लगाए कुछ युवाओं को कोनोंखोंपचों में कुछ खुसरफुसर करते देखा होगा. ये लोग नैटवर्किंग मार्केट वाले कहलाते हैं. लंबीचौड़ी हांकते हैं, ?ाटपट अमीर बनने के नुस्खे बांटते हैं. आज बाइक-कार, कलपरसों मकान सब 10 मिनट की बात में दिलाने के सपने दिखा देते हैं. इन का लैवल डायमंड कैटेगरी तक बनने का होता है जो सब से ऊंचा पद होता है, जो ऊपर बैठ कर मलाई खाता है.

नाकामयाबी की गिरफ्त

विवेक बिंद्रा को देखनेसुनने वाले वे नौजवान हैं जो अपनेआप को जीवन में नाकामयाब सम?ाते हैं. उन्हें यह बताया जाता है कि बिजनैस से गरीब, अनपढ़ आदमी भी इन्वैस्टमैंट कर के महीने के लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकता है, एक कामयाब एंटरप्रेन्योर बन सकता है. बल्कि, सच यह है कि इन के पास कामयाब लोगों का कोई उदाहरण नहीं दिखता और जिसे सामने लाया जाता है वह खुद इन में से ही एक होता है. इन की भाषा बिलकुल दस का बीस, बीस का पचास, पचास का सौ जैसी होती है, बिलकुल वैसी जैसे दिल्ली के लालकिले के सामने लगने वाले चोर बाजार में मुंह में गुटका दबाए 20-21 साल का लड़का अपना सामान बेचने के लिए चिल्लाता है.

फैक्ट यह है कि देश में बेरोजगारी पिछले 50 वर्षों में आज सब से अधिक है. जिस हिसाब से जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है उस के हिसाब से नौकरियों को नहीं बढ़ाया गया है. बड़ीबड़ी कंपनियां सरकारी क्षेत्र और छोटे व्यापारियों के बाजार पर नियंत्रण के लिए अपने बाजार का विस्तार करने में लगे हुए हैं.

इस का मतलब यह हुआ कि एक आदमी की कामयाबी हजारोंलाखों लोगों की बरबादी से गुजरती है. उदहारण के लिए एक कुरसी है और हजारों लोगों से पूछा जाता है आप को कितनी चाहिए. हरेक व्यक्ति एक ही बोलता है क्योंकि चाहिए उसे एक ही और वह रेस में दौड़ पड़ता है. दौड़ के बाद एक व्यक्ति को कुरसी मिलती है और बाकी लोग बाहर हो जाते हैं. बिजनैस तभी चलेगा जब बाकियों का बिजनैस कम हो या वे बरबाद हो जाएं क्योंकि दर्शक और उपभोक्ताओं की संख्या सीमित है.

बाजार के इसी नियम से कई लोग बनते हैं और करोड़ों लोग बिखरते हैं. ऐसी समस्याओं के बीच विवेक बिंद्रा जैसे लोग ठगी का जाल बुन कर सैकड़ोंकरोड़ों का मुनाफा बनाते हैं. आजकल स्टार्टअप, एंटरप्रेन्योर का शोर मचा पड़ा है. सब को रातोंरात स्टार बनाने की बात की जा रही है. वैसे ही जैसे आप इंस्टाग्राम पर अपनी तसवीर के साथ शाहरुख खान का गाना लगा कर फील करते हैं और हकीकत उस से बहुत अलग होती है.

टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि भारत के सब से बड़े बिजनैसमेन माने जाते हैं. ये बड़े कारखाने चलाते हैं, प्रोडक्शन करते हैं, कुछ मैटीरियल तैयार करते हैं जिन्हें लोग कंज्यूम करते हैं जिस पर लोग मुनाफा कमाते हैं. बिंद्रा की कंपनी कोई प्रोडक्शन नहीं करती. वह लोगों को बिजनैस आइडिया बेच कर अपना धंधा चलाती है.

विवेक बिंद्रा आज के समय में जन्मे बेरोजगारों को भटकाने का काम करता है. यह व्यक्ति मार्केट में जोखिम उठा कर लोगों को पैसे लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, इस में गलत नहीं पर उस के बाद उन की बदहाली से अपना मुंह फेर लेना किसी धोखे से कम नहीं. आप यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो देख सकते हैं जिन में लोगों का रुपया वापस नहीं मिलने की बात सामने आती है. ऐसी परिस्थिति में लोग और डिप्रैशन का शिकार होते हैं.

विवेक बिंद्रा एक न्यूज चैनल में इंटरव्यू देते कहता है, ‘‘बाजार को जो चाहिए वह हमारा स्कूली सिस्टम नहीं दे पाता.’’ सही है स्कूल में हर चीज नहीं सिखाई जाती, बेशक, यह लूटमार का अड्डा नहीं बन सकता, फ्रौड करने की दुकान तो बिलकुल नहीं बनना चाहिए. स्कूलों में 10 दिनों में एमबीए बनना और बनाने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती.

धर्म के नाम पर सब बिकता है

बिंद्रा जैसे लोग अपने व्यापार में धर्म व आस्था का भरपूर इस्तेमाल करना जानते हैं जिस से लोग इन की गलत बातों का भी सही मतलब सम?ों. यह एक तरह का जस्टिफिकेशन बन जाता है जिसे लोग ऐक्सैप्ट कर लेते हैं. हकीकत में यह इन के जाल बिछाने का एक रास्ता है. धर्म के मामले में यूथ टची होने लगा है. उन्हें मूर्ख बनाना पहले से कहीं आसान हो गया है जिस का फायदा इन्फ्लुएंसर उठाने लगे हैं. (मुक्ता के दिसंबर 2023 इशू में एल्विश यादव का उदाहरण इसी संबंध में विस्तार से बताया गया).

दरअसल, पढ़नेलिखने की आदत कम होने से युवाओं की सोचनेसम?ाने की क्षमता कम होती जा रही है. वह किसी भी बेबुनियादी बात को सच मान लेते हैं खासकर तब जब उन्हें इसे धर्म के रैपर में लपेट कर दिया गया हो.

विवेक बिंद्रा वर्णव्यवस्था के संबंध में एक वायरल वीडियो में कहता है कि समाज में कुछ लोग आदेश को पालन करवाने और कुछ लोग आदेश का पालन करने में ज्यादा सक्षम होते हैं. एक तरफ आरक्षण को बिंद्रा गलत मानता है और दूसरी तरफ जाति आधारित शोषण पर अपनी चुप्पी बनाए रखता है. हकीकत में इस का जाति, गरीबी और किसी भी कारण से पिछड़े लोगों की समस्या से कोई लेनादेना नहीं है बल्कि हर साल यह अपने मुनाफे को कैसे कई गुना बढ़ा सके, यह इस की प्रायोरिटी रहती है.

घरेलू विवाद में फंसा

आज विवेक बिंद्रा अपनी निजी जिंदगी के कारण भी सुर्खियों में बना पड़ा है. 6 दिसंबर, 2023 को वह अपनी दूसरी पत्नी यानिका से विवाह करता है, जिस के अगले दिन बिंद्रा पर अपनी पत्नी से मारपीट और बदसलूकी का आरोप लगता है. एक वीडियो वायरल है जिस में यानिका बिंद्रा से उसे जाने देने की गुहार लगाती दिखाई दे रही है.

पहली पत्नी गीतिका के साथ भी बिंद्रा पर मारपीट करने का आरोप लगा था जिस के बाद उस ने बिंद्रा से तलाक ले लिया था. याद रहे, बिंद्रा एक मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर है जो युवाओं को ‘मोटिवेट’ करता है. अब सम?ों पत्नी पर डोमैस्टिक वायलैंस करने वाला कैसे बड़ेबड़े सैमिनारों के स्टेज पर फर्जी बातें करता रहा होगा? बिंद्रा अपनी दोनों पत्नियों के साथ मारपीट का आरोपी है. कई लोगों ने इस पर फ्रौड करने का आरोप लगाया है.

फ्रौड करने का आरोप

महेशवरी पेरी, जो ‘360 कैरियर’ के संस्थापक हैं, बताते हैं कि बिंद्रा की कंपनी की एक साल की कमाई 172 करोड़ रुपए है और 2 साल में कंपनी ने 308 करोड़ रुपए कमाए हैं. यह एक मल्टीलैवल मार्केटिंग कंपनी है. यह लोगों से ऐसे वादे करता है जिन को पूरा नहीं किया जा सकता. यह लोगों को महीने के लाख से 20 लाख कमाने का तरीका बताता है जबकि इस के खुद के एंपलौय मात्र 20-30 हजार रुपए महीने में काम कर रहे हैं.

इन की बातों में आप को एमबीए, एंटरप्रेन्योर, इंटरनैशनल कंसल्टैंट जैसे शब्द दिखेंगे जो छोटे शहरों के युवाओं के लिए बड़े सपने जैसा है. बिंद्रा की दुकान सपने बेच कर चलती है क्योंकि उस के बिना यह चलेगी ही नहीं. सोचिए, इस की जगह अगर वह स्किल डैवलपमैंट का इस्तेमाल करता तो कोई इतना ध्यान ही न देता.

सोशल मीडिया ने रास्ता दिखाने से ज्यादा लोगों को भटकाया है. जो सोशल मीडिया हमारी ताकत हो सकता था वह आज सोसाइटी को कमजोर व खोखला कर रहा है. लोग अपने आसपास के जीवन से दूर होते जा रहे हैं. लोगों को अकेला रहना बेहतर लगने लगा है.

देश में शिक्षा की स्थिति काफी खराब है. स्कूल पूरा होने से पहले ही स्टूडैंट्स का एक बड़ा हिस्सा बाहर निकल जाता है. पढ़ेलिखे लोगों को भी अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है. कहने का मतलब एकदम साफ यह है कि देश में कोई ऐसा सिस्टम ही नहीं है जो युवाओं को रास्ता दिखा सके और इसी का फायदा बिंद्रा जैसे इन्फ्लुएंसर उठा रहे हैं.

सा कमाना गलत नहीं, लेकिन गलत हो कर पैसा कमाना गलत है. यह इस बात पर भी डिपैंड करता है कि आप का मीडियम क्या है और उन मीडियमों से आप कैसे सक्सैस हासिल करते हैं. आजकल यूथ ज्यादा और जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं. सब को बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमना है, बड़ा घर चाहिए, नाम चाहिए, इज्जत चाहिए और ये सब मिल जाए तो एक अच्छी लड़की या लड़का किसे नहीं चाहिए भला. पर यह होगा कैसे, यह सवाल बारबार परेशान करता है. कभी यह सवाल नैया पार तो लगाता है पर बहुत बार इस से जूझ रहा यूथ जल्दी किसी के लपेटे में भी आ जाता है.

यही कारण भी है कि इन को लपेटे में लेने के लिए सोशल मीडिया पर गुलाटियां खाने वाले मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर भरे पड़े हैं, जो खुलमखुल्ला लाखों रुपए महीने के कमाने के तरीके बताते हैं. आखिर ये शौर्टकट तरीके हैं क्या और इन की संभावनाएं कितनी हैं? क्या ये तरीके सही भी हैं?

इन्फ्लुएंसर विवेक बिंद्रा की कला

41 साल का विवेक बिंद्रा खुद को ‘डा. विवेक बिंद्रा : मोटिवेशनल स्पीकर’ के नाम से इंट्रोड्यूस करता है. इसी नाम से उस ने यूट्यूब चैनल बनाया हुआ है. इस चैनल में लगभग 2 करोड़ 13 लाख सब्सक्राइबर हैं. वहीं उस की हर वीडियो को लाखों लोग देखते हैं. समझ जा सकता है कि किस हद तक युवाओं के बीच इस ने पैठ बनाई है. इस के वीडियो के थंबनेल पर लिखा रहता है कि ‘फलाना अमीर कैसे बने’, ‘पैसों में खेलोगे’, ‘करोड़ों कैसे कमाएं’. यह युवा की इच्छा की नब्ज पर हाथ रखता है जिस के सपने वह युवा देखना शुरू कर देता है जिस की हलकी भूरी मूछदाढ़ी अभी आनी शुरू हुई है.

उस के बताए उदाहरण इतने लच्छेदार होते हैं कि कोई भी ट्रैप में फंस सकता है. जैसे, बिंद्रा ने एक वीडियो ‘चार्ली मुंगर’ पर बनाया है जो अमेरिकी बिसनैसमैन और इन्वैस्टर है. बिंद्रा बंदर की तरह उछलउछल कर बोलता है कि मुंगर 7 साल की उम्र में 10 घंटे ग्रौसरी की दुकान पर काम कर के पैसे कमाया करता था और वह 10 से 12 साल की उम्र तक आतेआते अपनी क्लास के बच्चों के होमवर्क, असाइनमैंट बना कर पैसे कमाया करता था.

बेसिरपैर के दावे

सवाल यह कि क्या किसी स्कूल का टीचर ऐसे तरीके बताएगा पैसे कमाने के? दूसरा, क्या कोई अपने 7 साल के बच्चे को इस उम्र में काम पर भेजेगा जब तक बड़ी मजबूरी न हो? दरअसल हकीकत यह है कि मुंगर ने अपनी टीनएज उम्र में जिस बफेट एंड सन ग्रौसरी शौप में काम किया उस का मालिक वारेन बफेट के दादा अर्नेस्ट पी बफेट थे. आगे चल कर मुंगर को वारेन बफेट की बर्कशायर हैथवे कंपनी का उपाध्यक्ष बनाया जाता है. मुंगर के दादा और पिता दोनों ही वकील थे. मुंगर का परिवार फाइनैंशियली व सोशियली रूप से पावरफुल था.

इस का प्रूफ यह कि जब चार्ली मुंगर ने अपने पिता के अल्मा मेटर,  हार्वर्ड लौ स्कूल में दाखिला लेने की कोशिश की तो डीन ने उसे ऐक्सैप्ट नहीं किया क्योंकि मुंगर ने ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी नहीं की थी लेकिन हार्वर्ड लौ के पूर्व डीन और मुंगर परिवार के मित्र रोस्को पाउंड के आपसी संबंध अच्छे थे और उन के बीच हुई बातचीत के बाद कालेज के डीन नरम पड़ गए. बिंद्रा अपने वीडियो में बातों को तोड़मरोड़ कर बताता है. यही उस की कला है.

बिंद्रा ने अपने चैनल पर दावा किया है कि वह 10 दिनों में एमबीए कराएगा. एमबीए सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं क्योंकि इस डिग्री की अहमियत जितनी है उस से ज्यादा इस की फीस है. फीस इतनी कि बाप को सड़क पर आना पड़ जाए. एमिटी और शारदा वाले तो खाल खींचे बगैर बात भी नहीं करते.

एमबीए एक प्रोफैशनल डिग्री है जिसे तभी कराया जा सकता है जब उस संस्था को यूजीसी से सर्टिफिकेशन प्राप्त हो. अगर आप किसी सरकारी यूनिवर्सिटी से भी एमबीए करने की सोचेंगे तो आप से पहले वह आप की क्वालिफिकेशन पूछेगी, आप का एग्जाम होगा और उस के बावजूद 1 प्रतिशत चांस है कि आप को पढ़ने को मिले वह भी तब जब इस की फीस दो से तीन लाख रुपए देने की आप में हिम्मत हो.

सवाल यह कि 2 साल का कोर्स 10 दिनों में औनलाइन कोई कैसे करा सकता है? कोई करा सकता है तो इस की औथेंटिसिटी क्या है? इस में क्या सिखाया जाता है और इस की कितनी वैल्यू है? सवाल यह भी कि क्या बिंद्रा कोई जादूगर है जो पलक झपकते एमबीए बना देता है?

असल में यह कोई एमबीए है ही नहीं. विवेक बिंद्रा, जो यूट्यूबर कम और एंटरप्रेन्योर ज्यादा कहलवाना पसंद करता है, का ‘बड़ा बिजनैस प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी है जो गोलमोल बातें कर बिजनैस स्ट्रैटेजी सिखाता है. वह मल्टी मार्केटिंग के नाम पर कोर्स बेचता है और पैसे कमाने का तरीका बताता है. यानी, आप का हजारों रुपए इस कोर्स में फंस चुका है और अगर अपना पैसा निकालना चाहते हैं तो और लोगों को इस जाल में फंसाइए. इसे ही पिरामिड स्कीम कहा जाता है.

इसे और आसान भाषा में सम?ाना है तो आप ने यूनिवर्सिटी, कालेज, स्कूल और नुक्कड़ों के आसपास सूटबूट पहने, टाई लगाए कुछ युवाओं को कोनोंखोंपचों में कुछ खुसरफुसर करते देखा होगा. ये लोग नैटवर्किंग मार्केट वाले कहलाते हैं. लंबीचौड़ी हांकते हैं, झटपट अमीर बनने के नुस्खे बांटते हैं. आज बाइक-कार, कलपरसों मकान सब 10 मिनट की बात में दिलाने के सपने दिखा देते हैं. इन का लैवल डायमंड कैटेगरी तक बनने का होता है जो सब से ऊंचा पद होता है, जो ऊपर बैठ कर मलाई खाता है.

नाकामयाबी की गिरफ्त

विवेक बिंद्रा को देखनेसुनने वाले वे नौजवान हैं जो अपनेआप को जीवन में नाकामयाब सम?ाते हैं. उन्हें यह बताया जाता है कि बिजनैस से गरीब, अनपढ़ आदमी भी इन्वैस्टमैंट कर के महीने के लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकता है, एक कामयाब एंटरप्रेन्योर बन सकता है. बल्कि, सच यह है कि इन के पास कामयाब लोगों का कोई उदाहरण नहीं दिखता और जिसे सामने लाया जाता है वह खुद इन में से ही एक होता है. इन की भाषा बिलकुल दस का बीस, बीस का पचास, पचास का सौ जैसी होती है, बिलकुल वैसी जैसे दिल्ली के लालकिले के सामने लगने वाले चोर बाजार में मुंह में गुटका दबाए 20-21 साल का लड़का अपना सामान बेचने के लिए चिल्लाता है.

फैक्ट यह है कि देश में बेरोजगारी पिछले 50 वर्षों में आज सब से अधिक है. जिस हिसाब से जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है उस के हिसाब से नौकरियों को नहीं बढ़ाया गया है. बड़ीबड़ी कंपनियां सरकारी क्षेत्र और छोटे व्यापारियों के बाजार पर नियंत्रण के लिए अपने बाजार का विस्तार करने में लगे हुए हैं.

इस का मतलब यह हुआ कि एक आदमी की कामयाबी हजारोंलाखों लोगों की बरबादी से गुजरती है. उदहारण के लिए एक कुरसी है और हजारों लोगों से पूछा जाता है आप को कितनी चाहिए. हरेक व्यक्ति एक ही बोलता है क्योंकि चाहिए उसे एक ही और वह रेस में दौड़ पड़ता है. दौड़ के बाद एक व्यक्ति को कुरसी मिलती है और बाकी लोग बाहर हो जाते हैं. बिजनैस तभी चलेगा जब बाकियों का बिजनैस कम हो या वे बरबाद हो जाएं क्योंकि दर्शक और उपभोक्ताओं की संख्या सीमित है.

बाजार के इसी नियम से कई लोग बनते हैं और करोड़ों लोग बिखरते हैं. ऐसी समस्याओं के बीच विवेक बिंद्रा जैसे लोग ठगी का जाल बुन कर सैकड़ोंकरोड़ों का मुनाफा बनाते हैं. आजकल स्टार्टअप, एंटरप्रेन्योर का शोर मचा पड़ा है. सब को रातोंरात स्टार बनाने की बात की जा रही है. वैसे ही जैसे आप इंस्टाग्राम पर अपनी तसवीर के साथ शाहरुख खान का गाना लगा कर फील करते हैं और हकीकत उस से बहुत अलग होती है.

टाटा, अंबानी, बिड़ला आदि भारत के सब से बड़े बिजनैसमेन माने जाते हैं. ये बड़े कारखाने चलाते हैं, प्रोडक्शन करते हैं, कुछ मैटीरियल तैयार करते हैं जिन्हें लोग कंज्यूम करते हैं जिस पर लोग मुनाफा कमाते हैं. बिंद्रा की कंपनी कोई प्रोडक्शन नहीं करती. वह लोगों को बिजनैस आइडिया बेच कर अपना धंधा चलाती है.

विवेक बिंद्रा आज के समय में जन्मे बेरोजगारों को भटकाने का काम करता है. यह व्यक्ति मार्केट में जोखिम उठा कर लोगों को पैसे लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, इस में गलत नहीं पर उस के बाद उन की बदहाली से अपना मुंह फेर लेना किसी धोखे से कम नहीं. आप यूट्यूब पर ऐसे कई वीडियो देख सकते हैं जिन में लोगों का रुपया वापस नहीं मिलने की बात सामने आती है. ऐसी परिस्थिति में लोग और डिप्रैशन का शिकार होते हैं.

विवेक बिंद्रा एक न्यूज चैनल में इंटरव्यू देते कहता है, ‘‘बाजार को जो चाहिए वह हमारा स्कूली सिस्टम नहीं दे पाता.’’ सही है स्कूल में हर चीज नहीं सिखाई जाती, बेशक, यह लूटमार का अड्डा नहीं बन सकता, फ्रौड करने की दुकान तो बिलकुल नहीं बनना चाहिए. स्कूलों में 10 दिनों में एमबीए बनना और बनाने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती.

धर्म के नाम पर सब बिकता है

बिंद्रा जैसे लोग अपने व्यापार में धर्म व आस्था का भरपूर इस्तेमाल करना जानते हैं जिस से लोग इन की गलत बातों का भी सही मतलब समझें. यह एक तरह का जस्टिफिकेशन बन जाता है जिसे लोग ऐक्सैप्ट कर लेते हैं. हकीकत में यह इन के जाल बिछाने का एक रास्ता है. धर्म के मामले में यूथ टची होने लगा है. उन्हें मूर्ख बनाना पहले से कहीं आसान हो गया है जिस का फायदा इन्फ्लुएंसर उठाने लगे हैं. (मुक्ता के दिसंबर 2023 इशू में एल्विश यादव का उदाहरण इसी संबंध में विस्तार से बताया गया).

दरअसल, पढ़नेलिखने की आदत कम होने से युवाओं की सोचनेसमझने की क्षमता कम होती जा रही है. वह किसी भी बेबुनियादी बात को सच मान लेते हैं खासकर तब जब उन्हें इसे धर्म के रैपर में लपेट कर दिया गया हो.

विवेक बिंद्रा वर्णव्यवस्था के संबंध में एक वायरल वीडियो में कहता है कि समाज में कुछ लोग आदेश को पालन करवाने और कुछ लोग आदेश का पालन करने में ज्यादा सक्षम होते हैं. एक तरफ आरक्षण को बिंद्रा गलत मानता है और दूसरी तरफ जाति आधारित शोषण पर अपनी चुप्पी बनाए रखता है. हकीकत में इस का जाति, गरीबी और किसी भी कारण से पिछड़े लोगों की समस्या से कोई लेनादेना नहीं है बल्कि हर साल यह अपने मुनाफे को कैसे कई गुना बढ़ा सके, यह इस की प्रायोरिटी रहती है.

घरेलू विवाद में फंसा

आज विवेक बिंद्रा अपनी निजी जिंदगी के कारण भी सुर्खियों में बना पड़ा है. 6 दिसंबर, 2023 को वह अपनी दूसरी पत्नी यानिका से विवाह करता है, जिस के अगले दिन बिंद्रा पर अपनी पत्नी से मारपीट और बदसलूकी का आरोप लगता है. एक वीडियो वायरल है जिस में यानिका बिंद्रा से उसे जाने देने की गुहार लगाती दिखाई दे रही है.

पहली पत्नी गीतिका के साथ भी बिंद्रा पर मारपीट करने का आरोप लगा था जिस के बाद उस ने बिंद्रा से तलाक ले लिया था. याद रहे, बिंद्रा एक मोटिवेशनल इन्फ्लुएंसर है जो युवाओं को ‘मोटिवेट’ करता है. अब समझें पत्नी पर डोमैस्टिक वायलैंस करने वाला कैसे बड़ेबड़े सैमिनारों के स्टेज पर फर्जी बातें करता रहा होगा? बिंद्रा अपनी दोनों पत्नियों के साथ मारपीट का आरोपी है. कई लोगों ने इस पर फ्रौड करने का आरोप लगाया है.

फ्रौड करने का आरोप

महेशवरी पेरी, जो ‘360 कैरियर’ के संस्थापक हैं, बताते हैं कि बिंद्रा की कंपनी की एक साल की कमाई 172 करोड़ रुपए है और 2 साल में कंपनी ने 308 करोड़ रुपए कमाए हैं. यह एक मल्टीलैवल मार्केटिंग कंपनी है. यह लोगों से ऐसे वादे करता है जिन को पूरा नहीं किया जा सकता. यह लोगों को महीने के लाख से 20 लाख कमाने का तरीका बताता है जबकि इस के खुद के एंपलौय मात्र 20-30 हजार रुपए महीने में काम कर रहे हैं.

इन की बातों में आप को एमबीए, एंटरप्रेन्योर, इंटरनैशनल कंसल्टैंट जैसे शब्द दिखेंगे जो छोटे शहरों के युवाओं के लिए बड़े सपने जैसा है. बिंद्रा की दुकान सपने बेच कर चलती है क्योंकि उस के बिना यह चलेगी ही नहीं. सोचिए, इस की जगह अगर वह स्किल डैवलपमैंट का इस्तेमाल करता तो कोई इतना ध्यान ही न देता.

सोशल मीडिया ने रास्ता दिखाने से ज्यादा लोगों को भटकाया है. जो सोशल मीडिया हमारी ताकत हो सकता था वह आज सोसाइटी को कमजोर व खोखला कर रहा है. लोग अपने आसपास के जीवन से दूर होते जा रहे हैं. लोगों को अकेला रहना बेहतर लगने लगा है.

देश में शिक्षा की स्थिति काफी खराब है. स्कूल पूरा होने से पहले ही स्टूडैंट्स का एक बड़ा हिस्सा बाहर निकल जाता है. पढ़ेलिखे लोगों को भी अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है. कहने का मतलब एकदम साफ यह है कि देश में कोई ऐसा सिस्टम ही नहीं है जो युवाओं को रास्ता दिखा सके और इसी का फायदा बिंद्रा जैसे इन्फ्लुएंसर उठा रहे हैं.

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