साबिर बिजनौर जिले के एक शहर में अपने परिवार के साथ रहता था. घर में बीवी शबनम और 2 बेटों तसलीम और शमीम के अलावा कोई और नहीं था.

साबिर का लकड़ी पर नक्काशी करने का कारोबार था. वह लकड़ी की जूलरी बनाता और उन पर नक्काशी कर के खूबसूरत डिजाइन तैयार करता था, जिसे वह ऐक्सपोर्ट कर के अच्छाखासा पैसा कमा लेता था.

घर में किसी चीज की कोई कमी न थी. उस के दोनों बेटे भी बड़े होशियार थे और बचपन से ही उस के काम में हाथ बंटाते थे. यही वजह थी कि जवान होतेहोते वे भी अच्छे कारीगर बन गए थे.

साबिर बचपन से ही अपने बड़े बेटे तसलीम से ज्यादा प्यार करता था. इस की वजह यह थी कि छोटा बेटा शमीम पिछले कुछ समय से आवारा लड़कों की संगत में रहता था और खूब फुजूलखर्ची करता था, जबकि तसलीम अपने बाप की हर बात मानता था और बिना उन की मरजी के कोई काम नहीं करता था.

ज्योंज्यों छोटा बेटा शमीम बड़ा होता जा रहा था, उस के खर्चे भी बढ़ते जा रहे थे. आवारा दोस्तों ने उसे निकम्मा बना दिया था. बाप की डांटडपट से तंग आ कर वह अपने दोस्तों के साथ मुरादाबाद चला गया और काफी अरसे तक वहीं रहा. वह जो कमाता था उसे अपने आवारा दोस्तों के साथ रह कर घूमनेफिरने पर खर्च कर देता था.

बड़ा बेटा तसलीम अपने अब्बा के साथ रह कर उन के हर काम में हाथ बंटाता था, जिस की वजह से उन का कामधंधा जोरों पर था और खूब तरक्की हो रही थी. अब्बा ने अपने भाई की बेटी सायरा से तसलीम का रिश्ता तय कर दिया था.

कुछ महीनों के बाद तसलीम की शादी थी, इसलिए छोटा बेटा शमीम भी घर आया हुआ था. घर में खुशी का माहौल था, पर शमीम मुरादाबाद जा कर और ज्यादा बिगड़ गया था. वह बदचलन भी हो गया था.

घर में मेहमानों का आनाजाना शुरू हो गया था. शादी में कुछ दिन बाकी रह गए थे. शमीम अपने चाचा के घर अपनी होने वाली भाभी सायरा से मिलने गया था.

जब शमीम घर पहुंचा, तो घर पर कोई नहीं था. बस, सायरा ही अकेली वहां थी, बाकि सब लोग शादी की खरीदारी के लिए बाजार गए थे.

सायरा शमीम को जानती थी, इसलिए उस ने शमीम को अंदर आने दिया और उसे बैठा कर चाय बनाने रसोईघर में चली गई.

कुछ देर बाद जब सायरा चाय बना कर वापस आई, तो पसीने की बूंदें उस के चेहरे पर मोतियों की तरह चमक रही थीं. रसोईघर की गरमी की वजह से उस का चेहरा सुर्ख हो गया था. गुलाबी होंठ ऐसे खिल रहे थे, जैसे कोई गुलाब हो.

शमीम सायरा को एकटक देखता रहा. इतनी हसीन लड़की को देख कर उस के अंदर का शैतान जाग उठा.

शमीम के दिल में हलचल मच चुकी थी. उस ने बिना वक्त गंवाए सायरा को अपनी बांहों में भर लिया और उस के होंठों पर चुंबनों की बौछार कर दी. उस की यह हरकत देख कर सायरा ने शोर मचाना शुरू कर दिया.

आवाज सुन कर आसपास के लोग आ गए और शमीम को पकड़ कर उस के घर ले गए और पूरा वाकिआ साबिर को बताना शुरू कर दिया.

साबिर ने शमीम को डांटते हुए घर से धक्के मार कर भगा दिया और बाद में अपनी जायदाद से भी बेदखल कर दिया. उस ने अपना घर अपने बड़े बेटे तसलीम के नाम कर दिया.

अगले दिन तसलीम की बरात जाने वाली थी. घर के सभी लोग अपनेअपने काम में मसरूफ थे कि तभी घर के पास एक गली से तसलीम के चीखने की आवाज आई.

लोग उधर दौड़े तो देखा कि तसलीम खून में लथपथ पड़ा कराह रहा था और उस के पास हाथ में चाकू लिए शमीम खड़ा हुआ चिल्ला रहा था, ‘‘मेरा हिस्सा तू कैसे ले सकता है? यह घर मेरा भी है. तू अकेला इस का मालिक कैसे बन सकता है? मैं अपने हिस्से के लिए किसी की भी जान ले सकता हूं…’’

किसी ने फौरन पुलिस को फोन कर दिया और कुछ लोगों ने हिम्मत कर के शमीम को पकड़ लिया.

तसलीम को अस्पताल में भरती कराया गया, पर कुछ ही देर में ही उस ने दम तोड़ दिया.

शमीम को पुलिस ने गिरफ्तार कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया.

बदनसीब बाप की दोनों औलादें उस से जुदा हो गईं. एक जेल पहुंच गया और दूसरा दुनिया ही छोड़ कर चला गया.

साबिर इस घटना के लिए खुद को कुसूरवार मान रहा था और लोगों से कहता फिरता था, ‘‘मैं ने खुद अपने बेटे को मार डाला. छोटे बेटे का हिस्सा अगर बड़े बेटे के नाम न करता, तो आज वह उस के खून का प्यासा न होता और ऐसा कदम न उठाता…’’

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