किदवई नगर कालोनी में बड़ीबड़ी कोठियां बनी हुई थीं. इसी कालोनी में इंजीनियर नागेश साहब की भी एक कोठी थी. कोठी के आउटहाउस में बैजू अपनी बीवी मीना और 8 साल के बेटे संजू के साथ रहता था.

बैजू एक मजदूर था. वह ईंट, गिट्टी और बालू ढोने का काम करता था. उस की मजदूरी से घर का खर्च चलता था. लेकिन उसे शराब पीने की बुरी आदत थी. मजदूरी के मिले थोड़े रुपयों से भी वह ऐश कर लेता था. उसे अपनी बीवीबच्चे की परवाह नहीं थी.

बैजू की बीवी मीना को घर चलाने में बड़ी मुश्किलें होती थीं. इस वजह से वह अपने पति बैजू से चिढ़ी रहती थी. उसे बेटे संजू की परवरिश और पढ़ाई की फिक्र होती थी, लेकिन बैजू को बेटे की पढ़ाई की कोई चिंता नहीं थी.

मीना गोरी और खूबसूरत औरत थी. वह स्मार्ट और फुरतीली थी. उस की पतली कमर और लंबे रेशमी बाल सब को आकर्षित करते थे. वह हंसमुख और बिंदास थी. वह बनठन कर रहने की शौकीन थी. उस का पहनावा सलीकेदार था.

किदवई नगर कालोनी में किराए का घर ले कर रहना बैजू जैसे मजदूर के लिए मुमकिन नहीं था. इस कालोनी में घर का किराया बहुत ज्यादा था. नागेश साहब ने उसे अपनी कोठी के आउटहाउस में रहने को जगह दे दी थी.

नागेश साहब बैजू से किराया नहीं लेते थे. किराए के बदले में नागेश साहब की कोठी में बैजू की बीवी मीना कामवाली बाई की तरह काम करती थी. वह सुबहशाम घर के जूठे बरतन साफ कर देती थी, जिस से मेमसाहब को बननेसंवरने और पार्टियों में जाने की फुरसत मिल जाती थी. नागेश साहब और मेमसाहब दोनों बड़े खुश रहते थे. उन्हें मीना के रूप में नौकरानी जो मिल गई थी.

बैजू एक रात शराब पी कर घर लौटा था. इस से बैजू और मीना में जम कर लड़ाई हो गई थी.

‘‘मैं कहती हूं, तू कब सुधरेगा…’’ मीना ने बैजू से कहा.

‘‘मैं बिगड़ा ही कहां हूं. थोड़ी पी ली तो पहाड़ टूट गया क्या?’’ बैजू ने अपनी सफाई दी.

‘‘500 रुपए मजदूरी के मिलते हैं, जिन में से 300 रुपए की तू दारू पी गया. मुझे घर चलाने के लिए केवल 200 रुपए ही दिए. इतनी महंगाई में घर कैसे चलेगा?’’ मीना ने कहा.

‘‘घर चल जाएगा. हां, नवाबी चाहोगी तो वह नहीं होगा,’’ बैजू ने बेशर्मी से कहा.

इस बात पर बैजू और मीना के बीच हाथापाई हो गई. मीना ने बैजू के पीठ पर 2-4 जोरदार मुक्के मारे. बैजू ने भी मीना को पीट दिया.

संजू अम्मां और बापू की लड़ाई देख कर सहम गया. वह सुबक कर रोने लगा. तब जा कर मियांबीवी शांत हुए.

इसी कलह में सुबह हो गई थी. बैजू साइट पर मजदूरी करने चला गया था. मीना मेमसाहब के जूठे बरतन धो रही थी. मेमसाहब भी वहीं कुरसी पर बैठी थीं.

‘‘अरे मीना, कल रात बैजू के साथ तेरा झगड़ा हुआ था क्या? तुम दोनों के झगड़ने की जोरजोर से आवाजें आ रही थीं,’’ मेमसाहब ने पूछा.

‘‘हां, मेमसाहब. कल रात बैजू दारू पी कर आया था. वह मजदूरी के मिले सारे रुपए दारू में उड़ा देता है,’’ मीना ने उदास लहजे में कहा.

‘‘अरे मीना, इस में बैजू से लड़ने की क्या जरूरत थी. नागेश साहब भी तो क्लब में शराब पीते हैं. मैं ने उन से कभी कोई झगड़ावगड़ा नहीं किया. उलटे रात में उन का प्यार मुझ से बढ़ जाता है,’’ मेमसाहब ने मुसकरा कर कहा.

मेमसाहब की बात सुन कर मीना जलभुन गई और बोली, ‘‘हां मेमसाहब, नागेश साहब और बैजू में बड़ा फर्क है. नागेश साहब के पास क्या कमी है. उन के पास खूब दौलत है. वे क्लब में शराब पी सकते हैं. लेकिन बैजू को मजदूरी के मिले रुपयों से मेरे और संजू के सपने जुड़े हुए हैं. हम उन सपनों को मरते नहीं देख सकते हैं.’’

मीना ने मेमसाहब को लाजवाब कर दिया था. वह झटपट बरतन धो कर वहां से चली गई.

मीना ने संजू को नाश्ता करा कर स्कूल भेज दिया था. थोड़ी दूर संजू का स्कूल था. उस स्कूल में गरीब घरों के बच्चे पढ़ते थे. स्कूल में 2 ही कमरे थे. एक कमरे और आंगन से सटे बरामदे में बच्चों की क्लास चलती थी.

दूसरे कमरे में रामचंद्र फल वाले का फल का गोदाम था. गोदाम से फल की खुशबू आती रहती थी. बच्चे ललचाते रहते थे कि फल चुरा कर कैसे खाए जाएं. वे पढ़ाई पर पूरी तरह से ध्यान नहीं लगा पाते थे.

आज रामचंद्र फल वाले ने गोदाम में आम रखे थे. गोदाम से पके आम की रसीली खुशबू आ रही थी. संजू को आम खाने का मन करने लगा. वह गोदाम से आम चुरा कर खाने लगा. किसी बच्चे ने संजू की शिकायत सुनील सर से कर दी. चुरा कर आम खाने पर उन्होंने संजू को खूब डांट लगाई.

शाम को स्कूल के रास्ते बैजू काम पर से घर लौट रहा था. उसे स्कूल के पास सुनील सर मिल गए. उन्होंने संजू की आम चुरा कर खाने वाली बात बैजू से कह दी.

घर पहुंच कर बैजू छड़ी से संजू की पिटाई करने लगा, ‘‘और आम चुरा कर खाएगा.’’

संजू पिटाई से रोने लगा. मीना को संजू की छड़ी से पिटाई देखी नहीं गई. वह बैजू को कोसने लगी, ‘‘कभी बच्चे के लिए आम खरीद कर लाया नहीं, वह चुरा कर नहीं खाएगा तो क्या करेगा.’’

‘‘मेरी महंगे आम खरीदने की औकात नहीं है,’’ बैजू ने कहा.

‘‘और दारू पीने और मुरगा खाने की औकात तो है न,’’ मीना ने डपट कर कहा.

इस बात पर मीना और बैजू में मारपीट हो गई. दोनों एकदूसरे को थप्पड़ और मुक्के से मारने लगे. वे चीखचिल्ला भी रहे थे. संजू अम्मां और बापू के झगड़े से डर कर रोने लगा. कुछ देर बाद दोनों की लड़ाई शांत हुई.

अगली सुबह मीना नागेश साहब की कोठी में जूठे बरतन साफ कर रही थी. मेमसाहब वहीं कुरसी लगा कर बैठी थीं.

बरतन साफ कर मीना घर जाने लगी कि तभी मेमसाहब ने उसे रोक कर कहा, ‘‘मीना, ये लो 200 रुपए. बाजार से चिकन खरीद कर ला दो.’’

‘‘जी मेमसाहब, अभी जाती हूं,’’ मीना रुपए ले कर बाजार से चिकन लाने चली गई.

सब्जी मंडी के नुक्कड़ पर बादल की चिकन, ब्रैड और अंडे की दुकान थी. बादल गठीला नौजवान था. उसे बनठन कर रहना अच्छा लगता था. वह टीशर्ट और जींस पहनता था. उस के पास एक पुरानी मोटरसाइकिल थी, जिस से वह अपने किराए के घर से दुकान आताजाता था.

मीना बादल की दुकान पर आ गई. बादल ने मीना को देखते ही पूछा, ‘‘मीना, आज क्या चाहिए? अंडाब्रैड दे दूं क्या?’’ ‘‘नहीं बादल, सिर्फ एक किलो चिकन दे दो,’’ मीना ने कहा.

बादल ने झटपट उसे चिकन दे दिया. मीना ने उसे 200 रुपए दे दिए.

‘‘दोपहर में आओ न मीना, कुछ इधरउधर घूमेंगे. मैं दुकान पर बैठेबैठे बोर हो जाता हूं,’’ बादल ने मीना से कहा.

‘‘अच्छा, मैं दोपहर में आती हूं. लेकिन बादल, तुम्हारी दुकान तो दोपहर में बंद हो जाती है,’’ मीना ने कहा.

‘‘हां, तभी तो उस समय ही फुरसत मिलती है,’’ बादल ने कहा. मीना मुसकराते हुए चिकन ले कर चली गई.

मीना अकसर मेमसाहब के लिए चिकन और अंडाब्रैड लेने बादल की दुकान पर आती थी. बादल की मीना से दोस्ती हो गई थी.

धीरेधीरे बादल और मीना एकदूसरे को चाहने लगे थे. मीना बादल के गठीले बदन पर मरमिटी थी. मीना भी खूबसूरती में कहां कम थी. बादल उस की देह का दीवाना हो गया था. दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया.

दोपहर में बादल मीना का इंतजार करने लगा. कुछ ही देर में मीना आ गई. बादल मीना को मोटरसाइकिल पर बैठा कर एक ढाबे पर ले गया, जहां दोनों ने गरमागरम डोसा खाया. ढाबे से निकल कर बादल मीना को अपने घर ले गया.

कमरे में मीना पलंग पर लेट गई. उस के साथ बादल भी लेट गया. वह मीना को बांहों में भर कर चूमने लगा. मीना भी बादल को बेतहाशा चूमने लगी.

बादल मीना के उभारों को सहलाने लगा. वे दोनों पूरी तरह प्यार के सुर में आ गए थे. पलभर में दोनों सैक्स करने लगे. जब जिस्म की आग ठंडी हुई, तब दोनों अलग हुए. बादल ने मीना को मोटरसाइकिल से उस के घर के नजदीक छोड़ दिया.

महीने बीतते गए. अब सर्दियां आ गई थीं. जल्दी ही दीवाली आने वाली थी. इस सब के बावजूद बैजू को पिछले 3-4 दिन से काम नहीं मिल रहा था. उस के हाथ में रोज की तरह मजदूरी के पैसे नहीं आ रहे थे. उसे रोज दारू पी कर ऐश करने की आदत थी. वह बैठेबैठे जुगाड़ भिड़ाने लगा.

‘अरे हां, कालोनी के मोड़ के पास चाय वाले प्रभु को जूठे कपप्लेट धोने के लिए एक छोकरा चाहिए था. अपना संजू उस चाय की दुकान में कपप्लेट धो देगा. बदले में प्रभु चाय वाले से उसे 2,000 रुपया महीना देने को बोलूंगा,’ सोच कर बैजू खुशी से झूम उठा.

दूसरे दिन बैजू संजू को स्कूल न भेज कर अपने साथ प्रभु चाय वाले के पास ले गया.

‘‘प्रभु, तुम्हें अपनी दुकान में जूठे कपप्लेट धोने के लिए एक छोकरा चाहिए था न? मेरे बेटे संजू को दुकान में रख लो,’’ बैजू ने कहा.

‘‘हां, एक छोकरा तो चाहिए था. क्या मेरी दुकान में यह लड़का काम कर लेगा?’’ प्रभु चाय वाले ने संजू को देखते हुए पूछा.

‘‘हां, क्यों नहीं. मजदूर का बेटा है, काम आसानी से कर लेगा,’’ बैजू ने उसे भरोसा दिलाया.

‘‘ठीक है, संजू को आज से ही

काम पर लग जाने दो,’’ प्रभु चाय वाले ने कहा.

कुछ सकुचाते हुए बैजू ने प्रभु चाय वाले से कहा, ‘‘500 रुपए एडवांस चाहिए थे. संजू की पगार से काट लेना.’’

प्रभु चाय वाले ने बैजू पर शक करते हुए बड़ी मुश्किल से 500 रुपए दिए.

बैजू रुपए ले कर चला गया.

जब संजू दोपहर में घर नहीं लौटा, तो मीना घबरा गई. वह स्कूल में संजू को खोजने गई. स्कूल में सुनील सर ने बताया कि आज संजू स्कूल नहीं आया है. तब मीना और ज्यादा घबरा गई.

घबराई मीना कालोनी के मोड़ से हो कर घर लौट रही थी. अचानक उस की नजर प्रभु चाय वाले की दुकान पर पड़ी, जहां संजू जूठे कपप्लेट धो रहा था. यह देख कर वह हैरान रह गई. वह फौरन तेज कदमों से दुकान में चली गई.

‘‘संजू बेटे, यह क्या कर रहे हो?’’ मीना ने पूछा.

‘‘अम्मां, बापू ने मुझे स्कूल न भेज कर इस दुकान में काम पर लगा दिया है,’’ संजू ने बताया.

‘‘हां, बैजू सुबह इसे दुकान में छोड़ कर गया है,’’ प्रभु चाय वाले ने कहा.

यह सुन कर मीना को बैजू पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन वह संभल कर प्रभु चाय वाले से बोली, ‘‘संजू को घर जाने दीजिए.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है. आज ही इस छोकरे का बाप 500 रुपए एडवांस में ले कर गया है,’’ प्रभु चाय वाले को गुस्सा आया.

‘‘संजू को जाने दीजिए. कल मैं आप के रुपए लौटा दूंगी,’’ मीना ने प्रभु चाय वाले से गुजारिश की.

‘‘ठीक है, छोकरे को ले जाओ, लेकिन कल मेरे रुपए मिल जाने चाहिए,’’ प्रभु चाय वाले ने मीना को धमकाते हुए कहा.

मीना संजू को दुकान से वापस ले कर चली आई थी. रात को बैजू दारू पी कर घर लौटा. उसे देखते ही मीना को काफी गुस्सा आया, लेकिन वह गुस्से को दबा गई.

मीना के चेहरे पर अब कोई उतारचढ़ाव नहीं था. उस ने मन ही मन एक फैसला ले लिया था, जिसे उस ने अपने सीने में छिपा कर रख लिया था.

मीना ने बैजू से शांत हो कर पूछा, ‘‘प्रभु चाय वाले से जो 500 रुपए लिए थे, उन का क्या किया?’’

‘‘उन रुपयों से दारू पी गया,’’ बैजू ने कहा.

‘‘बाप का फर्ज क्या होता है?’’ मीना ने पूछा.

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ बैजू ने कहा.

‘‘क्या एक मजदूर का बेटा पढ़ नहीं सकता है?’’ मीना ने पूछा.

‘‘मजदूर का बेटा पढ़ कर क्या बैरिस्टर बनेगा? उसे एक दिन मजदूरी ही करनी पड़ेगी,’’ बैजू ने कहा.

‘‘इसलिए तुम ने अपने बेटे संजू को स्कूल न भेज कर चाय की दुकान में जूठे कपप्लेट धोने के लिए काम पर लगा दिया,’’ मीना ने उसे नफरत से देखा. बैजू कुछ नहीं बोला. वह बिछावन पर जा कर निढाल हो कर सो गया.

2 दिन के बाद दीवाली थी. सुबह के 8 बज रहे थे. कुनकुनी धूप खिली हुई थी. बैजू मजदूरी करने चला गया था. इसी समय मीना बादल से मिलने उस की चिकन की दुकान पर चली गई.

मीना को देखते ही बादल धीरे से मुसकराया, ‘‘चिकन चाहिए क्या या अंडाब्रैड दे दूं?’’

‘‘नहीं, मुझे 500 रुपए चाहिए. प्रभु चाय वाले को लौटाने हैं,’’ मीना ने कहा.

‘‘500 रुपए, प्रभु चाय वाले को…’’ बादल सोचते हुए बड़बड़ाया.

‘‘हां बादल, बैजू ने प्रभु चाय वाले से एडवांस में 500 रुपए लिए थे. बदले में बेटे संजू को जूठे कपप्लेट धोने के लिए उस की दुकान में काम पर लगा दिया था. मैं संजू को दुकान से वापस ले आई. मैं उस के रुपए लौटा कर संजू को स्कूल भेजना चाहती हूं,’’ मीना ने कहा.

‘‘हां, क्यों नहीं. ये लो 500 रुपए, प्रभु चाय वाले को लौटा देना. वैसे, बैजू का रवैया बेटे के प्रति अच्छा नहीं है. संजू को स्कूल भेज कर पढ़ाना चाहिए था,’’ बादल ने कहा.

‘‘मैं ने फैसला कर लिया है कि अब बैजू के साथ नहीं रहूंगी, क्योंकि मेरी और संजू की जिंदगी उस के साथ रह कर बरबाद हो जाएगी. अब और सहना ठीक नहीं है,’’ मीना ने कहा.

‘‘तुम चाहो तो संजू को ले कर मेरे पास चली आओ. ऐसे आदमी के साथ रहना बिलकुल ठीक नहीं है,’’ बादल ने कहा.

‘‘हां बादल, मुझे एक सहारे की जरूरत है, जिस के साथ मैं चैन से रह सकूं. संजू अच्छे माहौल में रह कर पढ़लिख सके,’’ मीना ने कहा.

‘‘मैं भी अकेले रह कर ऊब चुका हूं. तुम संजू को ले कर आ जाओगी, तब हमारा एक परिवार हो जाएगा. हम साथ रह कर हंसीखुशी से जी सकेंगे,’’ बादल ने कहा.

‘‘आज शाम को संजू को ले कर मैं आ जाऊंगी. तुम मेरा इंतजार करना,’’ कह कर मीना चली गई.

मीना ने प्रभु चाय वाले को रुपए वापस कर दिए. शाम को मीना ने अपने कपड़े और संजू की किताबकौपियां सब एक बैग में रख लीं. बैजू के लौट आने से पहले वह संजू के साथ घर छोड़ कर बादल के घर चली गई. बादल मीना का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.

‘‘आ जाओ मीना. आज से मेरे घर की मालकिन तुम हो,’’ बादल ने मीना का स्वागत गर्मजोशी से किया.

‘‘हां बादल, संजू को मिल कर खूब पढ़ानालिखाना है. आज से संजू तुम्हारा भी बेटा है,’’ मीना ने कहा.

बादल ने संजू को प्यार से गले लगा लिया, ‘‘संजू प्यारा बच्चा है. इसे मैं खूब सारा प्यार दूंगा. पढ़ालिखा कर काबिल बनाऊंगा. संजू अब हम दोनों का प्यार है,’’ बादल ने कहा. मीना खुशी से मुसकरा उठी.

बैजू जब रात में घर लौटा, तब मीना और संजू को न पा कर वह सन्न रह गया. उस ने अपने दिल को समझाया कि मीना यहींकहीं बाजार से कोई सामान लेने गई होगी. जब 2-3 घंटे बीत गए, फिर भी मीना घर नहीं लौटी. तब

बैजू घबरा गया. उस ने सब्जी मंडी, बाजारहाट सब जगह मीना को ढूंढ़ा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली. कहार कर बैजू घर लौट आया.

‘‘लगता है, मीना किसी यार के साथ भाग गई,’’ बैजू बड़बड़ाया.

कटोरे में थोड़ी सब्जी और 2-4 रोटियां रखी थीं, जिसे खा कर बैजू सो गया.

सुबह हुई. बैजू की रात बेचैनी में कटी थी. उस के चेहरे पर उदासी थी, मीना उस का घर छोड़ कर जो चली गई थी. वह बेबस था. वह कमरे में खामोश बैठा था.

तभी मेमसाहब ने पुकारा, ‘‘बैजू, मीना को भेज दो. जूठे बरतन धोने के लिए पड़े हैं.’’

बैजू भारी मन से कमरे से बाहर आया. कोठी के बरामदे में मेमसाहब मीना के इंतजार में खड़ी थीं.

‘‘मेमसाहब, मीना रात को ही किसी प्रेमी के साथ भाग गई है,’’ बैजू ने कहा.

‘‘मुझे रात में क्यों नहीं बताया? यह सब कैसे हुआ?’’ मेमसाहब ने थोड़ा हैरान हो कर पूछा.

‘‘मुझे नहीं मालूम, मेमसाहब. रात में काम पर से लौटा, तब मीना और संजू घर पर नहीं थे,’’ कहते हुए बैजू की आंखों में आंसू झिलमिला आए.

‘‘इतनी बड़ी बात हो गई. मैं नागेश साहब से बात करती हूं,’’ कह कर मेमसाहब चली गईं.

नागेश साहब कमरे में बैठे मोबाइल फोन पर किसी से बातें कर रहे थे. उन की बात जब खत्म हुई, तब मेमसाहब ने नागेश साहब से कहा, ‘‘मीना रात से ही घर से गायब हो गई है. पता नहीं, वह कहां चली गई.’’

‘‘बैजू से पूछा कि मीना कहां गई है?’’ नागेश साहब ने कहा.

‘‘हां, पूछा था. बैजू का कहना है कि मीना किसी प्रेमी के साथ भाग गई है,’’ मेमसाहब ने कहा.

‘‘बहुत बुरा हो गया. घर के जूठे बरतन अब कौन साफ करेगा. मीना तो हम लोगों को तकलीफ दे गई,’’ नागेश साहब के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गई थीं.

‘‘आप ने बैजू के बारे में क्या सोचा है?’’ मेमसाहब ने नागेश साहब से पूछा.

‘‘कुछ नहीं. अपने आउटहाउस से बैजू को निकाल दूंगा. जब मीना थी, तब वह हमारे घर का कामकाज करती थी. हम लोगों को कामवाली बाई की कभी जरूरत नहीं पड़ी. अब बैजू जैसे मजदूर को यहां रखना ठीक नहीं है,’’ नागेश साहब ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं अभी बैजू को बुलाती हूं,’’ मेमसाहब ने कहा.

मेमसाहब ने कोठी के बरामदे से बैजू को पुकारा, ‘‘बैजू, तुम को साहब बुला रहे हैं.’’

बैजू मेमसाहब की आवाज सुन कर तुरंत कमरे से बाहर चला आया. वह नागेश साहब के सामने आ कर खड़ा हो गया, ‘‘आप ने बुलाया साहब?’’

‘‘बैजू, मेरा आउटहाउस खाली कर दो. तुम कहीं दूसरी जगह चले जाओ,’’ नागेश साहब ने गंभीर आवाज में कहा.

‘‘लेकिन साहब, मैं रहूंगा कहां…?’’ बैजू गिड़गिड़ाया.

‘‘बैजू, तुम कहीं भी जाओ. मुझे मेरा घर 1-2 दिन में खाली मिलना चाहिए,’’ नागेश साहब ने जोर दे कर कहा.

बैजू अब करता भी क्या. वह बहुत मजबूर था. वह 2 दिन बाद नागेश साहब की कोठी का आउटहाउस खाली कर के चला गया. नशे की लत ने उस की जिंदगी से परिवार और दीवाली की खुशियां छीन ली थीं.

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