‘‘अरे भगेलुआ, कहां हो? जरा झोंपड़ी से बाहर तो निकलो. देखो, तुम्हारे दरवाजे पर बाबू सूबेदार सिंह खड़े हैं. तुम्हारी मेहरी इस पंचायत की मुखिया क्या बन गई है, तुम लोगों के मिलने और बात करने का सलीका ही बदल गया है,’’ लहलादपुर ग्राम पंचायत के मुखिया रह चुके बाबू सूबेदार सिंह के साथ खड़े उन के मुंशी सुरेंद्र लाल ने दलित मुखिया रमरतिया देवी के पति भगेलुआ को हड़काया.

मुंशी सुरेंद्र लाल की आवाज सुन कर भगेलुआ अपनी झोंपड़ी से बाहर निकला. सामने बाबू सूबेदार सिंह को खड़ा देख कर वह अचानक हकबका गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि उन का किस तरह से स्वागत करे, लेकिन दूसरे ही पल उस का मन नफरत से भर उठा.

जब पेट में लगी भूख की आग को शांत करने के लिए भगेलुआ बाबू सूबेदार सिंह के यहां काम मांगने जाता था, तो घंटों खड़े रहने के बाद उन से मुलाकात होती थी.

काम मिल जाता था, तो कई दिनों तक बेगारी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उसे मजदूरी मिलती थी.

कभीकभी माली तंगी की वजह से वह बाबू सूबेदार सिंह से कर्ज भी लेता था. कर्ज के लिए बाबू साहब से कहीं ज्यादा उसे मुंशी सुरेंद्र लाल की तेल मालिश करनी पड़ती थी.

10 रुपए सैकड़ा के हिसाब से सूद व सलामी काट कर मुंशी महज 80 रुपए उस के हाथ में देता था.

अपनी ओर भगेलुआ को टुकुरटुकुर ताकते देख कर बाबू सूबेदार सिंह ने उसे टोका, ‘‘इतनी जल्दी अपने बाबू साहब को भुला दिया क्या? अब तो पहचानने में भी देर कर रहा है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरस सलिल सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरस सलिल मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 1000 से ज्यादा सेक्सुअल हेल्थ टिप्स
  • 5000 से ज्यादा अतरंगी कहानियां
  • चटपटी फिल्मी और भोजपुरी गॉसिप
  • 24 प्रिंट मैगजीन

डिजिटल

(1 महीना)
USD4USD2
 
सब्सक्राइब करें

सरस सलिल सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरस सलिल मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 1000 से ज्यादा सेक्सुअल हेल्थ टिप्स
  • 5000 से ज्यादा अतरंगी कहानियां
  • चटपटी फिल्मी और भोजपुरी गॉसिप
 
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...