गाड़ी अभीअभी आ कर स्टेशन पर रुकी थी. मुझे इसी गाड़ी से तकरीबन  2 घंटे बाद दूसरा इंजन लगने पर अपने शहर जाना था. मैं डब्बे के दरवाजे पर खड़ा हो कर प्लेटफार्म की भीड़ को देख रहा था.

अचानक मेरे सामने से एक जानापहचाना चेहरा गुजरा. उस चेहरे को देखते ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘नसरीन.’’ वह रुकी और एक भरपूर नजर मेरे चेहरे पर डाली. मुझे देख कर उस का चेहरा खिल उठा, पर कोई भी लफ्ज उस के होंठों से नहीं निकला.

मेरे हाथ बढ़ाने पर उस ने फौरन अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया और मैं ने उसे डब्बे के अंदर खींच लिया. वह चुपचाप मेरे साथसाथ मेरी सीट तक आई. मैं ने अपनी बीवी और बच्चे से उसे मिलवाया. फिर धीरेधीरे नसरीन खुले दिल से बातें करने लगी.

वह बारबार एक ही जुमला कहे जा रही थी, ‘‘आप ने इतने बरसों बाद भी मुझे एकदम पहचान लिया. इस का मतलब मेरी तरह आप भी मुझे भूले नहीं थे?’’ वह मेरी बीवी से बातें करती जाती, मगर उस की नजरें मुझ पर टिकी हुई थीं.

नसरीन बरसों पहले कालेज के जमाने में हमारे पड़ोस में रहती थी. मुझ से वह 1-2 दर्जा पीछे ही थी,  मगर फिल्में देखने और सैरसपाटे में मुझ से कहीं आगे थी. उसे फिल्म देखने की लत थी. मैं ने शायद अपनी जिंदगी की ज्यादातर फिल्में उस के साथ ही देखीं.

उसे घूमने का भी बेहद शौक था. शाम को स्टेशन के पास वाली सड़क पर वह मुझे जबरदस्ती ले जाती, इधरउधर की फालतू बातें करती और फिर हम दोनों वापस आ जाते. उसे मेरी क्या बात पसंद थी, मालूम नहीं, मगर मुझे उस के बात करने का अंदाज और खरीदारी करने का सलीका बहुत पसंद था.

नसरीन के साथ चलने में मुझे लगता कि उस की वजह से मैं बिलकुल महफूज हूं. फिर वह आगे की पढ़ाई करने के लिए एक साल के लिए दूसरे शहर में चली गई और मैं भी नौकरी की तलाश में कई शहरों की खाक छानता रहा.

वह जब वापस आई थी, उस समय मैं नौकरी न मिलने की वजह से बेहद परेशान और दुखी था. नौकरी के लिए नसरीन भी हाथपैर मार रही थी. वह हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया करती थी.

एक दिन उस ने मुझ से कहा था, ‘‘दुनिया में बड़े सुख जैसी कोई चीज नहीं है… छोटेछोटे सुख, जो हमें जानेअनजाने में मिलते रहते हैं, उन्हीं से खुश रहना चाहिए.’’ मैं उस शहर में ज्यादा दिन न ठहर सका. बाद में कई शहरों में छोटीमोटी नौकरियां करने के बाद मुझे सरकारी नौकरी मिली और मेरी जिंदगी में ठहराव सा आ गया.

बाद में नसरीन का परिवार भी वह शहर छोड़ गया था और उस का नया पता मुझे मालूम नहीं हो सका था. कई साल गुजर गए थे, मगर नसरीन की याद राख में दबी चिनगारी की तरह गरम ही रही, कभी बुझी नहीं.

जब उस का चेहरा मेरी नजरों के सामने आया, तो मैं अपनेआप को रोक न सका. वह भी बेहद खुश थी. बोली, ‘‘इत्तिफाक की बात है कि मैं भी इसी गाड़ी में बैठी थी और रास्तेभर आप की याद आती रही.’’

चूंकि बीवी को मैं ने नसरीन के बारे में कई बार बताया था, इसलिए वह भी उस से खूब दिलचस्पी से बातें कर रही थी. मैं उन दोनों के पास से उठ कर रिसाला यानी पत्रिका खरीदने नीचे उतर गया.

वापस आने पर मैं ने देखा कि नसरीन की बातें तो मेरी बीवी से हो रही थीं, मगर उस की नजरें मुझ पर जमी थीं. नसरीन अपनी बड़ी बहन से मिलने जा रही थी, जो कि इसी शहर में मास्टरनी थी. नसरीन अभी तक कोई नौकरी न पा सकी थी.

मुझे यह जान कर बहुत अफसोस और इस से भी ज्यादा अफसोस इस बात का हुआ कि वह अब बुरी तरह नाउम्मीद हो चुकी थी. उस ने मुझ से कहा कि मैं कहीं उस के लिए नौकरी का बंदोबस्त करूं. मगर, मैं उस के लिए क्या और कहां कोशिश करता.

उसे मेरी नौकरी के बारे में कहीं से पता चल गया था. मगर उसे यह नहीं मालूम था कि मैं छुट्टी खत्म कर के बीवीबच्चों के साथ वापस जा रहा हूं तो वह भी हमारे साथ चिपकी चली आई. मेरी बीवी ने उस से सिर्फ एक बार दिखाने के लिए साथ चलने को कहा था.

नसरीन बिना किसी झिझक या शर्म के तुरंत मान गई. उस के साथ चलने की बात पर मेरी बीवी के चेहरे पर नाराजगी सी दिखाई देने लगी, लेकिन फिर वह हंसनेबोलने लगी. 4-5 घंटे का सफर बातों में कितनी जल्दी गुजर गया था, कुछ पता ही नहीं चला. घर पहुंच कर मेरी बीवी के साथ उस ने भी खाना पकाने से ले कर घर की सफाई वगैरह में पूरा साथ दिया.

नसरीन 2 दिन रही. तीसरे दिन खरीदारी करने मेरी बीवी के साथ गई. मगर शाम को जब मैं दफ्तर से वापस आया, तो बीवी ने बताया कि वह 4 बजे वाली गाड़ी से बड़ी मुश्किल से वापस गई है. बाजार  में मेरे सामान की सारी खरीदारी भी उस ने अपनी पसंद से की थी, जैसे कि वह मेरी पसंदनापसंद को अच्छी तरह से जानती हो. काफी दिन बीत गए.

उस के 2-3 खत आए, मगर मैं जवाब न दे सका. इधर बीवी भी बीमार थी और वह अपने पीहर गई हुई थी. एक दिन शाम के समय मैं अपने दफ्तर के एक साथी के घर दावत में जाने के लिए तैयार हो रहा था कि अचानक दरवाजा खुला और नसरीन अंदर दाखिल हुई.

मैं हैरान रह गया. आते ही वह बोली, ‘‘अरे, आप कहीं जाने की तैयारी कर रहे हैं?’’ मैं ने तब दावत में जाना ठीक न समझा. मगर बिना किसी खबर के वह भी मेरी बीवी की गैरहाजिरी में उस का आना मुझे अखर सा गया. वह मेरी खामोशी भांप गई और बोली, ‘‘क्या आप को मेरे इस तरह से अचानक आ जाने से खुशी नहीं हुई?  ‘‘मैं तो कई दिन पहले से बाजी के घर आई हुई थी.

आज वापसी के लिए स्टेशन पर पहुंची, तो खुद से एक शर्त लगा ली कि अगर आप की ओर जाने वाली गाड़ी पहले आएगी, तो आप के यहां चली आऊंगी और अगर मेरे घर की तरफ जाने वाली गाड़ी पहले आई, तो वापस अपने घर चली जाऊंगी.

‘‘अब शर्त की बात थी, आप की ओर आने वाली गाड़ी पहले आई और मुझे मजबूरन आप के पास आना पड़ा.’’ यह सुन कर मैं हंस पड़ा, और बोला ‘अरे, शर्त की क्या बात थी… यह घर तुम्हारा नहीं है क्या?’’ यह जान कर कि मेरी बीवी घर पर नहीं है, नसरीन काफी खुश हुई थी.

फिर देर रात तक वह मुझ से इधरउधर की बातों के बीच अपने शिकवेशिकायतें ले बैठी कि आप मुझे भूल गए. आप ने मुझ से क्याक्या बातें की थीं? मैं ने उसे समझाया कि अगर मैं उसे भूल जाता तो शायद उस दिन पहचान भी न पाता. हां, मैं ने उस से कभी कोई वादा नहीं किया था.

दूसरे दिन सवेरे ही मैं ने नसरीन को विदा कर दिया. वह जाने को तैयार नहीं थी, मगर मैं ने उसे लोकलाज का वास्ता दिया तो वह चली गई.  कुछ दिन बाद पत्नी के लौटने पर जब मैं ने उसे नसरीन के आने की खबर दी, तो उस के चेहरे पर नाराजगी और गुस्से के कई रंग नजर आए.

मगर वह उस कड़वाहट को खामोशी से पी गई. तकरीबन 2-3 महीने बाद नसरीन की चिट्ठी आई. मैं ने उसे जवाब देने के लिए रख लिया. मगर बाद में न तो वह चिट्ठी ही फिर दिखाई दी और न ही मुझे जवाब देना याद रहा. 2 महीने बाद उस की चिट्ठी फिर आई.

मैं ने सोचा, अब की बार उसे जरूर खत लिखूंगा. मगर वह खत भी 10-15 दिन तक आंखें बिछाए मेरी तरफ देखता रहा और फिर नजरों से ओझल हो गया. एक दिन फिर उस का खत आया, जिस में लिखा था कि अगर इस बार भी आप लोगों ने जवाब नहीं दिया, तो वह फिर कभी खत नहीं लिखेगी.

एक दिन शाम को मैं ने बीवी से कहा, ‘‘क्यों न हम अपने बंटी की तरफ से नसरीन को अपनी खैरियत का जवाब दे दें?’’ ‘‘क्यों…?’’ बीवी ने इस छोटे से लफ्ज के जरीए अपनी सारी कड़वाहट मेरे मुंह पर थूक दी. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘किसी के खत का जवाब न देना मुझे जरा ठीक नहीं लगता.’’ ‘‘अच्छा…’’ उस ने हैरानी से चौंकते हुए जवाब दिया, ‘‘और किसी कुंआरी लड़की का किसी शादीशुदा आदमी को खत लिखना या किसी शादीशुदा आदमी का किसी कुंआरी लड़की के खत का जवाब देना या दिलवाना क्या ठीक लगता है?

अगर यह सब ठीक है, तो मेरी नजर में ऐसे किसी भी खत का जवाब न देना भी गलत नहीं हो सकता.’’ बीवी के हांफते हुए चेहरे को मैं ने आहिस्ता से अपने सीने से लगा लिया. उस के चेहरे पर उभर आई पसीने की बूंदें मेरे सीने को भिगो रही थीं.

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