‘‘आज मंदिर में प्रोग्राम है न?’’

‘‘हां है.’’

‘‘देखिए, मुझे भी ले चलिएगा. मैं जब से यहां आई हूं, आप मुझे कहीं भी ले कर नहीं गए हैं. कंपनी में फिल्म होती है, वहां भी नहीं.’’

पत्नी के चेहरे पर रूठने के भाव साफ दिख रहे थे और बात भी सही थी. ब्याह के बाद जब से वह आई है, मैं उसे कहीं भी ले कर नहीं गया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे फौजी माहौल का उस पर असर पड़े.

‘‘ले चलिएगा न?’’

‘‘हां राजी, ले चलूंगा, पर…’’

‘‘परवर कुछ नहीं, आज तो मैं आप की एक न मानूंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम तैयार हो जाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम मंदिर की ओर जा रहे थे. मंदिर के नजदीक पहुंच कर राजी की खुशी देखते ही बनती थी.

‘‘देखिए न, मंदिर दुलहन की तरह सजा हुआ कितना अच्छा लग रहा है.’’

‘‘हां राजी, सचमुच अच्छा लग रहा है, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘कुछ नहीं राजी… आओ, लौट चलें.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हैं जी? मंदिर के पास आ कर भी भला लौटा जा सकता है? आप भी कभीकभी बेकार की बातें सोचने लगते हैं. चलिए, मंदिर आ गया है, जूते उतारिए.’’

‘‘यहां नहीं राजी, हम लोगों के लिए जूते उतारने की जगह दूसरी ओर है. यहां अफसर उतारेंगे.’’

‘‘क्या…’’

‘‘हां, राजी.’’

‘‘ओह…’’

तय जगह पर जूते उतार कर हम भीतर चले जाते हैं. भीतर चारों ओर एक खामोशी है. एक ओर जवान बैठे हैं, दूसरी ओर औरतें और बच्चे. बीचोंबीच मूर्ति तक जाने का रास्ता है.

हम दोनों हाथ जोड़ने के बाद लौटे, तो पंडाल से हट कर बैठी हमारी पड़ोसन मिसेज शर्मा ने राजी के लिए जगह बना दी. मैं रास्ते के पास जवानों के बीच बैठ गया. मु?ो राजी और मिसेज शर्मा की बातें साफ सुनाई दे रही थीं.

‘‘आओ बहन, आओ. शुक्र है, तुम घर से बाहर तो निकलीं.’’

‘‘क्या बात है बहनजी, मंदिर में बड़ी खामोशी है. न भजन, न कीर्तन,’’ राजी कह रही थी.

‘‘कोई मन से आए, तो भजन भी होए. बाई और्डर कौन भजन करे,’’ मिसेज शर्मा के बगल में बैठी औरत ने कहा.

‘‘बाई और्डर…?’’

‘‘हां बहन, आदेश न हो, तो यहां कोई भी न आए,’’ मिसेज शर्मा ने कहा.

‘‘मंदिर में भी…?’’

‘‘हां बहन, मंदिर में भी… न आएं तो मर्द लोगों के खिलाफ ऐक्शन लिया जाता है. कोई ज्यादा अकड़े तो कहा जाता है कि जाओ, फैमिली डिस्पैच कर दो. भला बालबच्चों को ले कर मर्द लोग कहां जाएं? इसी गम के मारे तो कितने मर्द क्वार्टरों में अपनी फैमिली लाना नहीं चाहते. उन के बीवीबच्चे भी क्या सोचते होंगे, इसीलिए यह खामोशी है… न भजन, न कीर्तन.

‘‘वह खूबसूरत पंडाल देख रही हो बहन, जिस के नीचे बैठा पंडित इस बात का इंतजार कर रहा है कि कब सीओ साहब यानी कमांडिंग अफसर और उन की मेम साहब आएं, तो पूजा शुरू हो.’’

थोड़ी देर बाद मिसेज शर्मा बोलीं, ‘‘पिछली बार मैं गलती से उस पंडाल में बैठ गई थी. मु?ो वहां पर बड़ा बेइज्जत होना पड़ा था…’’

‘‘हमारी इज्जत ही कहां है, जो बेइज्जत हों,’’ मिसेज शर्मा के पीछे बैठी एक गोरी औरत ने कहा, ‘‘कभी कंपनी में फिल्म देखने आई हो बहन?’’ राजी ने न में सिर हिला दिया.

‘‘अच्छा करती हो, नहीं तो बड़ी बेइज्जती सहनी पड़ती है. ये अफसर लोग हमारे मर्दों के कमांडर हैं. उन के साथ कैसा भी बरताव करें, सहन किया जा सकता है, पर हम औरतों में भला क्या फर्क है?

‘‘अफसरों और उन की बीवियों के लिए सोफे लगते हैं, जेसी ओज (जूनियर कमीशंड अफसर) और परिवारों के लिए कुरसियां और हम लोगों के लिए थोड़े से बैंच. जो पहले आए बैठ जाए. बाकी सब औरतें नीचे बैठ कर फिल्म देखती हैं.

‘‘और तो और, गरमियों में उन के लिए पंखों का इंतजाम होता है और सर्दियों में सिगड़ी का, जैसे हम लोहे की बनी हों, जिन पर गरमीसर्दी का कोई असर ही न होता हो…’’

‘‘हम अफसरों के साथ नहीं बैठना चाहतीं…’’ थोड़ी देर बाद उसी औरत ने कहा, ‘‘अनुशासन बनाए रखने के लिए अलगअलग इंतजाम अच्छा है, पर सब के लिए कुरसियां तो लग ही सकती हैं.’’

‘‘हमारे ही आदमी सोफे और कुरसियां लगाते हैं और उन्हीं के बीवीबच्चे उन पर नहीं बैठ सकते,’’ गोरी औरत के पास बैठी दूसरी औरत ने कहा.

‘‘7 बजे फिल्म शुरू होने का समय है, पर जब तक सीओ साहब और उन की मेम साहब न आएं, फिल्म शुरू नहीं होती. बच्चे मुंह उठाउठा कर देखते रहते हैं कि कब सीओ साहब आएं, तो फिल्म शुरू हो…

‘‘काश, सीओ साहब जान पाते कि बच्चे तालियां क्यों बजाते हैं… क्यों बजा रहे हैं?’’ पीछे बैठी गोरी औरत ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘पर कौन जानता है? कौन परवाह करता है?’’

‘‘सच कहती हो बहन, कोई परवाह नहीं करता…’’ अभीअभी आ कर बैठी सांवली औरत ने शायद गोरी औरत की बात सुन ली थी, ‘‘मेरा पति ड्राइवर है. आजकल स्कूल बस में बच्चों को ले कर जाता है. यहां से बस ठीक समय पर जाती है, पर सीओ साहब के बंगले पर जा कर खड़ी हो जाती है. जब तक उन के बच्चे नहीं आ जाते, तब तक वहां से नहीं चलती.

‘‘उन का स्कूल तो 8 बजे लगता है, पर मेरे पप्पू का तो स्कूल साढ़े 7 बजे ही लग जाता है. 3 दिन से पप्पू को टीचर सजा दे रही हैं. भला कोई सीओ साहब से पूछे कि हाजिरी कम होने पर वे बच्चों को इम्तिहान में बिठवा देंगे?’’

इतने में पीछे से एक शोर उठा कि सीओ साहब और मेम साहब आ गईं. सांवली औरत की बातें इस शोर में गुम हो कर रह गईं.

पंडितजी सीओ साहब और उन की मेम साहब के गले में फूलों की मालाएं डाल कर मंत्र बोलने लगे. पीछे से कोई बच्चा पूछ रहा था, ‘‘पंडितजी ने सीओ साहब के गले में माला क्यों डाली?’’

‘‘वे भी भगवान हैं बेटे…भगवान, फौजी भगवान…’’

राजी ने एक बार फिर पीछे मुड़ कर मेरी ओर देखा था, पर मैं उस की नजरों को सहन नहीं कर पाया.

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