• निर्माताःसुज्वौय घोष,अविषेक घोष, ह्यूनवो थाॅमस किम,सचिन नाहर, पिंकी नाहर,ज्योति देशपांडे
  • लेखक: शोम मखीजा और सुदीप निगम
  • निर्देशकः शोम मखीजा
  • कलाकारः सोनम कपूर,पूरब कोहली,विनय पाठक,लिलेट दुबे,शुभम सराफ,लूसी आर्डेन,जावेद खान व अन्य
  • अवधिः दो घंटे चार मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: जियो सिनेमा पर मुफ्त में, सात जुलाई से 2011 में प्रदर्शित क्राइम थ्रिलर प्रधान कोरियन फिल्म ‘‘ब्लाइंड’’ का ही उसी नाम से भारतीय करण कर शोम मखीजा लेकर आए हैं,जिससे अभिनेत्री सोनम कपूर पूरे चार वर्ष बाद अभिनय में वापसी कर रही हैं.

सोनम कपूर पिछली बार निर्देशक अभिषेक शर्मा की फिल्म ‘जोया फैक्टर‘ में साउथ सिनेमा के स्टार दुलकर सलमान के साथ नजर आई थी जो साल 2019 में सिनेमाघरों रिलीज हुई थी.‘ब्लाइंड‘ सिनेमा घरों में रिलीज न होकर सीधे ओटीटी प्लेटफार्म जियो सिनेमा पर रिलीज हुई है.जी हाॅ! ग्लासगो,स्काॅटलैंड में फिल्मायी गयी इस फिल्म को सात जुलाई से ‘जियोसिनेमा’ पर मुफ्त में देखा जा सकता है.मुफ्त में मिली हुई चीज की गुणवत्ता से सभी परिचित है.तो उसी के अनुरूप यह फिल्म भी बेकार ही है.

कहानी:

फिल्म की कहानी के केंद्र में स्कॉटलैंड में रहने वाली पुलिस ऑफिसर जिया सिंह (सोनू कपूर) हैं.अनाथलय में पली बढ़ी जिया सिंह एक रात अनाथालय की मालकिन के बेटे व अपने मंुॅह बोले भाई आंड्यिन परेरा (दानिश रजवी) को पब से अपनी कार से घर ले जाने की कोशिश कर रही होती है,जिससे वह पढ़ाई करे.तभी दुर्घटना हो जाती है.

इस त्रासदी में जिया सिंह की आंखों की रोशनी चली जाती है.भाई की मौत हो जाती है.उसे पुलिस विभाग से इसलिए निकाल दिया जाता है कि उसने अपने भाई के साथ अपनी पुलिस पावर का बेजा इस्तेमाल किया था.

जिया भी अपने भाई की मौत का जिम्मेदार खुद को मानती है.पर एक दृष्टिहीन लड़की के तौर पर वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को सहज बनाने का प्रयास करती है.इसी बीच शहर में लड़कियों के अपहरण और हत्या की घटनाएं बढ़ने लगती हैं.एक रात जिया सिंह जब अपनी मां (लिलेट दुबे ) से मिलकर वापस आ रही होती है,तो वह एक कैब में लिफ्ट लेती है.पर कुछ देर में उसे अहसास होता है कि वह जिस कार में हैं,उसका ड्ाइवर (पूरब कोहली ) ही अपहरण व हत्या का आरोपी है.

वह किसी तरह खुद को उसके चंगुल से बचाकर पुलिस स्टेशन पहुॅचती है.जहां पदोन्नति पाने की लालसा में पुलिस अफसर पृथ्वी खन्ना (विनय पाठक) ,जिया से सारी बातें जानकर जांच शुरू करते हैं.अपराधी का सुराग देने वाले को इनाम के पोस्टर लग जाते हैं.एक युवक निखिल( शुभम सराफ ) पुलिस स्टेशन पहुॅचकर बताता है कि वह वारदात का चश्मदीद गवाह है.

जिस गाड़ी में लड़की का अपहरण हुआ,वह टैक्सी नही कार थी. जिया टैक्सी बता चुकी हैं.इसलिए पृथ्वी खन्ना,निखिल पर यकीन नही करते.पर दूसरी बार जब पुनः निखिल पुलिस इंस्पेक्टर पृथ्वी खन्ना को फोन कर अपनी बात दोहराता है,तो जिया के कहने पर पृथ्वी उसकी बात पर यकीन कर उससे मिलना चाहते हैं,पर तभी अपराधी ड्ायवर निखिल को बुरी तरह से घायल कर देता है.कैब ड्राइवर एक साइकोपैथ है, जो लड़कियों को अगुवा करके उन्हें मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देता है.उसके बाद अपराधी व पुलिस के बीच चूहे बिल्ली का खेल शुरू हो जाता है.

लेखन व निर्देशनः

एक बेहतरीन कहानी पर अति घटिया फिल्म कैसे बनायी जा सकती है, यह निर्देशक शोम मखीजा से सीखा जा सकता है.एक साइको किलर जब एक अकेली व अंधी तनहा लड़की को शिकार करने की साजिश रचे, तो खौफ और डर की उम्मीद गलत नहीं है.मगर यहां डरन व रोमांच कुछ भी निर्देशक पैदा नही कर पाए.इंटरवल से पहले कहानी अपनी गति से आगे बढ़ती है,मगर इंटरवल के बाद फिल्म न सिर्फ पटरी से उतरती है बल्कि अति सुस्त पड़ जाती है.

दर्शक को लगता है कि फिल्मसर्जक बेवजह कहानी को रबर की तरह खींच रहा है.लेखन भी अधकचरा ही है.किसी भी किरदार का ठीक से रचा ही नही गया है.जिया अनाथाश्रम में क्यों पली बढ़ी?आरियन परेरा तेरह वर्ष से उसका भाई कैसे है,कुछ भी स्पष्ट नही है.सायकोपाथ ड्ाइवर ऐसा क्यों है,इस पर भी फिल्म कोई बात नही करती.जबकि एक दृश्य में उसे स्त्री रोग विशेषज्ञ डाक्टर दिखाया गया है,जो अस्पातल में एक महिला का छोटा सा आपरेशन करता है. फिल्म मेें रोमांच के साथ ही इमोशंस का भी घोर अभाव है.

एडीटिंग की अपनी कमजोरियां हैं.फिल्म के क्लायमेक्स में क्या होगा,इसका अंदाजा तो दर्शक बीस मिनट बाद ही लगा लेता है.

अभिनयः

जिया सिंह के किरदार मेें सोनम कपूर निराश करती हैं.सोनम कपूर किरदार की गहराई को नही समझ पायीं.पुलिस इंस्पेंक्टर पृथ्वी खन्ना के किरदार में विनय पाठक अपनी छाप छोड़ते हैं.मनोरोगी हत्यारे की भूमिका में पूरब कोहली ने अभिनय अच्छा किया है.मगर लेखक व निर्देशक ने उनके किरदार को ठीक से गढ़ा ही नहीं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...