आमतौर पर लोग सैक्स के प्रति स्वाभाविक रूप से उत्सुक होते ही हैं. लिहाजा सैक्स से संबंधित बातें उन की उत्सुकता में तो इजाफा करती ही हैं, लेकिन साथ ही उन्हें बेचैन भी कर देती हैं. किसी सैक्स समस्या से ग्रस्त व्यक्ति की बेचैनी सम?ा जा सकती है, पर अकसर वे लोग भी भ्रम में पड़ जाते हैं जिन्हें सैक्स संबंधी कोई समस्या नहीं होती है. इस का नतीजा यह होता है कि सैक्स के नजरिए से पूरी तरह स्वस्थ पति भी कई बार इतने बेचैन और आशंकित हो जाते हैं कि उन का वैवाहिक जीवन समस्याग्रस्त हो जाता है. उन्हें खुद पर विश्वास ही नहीं होता कि वे सैक्स के नजरिए से पूरी तरह स्वस्थ हैं. वे बेकार में दवाओं के आदी हो जाते हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कुछ ऐसे आसान तरीके नहीं हैं जिन के जरीए कोई पति अपनेआप ही पता लगा ले कि उस का सैक्स स्वास्थ्य ठीक है और उसे किसी दवा की जरूरत नहीं है? विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे कई तरीके हैं जिन से कोई भी व्यक्ति जान सकता है कि वह सैक्स की कसौटी पर बिलकुल सही है यानी उसे न तो परेशान होने की जरूरत है और न ही किसी दवा की. आइए, जानते हैं ये तरीके:

कैसे पता करें स्टैमिना

विशेषज्ञों के अनुसार यदि किसी पुरुष को अपने सैक्स स्वास्थ्य का पता लगाना है तो उसे यह देखना चाहिए कि नींद के दौरान उस के जननांग में तनाव यानी इरैक्शन होता है या नहीं. अमूमन यदि पुरुष को कोई शारीरिक या मानसिक समस्या नहीं है तो उस के जननांग में एक बड़ी अवधि वाली नींद के दौरान यानी खासतौर से रात को 1 या 1 से ज्यादा बार इरैक्शन जरूर होता है. कई बार सोतेसोते ही पुरुषों को इस का एहसास होता है तो कई बार सुबह उठते समय इस का पता लग जाता है.

खास बात यह है कि नींद के दौरान होने वाला यह इरैक्शन सहवास के दौरान होने वाले इरैक्शन से भी ज्यादा कड़ा होता है और 20 से 25 मिनट तक कायम भी रहता है. व्यक्ति कई बार हैरान रह जाता है कि बिना इच्छा और बिना कामभावना वाले किसी सपने के यह कैसे हुआ. अगर किसी पुरुष की जीवनशैली अनियिमत नहीं है, उस का खानपान असंतुलित नहीं है और वह तनावग्रस्त नहीं है तो नींद में यह इरैक्शन अकसर होता है. जरूरी नहीं है कि यह रोज हो, पर यह देखा गया है कि सहवास के अभ्यस्त यानी विवाहित पुरुषों में यह एक सहवास के 2-3 दिन बाद हो सकता है और अविवाहित पुरुषों में जल्दी या रोजाना भी हो सकता है.

मनोवैज्ञानिक प्रभाव तो नहीं

इस प्रकार के इरैक्शन को एनपीटी कहा जाता है. यह कुदरती प्रक्रिया डाक्टरों की भी मदद करती है. जिन पुरुषों में सहवास के दौरान जननांग में इरैक्शन यानी तनाव या कड़ापन न होने की समस्या होती है, उन का इलाज करने से पहले डाक्टर यह पता लगाते हैं कि इरैक्शन न होने यानी इरैक्टाइल डिइसफंक्शन यानी नपुंसकता की समस्या मनोवैज्ञानिक है या शारीरिक. इस के लिए वे रोगी को यौनांग पर सोते समय एक इलास्टिक उपकरण पहनने की सलाह देते हैं. यह उपकरण नींद के दौरान यौनांग के आकार में हुए बदलाव यानी एनपीटी की सूचना देने में माहिर होता है.

यदि उपकरण बताता है कि पुरुष के यौनांग में सोते वक्त एनपीटी हुआ तो डाक्टर इस का यह मतलब निकालते हैं कि पुरुष को शारीरिक रूप से कोई समस्या नहीं है. सहवास के समय इरैक्शन न होने की उस की समस्या मनोवैज्ञानिक है यानी सहवास के समय बहुत ज्यादा उत्सुकता, उत्तेजना, घबराहट आदि की वजह से उसे समस्या पेश आई है. शारीरिक रूप से वह दुरुस्त है. यदि सोते समय एनपीटी नहीं पाया जाता तो डाक्टर मानते हैं कि समस्या मनोवैज्ञानिक कम शारीरिक ज्यादा है.

एनपीटी का कारण क्या है, इसे ले कर विशेषज्ञों की अलगअलग राय है, लेकिन यह होता है और पुरुष के यौन जीवन के लिए अच्छा संकेत देता है, इसे ले कर सभी सहमत हैं. इसलिए आप भी इसे अजूबा न मानें और इस के होने पर सैक्स के नजरिए से खुद को पूरी तरह स्वस्थ सम?ों.

क्या कहता है अध्ययन

एक अध्ययन बताता है कि हर उम्र के 20 से 30 फीसदी पुरुषों ने समय से पहले स्खलन यानी प्रीमैच्योर ईजैक्यूलेशन की समस्या का सामना किया होता है. यह तय मानें कि वास्तविक प्रतिशत कहीं ज्यादा हो सकता है क्योंकि अध्ययन आदि में सवालों के जवाब देते वक्त अकसर लोग मन की बहुत सी बातें छिपा भी जाते हैं. असली बात यह है कि ईजैक्यूलेशन यानी स्खलन का जल्दी या देरी से होना किसी व्यक्ति की सहवास के समय की शारीरिक, मानसिक स्थिति, स्त्री के साथ पुरुष के सामंजस्य, 2 सहवासों के बीच की अवधि और आसपास के माहौल पर आधारित होता है.

वैवाहिक जीवन के अनुभव से लोग बताते हैं कि कभी उन्हें खुद नहीं पता चलता कि वे इतनी देर तक कैसे टिके रहते हैं और कभी भरपूर प्रयास  के बाद भी वे रेत की दीवार की तरह ढह जाते हैं. कुल मिला कर सैक्स स्वास्थ्य को परखने का उपाय यह है कि 1-2 बार के जल्द स्खलन को आप कोई समस्या ही न मानें. यह समस्या तभी है जब आप के साथ लगातार और लंबे समय तक ऐसा ही होता रहे.

कब जाग्रत होती है इच्छा

वैवाहिक जीवन में सहवास की बारंबारता यानी फ्रीक्वैंसी भी सैक्स स्वास्थ्य का एक अच्छा पैमाना है. ध्यान रहे कि यहां हम उन दंपतियों की बात नहीं कर रहे हैं जो जानबू?ा कर सहवास को टालते हैं या जिन्हें सहवास का कम मौका मिल पाता है अथवा जो सहवास से नाकभौं सिकोड़ते हैं और इसे बहुत अच्छा काम नहीं सम?ाते हैं. हम सामान्य हालात की बात कर रहे हैं और सामान्य स्थिति यह है कि पूरी दुनिया में स्त्रीपुरुष हफ्ते में करीब 2 बार सैक्स करते हैं.

सामान्यतया यह पाया गया है कि एक स्वस्थ पुरुष में एक भरपूर, सफल और प्यारभरा सहवास करने के करीब 2-3 दिन बाद फिर से सैक्स करने की इच्छा जाग्रत होती है. हालांकि यह चीज स्त्रीपुरुष की उम्र से भी तय होती है. 30 साल से कम के दंपतियों में हफ्ते में सैक्स की संख्या ज्यादा भी हो सकती है और 40 साल से ऊपर के दंपतियों में यह कम हो सकती है.

एक अध्ययन के अनुसार दुनियाभर में एक साल में 139 बार सैक्स का आंकड़ा बैठता है. इस से पता चलता है कि ज्यादातर दंपती हफ्ते में 2 से 3 बार सैक्स करते हैं. कुल मिला कर यदि आप हफ्ते में 1 बार भी सफल सहवास कर रहे हैं तो आप सैक्स के नजरिए से बिलकुल स्वस्थ हैं.

ध्यान रहे कि यहां हम सैक्स के दृष्टिकोण से बात कर रहे हैं. इस का मतलब यह न निकालें कि यदि आप ने पूरे महीने सहवास नहीं किया तो आप का सामान्य स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा. सामान्य स्वास्थ्य ठीक रहेगा, लेकिन यदि स्वस्थ रहते हुए भी पूरा महीना 1 बार भी आप की इच्छा सहवास की नहीं हुई है तो सैक्स स्वास्थ्य के नजरिए से जरूर यह असामान्य बात कही जाएगी.

सही दिनचर्या और खानपान

यदि ऐसी स्थिति लगातार आ रही है कि मस्तिष्क सहवास की इच्छा जता रहा है, मगर जननांग इस इच्छा का साथ नहीं दे रहा है तो सैक्स स्वास्थ्य ठीक नहीं कहा जा सकता. मगर इस के लिए भी दवाओं का रास्ता अपनाने से पहले पति स्वयं भी प्रयास जरूर करें. वास्तव में सैक्स में मस्तिष्क की बहुत ही अहम भूमिका होती है. जब भी कोई स्त्री या पुरुष सैक्सुअली उत्तेजित होता तो सब से पहले यह उत्तेजना मस्तिष्क में ही पैदा होती है. उसी के बाद यह मस्तिष्क के संदेशों के जरीए जननांगों तक पहुंचती है.

मस्तिष्क की इतनी अहम भूमिका के बावजूद कई अध्ययनों में अब यह सिद्ध हो गया है कि नपुंसकता या सैक्स में अरुचि का संबंध हमारे दिमाग से ज्यादा शरीर से ही है. हृदय और उस की धमनियों संबंधी गड़बडि़यां, अवसाद, तनाव, प्रोस्टेट ग्लैंड से जुड़ी समस्या के कारण ऐसा हो सकता है. इसे दूसरी तरफ से देखें तो सैक्स में घटती रुचि यानी सैक्स स्वास्थ्य में गिरावट हमारे दिल के बीमार होने का संकेत भी है.

इसलिए बेवजह सैक्स ताकत बढ़ाने वाली दवाएं लेने के बजाय पहले अपने शरीर को चुस्तदुरुस्त रखने का प्रयास करें. सही खानपान और व्यायाम के जरीए आप न केवल शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं बल्कि सैक्स के नजरिए से भी स्वस्थ रह सकते हैं.

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