मेरा नाम आरती है. मेरे औफिस में केशवजी की फेयरवैल पार्टी थी. सुबहसुबह ही सरलाजी का फोन आया था, जो मेरे औफिस में ही सीनियर स्टाफ थीं. वे कह रही थीं, ‘‘आज केशवजी की फेयरवैल पार्टी है, अच्छे से तैयार हो कर आना.’’

मैं इस बात के लिए मना कर रही थी, लेकिन सरलाजी की बात को टाल भी नहीं सकती थी, क्योंकि वे मु?ो अपनी बेटी की तरह प्यार देती थीं और मैं भी उन्हें मां जैसी इज्जत देती थी. एक वे ही थीं, जिन से मैं अपना हर सुखदुख साझ करती थी.

जब मैं पार्टी में पहुंची और अपनी नजर दौड़ा कर देखा, तो लगा कि शायद सरलाजी अभी तक आई नहीं थीं.

मैं एक तरफ सोफे पर जा कर बैठ गई, पर मुझे बड़ा अजीब लग रहा था कि पार्टी में आए कुछ लोगों की नजरें सिर्फ मुझे ही घूर रही थीं.

मैं अपनेआप को असहज महसूस कर रही थी और सोच रही थी कि इतनी जल्दी यहां नहीं आना चाहिए था.

तभी मेरे करीब विनोद आ कर बैठ गया, जो मेरा ही कलीग था. वह कहने लगा, ‘‘अरे वाह, आज तो आप गजब ढा रही हैं इस नीले रंग की साड़ी में. ऊपर से ये बिंदी, चूड़ी… पहना कीजिए, अच्छी लग रही हैं… अब यह सब कौन मानता है.’’

तभी उधर से माधवजी कहने लगे, जो औफिस के ही सीनियर स्टाफ थे, ‘‘सच में आप को देख कर कोई नहीं कह सकता कि अभी 2 साल पहले ही आप के पति का देहांत हो चुका है.’’

जब मैं ने अपनी कड़ी नजर उन पर डाली, तो वे हकलाते हुए कहने लगे, ‘‘म… मेरा मतलब है कि आप अच्छी लग रही हैं.’’

पार्टी में आए सब लोग मुझे ऐसे देखने लगे, जैसे मैं ने कितना बड़ा अपराध कर डाला हो. सब की खा जाने वाली नजरों और बातों को झेलना अब मेरे नए नामुमकिन हो गया था. फफक कर मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े. मुझे लगा कि अब यहां रुकना सही नहीं है.

मैं पलट कर जाने लगी कि तभी पीछे से सरलाजी के स्पर्श ने मुझे चौंका दिया. शायद वे सब सुन चकी थीं.

‘‘अरे आंटी, आप आ गईं,’’ मुझे जैसे बल मिल गया.

सरलाजी बोलीं, ‘‘हां, मैं जाम में फंस गई थी. पर तुम कहां जा रही हो… घर?’’

मैं बोली, ‘‘जी आंटी, वे बच्चे घर पर अकेले हैं, तो…’’

‘‘पर बेटा, पार्टी तो अभी शुरू ही हुई है. एंजौय करो न, घर ही तो जाना है. कहीं तुम इन सब की बातों से डर कर तो घर नहीं जा रही हो? अगर ऐसी बात है तो जाओ, लेकिन एक बात सुनती जाओ. ऐसे टुच्चे और बेशर्म लोग तो तुम्हें हर जगह मिल जाएंगे, फिर कहांकहां और किसकिस से भागती फिरोगी. अरे, भागना तो इन्हें चाहिए यहां से, क्योंकि ये सब दिल और दिमाग दोनों से बीमार हैं…

‘‘शर्म नहीं आती आप लोगों को ऐसी बातें करते हुए. और विनोद आप, क्या मुझे पता नहीं कि आप की नजर कितनी गंदी है इस को ले कर. घर में बीवी होते हुए भी बाहर की औरतों को कैसी गंदी नजरों से देखते हैं आप, क्या यह मुझे बताना पड़ेगा.

‘‘और माधवजी आप, कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज कर लिया होता. अरे, यह तो आप की बेटी जैसी है. बड़े समाज के ठेकेदार बनते फिरते हैं आप, तो फिर वह औरत कौन है, जिसे को आप ने अपने घर में रखा हुआ है, क्योंकि जहां तक मुझे पता है, आप की पत्नी को तो मरे हुए सालों हो चुके हैं.

‘‘क्यों, मैं सच बोल रही हूं न? बोलती बंद हो गई आप की…. घटिया इनसान, खुद में हजारों छेद हैं और ?झांक रहे हैं दूसरे की जिंदगी में…’’

सरलाजी आगे कहने लगीं, ‘‘ऐसा क्या गुनाह कर दिया इस ने, जो सब मिल कर इस की खिल्ली उड़ा रहे हैं. कल तक तो आप सब को कोई एतराज नहीं था इस के पहननेओढ़ने से, तो फिर आज क्या हो गया? क्योंकि अब इस का पति नहीं रहा इसलिए? इसलिए अब यह अपने मन का पहनओढ़ नहीं सकती? हंसबोल नहीं सकती? अपनी पसंद का खा नहीं सकती?

‘‘क्या इस के पति के साथ इस के अरमान भी मर गए? और अब इसे वही सबकुछ करना चाहिए, जो आप सब को ठीक लगे?

‘‘कहने को तो यह हमारी दुनिया, हमारा समाज, हमारा परिवार है, पर जब एक पति न हो तो यही दुनिया, समाज और परिवार एक अकेली औरत के लिए पराया हो जाता है.

‘‘कल तक जो औरत अपने मनमुताबिक जीती रही, आज उसी औरत की खुशियों पर पाबंदियां लगा दी जाती हैं, क्योंकि अब उस का पति नहीं रहा इसलिए. तो क्या इस की सजा उन मातापिता, भाईबहन और रिश्तेदारों को नहीं देनी चाहिए, जो उस के पति के रिश्ते में हैं? पत्नी को ही इस की सजा क्यों दी जाती है?’’यह सुन कर सभी लोगों के सिर शर्म से झक गए.

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