आटोरिकशा चालक रामलाल ने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए खूब मेहनत की, ताकि अमीर लोग उसे गरीब न कह सकें. बेटा बड़ा हो कर इंजीनियर बन गया और अपने बूढ़े मांबाप को छोड़ कर दूसरे शहर चला गया, ताकि उस के स्टेटस में फर्क न आए…
बेचारा रामलाल आटोरिकशा वाला… हर कोई उस से तूतड़ाक से बात करता था. उसे बहुत बुरा लगता था. वह सोचता, ‘मैं गरीब हूं, लेकिन इनसान तो इन के जैसा ही हूं, फिर ये अमीर लोग इस तरह से क्यों बात करते हैं?’ रामलाल ने मन में प्रण कर लिया कि वह अपने बेटे को बड़ा अफसर बनाएगा, ताकि उस से कोई इस तरह बात न करे. इस के लिए रामलाल दिन में आटोरिकशा चलाता, रात में चौकीदारी करता, ताकि बेटे को बड़े स्कूल में पढ़ा सके.
बेटा पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया. उस का बड़ेबड़े लोगों के साथ उठनाबैठना हो गया था. अब उसे पिता के आटोरिकशा चलाने पर शर्म महसूस होती थी. लिहाजा, उस ने दूसरे शहर में अपना ट्रांसफर करा कर वहीं शादी करने का फैसला किया. कुछ समय बाद बेटे ने अपनी मां को फोन किया, ‘‘मां, कल मैं शादी कर रहा हूं. किसी दिन आ कर मैं आप का आशीर्वाद ले जाऊंगा.’’
यह सुन कर मां ने कहा, ‘बेटा, या तो तू यहां आ कर शादी कर ले या फिर हम वहां आ जाते हैं.’ ‘‘मां, वहां सब मुझे जानते हैं कि मैं आटोरिकशा वाले का बेटा हूं. मुझे शर्म आती है.
यहां मुझे कोई नहीं जानता, इसलिए मैं यहीं रहूंगा. आप यहां नहीं आना, क्योंकि यहां मेरा जो स्टेटस है, उस में आप एडजस्ट नहीं कर पाओगे,’’ बेटे ने कह डाला. इसी बीच रामलाल ने फोन ले कर कहा, ‘बेटा, इसी आटोरिकशा वाले ने ही तेरा यह स्टेटस बनाया है.
क्या तुम्हारी खुशियों में हमें शामिल होने का या तुम्हारी जिंदगी में हमारा कोई हिस्सा नहीं है?’ यह सुन कर बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप ने जो किया वह अपने अहम के लिए किया. जब भी मेरे अच्छे नंबर आते थे, आप सब को बताते फिरते थे. अब मैं जिस शहर और सर्कल में हूं, वह दूसरा है.
यहां सब के मांबाप पहले से ही हैसियत वाले हैं. ‘‘आप हमारे समाज को तो जानते ही हैं न, जो धर्म, जाति, रंग के साथसाथ बैकग्राउंड से भी बंटा हुआ है. आप ने ही मुझे समझाया था कि मैं मुसलिम और दलितों से दोस्ती नहीं करूं, क्योंकि वे हम जैसे नहीं हैं. आप और मां भी अब मेरे और आप की बहू जैसे नहीं हैं.’’ रामलाल मुंह खोले सुन रहा था और उस के पास जवाब देने लायक बोल नहीं बचे थे.