शहनवाज जैसे ही हैडक्वार्टर से घर पहुंचा, तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उस ने मोबाइल फोन उठा कर देखा कि कोतवाली से इंस्पैक्टर अशोक शुक्ला का फोन था. उस ने काल रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो…’’‘शहनवाज, आप अभी कोतवाली आ जाइए. आप ने जिस औरत की अपने प्रेमी के साथ घर से भागने की अर्जी दिलाई थी, वह अपने प्रेमी के साथ कोतवाली पहुंच गई है.

आप भी शिकायत करने वाले को ले कर कोतवाली पहुंचे जाइए,’ उधर से इंस्पैक्टर अशोक शुक्ला बोले और फोन कट गया.यह सुन कर शहनवाज का मूड औफ हो गया. सुबह से तो वह दौड़ ही रहा था. आज डीएम साहब ने मीटिंग की थी, इसलिए सभी पत्रकारों को हैडक्वार्टर बुलाया गया था और वहां से आ कर उस ने दो घूंट पानी तक नहीं पीया था कि उसे अब फिर कोतवाली जाना था.कुछ सोचते हुए शहनवाज ने मोबाइल फोन से काल कर यासीन को कोतवाली पहुंचने के लिए कहा और दोबारा बाइक निकाली, फिर कोतवाली की ओर चल दिया.शहनवाज 29 साल का नौजवान था.

दिखने में वह भले ही साधारण कदकाठी का था, पर उस की लेखनी और बोल में काफी दम था. उसे पत्रकारिता की गहरी समझ थी और अपने काम के प्रति वह बहुत जागरूक था.जब शहनवाज कोतवाली पहुंचा, तो उस ने देखा कि महिला सिपाही कोमल के साथ एक औरत खड़ी थी और सामने ही बैंच पर एक नौजवान बैठा था. उन को देख कर वह इतना समझ गया कि शायद यही यासीन की बीवी परवीन है और साथ में उस का प्रेमी है.यासीन के केस को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं.

दरअसल, एक हफ्ते पहले ही शहनवाज शहर से सटे कसबे खीरी में गया हुआ था. उस के न्यूज चैनल ने उस इलाके में हो रहे विकास के कामों की एक स्टोरी उस से मांगी थी, जिस की कवरेज के लिए वह अपने साथी नवाज के साथ आया हुआ था. उसे कवरेज करते देख कर कई लोग वहीं जमा हो गए थे.‘‘आप पत्रकार अंकल हैं?’’ तभी भीड़ में से किसी की आवाज सुन कर शहनवाज का ध्यान उस ओर गया. उस ने देखा कि सामने तकरीबन 6-7 साल का एक बच्चा खड़ा था.

‘‘आप ने बताया नहीं कि आप पत्रकार अंकल हैं?’’ शहनवाज कुछ बोलता, इस से पहले ही उस बच्चे ने दोबारा पूछ लिया.‘‘हां, बेटा…’’ शहनवाज ने कहा.

‘‘अंकल, आप मेरी अम्मी को वापस बुला दीजिए.

मुझे उन के बिना अच्छा नहीं लगता. वे हम सब से नाराज हो कर पता नहीं कहां चली गई हैं. पापा ने पुलिस अंकल से उन को ढूंढ़ने के लिए कहा था, लेकिन वे भी मेरी अम्मी को ढूंढ़ कर नहीं लाए,’’ वह बच्चा रोता हुआ उस से बोला.बच्चे की अपनी अम्मी के लिए मुहब्बत और उस की मासूमियत देख कर पता नहीं क्यों शहनवाज का बच्चे पर प्यार उमड़ आया और उस ने उसे अपनी गोद में उठा लिया.

‘‘अच्छा, आप के पापा कहां हैं?’’ शहनवाज ने बड़े प्यार से उस बच्चे से पूछा.‘‘वे उधर हैं,’’ बच्चा एक ओर इशारा करते हुए बोला.शहनवाज ने देखा कि कुछ ही दूरी पर एक झोंपड़ीनुमा घर था, जिस के दरवाजे पर एक मजदूर सा दिखने वाला आदमी खड़ा हुआ था.

उस की गोद में एक बच्चा भी था, जो शायद 4-5 साल का होगा.शहनवाज ने उस बच्चे को गोद से उतार दिया और उसे झोंपड़ी की ओर चलने के लिए इशारा किया. वह बच्चा चलने ही वाला था कि तभी वह आदमी, जिस की गोद में बच्चा था, तेज चल कर उन के पास आने लगा.‘‘माफ करना भाईजान, मेरे बेटे ने आप को तंग किया. मेरा नाम यासीन है और यह मेरा बेटा जुनैद है.

मैं इसे कितना समझा रहा हूं कि तेरी अम्मी जल्दी लौट आएगी, लेकिन इसे समझ नहीं आ रहा है. दिनरात ये दोनों भाई ‘अम्मीअम्मी’ की रट लगाए रहते हैं.

‘‘जब से जुनैद की बूआ ने बोला है कि कोई पत्रकार ही अब हमारी मदद कर सकता है, तभी से ये बच्चे मुझ से बोल रहे हैं कि पत्रकार अंकल के पास चलो, वे हमारी अम्मी को ढूंढ़ने में मदद करेंगे,’’ यासीन शहनवाज के पास आ कर बोला.‘‘ओह, पर आखिर आप की पत्नी इन छोटेछोटे बच्चों को छोड़ कर कहां चली गई हैं?’’ शहनवाज ने यासीन से हैरत से पूछा.

‘‘वह 5 दिन पहले अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई थी. जानकारी मिली है कि वह यहां से लखनऊ चली गई है और वहां अपने प्रेमी के साथ ही रह रही है,’’ यासीन ने धीरे से बताया.यह सुन कर शहनवाज ने उन दोनों मासूम बच्चों की ओर देखा. मां के बगैर उन दोनों के चेहरे उतरे हुए थे. वह सोच में पड़ गया कि कोई मां इतनी कठोर कैसे हो सकती है?

‘‘क्या आप ने अपनी पत्नी को ढूंढ़ने के लिए कोतवाली में कोई अर्जी दी है?’’ शहनवाज ने यासीन से पूछा.‘‘जी…’’ यासीन बोला.शहनवाज ने कुछ सोच कर यासीन से पूरी जानकारी ली और उस के बाद उस ने कोतवाली फोन मिला दिया.

उस ने इंस्पैक्टर अशोक शुक्ला को अर्जी के बारे में जानकारी देते हुए जल्द ही यासीन की पत्नी को ढूंढ़ने के लिए कहा और दोबारा अपनी कवरेज करने लगा था. उस ने यासीन का मोबाइल फोन नंबर ले लिया था, ताकि उस से दोबारा बात हो सके.‘‘शहनवाजजी, साहब आप को औफिस में बुला रहे हैं,’’ तभी किसी की आवाज सुन कर शहनवाज चौंक गया. सामने कांस्टेबल राधेश्याम खड़ा था.शहनवाज कोतवाली में चला गया. यासीन भी अपने बच्चों को ले कर कोतवाली पहुंच चुका था.

दोनों बच्चों ने जब अपनी अम्मी को देखा, तो वे भाग कर उस से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगे.‘‘अम्मी, तुम हमें छोड़ कर कहां चली गई थीं… हम अब शैतानी नहीं करेंगे… हम से कोई गलती हो गई है, तो हमें माफ कर दें और आगे से हमें कहीं छोड़ कर मत जाना,’’ जुनैद ने रोते हुए कहा.बच्चों का अपनी मां के प्रति प्यार देख कर कोतवाली का पूरा माहौल बदल गया था.

वहां मौजूद यासीन, इंस्पैक्टर अशोक शुक्ला समेत सभी की आंखें नम हो गई थीं.अचानक शहनवाज को अपनी अम्मी की याद आ गई, जो उस की नाममात्र परेशानी से परेशान हो उठती थीं. उसे अच्छी तरह से याद है, जब वह छोटा था, तो एक बार उसे दिमागी बुखार हो गया था. तब अम्मी कितना परेशान हो गई थीं और रातदिन रोरो कर बस उस की देखभाल करती थीं. और तो और उस के बीमार होने पर उन्होंने खानापीना छोड़ दिया था.फिर भी शहनवाज अपनी मां के बगैर इतनी दूर अपनी बीवी सना के साथ लखीमपुर में रह रहा था.

वह अब्बू के साथ एक छोटी सी तकरार पर सना के साथ सबकुछ छोड़ कर चला आया था. वह सोच रहा था कि कैसे रह रही होंगी उस की अम्मी उस से दूर?‘‘नहीं, तुम मेरे बच्चे नहीं हो. छोड़ो मुझे, दूर हटो और जाओ अपने बाप के पास. मुझे नहीं रहना तुम लोगों के साथ,’’ इतनी तेज आवाज सुन कर शहनवाज यादों का दामन छोड़ एक बार फिर आज में आ गया.

वह आवाज यासीन की बीवी परवीन की थी, जो अपने दोनों बच्चों को झिड़क कर खुद से अलग कर रही थी, लेकिन बच्चे थे कि अपनी अम्मी से चिपके ही जा रहे थे. शायद वे सोच रहे थे कि एक बार उन की अम्मी उन्हें गोद में उठा कर प्यार कर लें.यह सब देख कर शहनवाज को बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था. कैसी मां है यह, जो अपने बच्चों से इस तरह से बरताव कर रही है.

‘‘आखिर तुम क्यों नहीं रहना चाहती हो अपने शौहर और बच्चों के साथ? अगर कोई परेशानी है या फिर तुम्हारा शौहर तुम्हें मारतापीटता है, तो मुझे बताओ,’’ इंस्पैक्टर अशोक शुक्ला ने यासीन की बीवी से पूछा.‘‘नहीं, मुझे इन से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन मुझे नहीं रहना है यासीन और उस के बच्चों के साथ. मैं वसीम से प्यार करती हूं और मुझे उसी के साथ में रहना है,’’ परवीन कुछ दूरी पर खड़े नौजवान की ओर इशारा करते हुए बोली.‘‘लेकिन, तुम्हारे छोटेछोटे बच्चे हैं. क्या रह पाओगी इन के बगैर? ये बच्चे भी तुम से कितना प्यार करते हैं और मैं भी तुम से बहुत प्यार करता हूं, यह तुम जानती हो, लेकिन फिर भी तुम क्यों नहीं समझ रही हो…’’

परवीन की बात सुन कर यासीन ने उसे समझाने की कोशिश की.‘‘कुछ भी हो, मैं तुम्हारे साथ इस तरह की जिंदगी नहीं गुजार सकती,’’ परवीन ने दोटूक जवाब यासीन को दिया, तो यासीन दोबारा कुछ न बोला.सभी ने परवीन को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने किसी की बात नहीं मानी. उस ने तो जैसे ठान ही लिया था कि वह अपने प्रेमी वसीम के साथ ही रहेगी.

यह देख कर शहनवाज को बड़ा गुस्सा आ रहा था. उस का मन कर रहा था कि अभी जोरदार तमाचा ऐसी कमबख्त मां के गाल पर मार दे, जो इन मासूम चेहरों को देख कर भी उस की ममता नहीं जाग रही थी.जब परवीन अपने प्रेमी के साथ जाने लगी, तो दोनों बच्चे एक बार फिर फूटफूट कर रोने लगे. उन बच्चों का रोना किसी से देखा नहीं जा रहा था.‘‘पापा, अम्मी को रोक लो. हम कभी अम्मी को परेशान नहीं करेंगे,’’ मासूम जुनैद गुहार लगा रहा था.तभी अचानक महिला सिपाही कोमल ने बिना कुछ सोचेसमझे उन दोनों बच्चों को अपनी छाती से लगा लिया और उन्हें चुप कराने लगी.

कुछ ही देर में बच्चे चुप हो गए, पर वे एकटक अपनी अम्मी को देख रहे थे, जो किसी अनजान के साथ उन्हें छोड़ दूर जा रही थी.तभी कुछ सोच कर शहनवाज उन दोनों बच्चों के पास पहुंच गया और उन्हें प्यार से समझाया, ‘‘वे तुम्हारी अम्मी नहीं हैं. सच तो यह है कि तुम्हारी अम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं.’’इतना सुनना था कि वे दोनों बच्चे अचानक एक बार फिर अपनी अम्मी के पास जा पहुंचे.‘‘हमें माफ कर दें. हम ने आप को बिना वजह परेशान किया.

हमें नहीं मालूम था कि हमारी अम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं,’’ जुनैद ने इतना कहा और फिर दोनों बच्चे वापस आ गए.तभी शहनवाज ने देखा कि जुनैद की बात सुन कर परवीन की आंखें भी गीली होने लगी थीं. पर वह कुछ कहती, तभी उस का प्रेमी वसीम गाड़ी ले कर आ गया और उसे गाड़ी में बैठा कर चल दिया. दोनों बच्चे और यासीन गाड़ी को जाते हुए देखते रहे.

शहनवाज ने यासीन से भी घर जाने के लिए कहा और खुद भी अपनी बाइक उठा कर कोतवाली से बाहर आ गया. यह सब देख कर उस का सिर भारी होने लगा था और वह कय्यूम चाचा की दुकान पर चाय पीने के लिए चला गया, जो कोतवाली से कुछ दूर रेलवे स्टेशन के करीब थी.कय्यूम चाचा की दुकान से कुछ ही दूरी पर भीड़ जमा थी. शहनवाज ने पूछा, ‘‘चाचा, यह भीड़ कैसी?’’

‘‘वहां कोई पागल औरत है, जिस ने कल रात में ही एक बच्ची को जन्म दिया है. उस की गर्भनाल भी अभी नहीं कटी है. मांबच्चे में कहीं जहर न फैल जाए, इस के लिए डाक्टर की टीम गर्भनाल काटने की कोशिश कर रही है,’’ कय्यूम चाचा ने बताया.कुछ सोच कर शहनवाज भी भीड़ को चीरता हुआ वहां जा पहुंचा. उस ने देखा कि सामने एक औरत थी, जिस के फटेपुराने कपड़े पहने, बाल उलझेउलझे और शरीर से भी वह बहुत कमजोर लग रही थी.

वह चंद घंटे पहले जनमी नवजात बच्ची को सीने से चिपकाए हुए थी.एक लेडी डाक्टर बच्ची को उस से लेने की कोशिश कर रही थी, जिस से कि गर्भनाल काटी जा सके, लेकिन वह औरत बच्ची को छोड़ ही नहीं रही थी. शायद उसे लग रहा था कि वे लोग उस की बच्ची उस से छीन लेंगे.अपनी बच्ची के लिए उस पागल मां की ममता देख कर सभी हैरान हो रहे थे. तभी शहनवाज का ध्यान उस कलियुगी मां पर गया, जो अपने 2 मासूम बच्चों को रोता हुआ छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ दूर चली गई थी, बहुत दूर. उस का चेहरा ध्यान में आते ही शहनवाज का मन कसैला हो गया.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...