देश में आजकल राजनीतिक मंच पर एक रोचक प्रहसन चल रहा है. जिसे देश देख रहा है. इसमें देश के उच्चतम न्यायालय अर्थात सुप्रीम कोर्ट पर अपना प्रभाव नहीं देखकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के कानून मंत्री लगातार अलग-अलग वेशभूषा में आकर कभी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का वे सम्मान करते हैं ,कभी कहते हैं कि हमारा उच्चतम न्यायालय स्वतंत्र है और धीरे से स्थितियां यह बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि देश का उच्चतम न्यायालय पूरी तरह उनके अंकुश में आ जाए.

दरअसल ,यह सरकार के अनुरूप,  पूर्ववर्ती परंपराओं और कॉलेजियम सिस्टम के कारण नहीं हो पा रहा है. आज केंद्र में बैठी सरकार की सारी कवायद इसी में लगी हुई है कि किसी भी तरह उच्चतम न्यायालय पर अपना अंकुश हो जाए.

वर्तमान में न्यायाधीशों की नियुक्ति एक कॉलेजियम सिस्टम के तहत हो रही हैं जिसमें सरकार का कोई दखल नहीं है. ऐसे में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार चाहती है कि किसी तरह कुछ ऐसी बात बन जाए कि जिस तरह अन्य संवैधानिक संस्थाओं सहित सीबीआई प्रवर्तन निदेशालय में नियुक्ति की डोर केंद्र सरकार के पास है वैसा ही कुछ उच्चतम न्यायालय में भी हो जाए तो अपने मनमाफिक न्यायाधीश बैठाकर देश को अपनी  एकांगी  मंशा के अनुरूप देश पर स्वतंत्र रूप से सत्ता संचालन किया जाए. आज यह प्रयास इसी पटकथा के तहत किया जा रहा है. इस तरह हम कह सकते हैं कि देश आज एक जैसे चौराहे पर खड़ा है जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. ऐसे में देश में लोकतंत्र को बचाने वली शक्तियों को आज अपनी भूमिका निभानी होगी.

नरेंद्र मोदी के कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने मौका मिलते ही 22 जनवरी 2022 को  को हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के विचारों का समर्थन करने की कोशिश की है, उनके मुताबिक -“सुप्रीम कोर्ट ने खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का ‘अपहरण’ किया है.”

देश जानता है कि हालिया समय में उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव बढ़ा है. ऐसे समय में यह बयान आना यह बताता है कि कौन-कौन कितना गिर और  उठ सकता है. अगर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम के तहत नियुक्तियां कर रही है  तो आज केंद्र में बैठे हुए सत्ताधारिओं को पीड़ा क्यों हो रही है.

कानून मंत्री की मंशा

कानून मंत्री किरण रिजीजू ने दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस सोढ़ी (सेवानिवृत्त) के एक साक्षात्कार का वीडियो साझा करते हुए कहा -” यह एक न्यायाधीश की आवाज है और अधिकांश लोगों के इसी तरह के समझदारीपूर्ण ‘विचार’ हैं. यहां यह भी समझना आवश्यक है कि आज केंद्र सरकार आंख बंद कर चाहती है कि उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति उसके मुंहर से होनी चाहिए. समझने वाली बात यह है कि अगर कोई एक पार्टी जो सत्ता में आ जाती है और उसे 5 साल के लिए उसे जनादेश मिला है वह अपने लाभ के लिए लंबे समय तक का कोई फैसला कैसे ले सकती है.

साक्षात्कार में न्यायमूर्ति सोढ़ी ने यह भी कहा कि शीर्ष अदालत कानून नहीं बना सकती, क्योंकि उसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि कानून बनाने का अधिकार संसद का है. मंत्री ने ट्वीट किया कि चुने हुए प्रतिनिधि लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कानून बनाते हैं. हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है और हमारा संविधान सर्वोच्च है.

रिजीजू ने पूर्व न्यायमूर्ति सोढीं का खुलकर समर्थन करते हुए कहा यह ‘एक न्यायाधीश की आवाज’ है और अधिकांश लोगों के इसी तरह के समझदारीपूर्ण ‘विचार’ हैं.

किरण रिजिजू कानून मंत्री से यह पूछना चाहिए कि आप समझदारी भरी बातें क्यों नहीं कर रहे हैं एक न्यायाधीश कहता है तो आप ताली बजा रहे हैं सिस्टम काम कर रहा है तो आप गाल बजा रहे हैं. एक पूर्व न्यायाधीश कुछ कहता है तो आप समर्थन में खड़े हो जाते हैं देश का उच्चतम न्यायालय का पूरा ढांचा चल रहा है तो आपको तकलीफ होती है. कोई इनसे पूछे कि आपको आखिर तकलीफ क्यों है क्या आपको पता नहीं है कि अगर संसद कोई गलत कानून बनाती है जो सविधान की मंशा के खिलाफ है तो उसे सुप्रीम कोर्ट रोक सकती है, क्या आपको यह पता नहीं है कि अगर संसद कानून बना सकती है तो फिर देश का उच्चतम न्यायालय भी कानून बनाता है और यह अधिकार संविधान से उसे मिला अधिकार है.

पाठकों को याद होगा कि पिछले दिनों उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इसी शैली में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम और एक संबंधित संविधान संशोधन को रद्द करने के लिए शीर्ष अदालत पर सवाल उठाया है . स्मरण रहे -आप वही धनदीप जगदीप धनखड़ हैं जिन्होंने राज्यसभा में एक विवादित अध्यादेश पास करवा दिया था और जो बाद में सरकार को वापस देना पड़ा था . कुल मिलाकर के देश में माहौल उच्चतम न्यायालय के कालेजियम प्रणाली के विरोध में बनाने का प्रयास जारी है एक अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है जिसके परिणाम आने वाले समय में सकते हैं.

रिजीजू ने खुलकर  न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कालेजियम प्रणाली को भारतीय संविधान के प्रतिकूल बताया है. वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम और एक संबंधित संविधान संशोधन को रद्द करने के लिए शीर्ष अदालत पर सवाल उठाया है. इधर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्तियों को मंजूर देने में देरी पर भी शीर्ष अदालत ने सरकार से सवाल किया है. भारतीय जनता पार्टी की सरकार सुप्रीम कोर्ट पर जैसा प्रभाव चाहती है तो वह भूल जाती है कि आने वाले समय में अगर सत्ता हाथ से निकल गई तो जो पार्टी सत्ता में आएगी वह इसका गलत उपयोग करेगी, तब आप पछताएंगे.

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