ठगों के अलगअलग अंदाज और किरदार देख कर आम लोग सम झ ही नहीं पाते हैं और जब तक वे सम झ पाते हैं, तब तक ठगी के शिकार हो जाते हैं.ठग कभी अनपढ़गंवार के रूप में सामने आते हैं, तो कभी गांव के ठेठ देहाती बन जाते हैं. वे कभी भगवान दिखाने वाले बहुरुपिए होते हैं, तो कभी लखपतिकरोड़पति बनाने का आसान तरीका बताते हैं. ठगी का शिकार आखिर में सिर्फ हाथ मलता रह जाता है, क्योंकि पुलिस भी ठगों को पकड़ कर उस का लूटा गया सामान और रुपयापैसा लौटा पाने में निकम्मी ही साबित होती है.ठग अपना उल्लू तो सीधा कर लेते हैं, लेकिन लूटा गया इनसान कई तरह की परेशानियों में घिर जाता है. लापरवाह इनसान को ठग आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं. ठगी के अनोखे अंदाज देखिए :

अनपढ़ बन कर मांगते मदद

अगर बैंक में कभी कोई अनपढ़गंवार इनसान मदद मांगे तो सावधान हो जाएं, क्योंकि वह आप को चूना लगा कर फुर्र हो सकता है.छत्तीसगढ़ में रायपुर के उइला की एक बैंक में एक कंपनी में काम करने वाला नरेश पैसे जमा करवाने पहुंचा. वहां 2 नौजवानों ने खुद को अनपढ़गंवार बताते हुए उस से मदद मांगी.

मदद मांगने पर नरेश ने न सिर्फ उन का फार्म भर दिया, बल्कि अपना बैग उन्हें थमा कर उन के पैसे जमा करने खुद लाइन में लग गया. उन नौजवानों ने नरेश को कागज में लिपटी गड्डी दी और कहा कि इस में एक लाख रुपए हैं. नरेश ने भरोसे में उसे खोल कर नहीं देखा. काउंटर पर पता चला कि गड्डी में नोट नहीं कोरे कागज के टुकड़े थे. बदहवास नरेश को कुछ नहीं सू झा. जब तक वह कुछ सम झ पाता, ठग कहीं दूर जा चुके थे. नरेश के बैग में 30,000 रुपए थे.

बेईमान बनते हैं ईमानदार

किसी को अगर लूटना या ठगना है, तो अपनी ईमानदारी का सुबूत पेश कर दो, फिर आसानी से आप उसे चूना लगा सकते हैं. ऐसा ही एक वाकिआ रायपुर गुढि़यारी के अंबे एग्रो इंडस्ट्रीज के कैशियर सुरेश कुमार के साथ हुआ था. वे अपनी कंपनी के लिए चैक से 2 लाख रुपए कैश कराने आए थे. रुपए कैश करा कर उन्होंने अपनी बाइक के हैंडल में उन्हें रखा था. इतने में सामने से गुजरते हुए एक नौजवान ने उसे कुछ रुपए गिरने की बात बताई.

सुरेश ने पलट कर देखा, तो 50-100 के नोट सड़क पर गिरे पड़े थे. उन्हें लगा कि रुपए जेब से गिरे हैं. लिहाजा, वे पैसे उठाने के लिए आगे बढ़े. इतने में दूसरे नौजवान ने दौड़ कर उन की बाइक से बैग उठाया और वहां से भाग निकला.

जब तक सुरेश कुमार माजरा सम झ पाते, तब तक लुटेरा भाग निकला. इसी बीच रुपए दिखा कर भटकाने वाला नौजवान भी फरार हो चुका था.

ऐसी ही ठगी के शिकार हुए सैयद अख्तर. रायपुर विजया बैंक कचहरी चौक पर ट्रांसपोर्टर सैयद अख्तर बैंक से पैसे ले कर निकले और उन्हें कार की पिछली सीट पर रख दिया. पीछे से एक ठग ने जमीन पर उन से रुपए गिरने की बात कही. जैसे ही सैयद अख्तर रुपए उठाने के लिए झुके, ठग कार से रुपयों से भरा बैग ले कर भाग निकला.

पता पूछते हैं ठग अपने जाल में शिकार को फांसने के लिए कई तरीके अपनाते हैं. कई बार वे शहर में अजनबी होने की बात कह कर किसी का पताठिकाना पूछते हैं. यह पूछने का उनका असल मकसद ठगी करना होता है. बूढ़ापारा के रहने वाले उत्तम चंद्र जैन चांदी के व्यापारी हैं. इन्होंने अपने ड्राइवर को बैंक से 2 लाख रुपए कैश करा कर निकालते देखा. बस, फिर क्या था. वहीं से उन का पीछा किया गया.

ड्राइवर ने रुपए अपनी बाइक की डिक्की में रखे थे. जैसे ही वे घर के सामने रुके, ठग उन के करीब पहुंच कर किसी का पता पूछने लगे. ड्राइवर ने अपनी गाड़ी खड़ी की और आगे जा कर कहा कि इस गली से जाइए, आगे चौक पर उन का मकान है. इतने में पीछे से एक नौजवान आया और डिक्की खोल कर रुपए ले कर तेजी से भाग खड़ा हुआ. ड्राइवर ने पलट कर देखा, तो वह बहुत दूर जा चुका था. पता पूछने वाला ठग भी अपनी बाइक से फरार हो गया.

लखपति बनाने का  झांसा उपहार योजना में लखपति बनाने और बैंकौक घुमाने का  झांसा दे क 8 करोड़ रुपए की ठगी की जा रही है. नरेंद्र मोदी योजना का नाम ले कर रजिस्ट्रेशन कराने के बहाने औरतों से पैसे जमा किए जाते हैं.

ठगों ने  झांसे में फांसने के लिए तगड़ी प्लानिंग की. रामपुर आरंभ में रहने वाले विजय और अमित ने सदस्य बनाने के लिए बड़ेबड़े होटलों में पार्टियां आयोजित की. पूरा आयोजन इतनी शानोशौकत से किया जाता था कि औरतें उस के झांसे में आ जाएं और तुरंत सदस्य बन जाएं.

सदस्यों से हर महीने की किस्त के रूप में 6,000 रुपए लेने का प्रावधान रखा गया. योजना में शामिल होने के लिए कहा गया कि हर महीने एक लकी ड्रा निकाला जाएगा, जिस का पहला पुरस्कार एक लाख रुपए, दूसरा बैंकौक का टूर और अन्य पुरस्कार के रूप में टीवी, फ्रिज वगैरह देने का औफर दिया गया. अंत में योजना पूरी होने के बाद पूरी रकम ब्याज समेत लौटाने का वादा किया गया.

इतना मुनाफा और घूमने का मौका देख कर लोग इन के  झांसे में आ गए. सदस्य उस समय सकते में आ गए, जब उन्होंने योजनाकारों के दफ्तर में महीनों से ताला लटका देखा. तब उन्हें सम झ आया कि वे ठगे गए हैं. लखपति तो नहीं बन पाए, हां, पुलिस और अदालत के चक्कर शुरू हो गए.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रुस्तम नगर के रहने वाले पवन शर्मा ने छोटे नोट ले कर बड़े नोट देने पर डबल करने का  झांसा दिया. लोगों को भरमाया कि वह एक के 3 गुना पैसे कर के तुरंत देगा.

जब इस तरह कुछ लोगों को 3 गुना पैसे मिलने की बात जाहिर हो गई, तो लोगों की लंबी कतारें लग गईं. बिना मेहनत किए पैसे को तिगुना करने के लालची लोगों ने न सिर्फअपने घर और जेवर गिरवी रखे, बल्कि बच्चों को भी गिरवी रख दिया. लापरवाह होते हैं शिकार ठगी के शिकार लोगों की गहराई से स्टडी करने पर यह बात सामने आई कि ज्यादातर लोग लापरवाह होते हैं, जिस के चलते वे ठगी के शिकार होते हैं.

अब नरेश को ही लीजिए, जो बैंक में पैसे जमा करने गया था. ठग ने अनपढ़गंवार बन कर उस से मदद मांगी. मदद के नाम पर उस ने उस आदमी का फार्म भी भरा और उस से नकली रुपए की गड्डी ले कर जमा कराने लाइन में खड़ा हो गया.

यहां चूक नरेश से यह हुई कि वह अपना रुपए से भरा बैग उस अनजान आदमी को थमा गया. अगर वह ऐसी लापरवाही नहीं करता, सावधानी बरतता, रुपए से भरा बैग अपने पास ही रखता तो शायद वह न लुटता.

कुछ ऐसा ही किया उत्तम चंद्र जैन के ड्राइवर ने. उन्होंने बाइक की डिक्की में रुपए रख दिए और गाड़ी छोड़ कर अनजान आदमी को पता बताने चले गए. ठग ऐसी ही लापरवाही के इंतजार में रहते हैं. लालच में न आएं आज के भौतिकवादी युग में लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा पाने का लालची हो गया है. जब कोई लखपति बनाने का  झांसा देता है, तो आदमी उस का शिकार हो जाता है. लोगों की इसी लालची सोच का फायदा उठा कर विजय और अमित ने वीसी उपहार योजना चला कर एक  झटके में 8 करोड़ रुपए ठगे और फरार  हो गए.

लोग यह सोचने की जहमत नहीं उठाते हैं कि आखिर कोई कैसे कुछ ही दिनों में एक का 3 तिगुना पैसा दे सकता है? अगर यहां गहराई से सोचें तो धोखे की गंध आ ही जाती है, लेकिन लालच में अंधा इनसान सोचने की ताकत नहीं रखता. लिहाजा, इनसान की ऐसी लालची सोच का फायदा अहमदाबाद के अशोक जडेजा जैसे शख्स आसानी से उठा लेते हैं.

क्यों कोसते हैं पुलिसको अगर आप सावधान नहीं हैं, अपने काम के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, सचेत नहीं हैं, मिनटों में लखपति, करोड़पति बनना चाहते हैं और ठगी का शिकार हो जाते हैं, तो पुलिस प्रशासन को मत कोसिए. ऐसी ठगी के लिए आप खुद जिम्मेदार हैं. आखिर पुलिस एकएक आदमी की हिफाजत नहीं कर सकती. अपने जानमाल की हिफाजत की सब से पहली जवाबदेही आदमी की अपनी होती है.

अकसर लोग असावधानी और हद दर्जे की लालची सोच के चलते ठगे जाते हैं. पुलिस का काम पुलिसिंग का 2 पार्ट प्रिवैंशन और डिटैक्शन होता है. प्रिवैंशन का मतलब अपराध की रोकथाम के लिए किए जाने वाले उपाय. अपराध हो जाने के बाद पुलिस अपराधियों को पकड़ने के लिए जो कार्यवाही करती है, वह डिटैक्शन के तहत आता है.

पुलिस डिटैक्शन पर ज्यादा ध्यान देती है. ठगी, चोरी, लूटपाट की वारदात होने के बाद पुलिस इन्हें पकड़ने में ज्यादातर नाकाम ही साबित होती है. अपराध हो ही न, इस के लिए पुलिस प्रशासन को प्रिवैंशन की प्राथमिकता देनी चाहिए. इस के लिए पुराने अपराधियों पर निगाह रखी जानी चाहिए. बाहर से आने वालों पर कड़ी निगाह रखी जाए. बदमाशों के जमावड़े वाले ठिकाने जैसे ढाबा, गुमटियां और गलीमहल्लों में लगातार छापेमारी की जानी चाहिए. प्रिवैंशन का खास तरीका गश्त होता है. गश्त में पुलिस को पूरी ताकत  झोंकनी चाहिए.

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