आज जब देश के 2 राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हाल ही में विधानसभा चुनाव हुए हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा लोगों को नौकरी का नियुक्तिपत्र दिया जाना एक ऐसा मसला बन कर सामने है, जो सीधेसीधे निष्पक्ष चुनाव को पलीता लगाने वाला कहा जा सकता है.
इस बारे में देश की जनता से एक ही सवाल है कि अगर आज टीएन शेषन मुख्य चुनाव अधिकारी होते तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 71,000 लोगों को तो क्या किसी एक को भी सरकारी नौकरी का नियुक्तिपत्र दे सकते थे? इस का सीधा सा जवाब यही है कि बिलकुल नहीं.
देश का विपक्ष आज चुप है. देश की संवैधानिक संस्थाएं आज चुप हैं. इस आसान से लगने वाले एक मामले के आधार पर हम कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार और वे खुद लगातार कुछ न कुछ ऐसा कर रहे हैं, जिस से नियमकायदों और नैतिकता की धज्जियां उड़ रही हैं.
जैसा कि हम सब जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 लाख कर्मियों के लिए भरती अभियान वाले ‘रोजगार मेला’ के तहत तकरीबन 71,000 नौजवानों को नियुक्तिपत्र सौंपे थे. प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बयान में यह जानकारी दी थी.
कहा गया था कि ‘रोजगार मेला’ नौजवानों को रोजगार के मौके देने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की दिशा में प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता को पूरा करने में एक बड़ा कदम है.
सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात और हिमाचल प्रदेश लगातार जा रहे थे और लोगों को संबोधित कर रहे थे. ऐसे में चुनाव के वक्त नियुक्तियों का यह झुनझुना सीधेसीधे मतदान को प्रभावित करने वाला था, इसलिए इस पर निर्वाचन आयोग को खुद संज्ञान ले कर रोक लगानी चाहिए. सरकारी नौकरियों का लौलीपौप
लाख टके का सवाल यही है कि आज जब गुजरात, जो नरेंद्र मोदी का गृह प्रदेश है और जहां से उन्होंने अपनी राजनीति का सफर शुरू किया था और प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे हैं, सारा देश जानता है कि गुजरात प्रदेश का विधानसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के लिए कितनी अहम जगह रखता है, क्योंकि गुजरात की जीत सीधेसीधे नरेंद्र मोदी की जीत और गुजरात की हार उन की हार कही जाएगी.
ऐसे में नियुक्तिपत्र का यह लौलीपौप संविधान के निष्पक्ष चुनाव के विरुद्ध है और हम नरेंद्र मोदी से पूछना चाहते हैं कि अगर वे खुद विपक्ष में होते और अगर सत्ताधारी पार्टी ऐसे करती तो क्या वे चुप रहते?
जैसा कि प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान में कहा गया कि ‘यह’ रोजगार मेला रोजगार सृजन में उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा और युवाओं को उन के सशक्तीकरण और राष्ट्रीय विकास में सीधी भागीदारी के लिए सार्थक अवसर प्रदान करेगा.
हम कह सकते हैं कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव के वक्त यह सब करना सीधेसीधे निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने वाला था. आप को याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस से पहले अक्तूबर महीने में ‘रोजगार मेला’ की शुरुआत
की थी. उन्होंने एक समारोह में 71,000 नवनियुक्त कर्मियों को नियुक्तिपत्र सौंपे थे. हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश को छोड़ कर देश की 45 जगहों पर नियुक्त कर्मियों को नियुक्तिपत्र सौंपे जाएंगे. ऐसा कहना भी यह साबित करता है कि यह चुनाव वोटरों को प्रभावित करने का ही एक खेल था.
दरअसल, नियुक्तिपत्र बांटने का काम कर के यह बताया जा रहा है कि आने वाले समय में हम ऐसा काम करेंगे, जिस से साफ है कि यह वोटरों को प्रभावित करने की ही एक कोशिश है. पिछली बार जिन श्रेणियों में नौजवानों को नियुक्ति दी गई थी, उन के अलावा इस बार शिक्षक, व्याख्याता, नर्स, नर्सिंग अधिकारी, चिकित्सक, फार्मासिस्ट, रेडियोग्राफर और अन्य तकनीकी और पैरामैडिकल पदों पर भी नियुक्ति की जाएगी. प्रधानमंत्री कार्यालय ने बताया कि इस बार अच्छीखासी तादाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा विभिन्न केंद्रीय बलों में भी नौजवानों को नियुक्ति दी गई है. प्रधानमंत्री नवनियुक्त कर्मियों के लिए आयोजित किए जाने वाले औनलाइन ओरिएंटेशन कोर्स ‘कर्मयोगी प्रारंभ’ की भी शुरुआत करेंगे.
इस में सरकारी कर्मचारियों के लिए आचार संहिता, कार्यस्थल, नैतिकता और ईमानदारी, मानव संसाधन नीतियां और अन्य लाभ व भत्ते से संबंधित जानकारियां शामिल होंगी, जो उन्हें नीतियों के अनुकूल और नवीन भूमिका में आसानी से ढल जाने में मदद करेंगी. इस सब के बावजूद हम तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यही सवाल करते हैं कि क्या नियुक्तिपत्र देने का काम प्रधानमंत्री कार्यालय का है और यह कब से हो गया? नियमानुसार तो नियुक्तिपत्र वह विभाग देता है, जिस के अधीनस्थ कर्मचारी काम करता है. प्रधानमंत्री कार्यालय या प्रधानमंत्री का यह काम नहीं है और यह बात देश का हर नागरिक जानता है.