मैं तकरीबन 20 साल की थी, जब पहली बार कालेज पहुंची. मुझे एक बहुत बड़े कमरे में ले जाया गया, जहां तेज रोशनी थी और बीच में था पलंगनुमा तख्त. वहीं मुझे बैठना था, एकदम न्यूड. नीचे की देह पर बित्तेभर कपड़े के साथ. कई जोड़ा आंखें मुझे देख रही थीं. देह के एकएक उभार, एकएक कटाव पर सब की नजरें थीं. ‘‘मैं बिना हिले घंटों बैठी रहती. सांस लेती, तब छाती ऊपरनीचे होती या पलकें झपकतीं. मुझ में और पत्थर की मूरत में इतना ही फर्क रहा,’’

एक कमरे के उदास और सीलन भरे मकान में कृष्णा किसी टेपरिकौर्डर की तरह बोल रही थीं. कृष्णा न्यूड मौडल रह चुकी हैं. मैं ने मिलने की बात की, तो कुछ उदास सी आवाज में बोलीं, ‘‘आ जाओ, लेकिन मेरा घर बहुत छोटा है. मैं अब पहले जैसी खूबसूरत भी नहीं रही.’’ दिल्ली के मदनपुर खादर के तंग रास्ते से होते हुए मैं कृष्णा की गली तक पहुंचा. वे मुझे लेने आई थीं. ऊंचा कद, दुबलापतला शरीर और लंबीलंबी उंगलियां. बीच की मांग के साथ कस कर बंधे हुए बाल और आंखों में हलका सा काजल. सिर पर दुपट्टा. यह देख कर कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता कि लोअर मिडिल क्लास घरेलू औरत जैसी लगती कृष्णा ने 25 साल दिल्ली व एनसीआर के आर्ट स्टूडैंट्स के लिए न्यूड मौडलिंग की होगी.

सालों तक कृष्णा का एक ही रूटीन रहा. सुबह अंधेरा टूटने से पहले जाग कर घर के काम निबटाना, फिर नहाधो कर कालेज के लिए निकल जाना. कृष्णा मौडलिंग के शुरुआती दिनों को याद करती हैं, जब शर्म उन से ऐसे चिपकी थी, जैसे गरीबी से बीमारियां. ‘‘उत्तर प्रदेश से कमानेखाने के लिए पति दिल्ली आए, तो संगसंग मैं भी चल पड़ी. सोचा था, दिल्ली चकमक होगी, पैसे होंगे और घी से चुपड़ी रोटी खाने को मिलेगी, लेकिन हुआ एकदम अलग. यहां सरिता विहार के एक तंग कमरे को पति ने घर बता दिया. सटी हुई रसोई, जहां खिड़की खोलो तो गली वाले गुस्सा करें. ‘‘धुआंती रसोई में पटिए पर बैठ कर खाना पकाती, अकसर एक वक्त का. घी चुपड़ी रोटी के नाम पर घी का खाली कनस्तर भी नहीं जुट सका. पति की तनख्वाह इतनी कम कि पैर सिकोड़ कर भी खाने को न मिले.

तभी किसी जानने वाली ने कालेज जाने को कहा. ‘‘मैं लंबी थी. खूबसूरत थी. गांव में पलाबढ़ा मजबूत शरीर और खिलता हुआ उजला रंग. बताने वाली ने कहा कि तुम्हारी तसवीर बनाने के पैसे मिलेंगे. ‘‘कालेज पहुंची तो उन्होंने कपड़े उतारने को कह दिया. मैं भड़क गई. कपड़ेलत्ते नहीं उतारूंगी, बनाना हो ऐसे ही बनाओ. ‘‘तसवीर बनी, लेकिन पैसे बहुत थोड़े मिले. फिर बताया गया कि कपड़े उतारोगी तो 5 घंटे के 220 रुपए मिलेंगे. ये बहुत बड़ी रकम थी, लेकिन शर्म से बड़ी नहीं. कपड़ों समेत भी मौडलिंग करती तो शर्म आती कि अनजान लड़के मेरा बदन देख रहे हैं. ‘‘पहले हफ्ते कपड़े उतारने की कोशिश की, लेकिन हाथ जम गए. समझ ही नहीं पा रही थी कि इतने मर्दों के सामने कपड़े खोलूंगी कैसे? खोल भी लिया तो बैठूंगी कैसे?’’ कृष्णा की आवाज ठोस है, मानो वह वक्त उन की आवाज में भी जम गया हो.

‘‘2 हफ्ते बाद कमीज उतरी. इस के बाद कपड़े खुलते ही चले गए. बस आंखें बंद रहती थीं. बच्चे डांटते कि आंखें खोलिए तो खोलती, फिर मींच लेती. ‘‘किस्मकिस्म के पोज करने होते. कभी हाथों को एक तरफ मोड़ कर, कभी एक घुटने को ऊपर को उठा कर, तो कभी सीने पर एक हाथ रख कर मैं बैठी रहती.’’ लंबी बातचीत के बाद कृष्णा कुछ थक जाती हैं. वे बताती हैं, ‘‘बीते 5 सालों से डायबिटीज ने जकड़ रखा है. वक्त पर रोटी खानी होगी,’’ वे रसोई में खाना पकाते हुए मुझ से बातें कर रही हैं. ‘‘शुरू में मैं बहुत दुबली थी. लड़के तसवीर बनाते तो मर्द जैसी दिखती. धीरेधीरे शरीर भरा. न्यूड बैठती तो सब देखते रह जाते. कहते कि मौडल बहुत खूबसूरत है. इस की तसवीर अच्छी बनती है.

सब की आंखों में तारीफ रहती, अच्छा लगता था,’’ कृष्णा बताते हुए हंस रही थीं, आंखों में पुराने दिनों की चमक के साथ. मैं ने पूछा, ‘‘फिगर बनाए रखने के लिए कुछ करती भी थीं क्या?’’ उन्होंने बताया, ‘‘नहीं. मेहनत वाला शरीर है, आप ही आप बना हुआ. हां, बीच में तनिक मोटी हो गई थी, तो रोज पार्क में जाती और दौड़ लगाती, फिर पहले जैसे ‘शेप’ में आ गई.’’ कृष्णा जब रोटी बना रही थीं, तब मैं उन का रसोईघर देख रहा था. मुश्किल से दसेक बरतन. टेढ़ीपिचकी थाली और कटोरियां. महंगी चीजों के नाम पर एक थर्मस, जो उन्होंने ‘अमीरी’ के दिनों में खरीदा था. दीवारें इतनी नीची कि सिर टकराए. वे खुद झुक कर अंदर आतीजाती हैं. रसोईघर से जुड़ा हुआ ही ड्राइंगरूम है, यही बैडरूम भी है. 2 तख्त पड़े हैं, जिन पर उन समेत घर आए मेहमान भी सोते हैं. रोटी पक चुकी थीं. अब वे बात करने के लिए तैयार थीं. धीरेधीरे कहने लगीं, ‘‘पहली बार 2,200 रुपए कमा कर घर लाई, तो पति भड़क गए.

वे 1,500 रुपए कमाते थे. शक करने लगे कि मैं कुछ गलत करती हूं. मेरा कालेज जाना बंद हो गया. ‘‘फिर पूछतेपुछाते कालेज से एक सर आए. तब मोबाइल का जमाना नहीं था. वे बड़ी सी कार ले कर आए थे, जो गली के बाहर खड़ी थी. ‘‘सर मेरे पति को कालेज ले गए और मेरी पोट्रेट दिखाई. कहा कि फोटो बनवाने के पैसे मिलते हैं तुम्हारी पत्नी को. वह इतनी खूबसूरत जो है. ‘‘पति खुश हो गए. लौटते हुए छतरी ले कर आए. तब बारिश का मौसम था. हाथ में दे कर कहा था, ‘अब से रोज कालेज जाया कर.’ ‘‘सर ने पति को न्यूड के बारे में नहीं बताया था. सारी कपड़ों वाली तसवीरें ही दिखाई थीं.’’ ‘‘काम पर लौट तो गई, लेकिन यह सब आसान नहीं था. नंगे बदन होना. उस पर बुत की तरह बैठना. नस खिंच जाती. कभी मच्छर काटते तो कभी खुजली मचती, लेकिन हिलना मना था. छींक आए,

चाहे खांसी, सांस रोक कर चुप रहो. ‘‘महीना आने पर परेशानी बढ़ जाती. पेट में ऐंठन होती. एक जगह बैठने से दाग लगने का डर रहता, लेकिन कोई रास्ता नहीं था. ‘‘ठंड के दिनों में और भी बुरा हाल होता. मैं बगैर कपड़ों के बैठी रहती और चारों ओर सिर से पैर तक मोटे कपड़े पहने बच्चे मेरी तसवीर बनाते होते. बीचबीच में चायकौफी सुड़कते. मेरी कंपकंपी भी छूट जाए तो गुस्सा करते. पसली दर्द करती थी. एक दिन मैं रो पड़ी, तब जा कर कमरे में हीटर लगा. ‘‘एक फोटो के लिए 10 दिनों तक एक ही पोज में बैठना होता. हाथपैर सख्त हो जाते,’’ कृष्णा हाथों को छूते हुए याद करने लगीं, ‘‘नीले निशान बन जाते. कहींकहीं गांठ हो जाती. ब्रेक में बाथरूम जा कर शरीर को जोरजोर से हिलाती, जैसे बुत बने रहने की सारी कसर यहीं पूरी हो जाएगी. ‘‘5 साल पहले डायबिटीज निकली, लेकिन काम करती रही.

*शरीर सुन्न हो जाता. घर लौटती तो बाम लगाती और पूरीपूरी रात रोती. सुबह नहाधो कर फिर निकल +जाती… गरीबी हम से क्याक्या करवा गई.’’ ‘‘इतने साल इस पेशे में रहीं, कभी कुछ गलत नहीं हुआ?’’ मैं ने तकरीबन सहमते हुए ही पूछा, लेकिन मजबूत कलेजे वाली कृष्णा के लिए यह सवाल बड़ा नहीं था. ‘‘हुआ न. एक बार मुझे किसी सर ने फोन किया कि क्लास में आना है. मैं ने हां कर दी. शक हुआ ही नहीं. तय की हुई जगह पहुंची तो सर का फोन आया. तहकीकात करने लगे और पूछा कि तुम मौडलिंग के अलावा कुछ और भी करती हो क्या? मैं ने कहा कि हां, घर पर सीतीपिरोती हूं. ‘‘सर ने दोबारा पूछा कि नहीं, और कुछ जैसे सैक्स करती हो?’’ मैं शांत ही रही और कहा कि सर, मैं यह सब नहीं जानती. ‘‘फोन पर सर की आवाज आई कि जैसे दोस्ती. तुम दोस्ती करती हो? मैं ने कहा कि मैं दोस्ती नहीं, मौडलिंग करने आई हूं सर. करवाना हो तो करवाओ, वरना मैं जा रही हूं. ‘‘फिर मैं लौट आई.

पति को इस बारे में नहीं बताया. वो शक करते, जबकि मेरा ईमान सच्चा है. ‘‘कहीं से फोन आता तो भरोसे पर ही चली जाती. खतरा तो था, लेकिन उस से ज्यादा इज्जत मिली,’’ लंबीलंबी उंगलियों से बनेबनाए बालों को दोबारा संवारते हुए कृष्णा याद करते हुए बोलीं, ‘‘पहलेपहल जब कपड़े उतारने के बाद रोती तो कालेज के बच्चे समझाते थे कि तुम रोओ मत. सोचो कि तुम हमारी किताब हो. तुम्हें देख कर हम सीख रहे हैं. ‘‘मेरी उम्र के या मुझ से भी बड़े बच्चे मेरे पांव छूते थे. अच्छा लगता था. फिर सोचने लगी कि बदन ही तो है. एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा. अभी बच्चों के काम तो आ रहा है. ‘‘भले ही कम पढ़ीलिखी हूं, लेकिन मैं खुद को विद्या समझने लगी. इसी बदन ने कालेज जाने का मौका दिया, जो मुझ जैसी के लिए आसान नहीं था.’’ पूरी बातचीत के दौरान कृष्णा स्टूडैंट्स को बच्चे कहती रहीं.

उन के ड्राइंगरूम में 2 पोट्रेट भी हैं, जो इन्हीं बच्चों ने गिफ्ट किए थे. वे हर आनेजाने वाले को गर्व से अपनी तसवीरें दिखातीं और बतातीं कि वे यही काम करती हैं. ‘‘क्या लोग जानते हैं कि आप न्यूड मौडलिंग करती रहीं?’’ ‘‘नहीं. वैसे घर पर तो अब सब जानते हैं कि कालेज में कपड़े खोल कर बैठना पड़ता था, लेकिन गांव में कोई नहीं जानता. अगर पता लग जाए तो सोचेंगे कि मैं ‘ब्लू फिल्म’ में काम करती हूं. थूथू करेंगे. बिरादरी से निकाल देंगे, सो अलग. हम ने उन्हें नहीं बताया.’’ बीते एकाध साल से कृष्णा कालेज नहीं जा रहीं. डायबिटीज के बाद पत्थर बन कर बैठना मुश्किल हो चुका है. मौडलिंग के दिनों का उन का काला पर्स धूल खा रहा है. सिंगार की एक छोटी सी पिटारी है, जिस में ऐक्सपायरी डेट पार कर चुकी रैड लिपस्टिक है, काजल है और बिंदी की पत्तियां हैं. बीते दिनों की हूक उठने पर कृष्णा प्लास्टिक की इस पिटारी को खोलती और आईने में देखते हुए सिंगार करती हैं.

संदूक पर रखा यह बौक्स वे मुझे भी दिखाती हैं. लौटते हुए वे कहती हैं, ‘‘फोन तो बहुतेरे आते हैं, लेकिन मैं जाऊं कैसे… डायबिटीज है तो बिना हिले बैठ नहीं सकती. तिस पर गले के आपरेशन ने चेहरा बिगाड़ दिया. बदन पर अब मांस भी नहीं. न्यूड बैठती तो बच्चे मुझे सब से खूबसूरत मौडल पुकारते. अब मैं वह कृष्णा नहीं रही. बस, तसवीरें ही बाकी हैं.’’

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