करीब 3 दशक पहले आतंक का पर्याय बन चुका दुनिया का दुर्दांत आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का दोस्त अल जवाहिरी का मारा जाना चौंकाने वाली घटना हो सकती हैलेकिन सवाल खत्म नहीं हुआ है कि क्या उस की मौत से आतंक के सम्राज्य का भी खात्मा हो गयापढि़ए इस रिपोर्ट में कि खूंखार जिहादी जवाहिरी इतनी आसानी से कैसे मारा गया?

 

हर रोज की तरह 31 जुलाई2022 को सूर्योदय के करीब घंटा भर बाद अल कायदा मुखिया अयमन अल

जवाहिरी टहलता हुआ बालकनी पर आया. वह अमेरिका समेत पूरी दुनिया में आतंक फैलाने वाला और आतंक के शिखर पर बैठा खूंखार इस्लामिक जिहादी था. तब समय 6 बज कर 18 मिनट के करीब था.

वह काबुल में शेरपुर स्थित सेफ हाउस मकान की सब से ऊपर वाली बालकनी में 2-4 कदम ही चल पाया था कि तभी 2 मिसाइलें सनसनाती हुईं उस की तरफ आईं. उस ने दुर्घटना की आशंका से बचने की कोशिश कीलेकिन वे मिसाइलें वहीं आ कर गिरीं. हल्का सा धमाका हुआ और अगले ही पल जवाहिरी बालकनी में धड़ाम से गिर गया.

आवाज सुन कर परिवार के लोग दौड़ेदौड़े बालकनी में आए. उन्होंने 71 वर्षीय जवाहिरी को फर्श पर बेसुध गिरा हुआ देखा. वे उसे उठाने लगेलेकिन उन्होंने पाया कि जवाहिरी का शरीर बेजान हो चुका है और सांसें बंद हो चुकी हैं. दरअसलउस की मौत हो गई थी. वह मिसाइल हमले में मारा गया था.

इस हमले से कोई तेज विस्फोट का धमाका भी नहीं हुआ थाऔर न ही जवाहिरी के अलाव कोई और हताहत हुआ था. यहां तक कि मकान को भी किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ था.

मिसाइल अमेरिकी ड्रोन विमान के जरिए दागी गई थी. इस की तैयारी अमेरिका ने एक सप्ताह पहले ही कर ली थीखुफिया एजेंसी द्वारा जवाहिरी की हर गतिविधि की जानकारी जुटा ली गई थी.

उस जानकारी के मुताबिक काबुल के एक मुख्य इलाके में स्थित इस 3 मंजिला मकान में रह रहे मिस्र के इस नामी जिहादी का बालकनी में सुबहसुबह टहलना पसंदीदा शौक था. वह सुबह की नमाज के बाद अमूमन उस बालकनी पर टहलने आया करता था.

 

31 जुलाई2022 रविवार को उस का यह काम अधूरा और आखिरी साबित हुआ. जिस बालकनी में 2 मिसाइलें आ कर गिरी थींउसी बालकनी से सटे कमरे में मौजूद जवाहिरी की पत्नी और बेटी को खरोंच तक नहीं आई. हमले से जो भी थोड़ीबहुत टूटफूट हुईवह केवल बालकनी में ही थी.

यह हमला इतना सटीक था कि लोगों को चौंका दिया. इस से पहले अमेरिकी सैनिकों द्वारा ऐसे कई हमले किए गएलेकिन उन का निशाना चूक गया या गलती हो गईजिस से आम लोग मारे गए. और फिर इसे ले कर हंगामा हुआ.

किंतु जवाहिरी पर हुए हमले के मामले में जिस तरह की मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ और जिस तरह से जवाहिरी की आदतों पर करीबी नजर रखी गई और उस का अध्ययन किया गयाउसी की वजह से ही ऐसा सटीक हमला हो सका.

 

जवाहिरी की मौत की पुष्टि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक घोषणा करते हुए की. उन्होंने कहा कि इंसाफ हो गया. हम ने जवाहिरी को ढूंढ कर मार दिया है. अमेरिका और यहां के लोगों के लिए जो खतरा बनेगाहम उसे नहीं छोड़ेंगे. इसी तरह से अमेरिका ने हमले में जिस तरह की मिसाइल का इस्तेमाल कियावह भी काफी अहम है.

असल में जवाहिरी अमेरिका की नजर में बिन लादेन की तरह ही दुश्मन था. अमेरिका मानता था कि जवाहिरी के हाथ भी अमेरिकी नागरिकों के खून से रंगे हुए थेजिसे वहां की खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा चलाए गए आतंकवाद विरोधी औपरेशन के तहत अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में मार डाला. वह अपने परिवार के साथ छिपा हुआ था.

वैसे उसे मार गिराने में काफी लंबा समय लग गया. इस बारे में बाइडेन का कहना था कि उसे मारने में लगा लंबा समय मायने नहीं रखता हैबल्कि उन के लिए यह महत्त्वपूर्ण था कि वह कहां छिपा हुआ था. इस से पहले भी अमेरिका ने बिन लादेन को उस के छिपने के ठिकाने पर जा कर मार गिराया था.

अल जवाहिरी का आतंकवादी बनना कोई अचनाक नहीं हुआ था. उस का इस्लामिक आतंकवाद के साथ दशकों पुराना गहरा संबंध था. हालांकि उस का संबंध मिस्र के कट्टरपंथी संगठन मुसलिम ब्रदरहुड से 14 साल की उम्र में ही हो गया था. इस के बाद वह भले ही डाक्टर बन गया होलेकिन अरबी के साथ फ्रेंच भाषा का जानकार यह शख्स ताउम्र जेहाद की आड़ में दहशत फैलाता रहा.

अल जवाहिरी 1951 में मिस्र के एक रईस परिवार में पैदा हुआ था. उस ने उच्चशिक्षा भी हासिल की थी. वह सर्जन बना. लेकिन जब उस की शादी में हाईप्रोफाइल मेहमान बुलाए गए थेतभी उस ने ऐलान कर सभी को चौंका दिया था कि ये शादी शरिया के हिसाब से होगी.

महिलाओं और पुरुषों को अलगअलग रहना होगा. अपनी शादी तक में उस ने महिलाओं और पुरुषों को एक साथ नहीं दिखने का आदेश दे दिया था.

 

27 साल की उम्र में शादी करने के बाद जवाहिरी मिस्र की सेक्युलर सत्ता का सख्त आलोचक बन बैठा था. उस ने 1970 के दशक में ही इजिप्शियन इस्लामिक जिहाद नाम का संगठन बना कर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देना शुरू कर दिया. उस ने मिस्र में इस्लामिक हुकूमत के लिए खूब लड़ाई लड़ी थी.

पहली बार उस का नाम 1981 में तब चर्चा में आया थाजब वह मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल सादत की हत्या के आरोप में एक अदालत में खड़ा था. सफेद चोगा पहने जवाहिरी तब चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था, ‘‘हम ने कुरबानी दी है और हम तब तक कुरबानियां देने को तैयार हैं जब तक कि इसलाम की जीत नहीं

हो जाती.’’

अदालत ने जवाहिरी को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया थालेकिन अवैध हथियार रखने के मामले में उसे 3 साल की कैद सुनाई गई थी. हालांकि वह एक प्रशिक्षित सर्जन था. लोग उसे डाक्टर जवाहिरी के रूप में भी जानते थे.

 

सजा काटने के बाद वह पाकिस्तान चला गया और वहां बतौर डाक्टर उन अफगान लड़ाकों का इलाज करने लगाजो सोवियत रूस के खिलाफ लड़ रहे थे. उसी दौरान उस की दोस्ती बिन लादेन के साथ हो गई. उन दिनों ओसामा बिन लादेन एक धनी जिहादी हुआ करता थाजो अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा बना हुआ था.

जवाहिरी ने मिस्र में इस्लामिक जिहाद की कमान 1993 में संभाल ली थी. उस के बाद वह नब्बे के दशक का आतंकी संगठनों की दुनिया का एक बहुत बड़ा नाम बन गया था. वह मिस्र की लोकतांत्रिक सरकार को गिरा कर इस्लामिक राज स्थापित करने के अभियान में लगा हुआ था. उस अभियान में 1200 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए थे.

जून1995 में मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक पर अदीस अबाबा में जानलेवा हमला हुआ था. उस हमले के बाद मिस्र की सरकार ने इस्लामिक जिहाद पर सख्ती बढ़ा दी थी. और उसे खत्म करने का काम शुरू कर दिया था.

जवाहिरी ने इस का बदला लेने के लिए इस्लामाबाद स्थित मिस्र के दूतावास पर हमले का आदेश दिया. बारूद से भरी 2 कारों ने दूतावास के दरवाजे पर टक्कर मार दी और जबरदस्त धमाका हुआजिस में 16 लोग मारे गए.

इस मामले में जवाहिरी पर मिस्र में मुकदमा चला और उस की गैरमौजूदगी में 1999 में उसे मौत की सजा सुना दी गई. लेकिन तब तक वह अल कायदा की स्थापना में बिन लादेन की मदद कर एक अलग मुकाम पर पहुंच चुका था.

 

2003 में अल जजीरा ने एक वीडियो जारी कियाजिस में लादेन और जवाहिरी को एक पथरीले पहाड़ी रास्ते पर सैर करते देखा गया. उस वीडियो ने अल जवाहिरी को दुनिया भर में स्थापित कर दिया.

उस के बाद सालों तक यह माना जाता रहा कि अल जवाहिरी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में छिपा हुआ है. किंतु 2011 में बिन लादेन के मारे जाने के बाद उस ने अल कायदा की कमान संभाली. तब से कई बार उस ने वीडियो जारी कर इस्लामिक जिहाद को बढ़ाने और फैलाने का

संदेश दिया.

अपने दोस्त बिन लादेन को दी गई श्रद्धांजलि में उस ने वादा किया था कि वह पश्चिमी देशों के खिलाफ और बड़े आतंकी हमले करेगा. उस ने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी थी, ‘जब तक तुम मुसलमानों की जमीन को छोड़ नहीं देतेतुम सुरक्षित होने का सपना भी नहीं

देख पाओगे.

साल 2014 में इस्लामिक स्टेट के उभार ने अल जवाहिरी का कद छोटा कर दिया. इराक और सीरिया में पनपा आईएस अल कायदा से कहीं ज्यादा खूंखार और खतरनाक बन कर उभरा. पश्चिमी देशों समेत दुनिया के तमाम आतंकवाद विरोधियों का ध्यान उस पर टिक गया.

इस का नतीजा यह हुआ कि जवाहिरी धीरेधीरे गुमनाम और बेअसर होने लगा. उस ने कई बार इस्लामिक जिहादियों को आकर्षित करने के लिए वीडियो संदेश जारी किए. अमेरिका की नीतियों पर टिप्पणियां भी कीं. लेकिन उस के संदेशों में पहले जैसा करिश्मा नहीं थाजो ओसामा बिन लादेन के संदेशों में होता था.

इस तरह से धीरेधीरे लोग जवाहिरी को भूलने लगेकिंतु पहली अगस्त को जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया कि अल जवाहिरी मारा गयातब महीनों बाद अल जवाहिरी का नाम सुर्खियों में आ गया. वैसे उस की चर्चा आखिरी बार ही हुई.

जवाहिरी अल कायदा का प्रमुख जरूर थालेकिन कुछ सालों से वह उतना प्रभावशाली नहीं रहाजितनी उस की ताजपोशी के वक्त उम्मीद जताई गई थी. उस की चर्चा सिर्फ बेतुके बयानों को ले कर ही होती थीजो उस ने भारत के अंदरूनी मामले में भी तब दिएजब हिजाब विवाद हुआ था. उस ने अपने बयानों से कश्मीरियों को भी उकसाने का काम किया था और भारत के लिए भी खतरा बना हुआ था.

इस्लामिक स्टेट (आईएस) के सक्रिय होने के बाद अल कायदा के वर्चस्व में कमी आ गई थी और जवाहिरी का रुतबा भी कम हो गया था.

 

ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अल कायदा वैसे ही कमजोर हो गया था और जवाहिरी के करीबी सहयोगी रहे कई बड़े आतंकी एकएक कर के अमेरिकी हमलों में लगातार मारे जा चुके थे. इस से मिस्र से आए जवाहिरी के नेतृत्व और रणनीतिक क्षमताओं पर भी सवाल उठने शुरू हो गए थे.

जबकि लादेन के जिंदा रहने तक जवाहिरी का रुतबा कहीं ऊंचा था. उस के समर्थकों का मानना था कि जवाहिरी एक सख्त और लड़ाका इंसान थातब अल कायदा ने दुनिया के कई मुल्कों में छोटेछोटे संगठन तैयार किए थे.

उन संगठनों के जरिए एशियामध्य पूर्व और अफ्रीका में सिर्फ आतंकी हमले करवाने के साथसाथ बड़े राजनीतिक बदलावों को भी जन्म दिया. उन्हीं में एक थी अरब क्रांतिजिस ने उन सभी छोटे संगठनों को कमजोर कर दिया.

अल कायदा 11 सितंबर2001 को न्यूयार्क में किए गए हमले के बाद चर्चा में आया थाजिस की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रची गई साजिश से उस के कद और नेटवर्क के विस्तार का पता चला था. लेकिन 2001 में हुए उस हमले के बाद अल कायदा फिर से स्थानीय स्तर पर सिमटने लगा था. जल्द ही उस का दायरा और प्रभाव अफगानिस्तान तक सीमित हो गया था.

फिर भी उसे जवाहिरी को ढूंढ निकालना आसान नहीं था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उस पर किए गए हमले से पहले सीआईए के अधिकारियों ने उस घर का विस्तृत मौडल तैयार किया था. उस मौडल को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति को भी दिखाया गया था.

अधिकारी इस बात से वाकिफ थे कि अल जवाहिरी को बालकनी में घूमना और बैठना पसंद है. उस मौडल को तैयार करने में महीनों का वक्त लग गया था.

इस नक्शे को तैयार करने तक पहुंचने में अमेरिकी जासूसों को सालों लगे थे. इस दौरान देश के 4 राष्ट्रपति बदल गए. तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर पिछले साल कब्जे के बाद उस के एक धड़े हक्कानी नेटवर्क की मदद से अल जवाहिरी के परिवार को काबुल में यह घर मिला था.

अमेरिकी जासूसों को जब उस के ठिकाने का पता चलातब हमले के वक्त उस के सही जगह पर होने के बारे में पता लगाया गया. सधी हुई और विस्तृत योजना बनाने के बाद ही बाइडेन ने इसे कार्यान्वित करने की मंजूरी दी.

योजना में यह बात कही गई थी कि हमले में सिर्फ बालकनी को नुकसान पहुंचेगा और अल जवाहिरी के अलावा घर में रह रहा कोई भी व्यक्ति प्रभावित नहीं होगा.

अप्रैल और मई में तैयारियां करने के बाद पहली जुलाई को जो बाइडेन को हमले की पूरी योजना के बारे में बताया गया. बाइडेन ने घर का मौडल देखा और सीआईए प्रमुख समेत अपने सभी सलाहकारों से रायमशविरा करने के बाद ही 25 जुलाई को इस हमले की काररवाई की मंजूरी दी थी.

अभी और बचे हैं खूंखार आतंकवादी: जवाहिरी की मौत का मतलब यह नहीं कि आतंक का खात्मा हो गया. कारणअभी और भी खूंखार आतंकी बचे हुए हैं. उन्हीं में एक है सैफ अल अदेलजो खुद को अल कायदा का उत्तराधिकारी बताता है.

अल कायदा के संस्थापक सदस्यों में सैफ अल अदेल का नाम उत्तराधिकारियों के नामों के शीर्ष में हैक्योंकि संगठन में इस की तूती बोलती है. इसे भी ओसामा बिन लादेन और अल जवाहिरी का करीबी माना जाता है.

जिस तरह से लादेन की मौत के बाद अल जवाहिरी ने अल कायदा की गद्दी संभाली थी. उसी तरह जवाहिरी की मौत के बाद आतंकी संगठन अल कायदा के अगले चीफ को ले कर भी चर्चा होने लगी है.

वैसे तो इस आतंकी संगठन में खूंखार आतंकियों की कमी नहीं हैलेकिन सैफ अल अदेल का नाम संगठन के उत्तराधिकारियों की लिस्ट में सब से ऊपर है. वैसे अल अदेल के बारे में बहुत कम लोगों को मालूम है कि वह आतंक की दुनिया का पुराना नाम है.

साल 1980 के दशक के अंत में वह आतंकवादी समूह मकतब अलखिदामत में शामिल हो गया था. यहां तक कि  9/11 आतंकी हमले में इस का भी हाथ था. वह खुद को स्वार्ड औफ जस्टिस’ (न्याय की तलवार) कहता है.

वह मिस्र की सेना का पूर्व अधिकारी रह चुका है. बताते हैं कि वह इतना खूंखार है कि एफबीआई ने उसे मोस्ट वांटेट की सूची में शामिल किया है और उस के सिर पर 10 मिलियन डालर का ईनाम भी है. यही कारण है कि जवाहिरी के मरने के बाद इसे ही अलकायदा का अगला उत्तराधिकारी माना जा रहा है.

अल अदेल 30 वर्ष की उम्र से ही कुख्यात रहा है. तब उस ने सोमालिया के मोगादिशु में 1993 के कुख्यात ब्लैक हौक डाउन’ औपरेशन को अंजाम दिया था. इस औपरेशन में 19 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे.

इस के बाद सैनिकों के शवों को सड़क पर घसीटा गया था. 2011 में ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद से अल अदेल अल कायदा के भीतर एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिकार बन गया था.

 

अल कायदा में नेतृत्व के लिए सब से आगे मिस्र का पूर्व कमांडर और ओसामा का वफादार सैफ अल अदेल का जन्म नील डेल्टा में हुआ था. करीब 22 सालों से इस आतंकी संगठन से जुड़ कर ईरान और अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा में अपना ठिकाना बदलता रहा है.

वैसे वह शिया बहुल ईरान में कई सालों तक रहा हैजबकि अलकायदा एक सुन्नी संगठन है. 2001 में कांधार में एक छापे के दौरान अमेरिकी सेना द्वारा बरामद की गई एक लिस्ट में वह 8वें नंबर पर था. इस लिस्ट में 170 लोगों का नाम था. ओसामा इस लिस्ट में सब से ऊपर था.

बताते हैं कि सैफ का शरीर चोटों के निशानों से भरा पड़ा है. उस की दाहिनी आंख के नीचे चोट की वजह से एक घाव है. उस के दाहिने हाथ पर एक चोट का निशान है और एक हाथ टूटा हुआ है. सोमालिया में अमेरिका के खिलाफ लड़ाई और गुरिल्ला युद्ध का भी वह अनुभव रखता है.

उस के सिर पर भी 5 मिलियन डालर का ईनाम थाजिसे बाद मे 10 मिलियन डालर कर दिया गया. इस की वजह नैरोबी में बमबारी और अगस्त 1998 के दार एस सलाम बम विस्फोटों में उस की कथित भूमिका थी.

इस विस्फोट में 224 लोग मारे गए थे. वह अफगानिस्तान में फारुक ट्रेनिंग कैंप का अमीर था. रम्जी यूसफजो 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए एक हमले में शामिल थाको उस का स्टूडेंट माना जाता है.

अब्देल रहमान अल मगरीबी

अलकायदा का एक और वरिष्ठ आतंकी अब्देल रहमान अल मगरीबी अल जवाहिरी का दामाद है. वह मोरक्को का रहने वाला है और कोर काउंसिल का सदस्य है. उस ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. जर्मनी में सौफ्टवेयर प्रोग्रामिंग सीखने के बाद अल कायदा के मीडिया औपरेशन और इस के आधिकारिक मीडिया विंग अल साहब के नेतृत्व का काम संभाले हुए है.

अमेरिका ने उस के सिर पर 7 मिलियन डालर का ईनाम रखा है. रहमान के बारे में एफबीआई का कहना है कि 11 सितंबर2001 की घटनाओं के बादअल मगरीबी ईरान भाग गया था और शायद ईरान और पाकिस्तान के बीच आताजाता रहता है. अमेरिकी सरकार की नजर में वह अलकायदा का एक वरिष्ठ नेता  है.

अबू इखलास अल मसरी

अलकायदा के एक शीर्ष सैन्य कमांडरमसरी को अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से अप्रैल2011 में एक छापे के दौरान पकड़ लिया था. अलकायदा के अधिकांश शीर्ष नेताओं की तरह मसरी भी मिस्र से है.

हालांकिअफगानिस्तान के लिए पहला अमीर मसरी को पिछले साल अफगान तालिबान ने जेल से मुक्त कर दिया गया. अमेरिका का दावा है कि वह कश्मीर के आतंकी समूहों से जुड़ा रहा है.

अमीन मोहम्मद अलहक साम

यह एक डाक्टर और अफगान नागरिक है. अमीन मोहम्मद उल हक साम खान ओसामा बिन लादेन का सिक्योरिटी कोऔर्डिनेटर रह चुका है. यह अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है.

अमीन को पाकिस्तान में पकड़ लिया गया थालेकिन सबूतों के अभाव में उसे बाद में रिहा कर दिया गया. उस की रिहाई पर पश्चिमी देश नाराज हुए थे.

पिछले साल तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के बाद वह देश के नंगरहार प्रांत में लौट आयाजहां उस का जन्म हुआ था. यहां पहुंचने पर भीड़ ने उस का जोरदार स्वागत किया था.

वह 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका द्वारा तय किए गए 39 आतंकवादियों में से एक था. ओसामा बिन लादेन और अलकायदा के लिए विभिन्न गतिविधियों फंडिंग करनेयोजना बनाने और तैयारी करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने उस पर प्रतिबंध लगाया हुआ है.

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