बेटी सरोजिनी छात्रावास के अपने कमरे में रचना बहुत उधेड़बुन में बैठी हुई थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह मनीष के सामने कैसे अपने मन में पड़ी गांठ की गिरह को खोले. कितना बड़ा जोखिम था इस गांठ की गिरह को खोलने में, यह सोच कर ही वह कांप गई.
इस तनाव को झेलने के लिए रचना सुबह से चाय के 3 प्याले हर घंटे के भीतर गटक गई थी. वह जानती थी कि वह मनीष से कितना प्यार करती?है और मनीष... वह तो उस के प्यार में दीवाना है, पागल है. इन हालात में कैसे वह उस बात को कह दे, जिस के बाद कुछ भी हो सकता था. लेकिन फिर उस ने सोचा कि अब समय आ गया है कि कुछ बातें तय हो ही जानी चाहिए. कुछ अनकही बातें अब बताई ही जानी चाहिए.
लेकिन तभी रचना के मन में खयाल आया कि अगर उस ने मनीष से अपनी जाति की चर्चा कर दी, तो कहीं वह उसे खो न बैठे. लेकिन दूसरे ही पल उसे ध्यान में आया कि अगर इस समय मनीष से उस ने अपनी जाति नहीं बताई, तो यह मनीष के साथ धोखा होगा और फिर हमेशा के लिए वह उसे खो सकती है. अगर वह उसे न भी खोए, तो उस का यकीन तो खो ही सकती है.
आखिरकार रचना इस नतीजे पर पहुंची कि जो भी हो, वह मनीष को अपनी जाति बता कर रहेगी, क्योंकि यकीन प्यार का सब से बड़ा सूत्र होता है. अगर एक बार यकीन की डोर टूट गई, तो फिर प्यार की डोर टूटने में पलभर की देरी भी न लगेगी.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरस सलिल सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरस सलिल मैगजीन का सारा कंटेंट
- 1000 से ज्यादा सेक्सुअल हेल्थ टिप्स
- 5000 से ज्यादा अतरंगी कहानियां
- चटपटी फिल्मी और भोजपुरी गॉसिप
- 24 प्रिंट मैगजीन
डिजिटल

सरस सलिल सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरस सलिल मैगजीन का सारा कंटेंट
- 1000 से ज्यादा सेक्सुअल हेल्थ टिप्स
- 5000 से ज्यादा अतरंगी कहानियां
- चटपटी फिल्मी और भोजपुरी गॉसिप