किसी गरीब परिवार से उठा आदमी, जिस ने बचपन में झुग्गियों में अपनी जिंदगी बिताई हो, झोटाबुग्गी चलाई हो, किराए की साइकिल पर घूमा हो, गलीमहल्ले में कंचे और फोटो खेले हों, यहां तक कि पड़ोसियों के घर जा कर टैलीविजन देखा हो, अगर आज उसे अपने हलके में शानदार काम करने के लिए ‘बैस्ट एमएलए’ का खिताब दिया जाए, तो यकीनन इसे एक शानदार कामयाबी कहा जाएगा. यह उपलब्धि तब और ज्यादा बड़ी हो जाती है, अगर वह विधायक विपक्षी दल का हो.

यह कारनामा फरीदाबाद के युवा नेता नीरज शर्मा ने किया है, जिन्हें मौजूदा भारतीय जनता पार्टी के राज में बिना किसी विरोध के यह अवार्ड मिला है. इस अवार्ड को देने वाली विशेष चयन समिति में विधानसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के अलावा मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा और संसदीय कार्य मंत्री कंवरपाल गुर्जर भी शामिल हैं.

पेश हैं, एनआईटी-86, फरीदाबाद के विधायक नीरज शर्मा से हुई लंबी बातचीत के खास अंश :

आप ने अपने विधानसभा हलके में ऐसे कौन से काम कराए हैं, जिन की वजह से आप को ‘बैस्ट एमएलए’ का अवार्ड मिला है?

जहां तक बैस्ट की बात है, तो वह मेरी जनता है, जिस ने मुझे चुना है. हो सकता है कि चयन समिति में से कुछ को मेरा स्कूटी पर चलना पसंद आया हो, कुछ को हरियाणा रोडवेज ट्रांसपोर्ट की बस में चंडीगढ़ आनाजाना पसंद आया हो, हो सकता है कि किसी को मेरा सुरक्षा छोड़ना पसंद आया हो, कुछ को मेरा 100 रुपए महीने के किराए का चंडीगढ़ का बड़ा 5-6 कमरों का सरकारी आवास सरैंडर करना पसंद आया हो, क्योंकि मैं ने एक कमरा एमएलए होस्टल में ले रखा है. जब मेरा परिवार ही वहां नहीं रहता है, तो क्यों बेवजह मैं सरकार पर बोझ बनूं.

हो सकता है कि किसी को मेरा बेबाकी से बात कहना पसंद आया हो, क्योंकि मैं ने विधानसभा में अभी तक कोई भी बात बिना तथ्य के नहीं रखी है. मैं ने दो चावल का पापड़ कभी नहीं पकाया, बल्कि अपनी हर बात पर रिसर्च की. विधानसभा की हर बैठक में  हिस्सा लिया. मैं नगरनिगम की बैठक में भी जाता हूं. भ्रष्टाचार पर बेबाकी से बोलता हूं.

मैं ने कोरोना काल में आपदा को अवसर नहीं, बल्कि आपदा को सेवा बनाया. कोरोना की पहली लहर में ‘खिचड़ी प्रसाद’ का प्रोजैक्ट चलाया था, जिस में हम ने और प्रशासन ने रोजाना 20 से 25 हजार लोगों के लिए खिचड़ी बंटवाई थी. मुझे तो यही वजहे लगती हैं यह अवार्ड मिलने की.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जब अपना पहला बजट पेश किया था, तब उन्होंने जिक्र किया था कि आप ने उन्हें कुछ सुझाव दिए थे, जिन पर काम भी हुआ था. क्या थे वे सुझाव?

यह सच है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल राजनीति में नएनए प्रयोग करते रहते हैं. मैं खुद झारखंड के मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन का ओएसडी रह चुका हूं. मैं ने मुख्यमंत्री कार्यालय देखा हुआ है और वहां के कामकाज के तरीके को बड़ी बारीकी से जानता हूं.

जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल को बतौर वित्त मंत्री अपना पहला बजट पेश करना था, तब उन्होंने 3 दिन का एक स्पैशल सैशन लगाया था, सिर्फ सुझावों के लिए. तब मैं ने उन्हें 3 सुझाव दिए थे. पहला, सीवर के ढक्कन टूटने से खुले मेनहोल में हादसे हो जाते हैं. हमारे इलाके में (पूरे फरीदाबाद में) कई बच्चों की मौत हो गई थी. ये ढक्कन समयसमय पर बदलने चाहिए. इसे राइट टू सर्विस में शामिल किया जाना चाहिए.

दूसरा, एक सोर्बिट्रेट की गोली होती है, जो हार्ट अटैक में जान बचाने में बड़ी मददगार साबित हो सकती है, उसे हर सार्वजनिक जगह पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

तीसरा, मैं ने कहा था कि जो बच्चे स्कूल जाते हैं, उन का स्कूल जाने का रास्ता साफसुथरा हो. मुख्यमंत्री को मेरे ये सुझाव पसंद आए थे. पर स्कूली रास्तों का मामला सरकारी स्कूलों तक ही सिमट कर रह गया.

आप कांग्रेस दल से जुड़े हैं, जो हरियाणा में विपक्ष की भूमिका निभा रहा है. जब आप को यह अवार्ड मिला, तो केंद्र्रीय नेतृत्व से क्या प्रतिक्रिया आई?

हमारे जो जनरल सैक्रेटरी इंचार्ज हैं, वे खुद चुनाव लड़ रहे थे. उन का नतीजा 10 मार्च को आया था, जबकि मुझे 2 मार्च को यह अवार्ड मिल चुका था. उन का 12 दिन बाद ‘बधाई’ का मैसेज आया था.

हमारे केंद्रीय नेतृत्व में जो अपने कार्यकर्ता का सम्मान होना चाहिए, वह नहीं है. अगर हमारा हाईकमान अपने कार्यकर्ताओं के प्रति सजग होता और उन्हें मानसम्मान देता तो हमारी पार्टी के ऐसे हालात न होते.

हमारी पार्टी इंदिरा गांधी वाला दौर भूलती जा रही है. तब कार्यकर्ता जब मरजी घर से चल देता था और उन से मिल लेता था. आज एआईसीसी के अंदर बहुत कचरा इकट्ठा हो गया है. हमारे हाईकमान की आंखों पर ऐसी पट्टी बांध दी गई है, जिसे वह देख नहीं पा रहा है. जो लोग अपनी गली के आदमियों को नहीं जानते होंगे, उन को सैक्रेटरी बना रखा है. वे पार्षद का चुनाव नहीं जीत सकते, सरपंच का चुनाव नहीं जीत सकते.

अरे, संगठन में कुछ ऐसे लोग भी तो शामिल हों, जिन का कोई वजूद हो. जिन को जनता की नब्ज की पकड़ हो. वे जनता से मिलें, उन की बातें सुनें, तभी तो उन्हें पता चलेगा कि जनता किस चीज से परेशान है.

हर बात पर तो सोनिया, राहुल और प्रियंका नजर नहीं रखेंगे न, तभी तो जनरल सैक्रेटरी बनाए हुए हैं. जब वे लोग अपने कार्यकर्ताओं की, जनता की इज्जत नहीं करेंगे, तो फिर पार्टी कैसे आगे बढ़ेगी?

ऐसे कौन से उपाय हैं, जो केंद्र और राज्यों में कांग्रेस को दोबारा मजबूत कर सकते हैं?

सब से पहले तो पार्टी को अपना संगठन बनाना चाहिए. जिस को भी पावर दो पूरी दो. आज 8 साल हो गए, हमारे हरियाणा में संगठन ही नहीं है. अनुशासन सब से पहले होना चाहिए. अब सोचविचार नहीं फैसले करने होंगे. जिस राज्य में कई गुट बने हुए हैं, वहां हाईकमान कहे कि यह नेता चुन लिया गया है, अगर पसंद नहीं है तो बाहर का रास्ता खुला है.

पंजाब में देख लो. लोगों को पता ही नहीं था कि असली नेता कौन है. नवजोत सिंह सिद्धू ने राहुल और प्रियंका गांधी के आगे क्याक्या नहीं कह दिया. उन्हें अध्यक्ष बना दिया था. उन के कहने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेता को हटवा दिया, फिर चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया तो उन से भी संतुष्ट नहीं हुए. इस से लोगों में क्या मैसेज गया. अगर हाईकमान को इतनी ही नवजोत सिंह सिद्धू की बात माननी थी, तो फिर सबकुछ उन्हीं को सौंप देना चाहिए था.

अब कांग्रेस की इस हालत से राजनीति में जो वैक्यूम आया है, उसे आम आदमी पार्टी भरने की जुगत में है. पहले दिल्ली कांग्रेस से छीना और अब पंजाब पर कब्जा जमा लिया है. इस पर आप के क्या विचार हैं?

इंदिरा गांधी जैसा बुरा दौर किसी ने नहीं देखा होगा, पर वे दोबारा सत्ता में आई थीं न. ऐसी क्या खासीयत थी उन में कि लोग उन्हें दिल से पसंद करते थे? आज हम तरसते हैं कि हमारा नेता हम से मिल ले. इंदिरा गांधी अपने कार्यकर्ता की थाली में से निवाला खा लेती थीं. वे लोगों, कार्यकर्ताओं से बिना किसी अपौइंटमैंट के मिलती थीं. जिस का मन किया उठ कर चल दिया दिल्ली की तरफ. वे भी उन का हालचाल लेती थीं.

आज भी तमाम कार्यकर्ता अपने आलाकमान से कोई जमीनजायदाद नहीं मांग रहे हैं, बल्कि प्यार और मानसम्मान चाहते हैं. हमें उसी दौर को वापस लाना होगा. वर्कर को वर्कर समझें, नौकर न समझें.

आप अपने हलके में और क्या सुधार करना चाहते हैं?

हमारे शहर का सब से बड़ा दुश्मन है करप्शन और आउट औफ कैडर के अफसर. जब से यह नई सरकार है, तब से यह कोई न कोई अफसर आउट औफ कैडर का देती है, जो बंद होना चाहिए और करप्ट अफसरों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

पूरे शहर में आलम यह है कि अगर कोई एमएलए किसी के घर का बल्ब भी बदलवा देता है, तो अपने सोशल मीडिया पर प्रचार करता है कि आज फलां मकान नंबर की ट्यूबलाइट ठीक कराई. मेरी विधानसभा में मुख्यमंत्री सीवर साफ कराते हैं, तो उस का प्रैस नोट बनता है.

पर क्या यह काम मुख्यमंत्री के लैवल का है? मुख्यमंत्री और विधायकों का काम तो अपने राज्य के लिए बड़ेबड़े प्रोजैक्ट लाने का होता है, जबकि प्रचार छोटेछोटे कामों का हो रहा है. इस की वजह है कि सारा पैसा तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है.

पिछले 5 साल में नगरनिगम में साढ़े 13 हजार करोड़ का बजट पास हुआ है और इस शहर में डेढ़ हजार करोड़ भी लगता नजर नहीं आया.

इतनी बिजी जिंदगी में आप अपने परिवार को कैसे समय देते हैं?

सच कहूं तो सब नाराज रहते हैं. एमएलए बनने के बाद मैं ने पिछले ढाई साल में अपनी पत्नी के साथ सिर्फ एक बार खाना खाया है. इस के लिए मैं किसी को दोष भी नहीं दे सकता, क्योंकि यह जिंदगी मैं ने खुद चुनी है. हां, कभी समय मिलता है तो पार्क में सैर जरूर करता हूं. शाम को मेरा मन जरूर करता है कि अपनी गाड़ी से शहर की गलियों के चक्कर जरूर लगाऊं. इसे आप तनाव भगाने का जरीया भी कह सकते हैं.

पिछले 8-10 साल में आप ने सामाजिक तौर पर भारत में क्या बदलाव महसूस किया है?

जो पहले प्यार था, वह अब खत्म हो गया है. आज पड़ोसी को पड़ोसी से मतलब नहीं है. अभी होली गई है. पहले इस त्योहार पर घर में पापड़, अचार, मिठाई आदि बनते थे और पूरे महल्ले में बंटते थे, आज कोई अपने घर के लिए भी बनाने को राजी नहीं है. औनलाइन और्डर कर दो, सब घर आ जाएगा. फूड कंपनियां त्योहार पर खूब नई स्कीम चलाती हैं, क्योंकि उन का धंधा बढ़ रहा है.

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