लेखक- डा. बसंतीलाल बाबेल

बहुत छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार एक आम बात है. स्कूल जाने वाली लड़कियां, भेड़बकरियां चराने वाली और मजदूरी पर जाने वाली लड़कियां अकसर बलात्कार की शिकार होती रहती हैं.

बलात्कार के बाद बलात्कारी अपने बचाव के उपाय सोचता है. आमतौर पर बलात्कार के समय शिकारी अपनेआप को आधा पागल या गरमी में होने का बचाव लेता है. एक किस्सा दशकों पहले ?ालावाड़ (राजस्थान) का है. मैं उन दिनों वहां एडिशनल सैशन जज था. मेरे समय ऐसा ही एक मामला आया था.

एक 15 साल की छोटी लड़की एक खेत में भेड़बकरियां चरा रही थी. तभी वहां शिकारी आता है और उस लड़की को एक दूसरे खेत में यह कह कर ले जाता है कि वहां एक तरह के फल, बेर हैं, साथसाथ बेर खाएंगे.

लड़की उस आदमी के साथ उस खेत में चली जाती है. शिकारी उस के मुंह पर पट्टी बांध देता है, उसे जमीन पर गिरा देता है और नंगा कर देता है. बेरहमी से उस की छातियों को नोचता है और उस के साथ बलात्कार करता है.

जबरदस्ती करने की वजह से उस लड़की के अंग से खून बहने लगता है और वह बेहोश हो जाती है. वह अपराधी उसे वहीं छोड़ कर भाग जाता है. पर वह लड़की की निशानदेही पर पकड़ा जाता है.

जब अपराधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 376 के तहत रेप का मुकदमा चलता है, तो शिकारी बलात्कार के समय अपनेआप के पागल होने का दावा करता है, ताकि वह छूट जाए.

वह एक मनोरोग चिकित्सालय से अपने पागल होने का सर्टिफिकेट भी कुछ पैसे दे कर ले आता है. मुलजिम को भरोसा था कि उसे आरोप से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन मेरे यह बात गले नहीं उतर रही थी. प्रोसीक्यूशन की चार्जशीट से बलात्कार साबित हो रहा था. खुद अपराधी भी इस तथ्य को तो स्वीकार कर रहा था कि उस के द्वारा बलात्कार तो हुआ है, पर बलात्कार के समय वह पागल था. वह उस समय क्या कर रहा था और उस का नतीजा क्या होगा, यह सम?ाने में नाकाम था. वह भारतीय दंड संहिता की धारा 84 का फायदा पाने का हकदार है.

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