अच्छन मियां का पूरा परिवार पहले साथ में एक छत के नीचे रहता था. अच्छन मियां के 2 भाई और उन का परिवार और अच्छन मियां के अपने 4 बेटे औ 3 बेटियां सब मिलजुल कर रहते थे.

अच्छन मियां की चाबीताले की एक दुकान थी. बाद में दुकान उन का बड़ा लड़का चलाने लगा. अच्छन मियां जब तक दुकान पर बैठते थे, उन की और उन की बेगम सायरा बी की पूरा घर इज्जत करता था और प्यार करता था. बड़े 2 बेटों की शादियां हुईं और उन के बच्चे हुए तो अच्छन मियां और सायरा बी दादादादी की पदवी पा कर और भी ज्यादा प्यार और इज्जत के पात्र हो गए.

लेकिन तीनों बेटियों की शादी के बाद घर की खुशियों में कमी आ गई. अच्छन मियां और सायरा बी भी बुढ़ापे की ओर तेजी से बढ़ने लगे. आंख से दिखाई देना भी कम हो गया. अब चाबी बनाने का हुनर भी किसी काम का नहीं बचा. ऐसे में अच्छन मियां ने दुकान पूरी तरह बड़े बेटे को सौंप दी. उन का छोटा लड़का एक कंपनी में चपरासी लग गया.

अच्छन मियां के दोनों भाइयों के परिवार भी जब बढ़े तो उन लोगों ने गांव वाली अपनी जमीन पर मकान बनवा लिया. अच्छन मियां के दोनों छोटे लड़के अपने बीवीबच्चों को ले कर दूसरे शहर में नौकरी के लिए चले गए.

अब घर में 2 बेटों का परिवार बचा. बहुओं के आगे सायरा बी के फैसले कमजोर पड़ने लगे. उन की रसोई पर अब पूरी तरह बहुओं का कब्जा हो गया. वे अपनी मनमरजी की चीजें पकातीं और खिलातीं. कुछ कहो तो सुनने को मिलता, ‘यहां क्या होटल खुला है कि सब की फरमाइश का अलगअलग खाना बनेगा?’

कई बार ऐसा खाना सामने आता है, जो दांत न होने की वजह से चबाया ही नहीं जाता है. ऐसे में दोनों सत्तू घोल कर पी लेते हैं. दूधदही कभी खाने में दिखता ही नहीं है. एक रोटी और थोड़ी सी दाल देना ही दोनों बहुओं को भारी लगता है.

यही हाल गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश की शारदा रानी का है. शारदा रानी की उम्र 76 साल की है. पति जवानी में ही नहीं  रहे थे. 2 लड़के थे. छोटा लड़का अपना परिवार ले कर शुरू से ही अलग रहता था.

बड़ा लड़का मां को अपने साथ रखता था, मगर उस की पत्नी को हर काम में सास की दखलअंदाजी बरदाश्त नहीं थी, तो उस ने कुछ पैसा लोन ले कर और कुछ जमापूंजी जुटा कर एक अलग घर खरीद लिया. उस में उस के चारों भाइयों ने भी पैसे की मदद की थी.

नए घर में उस ने सास के आने पर बैन लगा दिया. अब बूढ़ी शारदा रानी अपने घर में अकेले रहती हैं. बेटा 2 दिन में एक बार चक्कर लगा लेता है और जरूरत का सामान खरीद कर रख जाता है.

इस उम्र में शारदा रानी जैसेतैसे अपने लिए रोटीदाल बनाती हैं. खुद सुबह सोसाइटी के नल से पानी लाती हैं. दिनभर अकेले पड़े बीते दिनों को याद कर के आंसू बहाती हैं. कोई नहीं है, जो उन से बात करे या उन का हाल जाने.

कोरोना काल में वे एक हफ्ते तक बुखार में तपती रहीं. बेटा बुखार की गोली का पत्ता पकड़ा गया और कोरोना के डर से कई हफ्ते तक मां को देखने भी नहीं आया.

शारदा रानी बुखार की हालत में खुद ही थोड़ाबहुत खाने को बनातीं और माथे पर पानी की पट्टियां रखरख कर बुखार कम करतीं. किसी तरह कोरोना को मात दी और जान बच गई, मगर बेटे के रूखे बरताव ने मां का दिल छलनी कर दिया.

दिल्ली के मोती नगर मैट्रो स्टेशन के नीचे सीढि़यों पर आप हर दिन एक बेहद बुजुर्ग आदमी को कंबल में लिपटा बैठा देखेंगे. वे बुजुर्ग भिखारी नहीं हैं, मगर सालों से वहां बैठे दिख रहे हैं. कभीकभी वे वहीं सीढि़यों पर सोए हुए दिखते हैं.

वे बुजुर्ग साथ में एक कपड़े का बैग रखते हैं, जिस में एक चादर और कुछ कपड़े रहते हैं. इन का मोती नगर में ही अपना घर है. घर में बेटाबहू और पोतेपोतियां हैं, मगर वे अब घर नहीं जाते हैं.

घर में बहू ने उन का बहुत तिरस्कार किया था. बेटा भी लड़ता?ागड़ता था, इसलिए उन्होंने घर छोड़ दिया. अब बेटा सुबहशाम यहीं सीढि़यों पर उन्हें खाने का पैकेट पकड़ा जाता है, जिसे कई बार वे खा लेते हैं या कई बार आसपास के कुत्तों को खिला देते हैं. नहानेधोने के लिए वे मैट्रो स्टेशन के नीचे बने सुलभ शौचालय में चले जाते हैं.

शौचालय का चौकीदार भला आदमी है. वह उन से कोई पैसा नहीं लेता है. आसपास के दुकानदारों को भी उन से हमदर्दी है. कभी कोई चायसमोसा भी खिला देता है. वे लोग उन बुजुर्ग को सम?ाते हैं कि अपने घर चले जाओ, मगर अपनों के तानों से दिल ऐसा फटा है कि वे घर जाने से मना कर देते हैं.

भारत में बुजुर्गों के साथ बहुत ही शर्मनाक बरताव होने लगा है, खासतौर पर गरीब परिवारों में तो इन्हें अब बो?ा सम?ा जाने लगा है. गरीब परिवार के बुजुर्गों को तिरस्कार, माली परेशानी के अलावा दिमागी और जिस्मानी जोरजुल्म का सामना भी करना पड़ता है.

भारत में संयुक्त परिवार का चरमराना बुजुर्गों के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है. ज्यादा उम्र या सुस्त होने की वजह से लोग उन से रूखेपन से बात करते हैं. उन की भावनात्मक कमी को पूरा करने के लिए नई पीढ़ी के पास समय नहीं है.

‘एजवेल फाउंडेशन’ नामक संस्था के एक सर्वे में सामने आया है कि कोरोना काल में बुजुर्गों के प्रति हिंसात्मक बरताव में बढ़ोतरी हुई है. तकरीबन हर तीसरे बुजुर्ग (35.1 फीसदी) ने दावा किया कि लोग बुढ़ापे में घरेलू हिंसा (शारीरिक या मौखिक) का सामना करते हैं.

इस फाउंडेशन के अध्यक्ष हिमांशु रथ का कहना है कि कोविड-19 और संबंधित लौकडाउन और प्रतिबंधों ने तकरीबन हर इनसान को प्रभावित किया है, लेकिन बुजुर्ग अब तक सब से ज्यादा प्रभावित रहे हैं. सब से बुरी तरह प्रभावित बुजुर्ग औरतें हैं.

बड़ों के साथ होने वाले गलत बरताव के ज्यादातर मामले पैसे से जुड़े होते हैं. कभी बच्चों का जमीनजायदाद अपने नाम करवाने का दबाव, तो कभी छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी बच्चों से गुजारिश करते रहने के हालात ज्यादातर परिवारों में देखने को मिलते हैं.

भारत में साढ़े 7 करोड़ बुजुर्ग या 60 साल से ज्यादा उम्र के हर 2 में एक इनसान किसी लंबी और पुरानी बीमारी से पीडि़त है. ज्यादातर बुजुर्गों में शारीरिक कमजोरी की परेशानी है.

20 फीसदी से ज्यादा बुजुर्ग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी से जू?ा रहे हैं. साथ ही, 27 फीसदी बुजुर्ग कई दूसरी तरह की बीमारियों से घिरे हुए हैं, जिन की तादाद साढ़े 3 करोड़ के आसपास है.

ऐसे में पहले से ही पीड़ा और परेशानियों के पहाड़ तले दबे बूढ़ों के लिए कोरोना की मुसीबत ने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं.

अगर अपनों का साथ व सहयोग मिले, तो जिंदगी की हर जद्दोजेहद आसान हो जाती है. अपनेपन का भाव और अपनों का लगाव उम्र के हर मोड़ पर मन को ऊर्जा देता है, पर अफसोस कि थके शरीर व कमजोर होती सोच के चलते बुजुर्गों को अपनों का साथ नहीं, बल्कि शोषण का व्यवहार मिलता है.

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