शैलेंद्र सिंह

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में शादी की एक रस्म ‘मटिकोडवा’ होती है. इस में हलदी की रस्म के बाद गांवघर की औरतें शादीब्याह के देशी गानों को गाती और डांस करती हैं.

जिस तरह से शहरों में ‘संगीत’ का कार्यक्रम होता है, वैसे परमेश्वर कुशवाहा के घर शादी में यह कार्यक्रम हो रहा था. हलदी की रस्म के बाद घर के बाहर ही नाचगाना हो रहा था. उस को देखने के लिए कुछ औरतें और जवान लड़कियां पुराने कुएं के ऊपर चढ़ गई थीं.

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वैसे तो कुएं का इस्तेमाल अब गांवों में बंद हो चुका है. ऐसे में उन के ऊपर स्लैब डाल कर उन्हें बंद कर दिया जाता है. यह स्लैब बहुत मजबूत नहीं होता है. इस की वजह यह है कि इन को दोबारा जरूरत पड़ने पर खोलने का औप्शन रखा जाता है.

कुशीनगर के नेबुआ नौरंगिया थाने के नौरंगिया गांव के स्कूल टोला में परमेश्वर कुशवाहा के घर शादी की रस्म ‘मटिकोडवा’ निभाने के दौरान हो रहे डांस को देखने के लिए बड़ी तादाद में लोग इस कुएं के स्लैब पर चढ़ गए थे. स्लैब उन का भार सहन नहीं कर पाया और टूट गया, जिस की वजह से 22 औरतें, जवान लड़कियां और किशोरियां कुएं में गिर गईं. इस दर्दनाक हादसे में 22 में से 13 जनों की मौत हो गई.

गांव के लोगों ने पुलिस की मदद से 9 औरतों और किशोरियों को बचा लिया. उत्तर प्रदेश सरकार ने कुशीनगर हादसे में मारे गए लोगों के परिवार वालों को 4-4 लाख रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की है.

प्रमुख शहर का हाल बेहाल

कुशीनगर इलाका गोरखपुर से 53 किलोमीटर पूर्व में बसा है. कुशीनगर से 20 किलोमीटर आगे जाने पर बिहार राज्य की सीमा शुरू हो जाती है. कुशीनगर का नाम महात्मा बुद्ध के चलते मशहूर है. यहां उन का निर्वाण हुआ था.

बौद्ध धर्म के मानने वाले महात्मा बुद्ध का ‘परिनिर्वाण दिवस’ मनाते हैं. दुनियाभर से तीर्थयात्री यहां आते हैं.

कुशीनगर प्रमुख बौद्ध पर्यटक शहरों में आता है. वर्ल्ड लैवल पर इस का नाम है. वहां अभी भी जागरूकता नहीं है. गांव के लोग यह नहीं सम?ा रहे हैं कि इस तरह की भीड़ लगाने से हादसे हो सकते हैं.

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महात्मा बुद्ध ने हमेशा हिंदू धर्म की कुरीतियों और रीतिरिवाजों का विरोध किया था. इस के बाद भी शादीब्याह के पुराने रीतिरिवाज अभी भी चल रहे हैं, जिन की वजह से ऐसे हादसे होते रहते हैं. इस हादसे में मरने वालों में बड़ी तादाद गरीब परिवारों की है.

नहीं मिली समय पर मदद

नौरंगिया गांव के लोगों ने बताया कि अगर सही समय पर इलाज और एंबुलैंस मिल जाती, तो कई और लोगों को बचाया जा सकता था. गांव के करीब के कोटवा सीएचसी पर न तो डाक्टर थे और न ही एंबुलैंस सही समय पर पहुंची.

यह घटना रात के तकरीबन साढ़े 8 बजे घटी थी. गांव के लोगों ने तुरंत ही एंबुलैंस को फोन किया कि लोग निकाले जा रहे हैं, उन को अस्पताल पहुंचाना है. इस के बाद भी एंबुलैंस नहीं आई.

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इस के बाद 9 बज कर, 10 मिनट पर और फिर साढ़े 10 बजे दोबारा फोन किया गया. रात में अंधेरा होने की वजह से बचाव और राहत कामों में मुश्किलें पैदा हुई थीं.

उत्तर प्रदेश में चुनाव का समय चल रहा है. इस वजह से मरने वालों को 4-4 लाख रुपए और घायलों को 50-50 हजार रुपए की मदद देने की घोषणा आननफानन में हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने शोक संदेश जारी कर दिए.

अगर उत्तर प्रदेश सरकार के दावे के मुताबिक 10 से 20 मिनट में एंबुलैंस लोगों को मिल रही है, तो यहां वह देर से कैसे पहुंची? योगी सरकार के विकास का दावा यहां फेल होता दिखा.

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